रात ने ओढ़ी
तारों जड़ी चुनरी
चाँद निहारे
पार्क का बेंच
प्रेम कहानियों का
पुराना साक्ष्य
जिस पे लिखीं
कई प्रेम कहानी
पार्क का बेंच
बहता स्वेद
गर्मी में मन चाहे
शीतल पेय
बिन स्नान के
भीगे रहते वस्त्र
गर्मी से त्रस्त
चौसठ दांत
देवें दर्शन साथ
दांपत्य सुख
कसमें सात
बांधें जीवन साथ
अटूट गाँठ
खुश पीपल
करता करतल
वायु को देख
नेता के गले
पड़ बेशर्म हुये
फूल भी अब
छत पे रखा
पितरों का भोजन
कौवा ले भागा
पिया के बिन
लगता है सावन
जेठ महीना
चोट खाकर
टूटती तो हड्डी है
लोहा खून में
नेता को दिए
फूल भी पछताते
फेंके ही जाते
हॉर्न पे हॉर्न
ड्राइवर दर्शाता
उसे ही आता
कुत्ता अभागा
छीन उसकी रोटी
कागा ले भागा
पूछ लिया तो
कानून तोड़ दिया
जात उसकी
वोट मांग के
महान कार्य किया
जात पूछ के
नेता रखते
रेतने को समाज
शब्दों के चाकू
आते सेवा को
मेवा में ढक जाते
आज के नेता
खा जाती चाट
भर भर कटोरी
जीभ चटोरी
प्रीति भोज में
घेर लेता है कोना
चाट का दोना
पिज्जा बर्गर
खाये जा रहे नित
रोटी हमारी
रोटी के स्थान
खाते हम बीमारी
सेकना भारी
किसने गढ़ी
ममता की मूरत
नानी से जाना
कहा से लाई
जाना ननिहाल जा
माँ ने ममता
उगाया वृक्ष
सघन ममता का
नानी ने सींच
माँ एक झील
ममता का सागर
नानी का घर
सोचूं अकेला
साथ चलती सोच
जब भी चलूँ
टूटा छप्पर
अभी तक मौजूद
गोबर गंध
बेटा बाहर
मोटर साइकिल
बिना हवा के
मात्र एक ही
लाल बत्ती जलती
छोटा सा क़स्बा
फॉर्म पे चिन्ह
स्कूल ना जाने का
बायां अंगूठा
चिड़िया घर
दर्शकों से ओझल
गर्मी में बाघ
चिड़िया घर
जाड़े में जानवर
मुंह को फेरे
बागों में खिले
ममता के कुसुम
मातृ दिवस
महका रहा
अब फलों की मंडी
फलों का राजा
भागती नींद
करता जब बात
झिंगुर रात
दिन में उल्लू
देख रहा जुगनू
सूर्य ग्रहण
सर्दी में बनी
पतझड़ में मरी
पत्ती की कब्र
चिल्लाने लगे
जल और कोप्टर
बाढ़ का कोप
लगन और
परिश्रम है कुंजी
सफलता की
रहती इच्छा
नृप की भी अधूरी
साधु की पूरी
फलों की मंडी
सुगंध बिखेरता
फलों का राजा
सज के बैठी
आया फलों का राजा
फलों की मंडी
घन घनेरा
छटा बिखेरा पर
ढका सवेरा
***************
घेरी बदरी
मन गावे मल्हार
प्रीत कजरी
कौन सुनेगा
तुम बिन साजन
गीत हमरी
दिल की किये
न जाओ परदेश
गली सकरी
बांध रखूंगी
इस बरसात में
प्रेम रसरी
****************
गांव की भोर
चिड़ियों की चहक
मुर्गों का शोर
शहर की भोर
स्टार्ट होती गाड़ियां
हॉर्न का शोर
बूढ़ों की भोर
जगा देती नींद से
खांसी का जोर
बच्चों की भोर
पीठ पर बस्ता
स्कूल की ओर
पत्नी की भोर
रसोई में करते
बर्तन शोर
पति की भोर
चाय बन गयी क्या
मचाते शोर
स्वप्न के संग
नींद भी पुरजोर
युवा की भोर
******************
सीधा सादा सा
भरा है भोलापन
ग्राम्य जीवन
थोड़ा घर में
थोड़े की चाह मन
ग्राम्य जीवन
जीता जीवन
प्रकृति की गोद में
ग्राम्य जीवन
बातें करता
मद मस्त पवन
ग्राम्य जीवन
चाँद सितारे
नित करे दर्शन
ग्राम्य जीवन
********************
जुटाने में ही
जिंदगी के साधन
बिता दिया जीवन
गए अकेले
न कारवां न साथी
और वो भी पैदल
तारों जड़ी चुनरी
चाँद निहारे
पार्क का बेंच
प्रेम कहानियों का
पुराना साक्ष्य
जिस पे लिखीं
कई प्रेम कहानी
पार्क का बेंच
बहता स्वेद
गर्मी में मन चाहे
शीतल पेय
बिन स्नान के
भीगे रहते वस्त्र
गर्मी से त्रस्त
चौसठ दांत
देवें दर्शन साथ
दांपत्य सुख
कसमें सात
बांधें जीवन साथ
अटूट गाँठ
खुश पीपल
करता करतल
वायु को देख
नेता के गले
पड़ बेशर्म हुये
फूल भी अब
छत पे रखा
पितरों का भोजन
कौवा ले भागा
पिया के बिन
लगता है सावन
जेठ महीना
चोट खाकर
टूटती तो हड्डी है
लोहा खून में
नेता को दिए
फूल भी पछताते
फेंके ही जाते
हॉर्न पे हॉर्न
ड्राइवर दर्शाता
उसे ही आता
कुत्ता अभागा
छीन उसकी रोटी
कागा ले भागा
पूछ लिया तो
कानून तोड़ दिया
जात उसकी
वोट मांग के
महान कार्य किया
जात पूछ के
नेता रखते
रेतने को समाज
शब्दों के चाकू
आते सेवा को
मेवा में ढक जाते
आज के नेता
खा जाती चाट
भर भर कटोरी
जीभ चटोरी
प्रीति भोज में
घेर लेता है कोना
चाट का दोना
पिज्जा बर्गर
खाये जा रहे नित
रोटी हमारी
रोटी के स्थान
खाते हम बीमारी
सेकना भारी
किसने गढ़ी
ममता की मूरत
नानी से जाना
कहा से लाई
जाना ननिहाल जा
माँ ने ममता
उगाया वृक्ष
सघन ममता का
नानी ने सींच
माँ एक झील
ममता का सागर
नानी का घर
सोचूं अकेला
साथ चलती सोच
जब भी चलूँ
टूटा छप्पर
अभी तक मौजूद
गोबर गंध
बेटा बाहर
मोटर साइकिल
बिना हवा के
लाल बत्ती जलती
छोटा सा क़स्बा
फॉर्म पे चिन्ह
स्कूल ना जाने का
बायां अंगूठा
चिड़िया घर
दर्शकों से ओझल
गर्मी में बाघ
चिड़िया घर
जाड़े में जानवर
मुंह को फेरे
बागों में खिले
ममता के कुसुम
मातृ दिवस
महका रहा
अब फलों की मंडी
फलों का राजा
भागती नींद
करता जब बात
झिंगुर रात
दिन में उल्लू
देख रहा जुगनू
सूर्य ग्रहण
सर्दी में बनी
पतझड़ में मरी
पत्ती की कब्र
बीस से साठ
रह के साथ साथ
साथ निभाया
साठ के पार
बोल दी सरकार
अब बेकार
असंख्य तारे
दो आँखों का कमाल
देखती साथ
हो पातीं दो ही
देखो चाहे हजारों
ऑंखें अपनी
चंचल नैन
दो नयनों में झांक
हो जाते चार
रंग बदले
सूर्य मौसम देख
वर्ष में कई
पूरा ब्रह्माण्ड
परखने को काफी
पांच इन्द्रियां
बना पुतला
मात्र पांच तत्व का
गर्व हजार
शब्दों की भीड़
चुने सत्रह वर्ण
हाइकू योग्य
सृजन हेतु
हौसला आवश्यक
ना कि औंजार
चिल्लाने लगे
जल और कोप्टर
बाढ़ का कोप
लगन और
परिश्रम है कुंजी
सफलता की
रहती इच्छा
नृप की भी अधूरी
साधु की पूरी
फलों की मंडी
सुगंध बिखेरता
फलों का राजा
सज के बैठी
आया फलों का राजा
फलों की मंडी
घन घनेरा
छटा बिखेरा पर
ढका सवेरा
***************
घेरी बदरी
मन गावे मल्हार
प्रीत कजरी
कौन सुनेगा
तुम बिन साजन
गीत हमरी
दिल की किये
न जाओ परदेश
गली सकरी
बांध रखूंगी
इस बरसात में
प्रेम रसरी
****************
गांव की भोर
चिड़ियों की चहक
मुर्गों का शोर
शहर की भोर
स्टार्ट होती गाड़ियां
हॉर्न का शोर
बूढ़ों की भोर
जगा देती नींद से
खांसी का जोर
पीठ पर बस्ता
स्कूल की ओर
पत्नी की भोर
रसोई में करते
बर्तन शोर
पति की भोर
चाय बन गयी क्या
मचाते शोर
स्वप्न के संग
नींद भी पुरजोर
युवा की भोर
******************
सीधा सादा सा
भरा है भोलापन
ग्राम्य जीवन
थोड़ा घर में
थोड़े की चाह मन
ग्राम्य जीवन
जीता जीवन
प्रकृति की गोद में
ग्राम्य जीवन
बातें करता
मद मस्त पवन
ग्राम्य जीवन
चाँद सितारे
नित करे दर्शन
ग्राम्य जीवन
जुटाने में ही
जिंदगी के साधन
बिता दिया जीवन
गए अकेले
न कारवां न साथी
और वो भी पैदल
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