Sunday, 31 May 2015

Haiku June 15 / gramya jeevan

रात ने ओढ़ी
तारों जड़ी चुनरी
चाँद निहारे

पार्क का बेंच
प्रेम कहानियों का
पुराना साक्ष्य

जिस पे लिखीं
कई प्रेम कहानी
पार्क का बेंच

बहता स्वेद
गर्मी में मन चाहे
शीतल पेय

बिन स्नान के
भीगे रहते वस्त्र
गर्मी से त्रस्त

चौसठ दांत
देवें दर्शन साथ
दांपत्य सुख  

कसमें सात
बांधें जीवन साथ
अटूट गाँठ


खुश पीपल
करता करतल
वायु को देख

नेता के गले
पड़ बेशर्म हुये
फूल भी अब

छत पे रखा
पितरों का भोजन
कौवा ले भागा

पिया के बिन
लगता है सावन
जेठ महीना

चोट खाकर
टूटती तो हड्डी है
लोहा खून में

नेता को दिए
फूल भी पछताते
फेंके ही जाते


हॉर्न पे हॉर्न
ड्राइवर दर्शाता
उसे ही आता

कुत्ता अभागा
छीन उसकी रोटी
कागा ले भागा


पूछ लिया तो
कानून तोड़ दिया
जात उसकी

वोट मांग के
महान कार्य किया
जात पूछ के

नेता रखते
रेतने को समाज
शब्दों के चाकू

आते सेवा को
मेवा में ढक जाते
आज के नेता

खा जाती चाट
भर भर कटोरी
जीभ चटोरी

प्रीति भोज में
घेर लेता है कोना
चाट का दोना

पिज्जा बर्गर
खाये जा रहे नित
रोटी हमारी

रोटी के स्थान
खाते हम बीमारी
सेकना भारी



किसने गढ़ी
ममता की मूरत
नानी से जाना

 कहा से लाई
जाना ननिहाल जा
माँ ने ममता

उगाया वृक्ष
सघन ममता का
नानी ने सींच

माँ एक झील
ममता का सागर
नानी का घर


सोचूं अकेला
साथ चलती सोच
जब भी चलूँ

टूटा छप्पर
अभी तक मौजूद
गोबर गंध

बेटा बाहर
मोटर साइकिल
बिना हवा के

मात्र एक ही
लाल बत्ती जलती
छोटा सा क़स्बा

फॉर्म पे चिन्ह
स्कूल ना जाने का
बायां अंगूठा

चिड़िया घर
दर्शकों से ओझल
गर्मी में बाघ

चिड़िया घर
जाड़े में जानवर
मुंह को फेरे

बागों में खिले
ममता के कुसुम
मातृ दिवस

महका रहा
अब फलों की मंडी
फलों का राजा

भागती नींद
करता जब बात  
झिंगुर रात

दिन में उल्लू
देख रहा जुगनू
सूर्य ग्रहण

सर्दी में बनी
पतझड़ में मरी
पत्ती की कब्र

बीस से साठ
रह के साथ साथ 
साथ निभाया 

साठ के पार 
बोल दी सरकार 
अब बेकार  

असंख्य तारे 
दो आँखों का कमाल
देखती साथ

हो पातीं दो ही  
देखो चाहे हजारों 
ऑंखें अपनी 

चंचल नैन  
दो नयनों में झांक 
हो जाते चार 

रंग बदले 
सूर्य मौसम देख 
वर्ष में कई 

पूरा ब्रह्माण्ड 
परखने को काफी  
पांच इन्द्रियां  

बना पुतला 
मात्र पांच तत्व का 
गर्व हजार 

शब्दों की भीड़ 
चुने सत्रह वर्ण  
हाइकू योग्य  

सृजन हेतु   
हौसला आवश्यक 
ना कि औंजार 

चिल्लाने लगे
जल और कोप्टर
बाढ़ का कोप

लगन और
परिश्रम है कुंजी
सफलता की

रहती इच्छा
 नृप की भी अधूरी
साधु की पूरी

फलों की मंडी
सुगंध बिखेरता
फलों का राजा

सज के बैठी
आया फलों का राजा
फलों की मंडी

घन घनेरा
छटा बिखेरा पर
ढका सवेरा


***************


घेरी बदरी
मन गावे मल्हार
प्रीत कजरी

कौन सुनेगा
तुम बिन साजन
गीत हमरी

दिल की किये
न जाओ परदेश  
गली सकरी

बांध रखूंगी
इस बरसात में
प्रेम रसरी 



****************

गांव की भोर
चिड़ियों की चहक
मुर्गों का शोर

शहर की भोर
स्टार्ट होती गाड़ियां
हॉर्न का शोर

बूढ़ों की भोर
जगा देती नींद से
खांसी का जोर

बच्चों की भोर
पीठ पर बस्ता
स्कूल की ओर

पत्नी की भोर
रसोई में करते
बर्तन शोर

पति की भोर
चाय बन गयी क्या
मचाते शोर

स्वप्न के संग
नींद भी पुरजोर
युवा की भोर



******************



सीधा सादा सा
भरा है भोलापन
ग्राम्य जीवन

थोड़ा घर में
थोड़े की चाह मन
ग्राम्य जीवन

जीता जीवन
प्रकृति की गोद में
ग्राम्य जीवन

बातें करता
मद मस्त पवन
ग्राम्य जीवन

चाँद सितारे
नित करे दर्शन
ग्राम्य जीवन


********************

जुटाने में ही
जिंदगी के साधन
बिता दिया जीवन
गए अकेले
न कारवां न साथी
और वो भी पैदल


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