Friday, 6 November 2015

Chalo manayen diwali


चलो चलें, उसके घर, मनाएं  दिवाली
पड़ी बिना तेल के, दीया है खाली।

जलाते होंगे लोग, हजार दीप घर में
एक दीया जलाके, अँधेरे को भगा ली।  

बिन के ले जाता, बचे मोम और तेल
रख लेती दीया जलाने, माँ संभाली।

खुश हो होकर देखे फूलझड़ी पटाखे
औरों ने छोड़े, खुशियां उसने मना ली।

होती होंगी मिठाई, किस्म किस्म की
खा लिया मग्न हो, माँ ने जो बना ली।

लाई थी माँ, दिया किसी का, जीर्ण वस्त्र
नया बताकर, दिवाली पर पहना दी।

चलो चलें, उसके घर, मनाएं दिवाली


एस० डी० तिवारी 


पुत्र सीमा पर


बीत गया साल, एक बार फिर से, दिवाली आई। 
त्यौहार पर बनायी माँ ने, पकवान और मिठाई। 

जब जब उठाई वो चिमटा, कड़छी या कड़ाही,
बेटा घर पर नहीं पर्व पर, अतिशः याद सताई। 

संग में होता वह भी तो कितना अच्छा होता,
सोच रही थी टंगी तस्वीर पर टकी लगाई। 

घर होता, खुश हो हो कर खाता, दीप जलाता
यादों में डूबीबैठी वो घर, आँखों से नीर बहाई। 

पुत्र डटा है सीमा पर, हम मना रहे हैं त्यौहार!
भारत माँ है सर्वोपरि, मन को अपने समझाई। 

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