Friday, 27 November 2015

Haiku Dec 15 / lahar

घंटों की चुप्पी
अयोध्या में गूंजता
बूट का शोर

जग जाता है
सोता हुआ समुद्र
चंचल वायु
.
रोज नहाती
फिर भी है बसाती
नदी में मत्स्य

तोड़ देती हैं
मिलते ही किनारा
लहरें दम

होती लहर
तट पर आकर  
अबला एक

उठा न पाता
छिछला होने पर
जल लहर

उठ पाती हैं
गहराई हो तभी
लहरें सभी



***************

जगा देता है
पवन का चुम्बन
सिंधु स्पंदन

बुझा न पाती
आँखों की बड़ी प्यास
सिंधु तरंग

मन उमंग
उठ जगा देती हैं
सिंधु तरंग

देख सतत
मन नाहीं थकत
सिंधु तरंग

अनोखे रंग
दूर क्षितिज संग
सिंधु तरंग

हवा के संग
करें अठखेलियां
सिंधु तरंग

ले जाती खींच
सागर तट पर
मन को मौज



*************

रुकना नहीं
हमसे ये कहती
बहती नदी

सिंधु का प्यार
उसी में डूब जाती
पाकर नदी

बहती पर
शोर नहीं करती
गहरी नदी

रात या दिन
चलते रहो नित
गाती है नदी

प्यासा सागर 
जाती पानी लेकर
पीने को नदी

जीव अनेक
रहते जो अंदर
पालती नदी

बहती नदी
रुक जाना न कहीं
कहती नदी

नहीं मिलती
इस जग को गति
होती न नदी

एक अनंत
मिल जाती अंत में
जीवन नदी

मांगो न भीख
खुद बनाओ राह
नदी की सीख

बहती नदी
मानव उत्पीड़न
सहती नदी

करके मैला
मत करो विषैला
तुम्हारी नदी

ले के बहती
छोटी नदियां साथ
महती नदी

**************

नहीं बनता
समय नदी पर
पुल या बांध

देता है हमें 
हमारी जिंदगानी
नदी का पानी

बन जाती है
खेती की पतवार
नदी की धार

बन जाता है 
टूटने पर सैलाब
नदी का तट

जीव अनेक
नदी में रहकर
पालते पेट

हल्का हो जाता
हिमगिरि का भार
नदी में फेंक

पा जाती दिशा
हो जाती तेज गति
नदी की नाव


*************

दे देते प्राण
बनाने को कीटाणु
हाथी की राह

अंधे देखते
खम्भा पंखा दीवार
विवेकी हाथी

सुन लेता है
मौन होने पर भी
ऊपर वाला 

बनता माला
जब पिरोता धागा
मोती का दाना 

नहा धोकर
चल पड़े भास्कर
दिन की चर्या

ऊपर जा के 
मेघ ठण्ड के मारे  
रोने लगता 

दिखाने लगी 
मूंगफली भी भाव 
ठण्ड आ गयी

नभ खोलता 
एक आँख दिन में 
एक रात में  

खाने दौड़ता 
सूर्य तम के पीछे
चौबीसों घंटे 

रात में बिल्ली 
आँखों में जला लेती 
डायोड बल्ब  

देख के मेघ 
नाचने लगता है
मोर का दिल 

पहने जूता 
सरपट दौड़ता 
खुर में घोडा 

सीख न पाया 
मौसी से चढ़ पाना 
पेड़ पे शेर 

दे के चिड़िया 
उजड़वाई नीड़
कपि को सीख 

पैकडे बैठा 
डाली को अजगर  
छीने न कोई 

असमंजस  
बर्फ देखें या रास्ते
कश्मीर आ के 

बर्फ की गेंद
खिलखिलाते फेंक  
घाटी का मजा  


धरा आकाश 
हिमपात के वक्त 
एक आभास  

कुल्लू मनाली
पर्यटकों से खाली 
बर्फ में ढकी 

घाटी में भारी 
हो गयी बर्फ़बारी 
पसरी शांति 

जला अलाव
जैसे ही गिरा पारा  
शामू के द्वार

हुआ सवेरा
नींद मग्न सूरज
धुंध ने घेरा

आँखों को मूंद
सोया पड़ा चन्द्रमा
ओढ़ के धुंध


आप उतरो
सामान हमें दे दो 
कुली की अर्ज 

देर से आई 
स्टेशन पर खड़ी 
कल की गाड़ी 

भांग धतूरा  
कर देते बेहोश 
शिव का भोग 

लेकर चले 
शिवरात्रि मनाने
मंदिर बेर

जाड़े की यात्रा 
गाड़ी की गति बुरी  
धुंध में घिरी 


रात की लोरी
प्रातः ही भुला देता 
पक्षी का गान 

प्रातः ही रश्मि 
सुनने चली आती 
खगों के गीत

पक्षी झरने 
वर्षा वायु सुनाते  
प्रकृति राग 

झुक जाता है 
सुनने हेतु बांस 
वायु का गीत 


शोर के बीच 
सोने हेतु पटरा
रेल की यात्रा 

सत्ता में आ के  
अपनों में ही बांटें 
दूसरे ताकें 

घंटों की चुप्पी  
अयोध्या में गूंजता  
बूट का शोर 

चाय ने रोका 
बहुतों को जाने से 
मदिरालय

आज नहीं है
घंटों बैठते नीचे
जिस वृक्ष के

खो गयी राहें
अब किधर जाएँ
घाटी में बर्फ

जहाज रेल
सबको किया देर
धुंध ने घेर

रात में खींचें
कभी ये तो कभी वो
छोटी रजाई 

निगल गयी
धुंध आग का गोला
चिंतित नभ

छाया कोहरा
बुझी नभ की आग
ठण्ड से कांपे

बुझाया धुंध
अम्बर का अलाव
अब क्या तापे

चाहती धुंध
रखना दिन भर
सूर्य को ढांपे

हुआ बेबस
धुंध में घिरा सूर्य
नभ से ताके

भू को चूमने
झुक जाता गगन
दूर क्षितिज

गिद्ध व चील
नभ में मंडराते
युद्ध समाप्त

धरा तत्पर
सूर्य का लगाने को
नया चक्कर

सिमट गया
इतिहास के गर्भ
एक और वर्ष

बच्चे हैं खुश
लाये उनको गिफ्ट
थैंक यू सैंटा

एक मिनट!
हो गया बड़ा दिन
आज का दिन
 
लेकर आये
मंगल हर पल
नूतन वर्ष

नए साल में
बुखार में है पड़ी
सर्दी में दिल्ली

ओढ़ के चली 
झिलमिल चादर 
सर्दी में गाड़ी

हवाई अड्डा 
उड़ानों में बिलम्ब 
धुंध की ब्रेक

धुंध में चलें 
गाड़ियों की रौशनी 
लापता गाड़ी

घर की बहू
आदर पाकर हो
लक्ष्मी का रूप

आने से गुरु
होता है जीवन में
सत्कर्म शुरू

सम विषम
कर रहा दिल्ली में
धुआं को कम

गुजरा साल
नहीँ ले गया साथ
आतंकवाद


************************


फायदा हेतु   
तुगलकी कायदा 
हमारी दिल्ली  

नकाबपोश 
औरों को ही दिखाते 
जन्नत 

बंदूकधारी  
बंधक गिन रहा  
वे बची सांसें 

काले बुर्के में  
मगर कह रहा 
खुद को बन्दा
  
काला नकाब
काली ही करतूत 
छुपा पिशाच 

क्यों न मरते 
जन्नत मिल जाता 
खुद अपने  


यह सवाल 
सहिष्णुता ही है कि 
नहीं उठाया 
बाबरी सूत्र तोड़ 
संविधान बनाया 




Monday, 23 November 2015

Brahman


ब्राह्मण दरिद्र होकर भी समाज को ऊँचा रखता रहा है।
पूजा पाठ करके और दान पाकर यापन करता रहा है।
अनेकों विरोध और त्रासदी को सहकर भी दुनिया में,
नीतिगत शिक्षा प्रदान व चरित्र निर्माण करता रहा है।

समाज को कर्म व पूजा-पाठ की विधि सिखाता रहा है।    
वेद, पुराण, ग्रंथों को कंठस्थ कर के बचाता रहा है।
धर्म, संस्कृति और संस्कारों को जीवित रखा ब्राह्मण,
धर्म का उत्थान कर, ईश्वर में आस्था जगाता रहा है। 




Friday, 6 November 2015

Chalo manayen diwali


चलो चलें, उसके घर, मनाएं  दिवाली
पड़ी बिना तेल के, दीया है खाली।

जलाते होंगे लोग, हजार दीप घर में
एक दीया जलाके, अँधेरे को भगा ली।  

बिन के ले जाता, बचे मोम और तेल
रख लेती दीया जलाने, माँ संभाली।

खुश हो होकर देखे फूलझड़ी पटाखे
औरों ने छोड़े, खुशियां उसने मना ली।

होती होंगी मिठाई, किस्म किस्म की
खा लिया मग्न हो, माँ ने जो बना ली।

लाई थी माँ, दिया किसी का, जीर्ण वस्त्र
नया बताकर, दिवाली पर पहना दी।

चलो चलें, उसके घर, मनाएं दिवाली


एस० डी० तिवारी 


पुत्र सीमा पर


बीत गया साल, एक बार फिर से, दिवाली आई। 
त्यौहार पर बनायी माँ ने, पकवान और मिठाई। 

जब जब उठाई वो चिमटा, कड़छी या कड़ाही,
बेटा घर पर नहीं पर्व पर, अतिशः याद सताई। 

संग में होता वह भी तो कितना अच्छा होता,
सोच रही थी टंगी तस्वीर पर टकी लगाई। 

घर होता, खुश हो हो कर खाता, दीप जलाता
यादों में डूबीबैठी वो घर, आँखों से नीर बहाई। 

पुत्र डटा है सीमा पर, हम मना रहे हैं त्यौहार!
भारत माँ है सर्वोपरि, मन को अपने समझाई। 

Deep jale

दीप जले, दीप जले
प्रसून के सम ह्रदय खिले।  दीप जले...
चारों और उजियारा छाये,
मन में छुपा अँधियारा जाये,
सबके मन में प्रेम फले।  दीप जले...
स्वार्थ हेतु मिलावट ना करना,
स्वास्थ्य हेतु प्रदूषण से बचना,
निर्बल को भी लगाना गले।  दीप जले...
कलुषित मन ना होने पाये,
उल्लसित होकर पर्व मनाएं,
दुर्भाव, विकार समूल जले।  दीप जले...
जिनके घर रहता अँधियारा,
हो ये परम कर्तव्य हमारा,
उनके घर भी दीप जले।  दीप जले ...


दिवाली में धुँआ ना उड़ाओ यारो।
चहुँ ओर रौशनी फैलाओ यारो।
गैरों के भी तम को भगाओ यारो।
इस तरह दिवाली मनाओ यारो।


साल गया, एक बार फिर से, दिवाली आई
माँ ने बनाई, त्यौहार पर पकवान, मिठाई
जब जब उठाई चिमटा, कड़छी या कड़ाही
बेटा घर नहीं पर्व पर, अतिशः याद सताई
संग होता वह भी तो कितना अच्छा होता
सोच रही टंगी तस्वीर पर टकी लगाई
घर होता, खुश हो हो खाता, दीप जलाता
याद में डूबी, बैठी घर में अश्रु बहाई
पुत्र डटा सीमा पर, हम मना रहे त्यौहार !
भारत माँ सर्वोपरि, मन को फिर समझाई

Wednesday, 28 October 2015

Lado chali gayee

लाडो चली गयी  …

लाडो, क्यों चली गयी, सरहद दे पार
ढूंढदी फिरां ओनु माँ, गली बाजार।
बिस्तर ते गुड्डा, कल्ला ही सोंदा वे
रातां नु माता रोंदी, रहंदी निहार।
ओना दा गुड्डा घर, सूखे नयन रौंदा
अम्मी बहांदी नै, असुअन दी धार।
बिखरे पये नै कुड़ी, वेख तेरे केश वे
नेड़े तू आ जा साडे, देवां संवार।
कित्थे छुपी वे लाडो, रो रो के मैया
हाथां विच कंघा ले, करदी पुकार।
पहला निवाला, केड़े मुह विच पावां
कल्ले उतरदा नईयों, गले हेठार।
खा लित्ते किताबां नु, झिंगुर पढ़ पढ़
कुर्ती रखी वै माँ, सन्दुक विच संभाल।
ओनु पता वी नहीं, कि होंदी सरहद?
खेलत खेलत दिती, कदम उतार।
कैसे पठावां ओनु, आवण दा कागज
कित्थे वै डेरा ओदा? कौण सरकार?

लाडो, क्यों चली गयी, सरहद दे पार

(C ) एस० डी०  तिवारी

लाडो क्यों चली गयी   …

लाडो क्यों चली गयी, सरहद के पार
ढूंढती फिरे है माई, गली बाजार।
बिस्तर पर गुड्डा, अकेला ही सोता
रातों को माता रोती, रहती निहार।
लाडो का गुड्डा घर, सूखे नयन रोता
अम्मी बहाती रोज, असुअन की धार।
बिखरे पड़े हैं,  गुड़िया रे केश तेरे
पास तू आ जा मेरे, दे दूँ संवार।
कहाँ छुपी तू लाडो, रो रो के मैया
हाथ में कंघा ले के, करती पुकार।
पहला निवाला, किसके मुंह में डालूँ
उतर नहीं पाता अकेले गले हेठार।
खा गए किताबें सारीं, झिंगुर पढ़ पढ़
कुर्ती रखी माँ ने, सन्दुक में संभाल।
उसको पता नहीं, क्या होती सरहद?
खेल खेल में उसने दी, कदम उतार।
कैसे पठाउं उसे, आने के कागज


कहाँ है डेरा उसका ? कौन सरकार?

(C ) एस० डी०  तिवारी 

Friday, 16 October 2015

Ganv me jiye



गांव में जिये
अभाव में जिये, मगर भाव में जिये,
जितना मिला, उसी में ताव में जिये।
गांव में जिये।
गगन, पवन, सूरज, और चाँद-सितारे,
खूब मिले, दिल खोल के मिले सारे,
खिली धूप, बादलों की छाँव में जिये।
गांव में जिये।
बाग़ बगीचा, खेत और खलिहान,
खगों के कलरव में गूंजता विहान,
कोयल की कू, काग की कांव में जिए।
गांव में जिये।
हरी धरती, हँसते फूल गमकीन,
उड़ती तितलियों के पंख रंगीन,
बसंत के पसरे हुए पांव में जिए।
गांव में जिये।
बूंदों की रुनझुन, नदी की कलकल,
खिसकती खटिया, टपकती छत,
बारिश के पानी के जमाव में जिये।
गांव में जिये।
गर्मी में झलते बेना, पोंछते स्वेद,
सर्दियों में मखमली धूप की सेंक,
निष्कपट, निर्मल स्वभाव में जिये।
गांव में जिये।
हाथों तोड़े अमरुद, आम फले, 
पगडंडियों पर कोसों पैदल चले,
प्रकृति की सुहानी ठाँव में जिए।
गांव में जिये।
संबंधों की मिठास का करते जतन,
अपनों के वास्ते लुटा दिए तन मन,
रूठे कभी तो मान मनाव में जिये।
गांव में जिये।
सादगी व सरल आव भाव में जिये
बहुत स्वछन्द अपने गाँव में जिये।
अभाव में जिये, मगर भाव में जिये।
गांव में जिये। 

एस० डी० तिवारी 

Wednesday, 30 September 2015

Ghazal Baant dalo geet


बाँट डालो, किसी अंग का तो स्वामी बन जाओगे!
सिर, हाथ, पैर, अंगुली, नाखून कुछ तो पा जाओगे।

देखा जिन्होंने दुःख, दुर्दिन; रखने को आन इसकी।
नाम तो रखे किताबों में, मिटा रहे हो शान इसकी।
दिखाने को अपना कद ऊँचा अपनी ही माता से
रौंद बेदर्दी से तुम, दबाये जा रहे अरमान इसकी।

भौंक कर के खंजर, इसका दिल कैसे धड़काओगे?
बाँट डालो, किसी अंग का तो स्वामी बन जाओगे!

कितने दुःख सहे हैं इसने, तुम भला क्या जानोगे?
स्वार्थ के चश्मे से इसकी, सूरत कैसे पहचानोगे?
औरों ने चुकाया मोल, तब मिली माता अनमोल,
इसकी आन को यूँ ही क्या तुम मिट्टी में सानोगे।

स्वार्थ की पूर्ति में खुद की क्या, माँ को काटोगे?
बाँट डालो, किसी अंग का तो स्वामी बन जाओगे!

माँ ने तो जन्म दिया है, अपने करोड़ों लाल को।
बड़े होंगे तो खड़े होंगे वो, उसकी देख भाल को।
जात, धर्म, भाषा, क्षेत्र में, बांट कर रहे टुकड़े तुम,
माँ  का कलेजा चीर के, गलाते अपनी दाल को।

बंट जाएगी तो भारत माँ फिर किसे कह पाओगे ?
बाँट डालो, किसी अंग का तो स्वामी बन जाओगे!

एस० डी० तिवारी



भागेंगे तेज तो मंजिल को जल्दी पा लेंगे ।
दरिया में मिली बूंद सा नाम मिटा लेंगे ।
चलो क्यों न हम गति को थोड़ा घटा लें,

यूँ, जिंदगी को लंबे समय तक चला लेंगे।

पल पल जी कर तितली, जीवन लम्बा कर लेती है।  
पूरे दम से चमक कर बिजली जल्दी ही मर लेती है।  
सर्दी की ऋतु पूरी, रवानी की जोह में पड़ी रहती है दरिया,
देखती जब बर्फ को पिघली, आगोश में अपने भर लेती है।

जवानी  सो रही

चढ़े उन्माद चोटी तक, थिरकता गीत गाओ तुम।
खड़े हों उठ वतन वाले, लहर ऐसी उठाओ तुम।
रिपु अनेक घुस आये, इस जमीं को कर रहे जख्मी,
जवानी सो रही देखो, उसे कविवर जगाओ तुम ।

घेरी आलस्य निद्रा है, शर शब्द चलाओ तुम।
काई, पड़ी जो ऊपर है, शब्दों से हटाओ तुम।
लुट जाये ना सब कुछ, सोती रह जाय जवानी ये,
भूली है जो दिशा मंजिल, फिर से चेताओ तुम।

पड़ा शीतल रग में रक्त, उसकी ताप बढ़ाओ तुम।
जमे कहीं निरर्थक ना, देकर आंच खौलाओ तुम।
कर रहे शत्रु कुछ भी हैं, जवानी जा रही सहती,
न हो, गड जाय सिर नीचे, चिल्लाकर बताओ तुम।

हुए शहीद अनेकों वीर, शौर्य गाथा सुनाओ तुम।
पड़े हैं सोये से जज्बे, उन्हें झकझोर जगाओ तुम।
है भटका जा रहा युवा, बनकर पथ प्रदर्शक तुम,
लगा दो आग कलम से, राह में दीप जलाओ तुम।  

मौकापरस्तों में आज वतन परस्ती जगाओ तुम।
त्यागें स्वार्थ वे, अलख, देश भक्ति का जलाओ तुम।
कहाँ राणा, शिवाजी, सुभाष, आजाद; बुलाओ तुम।
लाये जो रवानी वह, जुनूं का बिगुल बजाओ तुम।




होती है मुहब्बत किसी  किसी से जमाने को।
होते गम और भी, यूँ हर शख्श को निभाने को।

होती है मुहब्बतसबको ही अपनी जिंदगी से 
जीते हैं लिए मगरकिसी और के फसाने को।

होती है बादलों को, मुहब्बत तो अपनी बूंदों से
भेज देता है मगर, औरों की प्यास बुझाने को।

होती है मुहब्बतदरिया को अपने पानी से
सागर से चली जाती, लिए, वादा निभाने को।

होती है चाँद को, मुहब्बत अपनी चांदनी से
खुद से कर देता युदा, धरती को चमकाने को।

होती है मुहब्बतफूलों को अपनी खुशबुओं से
देता है बिखेर मगर, वो चमन को महकाने को।

होता है माँ बाप को, प्यार अपनी लाडली से
भेज देते मगरकिसी और का घर बसाने को।





हमारे साथ, उन्होंने भी वही दूरी सही होगी।
बेवफाई के पीछे, कोई मजबूरी रही होगी।
मोहब्बत का सिला, उनको भी रास आया होगा
मोहब्बत के सिवा और, बातें जरूरी रही होंगी।
काटे होंगे हमें याद कर, दिन तन्हाईयों में
यूँ हमसे मिलने की, ख्वाइशें पूरी रही होंगी।
दिन तो बिताये होंगे दीवारों से बातें करके
खामोश बीत जाती हर, शाम सिंदूरी रही होगी।
दर्दे दिल कभी छुपाये, कभी छुपा न पाये होंगे
डोलती हवाओं से, आधी अधूरी कही होगी।
किया होगा जरूर जतन, हाल बुरे काटने का
कामयाब हुए न होंगे, भोथर छुरी रही होगी। 

************

देखा था अब तक तस्वीरों में, आज वो चहरे रूबरू हुए।
जो छवि और कल्पना थी मन में, देखा तो हुबहु हुए।
फलक से सितारे उतर, चले आये हैं इस अंजुमन में,
जगे भाग अपने भी, कि मुलाकात के साथ गुफ्तगू हुए।

************

खुदा के शहर में देखादिया है  बाती है।
ना जानूं कैसे मगररात जगमगाती है।
सड़कें  पुल कहींहवा में फिर भी उड़ती 
जाणूं  कैसे दौड़ीगाड़ी चली जाती है।
पंखा  कूलर वहांलगे वातानुकूल नहीं
दिल को जुड़ाने वालीबयार महकाती है।
नहाने का घर नहींदेखा  घाट कहीं
बारिशों के पानी मेंदुनिया नहाती है।
महंगे लिवास नहींपहने  गहने कोई
जाणूं  कैसे मगरखूबसूरती लुभाती है।
बागों में फल लगेखेतों में अन्न भरे
फरिश्तों की भीड़ बैठजी भरके खाती है 
सोने  जगने कीचिंता है करता कोई
उसका ही नाम बससुख चैन बरसाती है।

*******



मैं जब चाहता हूँ, नहीं मिलती है।
तेरी हो मर्जी, तभी मिलती है।

मैं चाहता हूँ, रोज रोज तुझे,
और तू है, कभी कभी मिलती है।

खो जाती जाने किस जहाँ में तू,
ढूंढने पर भी नहीं मिलती है।

कभी पंख सी उड़ती हुई हवा में,
तो कभी बर्फ सी जमी मिलती है।

पड़ी हुई दुनिया के नजारों में,
कभी रूप में उलझी मिलती है।

कभी डोलती उलझनें लेकर, 
कभी चिंताओं में दबी मिलती है। 

क्यों नहीं रोजाना ही मुझको,
तू,  मेरी जिंदगी! मिलती है।



****



दिल को ना सख्त किया होता।
लूट कोई ले लिया होता।

किस किस पर मर मिटा होता
कमजोर गर ये हिया होता।

हक़ जमाने आ जाती दुनिया
जरा  भी नरम ये जिया होता।

टूट जाता ये कहीं पे अगर
टूटा दिल कैसे सिया होता।

छेंक लेते डगर बेईमान,
जिंदगी कैसे जिया होता।

कैसे हम आ पाते तुझ तक
किस तरह तू पिया होता।

घूमते दिल के टुकड़े लेकर
लाकर तुझे क्या दिया होता।



*************

बनाया मैंने
कहता मेरा घर
बोला पत्थर

बना पत्थर !
तू दिल रख कर
बोला पत्थर

मुझे टक्कर
रोयेगा मारकर
बोला पत्थर

चलाता छैनी
निर्मोही दिल पर
बोला पत्थर

मुझे भी लगी
तू मारा कसकर
बोला पत्थर

खाया ठोकर
चला अँधा होकर ?
बोला पत्थर



वैसे का वैसा
सदियों रहकर
बोला पत्थर

रखे तू सोना
नगीना मैं मगर
बोला पत्थर 

ताज महल
मुझसे ही सुन्दर
बोला पत्थर

तराश ले तू
मूरत है अंदर
बोला पत्थर


मूर्ति मुझमें
काढ़ ले गढ़कर
बोला पत्थर


****


करवटों में काटी सारी रात, तुम्हारे बगैर
मिल  सकी नींद की सौगात, तुम्हारे बगैर

डोलती बहारों ने, इशारों से बुलाया मगर 
हो सकी हमारी मुलाकात, तुम्हारे बगैर 

खिड़की से झांककर, देखे जब अकेले वो
आकर दिया तारों ने साथ, तुम्हारे बगैर

चुप रहने की आदत, पहले ही छीना तुमने
सपनों में करते रहे हम बात, तुम्हारे बगैर

हवाओं को महकाती रही, रात की रानी खिल
छेड़ती रही हमको बिना बात, तुम्हारे बगैर

चांदनी भी सज धज कर, आसमाँ से आने लगी 
भायी न हमें चाँद की बारात, तुम्हारे बगैर।

घेर कर आये बादल, फिर भी तरसाये मगर,
हुई नहीं यहाँ पर बरसात, तुम्हारे बगैर

*********



कहाँ है बसा पूछें, तेरे चहेते।
बता दे पता ढूढ़ें, तेरे चहेते।

छुपा है कहाँ बादलों में समाये
बुलाते जमीं पे हैं, तेरे चहेते।

गिरती जब बूंदें, तेरे बादलों से
ठिकाना पूछते हैं, तेरे चहेते।

नहीं और कुछ तो, बरस देने से ही
प्यास बुझा लेते हैं, तेरे चहेते।

जैसे कि चातक निहारे गगन को

दरश के ही प्यासे हैं, तेरे चाहते।

पाँखें मिल जातीं, उड़े चले आते 
द्वार खटखटाते ये, तेरे चहेते।

घटा हो घनेरी किये बिन फिकर के
छवि नयनन बसाते ये, तेरे चहेते।

********



धरती पर भेज तूने, रहने के लिए जगह दी।
चलने के लिए पांवसोने के लिए सतह दी। 


खाना, पानी, हवा,, दवाई,, सिर पे छाँव दिया,
प्यार बेसुमार दिया, गर कभी तूने विरह दी।


राहों में पड़े कांटे, पांवों में कभी,चुभ गए,
लेने को निकाल उन्हें, काटों से ही सुलह दी।


हो गए दुश्मन जितने, हो जाता दुस्वार जीना
उन सबसे लड़े अक्ल से, और तूने फतह दी।  


रिश्ते नाते भी दिए,, दोस्त और यार दिये
उनके संग रह के हमें, हंसने की वजह दी।


उन सभी लोगों का हम, बहुत शुक्रगुजार हुए 
आने पर वक्त दिल में, जिन लोगों ने जगह दी।


दुर्दिन घेर लेते तो क्या भला कर लेते हम,
उन सबको दिया मात, और हमको तूने सह दी।


कैसे कर पायें खुदा, तेरा हम शुक्रिया अदा
हर बीते साल तूने, तीन सौ पैसठ सुबह दी। 


*********

एक जान हैं अब
मिले हैं जबसे, हम दोनों का, खुमार है एक।
इस जिंदगी का अब, तू ही सरोकार है एक।
जीना मरना है अब, दोनों का एक ही संग,
हुआ मुहब्बत का, अपना कारोबार है एक।
मैं हूँ तुझसे, और मुझसे है जिंदगी तेरी,
दोनों की एक ही छत, और दीवार है एक।
ले रहे फिजाओं में, सांसें भी हम साथ साथ
ठहरी बहारों में, तेरा मेरा रहबार है एक।
निकले एक राह पर, चलने को हाथ पकड़,
मैं हूँ भरोसा तेरा, मेरी तू एतबार है एक।
खिलती तू फूल सी, तो मैं फल जाता हूँ,
मैं तेरा अनार हूँ, मेरी तू गुलनार है एक।
गुजारा जिंदगी का, खूबसूरत लमहा हरेक
अंजुमन में तेरे, जन्नत का दीदार है एक।
नामुमकिन है हम कभी, जुदा फिर हो पाएं,
मैं तेरा हमराज, मेरी तू राजदार है एक। 

                     - एस० डी० तिवारी

वफा का करते जतन होते।
जिंदगी में  हम मगन होते।
गर तुम बेवफा न हुए होते
कभी न हम बदचलन होते।
निभाते जो तुम साथ मेरा
तुम्हारे हम्हीं सजन होते।
फूलों के झुरमुटों में संग
देख प्रसन्न चमन होते।
मांगते होते मन्नतें साथ
करते ईश को नमन होते।
शिकवे गर होते भी तो क्या
लमहे प्यार के कम न होते।
लैला मजनू सा उल्फत में
वफा के दो और रतन होते।
संग ही जाते उस जहां तक
एक कफन और दफन होते।

***********



कहानी, प्यार की तेरी मेरी
कह रहा दुनिया से, भौंरा बजा के भेरी
कहानी, प्यार की तेरी मेरी
बाग बाग में, काट काट कर वह चक्कर
बैठा फूलों पर, करता गुंजन चिल्लाकर
गाता भर भर कर के टेरी
कहानी ...
हर फूल, बहारों को भी, कह डाली उसने
चुगली करके धाक अपनी जमा ली उसने
रोजाना लगा लगा के फेरी
कहानी ...
सुन हंस पड़ते, गुलशन के मुरझाये गुल भी
प्रेम-गीत मधुर सुर में, गाने लग जाते पंछी
तान छटाओं ने भी छेड़ी
कहानी ...
गातीं हिल मिल के, बहारें जीवन भर की
लिखी जो पल में, कहानी हमारे दिल की
गाओ तुम भी, घटा में घेरी
कहानी ...क्यों न गए थे थम
प्यार के वो चार पल, जब मिले थे हम,
क्यों न गये थे थम।
सामने चाँद तारों के, खाए थे जो कसम,
संग रहने की, मिल जुल जनम जनम,
हम दोनों ने सनम,
क्यों न गये थे थम।
प्यार के  ...
बागों में चुपके, बहारें आने लगी थी
कलियाँ चमन की, मुस्कराने लगी थी
पड़ गये कितने कम
क्यों न गये थे थम।
प्यार के  ...
जिंदगी ये, पाने लगी थी नया रंग भी
गाने लगे थे, मस्ती में झूम विहंग भी
खुशियों के परचम
क्यों न गये थे थम।
प्यार के   ...

एस० डी० तिवारी

दिल की सुन, दिल का कुछ काम कर चले।
दिल को हम अपनेकिसी के नाम कर चले।
मिल गया कोई यूँ ही चलते हुए डगर में,
पीछे किसी अजनबी के, पैगाम पर चले
उनकी रजा पूछी, न फिजा को ही जाने,
अनजानी मुहब्बत के मोकाम पर चले।
उनकी शमा के लौ का, हो गए परवाना,
बहकने लगा दिल ये, तो थाम कर चले।
उनकी मुस्कराहटों ने, बदल दिया मौसम,
चमन में आई बहार, गुलफाम झर चले।
बिछे अपनी राह में, बनकर वे बिछौना,
आहिस्ता से उन, गुलों तमाम पर चले

मुलाकातें भी हो गयी, बातें भी हो गयीं,

भर भर कर उनकी यादों के जाम भर चले।


प्यार का पंछी, ग़ज़ल

आ बैठा कब जाने दिल में, प्यार का पंछी।
आते ही उसके उड़ गया, करार का पंछी।
दिल हो गया बेचैन, उड़ा दिन रैन का चैन,
घड़ी घड़ी उड़ने लगा, खुमार का पंछी।
लिख डाला हमने खत, दिल में ही दिल के शब्द,
भेज दिया पास उनके, इजहार का पंछी।
दुविधा में रहे वो, तवज्जु उसे दें कि नहीं
भटकाए अपने घर, मेरे एतबार का पंछी।
करते रहे वो ना ना, हमने सुनी एक ना,
उड़ के उधर से आ गया, इकरार का पंछी।
हो गया फिर तो, उड़ना भी दुस्वार इसका,
फंस गया बेचारा, खुले आकाश का पंछी।

एस० डी० तिवारी


युगों से, रावण का सफाया करते
पर, राम स्वयं भी मर जाया करते। 
रावण का अमृत नष्ट न करते पूरा
बाणों से बस राम, सुखाया करते।
रावण का अमृत नष्ट नहीं होने से
गिरे बीज, फिर उग आया करते।
पाकर के आसुरी खाद और पानी
फिर से हरे भरे हो जाया करते। 
फैलाता रावण, पांव वसुधा पर
तब राम प्रकट हो जाया करते।
रावण को मिलतामुफ्त दैत्य बल
राम, तप से शक्तियां पाया करते।
रावण नहीं होता, होते राम अमर
अमृत छीन, अगर पी जाया करते।




मुहब्बत का खिलौना कोई गह गया।
संभाल पाते कि जाने कहाँ वह गया।
बना के रखे थे ख्वाबों के घरौंदे हम
चली जोरों की आँधियाँ तो ढह गया।
सजाये रात भर, हसीन सपना जो
खुली आँख तो रौशनी में सुबह गया।
चलते चलते चले गत दूर इतनी
साथ का कारवां भी पीछे रह गया।
दिल के जख्म, कल तक जो हरे थे
वक्त के साथ, दर्द भी कहीं बह गया।
गैरों की बातों में उलझा लिये खुद को
उम्र का वक्त कमबख्त बेवजह गया।
कोई न कोई दर्द हर कोई लिये था
जहाँ में कोई सह तो कोई कह गया।



आदमी थोड़ा ऊँचा क्या चढ़ जाता है।
बिना बात के ही अकड़ जाता है।
छोटों को तनिक देता नहीं तवज्जु
अनदेखी कर आगे बढ़ जाता है।
छोटा तो मिटटी का दीया भी होता
बड़े से बड़ा तम से लड़ जाता है।
अंगूठी की शान और भी बढ़ जाती है
छोटा सा नगीना जब जड़ जाता है।
माथे सज जाती छोटी सी बिंदिया
खातून का चेहरा संवर जाता है।
खुरदुरा पत्थर भी चिकना हो जाता
जब छोटे से बट्टे से रगड़ जाता है।
बड़ा हाथी भी परेशान हो जाता है
छोटा चींटा नाक पर चढ़ जाता है।
छोटी सी घास, छोटा जमा पतवार
बड़े बवंडर से नहीं उखड पाता है।
चुभ जाय छोटी सी कही बात तो
दिल में बड़ा सा गम भर जाता है।
बड़े के भी वश की होती नहीं बात 
छोटा कोई, जो काम कर जाता है ।

प्यार से कोई बोले दो शब्द तो
क्रोधित व्यक्ति भी नम पड़ जाता है।


जज्बातों को जुझाये लग रहे हैं
हर बात को उलझाये लग रहे हैं।
कई दिनों से करते नहीं बातें वो
आज कल मुह सुजाये लग रहे  हैं।
खिले रहते थे होठों पर फूल कभी
देखो तो अब मुरझाये लग रहे है।
उजाला बिखेरते रहते थे कभी
उन दीयों को बुझाए लग रहे हैं।
डोलती है हवा भी अब उदासी में
फिजाओं को समझाए लग रहे हैं।
हर शक्श का रुख है उन्ही की ओर
वे बहारों को रिझाये लग रहे हैं।
गली के कुत्ते लगे हैं भौंकने अब
शायद उन्हें खीझाये लग रहे हैं।



जिंदगी के आकाश में, इंद्रधनुष बनकर आये।
हुई जिंदगी सतरंगी, बन रंग इस कदर छाये।
झुक गया आसमान भी उनकी तरंगो के संग
दिल को भिगोने के लिए बादल घुमड़कर आये।
मुहब्बत की बरसात हुई, उनकी चमकती किरणें
दिल के अंदर टपकी बूंदों से, टकराकर आये।
दिल के आसमान पर बिखरे रंग गजब के  
फैले हुए दूर तलक, इंद्रधनुष उभर आये।
देखते ही बनता दिल के आसमां का समां
जैसे फूलों और तितलियों के रंग उतर आये।
जी चाहता बार बार, उतार लेने को तस्वीर
बिखरे वो रंग बहुत, दिल को  फलक पर भाये 
रह जाते देखने से, जिंदगी के इंद्रधनुषी रंग
प्यार से मुंह मोड़ जो, चलते नजर झुकाये।


साल गया, एक बार फिर से, दिवाली आई
माँ ने बनाई, त्यौहार पर पकवान, मिठाई।
जब जब उठाई चिमटा, कड़छी या कड़ाही
बेटा घर नहीं पर्व पर, अतिशः याद सताई।
संग होता वह भी तो कितना अच्छा होता
सोच रही टंगी तस्वीर पर टकी लगाई।
घर होता, खुश हो हो खाता, दीप जलाता
याद में डूबी, बैठी घर में अश्रु बहाई।
पुत्र डटा सीमा पर, हम मना रहे त्यौहार !
भारत माँ सर्वोपरि, मन को फिर समझाई।

वो उठे और चले गये, हम रोकते ही रह गये।
उठे जज्बातों को दिल में, पोसते ही रह गये। 
फिर तो वो आये भी नहीं, हम बुलाये भी नहीं,
मायूसियों भरा दिल लिए, मसोसते ही रह गये।
खुद की गिरेबां में कभी झांककर देखा भी नहीं,
और दोष सारा, उन्हीं पर रोपते ही रह गये।
मजबूरी का उनकी तनिक भर भी ख्याल न किया,
बेवफा वो हो गए होंगे, यह सोचते ही रह गये। 
हो जायेगा शायद खुदा का दीदार ही एक दिन
सोचकर ये अम्बर में नजर, झोंकते ही रह गये। 
तन्हाई में पड़े, दिल खुदा में भी लगा पाये, 
आंसू बहाते और उनको पोंछते ही रह गये।
ना तो खुदा मिला और ना ही सनम पास आये,   
खामियां ढूंढतेकिस्मत को कोसते ही रह गये। 

पैसे का गुलाम
पैसा बना कर के इन्सान, पैसे का गुलाम हुआ
पैसे के पीछे ही, इंसानियत का कत्लेआम हुआ।
पैसे कमाने के लिये तो, कुछ भी करते हैं लोग
अब ईमान बेचने का भी, काम सरेआम हुआ।
पैसे के वजन से ही, बड़प्पन को तोला जाता
चरित्रवान से ज्यादा, पैसेवाले का नाम हुआ।
लूट रहे व्यापारी लोग, लूट रहे सरकारी लोग
पैसा कमाना ही, संत लोगों का भी काम हुआ।
दया, धर्म से मुह मोड़े, लालच का चोला ओढ़े
पैसे से जिंदगी का, फैला ये ताम झाम हुआ।
अपने अपनों से ही अब, करते छीना झपटी
पैसे के लिए, सगा रिश्ता भी बदनाम हुआ।
रिश्ते नातों से दूर, खुदा से भी बेखुदी रक्खे
इबादतखाना तक में पैसा ही सलाम हुआ।



लड़खड़ाते और संभल लेते हैं
अकेले होते हैं ऑंखें भर लेते हैं।
अकेले तो मुस्करा लेते हैं हम
तुम होते हो साथ हंस लेते है।
अकेले भी कह लेते कुछ अपनी
तुम होते हो, बातें कर लेते हैं।
यूँ तो चल लेते हैं अकेले भी हम
तुम होते हो थोड़ा मचल लेते हैं।
ढो रहे हैं अकेले भी जिंदगी हम
तुम्हारे साथ हल्का कर लेते हैं।
खुश हो जाते हैं अकेले भी कभी
तुम होते हो जश्न मना लेते है।

             - एस० डी० तिवारी 

जादुई आवाज तेरी,
जादुई आवाज तेरी, कहाँ से लाये हो सनम
उस जादू से तू आज मुझे दीवाना कर दे
गाकर के नगमा कोई शमा सुहाना कर दे
जादुई आवाज तेरी, कहाँ से लाये हो सनम। 

निकलती जब आवाज तेरी, घुंघरू सी बजती 
ताली बजाते, हरे पत्तों सी लहराती है
लगता है कि बिखरे हों हवाओं में गुलाब
फैली खुशबु से फिजाओं को महकाती है
उस आवाज का जाम पिला मस्ताना कर दे। 
जादुई आवाज तेरी, कहाँ से लाये हो सनम। 

उजले पंख लगे परी सी उड़ती आवाज
छूकर चाँद जन्नत से उतरी चली आती है
उसकी मिठास का अंदाज लगाना मुश्किल
छूते ही कानों में शहद सी घुली जाती है
चांदनी रात का शबनमी पैमाना भर दे। 
जादुई आवाज तेरी, कहाँ से लाये हो सनम। 

खूबसूरत ताजमहल का नजारा मुझको
बंद आँखों से भी बैठे ही दिख जाता  है
तेरी फेंकी हुई सासों की तरंगों से
हवाओं में नया किस्सा सा लिख जाता है
किसी मद भरी कहानी का परवाना कर दे। 
जादुई आवाज तेरी, कहाँ से लाये हो सनम ,

तेरी आवाज में पाता गहराई इतनी
हुआ मदहोश मैं डूबा चला जाता हूँ
खींच लेती चुम्बक सी नगमो की कशिश
यूँ ही तहे दिल में खिंचा चला जाता हूँ
सुरों में कैद कर अपनों से बेगाना कर दे। 
जादुई आवाज तेरी, कहाँ से लाये हो सनम। 

शामिल है तू मेरी सांसों में कुछ इस तरह
जिंदगी के पेड़ पर लता बन के लिपटी है
जी रहे हैं बस तेरी आवाज के सहारे हम
जिंदगी मेरी, तेरी आवाज में ही सिमटी है
अपने होठों  का गाया हुआ तराना कर दे। 
जादुई आवाज तेरी, कहाँ से लाये हो सनम। 

एस डी तिवारी 



सोये जज्बातों को जान बूझ कर जगाया नहीं।
उठते रहे तूफान, दिल को भी समझाया नहीं।
नींद तो आती ही थी, सो नहीं पाते थे मगर,
सिर पर मेरे हाथ धरे, कोई थपथपाया नहीं।
करने के लिए देर तक, साथ को महसूस उनके,
भीगे जब बारिशों में तो, फौरन सुखाया नहीं।
आइसक्रीम खाते, साथ में मस्तियाँ भी करते,
काटे लमहे खूबसूरत, अब तक भुलाया नहीं।
आँखों में भर जाता था कभी, सैलाब सा पानी,
लाज के मारे मगर, अश्कों को बहाया नहीं।
रोये भी चुपचाप थे, तकिये में दबा कर सिर को
जाने अनजाने भी दिल, उनका रुलाया नहीं।
मद्धम रौशनी रही या अँधेरे में काटा वक्त
जागें न यादें उनकी, दीये को जलाया नहीं।


प्यार में डूबे और उनसे बताया नहीं।
लिखा था खत मगर उन्हें भेज पाया नहीं।
सुनने की बेताबी दिखी तो उधर भी थी
मन की बात मगर उनसे कह पाया नहीं।
फूल लिये हाथ गए उनके पास तलक
बढ़कर जुल्फों में फिर भी सजाया नहीं।
उनकी गली के चक्कर लगाये जरूर थे
दरवाजे को उनके, कभी खटखटाया नहीं।
सुलगते रहे थे, याद में उनकी रात दिन
आगे मुहब्बत उनके कभी भी जताया नहीं।
सोचते ही रह गए, क्या सोच बैठेंगे वो
मौसम निकलते गए, बहारें बुलाया नहीं।


जल गया खेत जल के बिना  
बादलों ने जल बरसाया नहीं।
खोदने चले, होने पर तबाह
समय से कुआँ खुद पाया नहीं।
निकली प्रपंच में सारी उमरिया
प्रभु में लगन लगाया नहीं।
न मंदिर गये न मनन किया
दो फूल श्रद्धा के चढ़ाया नहीं।
व्यस्त रहे फिजूल कामों में
उसमे मन को लगाया नहीं।
घेरता गया अँधेरा पल पल
नाम का अलख जगाया नहीं।
प्रभु का शुरू से ध्यान रखा जो
वह बाद में पछताया नहीं।


सोये पुरुषार्थ को भी जगाओ लेकिन

जश्न त्यौहार नए साल का मनाओ लेकिन।
बिन बात प्रदूषण न फैलाओ लेकिन।
रंगरलियां मनाओ चाहे कितनी
आबादी नियंत्रण में लाओ लेकिन।
फैसन तो करो जी भर के मगर
असल चेहरा न छुपाओ लेकिन।
व्यापार में कमाओ वाजिब लाभ
खाने में जहर न मिलाओ लेकिन।
अपना घर करो जगमग बेशक
किसी का घर न जलाओ लेकिन।
अपना धर्म ख़ुशी से निभाओ
नफ़रत की आग न लगाओ लेकिन।
रख तो लिए हो रंजिशें झोली में
बहते पानी सा बहाओ लेकिन।
अपनी ख़ुशी जी भर के मनाओ
किसी का दिल न दुखाओ लेकिन।

गलतियां तो कर चुके पहले बहुत
नए साल में न दोहराओ लेकिन।


बना दिया मतवाला, उड़ने की ख्वाईशों ने।
किया गड़बड़झाला, उड़ने की ख्वाईशों ने।
उड़ने की चाहत थी, आसमां से ऊँचा कहीं
कटी पतंग कर डाला, उड़ने की ख्वाइशों ने।
मचलना देख, लालच में पड़े काटने वाले
डोर को काट डाला, उड़ने की ख्वाइशों ने।
आंधियां चलीं, उड़ा कर ले गयीं कहीं दूर
आँखों पे पर्दा डाला, उड़ने की ख्वाईशों ने।
जाकर लग गयी किसी अजनबी के हाथों
दुनिया ही बदल डाला, उड़ने की ख्वाईशों ने।
लिए रहे हाथों में, अपनेपन की खाली डोर
चरखी पर लपेट डाला, उड़ने की ख्वाईशों ने।
अपने गांव से गए, अपनों की छाँव से गए
रिश्तों को छुड़ा डाला, उड़ने की ख्वाईशों ने।



डींग तो बड़ा होने का आधार नहीं होता।
माटी की नाव से तो बेड़ा पार नहीं होता।
करते हैं हरदम, बढ़ चढ़ कर के बातें जो
उनके हर कहे का, एतबार नहीं होता।
कहे कोई सब्जी, काटता छुरी से सोने की,
हमें पता है, उसमें वो धार नहीं होता।
खुद में कूबत नहीं, मढ़ते दोष औरों पर
बिगड़े जब काम में सुधार नहीं होता।
रखता जो धीरज, पाता फल  मीठा ही
दिल से किया काम, बेकार नहीं होता।
चलना होता है कभी, अन्जानी  राह पर,
लुट जाता राही, खबरदार नहीं होता।
खुद की शेखी में, बांधता तारीफ़ के पुल
मुश्किलों  में चलने को तैयार नहीं होता।



काठी न सके साज, घुड़सवार नहीं होता।



बिगड़ी बात फिर न राहत मिली। 
दोनों के दिलों को, कड़वाहट मिली।
चले गए थे छोड़ कर, वो दूर इतना,
दिल को बहुत ही घबराहट  मिली।
मिलने को बेचैन, उनका भी दिल,
हवाओं में ये सुगबुगाहट मिली।
दिल दरिया बढ़ा समुन्दर की ओर,
उनके भी कदम की आहट मिली।
वक्त आता गया, जैसे जैसे पास,  
जल्दी मिलने की उकताहट मिली।
खिले दो दिल, फूलों से चमन में,
मोहब्बत की खोई बादशाहत मिली।
उस लमहे को कैसे करूँ बयां एसडी,

होठों पर, गजब मुस्कराहट मिली। 



समझते रहे अब तक कि प्यार नहीं होगा।
जानेंगे भी कैसे, अगर इजहार नहीं होगा।
दिल की दिल में रखे, क्या हासिल आखिर
जताया न उल्फत अगर, इकरार नहीं होगा।
सच है कि करते हैं, सजदे दीवाने हरदम
सच नहीं ये बात, अब तकरार नहीं होगा।
यूँ तो शिकवे हैं उल्फत की गलियों में भी
रूठे हर बात पर तो असरदार नहीं होगा।
धरे रह जाओगे, हर बात को दिल पर ही
रह जाओगे ढोते ही, कम भार नहीं होगा।
हर बात नहीं होती, जो दिल को है तोडती
भुलाओ अनबन को, दिल बेजार नहीं होगा।


जब वन को चले रघुराई,
कौशिल्या आँखों में रातें बितायी। जब वन को ...
रोने लगे अयोध्या के वासी
सरयू नीर बहाई। जब वन को ...
अँखियन अश्रु लिये थे पंछी
कानन पड़े मुरझाई।  जब वन को ...
व्यथित हो गिरे धरती पर
दशरथ को मूर्छा छाई। जब वन को ...
रोने लगा पाप कैकेयी का
मन ममता उपजाई।  जब वन को ...
मन ही मन पछताई कैकेयी
हाय! काहे वन को पठाई।  जब वन को ...
धरा, गगन, राहें सब रोतीं
शोक की बदरी छाई।  जब वन को ...



गैरों की बातों में शुकुन ढूंढ लेते हैं।
होते कई लोग हैं, कहानी बुन लेते हैं।
होता हो शोरगुल, कितना भी जोर से
दिलों के दर्द को तो, सभी सुन लेते हैं।
होते कुछ लोग हैं, ऐसे भी दुनियां में
औरों के दुःख दर्द में ऑंखें मूंद लेते हैं।
कांटे भी होते हैं, गुलाब की डालियों पर
समझदार होते जो,  फूल चुन लेते हैं।
कितनी हों चाहे, खराब बातों में भी
अच्छे लोग तो भली बात ढूंढ लेते हैं।
अनजान लोगों के, दिलों में झांककर
होते दिल वाले हैं कि प्यार ढूंढ लेते हैं।
घटिया अल्फाज भी मिले गर शायर को  
अपने फन से सुरीले गीत गुन लेते हैं।

होती हैं बातें कुछ, मन को भातीं नहीं
फिर भी सुन लेते चाहे माथा धुन लेते हैं।


सजणा महफिल लभदा।
सौत उत्ते रिझा रहन्दा। सजणा ...
मेनू रब ने दिता की नसीब
सजणा महफिल लभदा। सजणा ...
बोतल विच बसदी साडी सौत
उत्थे ओदा दिल बसदा।  सजणा ...
शामी बिताउँदा यारां दे नाल
मेनू कल्ला छड़दा।  सजणा ....
ढकेल लेन्दा जीवें मुंह दे बिच्च
कित्थे वी पड़ा रहन्दा।  सजणा ...
काटां मैं रातां कल्लियाँ कर
झल्ला मदारी करदा।  सजणा ...
सास ननद देंदी मेनू दोष
जिंदड़ी भारी करदा।  सजणा ....

    - एस० डी० तिवारी



किस मोड़ पर मिलेगी, न जाने, ढूंढते हैं।
जिंदगी! हम तेरे ठिकाने ढूंढते हैं।
वक्त की दरिया में बहे टुकड़े हो के 
उतराये तिनकों के फसाने ढूंढते हैं।
जली थी कब लौ, पता न चला उसका
बुझ जाने के बाद परवाने ढूंढते हैं।
खो गये जो, पड़ी धूल की परत में
पांवों के निशान अब, जमाने ढूंढते हैं।
नादाँ ने कर डाली, हैं जाने कितनी
उन गलतियों को, सयाने ढूंढते हैं।
बचपन गुजार दिया पाने को जवानी
बुढ़ापे में हरकतें, बचकाने ढूंढते हैं।


मैं कौन हूँ
खुद को ही, पहचान नहीं पाता हूँ मैं।
आखिर हूँ कौन ? जान नहीं पाता हूँ मैं।
क्या चेहरा हूँ, दर्पण जो दिखाता है मुझे?
या इंसान हूँ, जो आँखों से देख पाता हूँ मैं ?
क्या पहनावे से बनी है पहचान मेरी ?
सूटवाला, लम्बी मूंछवाला कहलाता हूँ मैं।
बाप, बेटा, भाई या मित्र हूँ किसी का
क्या वो हूँ, जिन रिश्तों में बंध जाता हूँ मैं ?
छोटा, बड़ा हूँ, धनी या निर्धंन हूँ मैं
या कि वो हूँ जो कुछ कर पाता हूँ मैं ?
व्यवसाय, पदवी, प्रतिष्ठा में ढूंढता खुद को
बस रोजी रोटी में ही खोज पाता हूँ मैं।
लोगों में पहचान बनी मेरी आदतों से
भीतर के ईश का अंश न देख पाता हूँ मैं।
जब  उसके दिए मन और मष्तिष्क से ढूँढूँ
कुछ विशेष, औरों से पृथक पाता हूँ मैं।
साक्षात्कार हुआ जब अपने आप से मेरा
अंदर बैठे अपने कवि को जगाता हूँ मैं।
स्वयं को पहचान लेना कितना कठिन है
प्रभु को याद  करूं तो संज्ञान पाता हूँ मैं।

क्रेता सावधान

क्या बाजार है बेईमानों का स्थान?
सामान पर लिखा, क्रेता सावधान।
नकली, महंगा, घटिया, मिलावटी, कम
सब कुछ है बिकता, क्रेता सावधान।
बेईमानों से सरकार, लेती पल्ला झाड़
डिब्बे पर लिखवा, क्रेता सावधान।
ऊँची दुकान पर बेचें फीके पकवान
शिक्षा के संस्थान, क्रेता सावधान।
करते ठेकेदार और करवाती सरकार
घटिया निर्माण, क्रेता सावधान।
भरोसे लायक नहीं दवाई की दुकान
बिक जाता जहर, क्रेता सावधान।
अस्पताल कभी थमा देते हैं हाथ में
लड़की का लड़का, क्रेता सावधान।
ब्रांडेड के नाम, चुकाओ कई गुना दाम
वरना पाओ घटिया, क्रेता सावधान।

एस० डी० तिवारी



आगे  हम बढ़े थे मगर, नहीं के जैसे मिले।
मिले भी वो तो एक अजनवी के जैसे मिले। 
ये तो मालूम था कि मिलेंगे वे फिर जरूर
दिल की चाह थी कि, महजबीं के जैसे मिलें।
थे मजबूर या उतारे थे, दिल से बोझ समझ 
मुद्दतों के बाद मिले, पंछी के जैसे मिले।
सोचे थे मिल जायेंगे तो, संगम हो जायेगा 
हम रहे ठहरे, वो, बहती नदी के जैसे मिले। 
रखे दिन रात हम, दिल में बसाये यादों को  
और वो थे कि दिन से, रजनी के जैसे मिले।
होते हैं हम उनका, शुक्रगुजार ही  फिर भी 
ख्वाबों में कभी-कभी, परी के जैसे मिले। 
हुआ सामना तो, थाम लेंगे दामन उनका
अगली बार कभी, वो कहीं भी कैसे मिले।
एस० डी० तिवारी 



बचपन में ही बैठ गया सिर पर
बढ़ता गया पाप बड़ा होने पर
चलता रहा जिंदगी के साथ
खुद से बड़ा रहा इसका हाथ
देखा दशा तो समझ आई
ढूंढ रहे हैं सभी पाप में मलाई
बच्चे से जवान होते गये
पापों का बोझ ढोते गये
बढ़े जब बुढ़ापे की ओर
छूटता गया पापों का छोर
समा गए जब जमीन के अंदर
पापों को छोड़ा हवा में ऊपर
बसता है पाप ऊंचाई पर
रमता है एक उम्र के ऊपर



खेत में सरसों फूली वन फूले टेसू के फूल।
बाग में बौराये अमवा, क्यारी गेंदे के फूल।
बसंत नाचे हमारे दुअरे पिया है हमसे दूर
अंगना बैठी याद करूँ मैं हुई कौन सी भूल।
भरमावे बन के बैरन, फगुआ बहे बयार
मुड़ मुड़ कर ताकूँ मैं,  केवडिया जाये खुल।
पिया बिना कड़वा लागे आया ये मधुमास
विरह का डंक मारे ऐसो, मन में चुभावे शूल।
चिढ़ाने मोहे आया बैरी, होली का त्यौहार
अबीर गुलाल नीक न लागे,  लागे मोहे धूल।
होते पिया संग में मेरे  भिगोती एक एक अंग
डालते वो रंग मोपे, भिगोते बदन समूल।
देवर ननद सब होली खेलें भावे न मोहे रंग
पिया बिना चुप सा लागे होली की हुड़दंग



जन्नत बता के
अंजान देश ले जा रहे, जन्नत बता के।
नरक में हो ढकेल रहे, जन्नत बता के।
मंजिल से हैं भटके, अपनी नौजवां थोड़े,
जिंदगी को भटका रहे, जन्नत बता के।
जिंदगी तो मिली है, जीने के लिये
क़यामत तुम ढा रहे, जन्नत बता के।
खुदा ने सिखाया मुहब्बत का सबक
देते दरिंदगी का सबब, जन्नत बता के।    
अल्ला की बनाई, चीजों को मिटाना
बनाया करम अपना, जन्नत बता के। 
होगा सामने तुम्हारे, जहन्नुम एक दिन
धकेल दिए जाओगे, जन्नत बता के।

- एस० डी० तिवारी



हर सख्श आजादी मांगता है

अब देश का हर सख्श आजादी मांगता है।
भेंड, बकरी, मच्छर आजादी मांगता है।
बेटा अपने बाप की सुनना नहीं चाहता
मनमानी करने की आजादी मांगता है।
चाहता, बेगम डाले गुलामी की आदत
शौहर, अपने लिए आजादी मांगता है।
मातहत अपने अधिकारी की क्यों सुने
मर्जी की करने की, आजादी मांगता है।
छात्र नहीं चाहता, ढोये पढ़ाई का बोझ
शिक्षक की बात से आजादी मांगता है।
कुछ रुपयों के लिए सहता बदसलूकी
कामगार मालिक से आजादी मांगता है।
खुद सूख जाये, पेड़ ठूंठ हो जाये बेशक
पतझड़ में हर पत्ता आजादी मांगता है।
काँटों में रह के होती गुलाब की हिफाजत
मुरझाये बेशक, शाख से आजादी मांगता है।
कुछ भी बोल कर, नेता सबको गाली देता
उस पर भी बोलने की आजादी मांगता है।
जाति, धर्म का विवाद फैला खुद की खातिर
जाति के नाम पर, आजादी मांगता है।
देश में क्या सवा सौ करोड़ देश होंगे?
आज देश का हर सख्श आजादी मांगता है।

   - एस० डी० तिवारी



तुम्हारी रोशनी के लिए, दिन रात ढलते हैं।
तुम बत्ती से जलते, हम मोम सा पिघलते हैं।
पिघल कर आंच से गिरने लग जाते हैं जब
रोशनी यूँ ही कायम  रहे, फ़ौरन संभलते हैं।
जहाँ तक जाता उजाला, तुम्हारी रोशनी का
जिंदगी की राह पर, उतनी ही दूर चलते हैं।
तुम्हारे बिना रहता, घनेरा अँधेरा घर में
सूझता नहीं है कुछ, बैठे ही हाथ मलते हैं।
बरसात के आते ही, चले आते परवाने भी
मौसम बदल जाये  बेशक, हम ना बदलते हैं।
पढ़ नहीं पाते हैं, वक्त लिख जाता जो कुछ
जिंदगी के पन्नों को, अंदाज से पलटते हैं।

बारिश का पानी

अपने ही मन का, रिमझिम वो बरसा
मन लुभाया बड़ा, बारिश का पानी।
तर कर गया, मुझे भिगो कर गया,
पर रोके ना रुका, बारिश का पानी।
शोर करता हुआ, जोर भरता हुआ
वो दरिया को चला, बारिश का पानी।
हम देखते रहे, मन मसोसते रहे 
मगर बहता गया, बारिश का पानी।
रोक पाते तो हम, मजे उठाते यूँ हम 
आज बुझाते प्यास, बारिश का पानी।
जैसे बरस जाता, उम्मीदें जगाता 
बरसता है प्यार, बारिश का पानी।
रख लेना बड़ा, करके दिल का घड़ा
काम आएगा पड़ा, बारिश का पानी। 



अपने दीवानों पर, खजाना प्यार का लुटाती है।
मुंबई! मगर, क्यों इस कदर, दर्द सहती जाती है।
बेपनाह मुहब्बत में तेरी, हो चुके हैं कैद लाखों
फिर भी शर्मीली कितनी, किसी से न कह पाती है।
सुकून से बैठती न तू, जब देखो दौड़ती रहती
सुबह हो या शाम हो, सडकों पर लहराती है।
घर से तो निकल पड़ती, जोश में तड़के ही बड़े
किन्हीं चौराहों पर, जाकर, कभी सुस्ताती है।
लोग मचल जाते हैं देख, सावन भादों की फुहार
तू है कि बारिशों के पानी में, मगर थम जाती है।
ऊपर वाले ने बख्शा सभी ओर ही पानी तेरे
समुन्दर के किनारे पे  रह, प्यासी रह जाती है।
तेरी जमीन से तुझे, मुहब्बत बेइम्तहां मुंबई
छूने आसमां को लिए हौसला बढ़ जाती है।
धन कुबेरों का मजमा, अप्सराओं का नाच भी
दीवानों को अपने मानो, जन्नत दिखाती है।
तेरी अस्मत से कर, होते हैं खिलवाड़ कितने
बेशर्मियां भी करते और तू देखती रह जाती है।
दल रहे होते हैं तेरे, दीवाने ही छाती पे मूंग
बेशुमार प्यार तेरा, सब चुप ही सह जाती है।


44- vxj I;kj u gksrk

अकेले ही रह जाते, अगर प्यार न होता।
उन्हें हम कैसे पाते, अगर प्यार न होता।
एक अनजान डगर पर अजनवी का हाथ,
कोई कैसे थाम लेताअगर प्यार न होता।
डालियों पर फूल भी, पड़े ही सूख जाते,
जुल्फों में कौन सजाता, अगर प्यार न होता।
जनदिन पर, किसी खास के सौगात का  
इंतजार कौन करता, अगर प्यार न होता।
महबूब की तस्वीर को, बटुए में सजाकर     शीशे में मढ़वाकर
कोई कैसे रख लेता, अगर प्यार न होता।
प्यार वाली अंगुली में, सोने की अंगूठी,
भला कौन पहनाता, अगर प्यार न होता।
अकेले में बैठ, आँखों के बेशकीमती मोती,  
यूँ ही कौन ढरकाता, अगर प्यार न होता। 


किसके रोने से इस शहर में बरसात हुई। 
अकेले रोया कि आशिकों की जमात हुई। 
सहर होते ही, होने लगा स्याह का मंजर  
फलक में अभी सूरज था जाने कब रात हुई।  
खुशियों के खजाने हों, ख्वाईशें दिल में रखे 
खिदमत में मगर शिशकियों की सौगात हुई। 
रुलाये वे, जिनसे चमकता अंजुमन उनका 
उनके अपनों की ही काली करामात हुई। 
उनके गुलदस्ते के जैसे मुरझाये हों फूल
मानकर, फेंक दिया, खुशबुओं से निजात हुई।
कभी फिरते थे चाँद, तारों में बादलों के साथ 
उसी मिट्टी में गिरे फिर से मुलाकात हुई। 
किसकी चाल थी हराने की जिंदगी से एसडी 
बड़ी सोची समझी, बिछाई हुई बिसात हुई। 




कल तक इतना  बिखरा आकाश था। 
इस दिल में  यादों का कंजास था।  
बीती बातों की यादें तो थीं मगर,
यादों में अपना कोई खास  था। 
अकेले तो थे यूँ, पहले भी मगर, 
दिल अपना कभी इतना उदास था। 
संग होते थे चाँद सितारे हमारे,  
जब कोई दिल के आस पास था। 
ऐसा भी दुर्दिन  जायेगा कभी,
तनिक भी इस बात का आभास  था।  
आये न थे वो जिंदगी में जब तक, 
दिल होकर किसी का बदहवास था। 
कर देगा इस तरह से तनहा कोई,    
जरा सा भी इसका एहसास  था। 



शुकुन पाने को मोहब्बत की जहमत ली है
शकुन के लिए किसी और दिल की रहमत ली है
सोहबत सहमत दहसत


प्रकृति सजती है धरती देखते बनती 
मनमोहक पल 
बरसात में नहाई 
बसंत में 
गर्मी में नग्न बदन 

पहले मिले तो मुखातिब न हुए
कहते हैं अँधेरे में ,पहचान नहीं


गल्लां बात्तां किता करो
रस्ते विच जे भी मिले दिल जीता करो

बनाएंगे सड़क प्यार का
न डिविडेंड न लाल बत्ती
तेरी गाड़ी ने किश किया डेंट हो गया