घंटों की चुप्पी
अयोध्या में गूंजता
बूट का शोर
जग जाता है
सोता हुआ समुद्र
चंचल वायु
.
रोज नहाती
फिर भी है बसाती
नदी में मत्स्य
तोड़ देती हैं
मिलते ही किनारा
लहरें दम
होती लहर
तट पर आकर
अबला एक
उठा न पाता
छिछला होने पर
जल लहर
उठ पाती हैं
गहराई हो तभी
लहरें सभी
***************
जगा देता है
पवन का चुम्बन
सिंधु स्पंदन
बुझा न पाती
आँखों की बड़ी प्यास
सिंधु तरंग
मन उमंग
उठ जगा देती हैं
सिंधु तरंग
देख सतत
मन नाहीं थकत
सिंधु तरंग
अनोखे रंग
दूर क्षितिज संग
सिंधु तरंग
हवा के संग
करें अठखेलियां
सिंधु तरंग
ले जाती खींच
सागर तट पर
मन को मौज
*************
रुकना नहीं
सिंधु का प्यार
उसी में डूब जाती
पाकर नदी
बहती पर
शोर नहीं करती
गहरी नदी
रात या दिन
चलते रहो नित
गाती है नदी
प्यासा सागर
बनता माला
दिखाने लगी
नभ खोलता
खाने दौड़ता
रात में बिल्ली
पहने जूता
सीख न पाया
दे के चिड़िया
पैकडे बैठा
बर्फ की गेंद
खिलखिलाते फेंक
घाटी का मजा
कुल्लू मनाली
पर्यटकों से खाली
बर्फ में ढकी
हुआ सवेरा
नींद मग्न सूरज
धुंध ने घेरा
आँखों को मूंद
सोया पड़ा चन्द्रमा
ओढ़ के धुंध
देर से आई
स्टेशन पर खड़ी
लेकर चले
जाड़े की यात्रा
गाड़ी की गति बुरी
धुंध में घिरी
खो गयी राहें
अब किधर जाएँ
घाटी में बर्फ
जहाज रेल
सबको किया देर
धुंध ने घेर
रात में खींचें
कभी ये तो कभी वो
छोटी रजाई
निगल गयी
धुंध आग का गोला
चिंतित नभ
छाया कोहरा
बुझी नभ की आग
ठण्ड से कांपे
बुझाया धुंध
अम्बर का अलाव
अब क्या तापे
चाहती धुंध
रखना दिन भर
सूर्य को ढांपे
हुआ बेबस
धुंध में घिरा सूर्य
नभ से ताके
भू को चूमने
झुक जाता गगन
दूर क्षितिज
गिद्ध व चील
नभ में मंडराते
युद्ध समाप्त
धरा तत्पर
सूर्य का लगाने को
नया चक्कर
सिमट गया
इतिहास के गर्भ
एक और वर्ष
बच्चे हैं खुश
लाये उनको गिफ्ट
थैंक यू सैंटा
एक मिनट!
हो गया बड़ा दिन
आज का दिन
लेकर आये
मंगल हर पल
नूतन वर्ष
नए साल में
बुखार में है पड़ी
सर्दी में दिल्ली
ओढ़ के चली
झिलमिल चादर
सर्दी में गाड़ी
हवाई अड्डा
उड़ानों में बिलम्ब
धुंध की ब्रेक
धुंध में चलें
गाड़ियों की रौशनी
लापता गाड़ी
घर की बहू
आदर पाकर हो
लक्ष्मी का रूप
आने से गुरु
होता है जीवन में
सत्कर्म शुरू
सम विषम
कर रहा दिल्ली में
धुआं को कम
गुजरा साल
नहीँ ले गया साथ
आतंकवाद
काले बुर्के में
क्यों न मरते
अयोध्या में गूंजता
बूट का शोर
सोता हुआ समुद्र
चंचल वायु
.
रोज नहाती
फिर भी है बसाती
नदी में मत्स्य
तोड़ देती हैं
मिलते ही किनारा
लहरें दम
होती लहर
तट पर आकर
अबला एक
छिछला होने पर
जल लहर
गहराई हो तभी
लहरें सभी
***************
जगा देता है
पवन का चुम्बन
सिंधु स्पंदन
बुझा न पाती
आँखों की बड़ी प्यास
सिंधु तरंग
मन उमंग
उठ जगा देती हैं
सिंधु तरंग
देख सतत
मन नाहीं थकत
सिंधु तरंग
अनोखे रंग
दूर क्षितिज संग
सिंधु तरंग
हवा के संग
करें अठखेलियां
सिंधु तरंग
ले जाती खींच
सागर तट पर
मन को मौज
*************
रुकना नहीं
हमसे ये कहती
बहती नदीसिंधु का प्यार
उसी में डूब जाती
पाकर नदी
शोर नहीं करती
गहरी नदी
रात या दिन
चलते रहो नित
गाती है नदी
प्यासा सागर
जाती पानी लेकर
पीने को नदी
जीव अनेक
रहते जो अंदर
पालती नदी
बहती नदी
रुक जाना न कहीं
कहती नदी
नहीं मिलती
इस जग को गति
होती न नदी
एक अनंत
मिल जाती अंत में
जीवन नदी
मांगो न भीख
खुद बनाओ राह
नदी की सीख
बहती नदी
मानव उत्पीड़न
सहती नदी
करके मैला
मत करो विषैला
तुम्हारी नदी
ले के बहती
छोटी नदियां साथ
महती नदी
**************
नहीं बनता
समय नदी पर
हल्का हो जाता
हिमगिरि का भार
नदी में फेंक
पा जाती दिशा
हो जाती तेज गति
नदी की नाव
*************
दे देते प्राण
बनाने को कीटाणु
हाथी की राह
अंधे देखते
खम्भा पंखा दीवार
विवेकी हाथी
पीने को नदी
जीव अनेक
रहते जो अंदर
पालती नदी
बहती नदी
रुक जाना न कहीं
कहती नदी
नहीं मिलती
इस जग को गति
होती न नदी
मिल जाती अंत में
जीवन नदी
मांगो न भीख
खुद बनाओ राह
नदी की सीख
बहती नदी
मानव उत्पीड़न
सहती नदी
करके मैला
मत करो विषैला
तुम्हारी नदी
छोटी नदियां साथ
महती नदी
**************
नहीं बनता
समय नदी पर
पुल या बांध
देता है हमें
हमारी जिंदगानी
नदी का पानी
बन जाती है
खेती की पतवार
नदी का पानी
खेती की पतवार
नदी की धार
बन जाता है
टूटने पर सैलाब
नदी का तट
नदी का तट
जीव अनेक
नदी में रहकर
पालते पेट
नदी में रहकर
पालते पेट
हिमगिरि का भार
नदी में फेंक
पा जाती दिशा
हो जाती तेज गति
नदी की नाव
*************
दे देते प्राण
बनाने को कीटाणु
हाथी की राह
अंधे देखते
खम्भा पंखा दीवार
विवेकी हाथी
सुन लेता है
मौन होने पर भी
ऊपर वाला
मौन होने पर भी
ऊपर वाला
जब पिरोता धागा
मोती का दाना
नहा धोकर
चल पड़े भास्कर
दिन की चर्या
ऊपर जा के
मेघ ठण्ड के मारे
रोने लगता
दिखाने लगी
मूंगफली भी भाव
ठण्ड आ गयी
नभ खोलता
एक आँख दिन में
एक रात में
खाने दौड़ता
सूर्य तम के पीछे
चौबीसों घंटे
रात में बिल्ली
आँखों में जला लेती
डायोड बल्ब
देख के मेघ
नाचने लगता है
मोर का दिल
पहने जूता
सरपट दौड़ता
खुर में घोडा
सीख न पाया
मौसी से चढ़ पाना
पेड़ पे शेर
दे के चिड़िया
उजड़वाई नीड़
कपि को सीख
पैकडे बैठा
डाली को अजगर
छीने न कोई
असमंजस
बर्फ देखें या रास्ते
कश्मीर आ के
बर्फ की गेंद
खिलखिलाते फेंक
घाटी का मजा
धरा आकाश
हिमपात के वक्त
एक आभास
कुल्लू मनाली
पर्यटकों से खाली
बर्फ में ढकी
घाटी में भारी
हो गयी बर्फ़बारी
पसरी शांति
जला अलाव
जैसे ही गिरा पारा
शामू के द्वार
हुआ सवेरा
नींद मग्न सूरज
धुंध ने घेरा
आँखों को मूंद
सोया पड़ा चन्द्रमा
ओढ़ के धुंध
आप उतरो
सामान हमें दे दो
कुली की अर्ज
देर से आई
स्टेशन पर खड़ी
कल की गाड़ी
भांग धतूरा
कर देते बेहोश
शिव का भोग
लेकर चले
शिवरात्रि मनाने
मंदिर बेर
जाड़े की यात्रा
गाड़ी की गति बुरी
धुंध में घिरी
रात की लोरी
प्रातः ही भुला देता
पक्षी का गान
प्रातः ही रश्मि
सुनने चली आती
खगों के गीत
पक्षी झरने
वर्षा वायु सुनाते
प्रकृति राग
झुक जाता है
सुनने हेतु बांस
वायु का गीत
शोर के बीच
सोने हेतु पटरा
रेल की यात्रा
सत्ता में आ के
अपनों में ही बांटें
दूसरे ताकें
घंटों की चुप्पी
अयोध्या में गूंजता
बूट का शोर
चाय ने रोका
बहुतों को जाने से
मदिरालय
आज नहीं है
घंटों बैठते नीचे
जिस वृक्ष के
अब किधर जाएँ
घाटी में बर्फ
जहाज रेल
सबको किया देर
धुंध ने घेर
रात में खींचें
कभी ये तो कभी वो
छोटी रजाई
धुंध आग का गोला
चिंतित नभ
छाया कोहरा
बुझी नभ की आग
ठण्ड से कांपे
बुझाया धुंध
अम्बर का अलाव
अब क्या तापे
चाहती धुंध
रखना दिन भर
सूर्य को ढांपे
हुआ बेबस
धुंध में घिरा सूर्य
नभ से ताके
भू को चूमने
झुक जाता गगन
दूर क्षितिज
गिद्ध व चील
नभ में मंडराते
युद्ध समाप्त
धरा तत्पर
सूर्य का लगाने को
नया चक्कर
सिमट गया
इतिहास के गर्भ
एक और वर्ष
बच्चे हैं खुश
लाये उनको गिफ्ट
थैंक यू सैंटा
एक मिनट!
हो गया बड़ा दिन
आज का दिन
लेकर आये
मंगल हर पल
नूतन वर्ष
नए साल में
बुखार में है पड़ी
सर्दी में दिल्ली
ओढ़ के चली
झिलमिल चादर
सर्दी में गाड़ी
हवाई अड्डा
उड़ानों में बिलम्ब
धुंध की ब्रेक
धुंध में चलें
गाड़ियों की रौशनी
लापता गाड़ी
घर की बहू
आदर पाकर हो
लक्ष्मी का रूप
आने से गुरु
होता है जीवन में
सत्कर्म शुरू
कर रहा दिल्ली में
धुआं को कम
गुजरा साल
नहीँ ले गया साथ
आतंकवाद
************************
फायदा हेतु
तुगलकी कायदा
हमारी दिल्ली
नकाबपोश
औरों को ही दिखाते
जन्नत
बंदूकधारी
बंधक गिन रहा
वे बची सांसें
काले बुर्के में
मगर कह रहा
खुद को बन्दा
काला नकाब
काली ही करतूत
छुपा पिशाच
क्यों न मरते
जन्नत मिल जाता
खुद अपने
यह सवाल
सहिष्णुता ही है कि
नहीं उठाया
बाबरी सूत्र तोड़
संविधान बनाया
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