लाडो चली गयी …
लाडो, क्यों चली गयी, सरहद दे पार
ढूंढदी फिरां ओनु माँ, गली बाजार।
बिस्तर ते गुड्डा, कल्ला ही सोंदा वे
रातां नु माता रोंदी, रहंदी निहार।
ओना दा गुड्डा घर, सूखे नयन रौंदा
अम्मी बहांदी नै, असुअन दी धार।
बिखरे पये नै कुड़ी, वेख तेरे केश वे
नेड़े तू आ जा साडे, देवां संवार।
कित्थे छुपी वे लाडो, रो रो के मैया
हाथां विच कंघा ले, करदी पुकार।
पहला निवाला, केड़े मुह विच पावां
कल्ले उतरदा नईयों, गले हेठार।
खा लित्ते किताबां नु, झिंगुर पढ़ पढ़
कुर्ती रखी वै माँ, सन्दुक विच संभाल।
ओनु पता वी नहीं, कि होंदी सरहद?
खेलत खेलत दिती, कदम उतार।
कैसे पठावां ओनु, आवण दा कागज
कित्थे वै डेरा ओदा? कौण सरकार?
लाडो, क्यों चली गयी, सरहद दे पार
लाडो क्यों चली गयी …
लाडो क्यों चली गयी, सरहद के पार
ढूंढती फिरे है माई, गली बाजार।
बिस्तर पर गुड्डा, अकेला ही सोता
रातों को माता रोती, रहती निहार।
लाडो का गुड्डा घर, सूखे नयन रोता
अम्मी बहाती रोज, असुअन की धार।
बिखरे पड़े हैं, गुड़िया रे केश तेरे
पास तू आ जा मेरे, दे दूँ संवार।
कहाँ छुपी तू लाडो, रो रो के मैया
हाथ में कंघा ले के, करती पुकार।
पहला निवाला, किसके मुंह में डालूँ
उतर नहीं पाता अकेले गले हेठार।
खा गए किताबें सारीं, झिंगुर पढ़ पढ़
कुर्ती रखी माँ ने, सन्दुक में संभाल।
उसको पता नहीं, क्या होती सरहद?
खेल खेल में उसने दी, कदम उतार।
कैसे पठाउं उसे, आने के कागज
(C ) एस० डी० तिवारी
लाडो, क्यों चली गयी, सरहद दे पार
ढूंढदी फिरां ओनु माँ, गली बाजार।
बिस्तर ते गुड्डा, कल्ला ही सोंदा वे
रातां नु माता रोंदी, रहंदी निहार।
ओना दा गुड्डा घर, सूखे नयन रौंदा
अम्मी बहांदी नै, असुअन दी धार।
बिखरे पये नै कुड़ी, वेख तेरे केश वे
नेड़े तू आ जा साडे, देवां संवार।
कित्थे छुपी वे लाडो, रो रो के मैया
हाथां विच कंघा ले, करदी पुकार।
पहला निवाला, केड़े मुह विच पावां
कल्ले उतरदा नईयों, गले हेठार।
खा लित्ते किताबां नु, झिंगुर पढ़ पढ़
कुर्ती रखी वै माँ, सन्दुक विच संभाल।
ओनु पता वी नहीं, कि होंदी सरहद?
खेलत खेलत दिती, कदम उतार।
कैसे पठावां ओनु, आवण दा कागज
कित्थे वै डेरा ओदा? कौण सरकार?
लाडो, क्यों चली गयी, सरहद दे पार
(C ) एस० डी० तिवारी
लाडो क्यों चली गयी …
लाडो क्यों चली गयी, सरहद के पार
ढूंढती फिरे है माई, गली बाजार।
बिस्तर पर गुड्डा, अकेला ही सोता
रातों को माता रोती, रहती निहार।
लाडो का गुड्डा घर, सूखे नयन रोता
अम्मी बहाती रोज, असुअन की धार।
बिखरे पड़े हैं, गुड़िया रे केश तेरे
पास तू आ जा मेरे, दे दूँ संवार।
कहाँ छुपी तू लाडो, रो रो के मैया
हाथ में कंघा ले के, करती पुकार।
पहला निवाला, किसके मुंह में डालूँ
उतर नहीं पाता अकेले गले हेठार।
खा गए किताबें सारीं, झिंगुर पढ़ पढ़
कुर्ती रखी माँ ने, सन्दुक में संभाल।
उसको पता नहीं, क्या होती सरहद?
खेल खेल में उसने दी, कदम उतार।
कैसे पठाउं उसे, आने के कागज
कहाँ है डेरा उसका ? कौन सरकार?
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