दीप जले, दीप जले
प्रसून के सम ह्रदय खिले। दीप जले...
चारों और उजियारा छाये,
मन में छुपा अँधियारा जाये,
सबके मन में प्रेम फले। दीप जले...
स्वार्थ हेतु मिलावट ना करना,
स्वास्थ्य हेतु प्रदूषण से बचना,
निर्बल को भी लगाना गले। दीप जले...
कलुषित मन ना होने पाये,
उल्लसित होकर पर्व मनाएं,
दुर्भाव, विकार समूल जले। दीप जले...
जिनके घर रहता अँधियारा,
हो ये परम कर्तव्य हमारा,
उनके घर भी दीप जले। दीप जले ...
दिवाली में धुँआ ना उड़ाओ यारो।
चहुँ ओर रौशनी फैलाओ यारो।
गैरों के भी तम को भगाओ यारो।
इस तरह दिवाली मनाओ यारो।
साल गया, एक बार फिर से, दिवाली आई
माँ ने बनाई, त्यौहार पर पकवान, मिठाई
जब जब उठाई चिमटा, कड़छी या कड़ाही
बेटा घर नहीं पर्व पर, अतिशः याद सताई
संग होता वह भी तो कितना अच्छा होता
सोच रही टंगी तस्वीर पर टकी लगाई
घर होता, खुश हो हो खाता, दीप जलाता
याद में डूबी, बैठी घर में अश्रु बहाई
पुत्र डटा सीमा पर, हम मना रहे त्यौहार !
भारत माँ सर्वोपरि, मन को फिर समझाई
प्रसून के सम ह्रदय खिले। दीप जले...
चारों और उजियारा छाये,
मन में छुपा अँधियारा जाये,
सबके मन में प्रेम फले। दीप जले...
स्वार्थ हेतु मिलावट ना करना,
स्वास्थ्य हेतु प्रदूषण से बचना,
निर्बल को भी लगाना गले। दीप जले...
कलुषित मन ना होने पाये,
उल्लसित होकर पर्व मनाएं,
दुर्भाव, विकार समूल जले। दीप जले...
जिनके घर रहता अँधियारा,
हो ये परम कर्तव्य हमारा,
उनके घर भी दीप जले। दीप जले ...
दिवाली में धुँआ ना उड़ाओ यारो।
चहुँ ओर रौशनी फैलाओ यारो।
गैरों के भी तम को भगाओ यारो।
इस तरह दिवाली मनाओ यारो।
साल गया, एक बार फिर से, दिवाली आई
माँ ने बनाई, त्यौहार पर पकवान, मिठाई
जब जब उठाई चिमटा, कड़छी या कड़ाही
बेटा घर नहीं पर्व पर, अतिशः याद सताई
संग होता वह भी तो कितना अच्छा होता
सोच रही टंगी तस्वीर पर टकी लगाई
घर होता, खुश हो हो खाता, दीप जलाता
याद में डूबी, बैठी घर में अश्रु बहाई
पुत्र डटा सीमा पर, हम मना रहे त्यौहार !
भारत माँ सर्वोपरि, मन को फिर समझाई
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