Tuesday, 27 November 2018

Vakil 2



चतुर्थ भाग

श्रीराम का संतों ने, कहे हैं बड़े महात्म्य,
आदिकाल से राम के वर्णन बने साक्ष्य।

लाया हूँ साक्ष्य कुछ, रामचंद्र के पक्ष में।
संतों की कुछ कथनी, और कुछ ग्रन्थ मैं।



पहला साक्ष्य शिव की माही।
महादेव की लीजो गवाही।
श्रीराम ने लिया अवतारा।
देवों का तब झुण्ड पधारा।
शिव भी आये भभुति लगाई।
दशरथ को सब दिए बधाई।
प्रस्तुत शम्भू की उचराई। 
उमा को राम कथा सुनाई।
बोलीं पारवती कर जोरी।
सुनिबै राम कथा मुख तोरी।

'कहहु पुनीत राम गुन गाथा।
भुजग राज भूषण सुरनाथा। 
अति आरति पूछउँ सुरराया।
रघुपति कथा कहहुँ करि दाया।
पुनि प्रभु कहहु राम अवतारा
बालचरित पुनि कहहु उदारा।
कहहु जथा जानकी बिबाहीं।
राज तजा सो दोषन काहीं।
बन बसि किन्हें चरित अपारा।
कहहु नाथ जिमि रावन मारा।
औरउ राम रहस्य अनेका।
कहहु नाथ अति विमल विवेका।
प्रश्न उमा के सहज सुहाई।
छल विहीन सुनि शिव मन भाई।'

ध्यान मग्न तब हुए महेशा।
मनहिं खींचे कथा अवधेशा।
तुलसीदास कहे ई भाँती।
कहहुँ जे सुने सबे जगाती।

'हरि हिय राम चरित सब आये।
प्रेम पुलक लोचन जल छाये।
श्री रघुनाथ रूप उर आवा।
परमानन्द अमित सुख पावा।
करि प्रनाम रामहिं त्रिपुरारी।
हरषि सुधा सम गिरा उचारी।
पूछेहूँ रघुपति कथा प्रसंगा।
सकल लोक जग पावन गंगा।'

शंकर ने कह चरित्र नाना।
रामचंद्र की कथा बखाना।
शम्भू उवाच प्रथम सबूता।
राम, अवध-पति, और न दूजा।
जनमे राम शिव जी साक्षी।
अयोध्या में कौशिल्या कोखी।



2 द्वितीय भाग

महर्षि वाल्मीकि

प्रस्तुत करता, दूसरा साक्षी।
और न कोय, महर्षि बाल्मिकी।
हुआ पास ब्रह्मा का आना।
आज्ञा देकर अन्तर्ध्याना। 
लिख डालो ऋषि राम कथा।
रहेगी जगत में अमर सदा।
योग धर्म से राम चरित्र की।
सब लीलायें दृष्टि समक्ष थीं।
रामचरित आँखिन विलोकी।
रामायण सुन्दर अभिलेखी।
है संसार का पहला ग्रन्थ।
अनेक ग्रंथों को दिया जन्म।
सहस्रों बरस था पहले लिखा।
श्रीराम की शुभ सटीक कथा। 
आदिकाल की है ये रचना।
जीवन मन्त्र राम में रमना।
कहा जो बाल्मिकी का ग्रन्थ,
कहता मैं राम जनम प्रसंग -

अयोध्या नाम की थी नगरी।
मनु ने आकर जो स्वयं गढ़ी।
अयोध्या में रह नृप दशरथ।
प्रजा का किये सफल मनोरथ।
इक्ष्वाकु कुल के अतिरथी वीर।
धर्म परायण, थे यज्ञ प्रवीर।
दिव्य गुणों से थे संपन्न।
कोई न क्रूर, मूर्ख या कृपण।
अन्न और पशु धन से भरे।
महलों में अनेकों रत्न जड़े।  
प्रजा अति प्रसन्न, सदाचारी।
जीवन जीती स्वच्छ विचारी।
पुत्र प्राप्ति का यज्ञ कराये।
दशरथ चार पुत्र तब पाए।
ज्येष्ठ पुत्र विष्णु अवतारी।
श्रीराम का रूप था धारी।
रावण से पाने छुटकारा।
देवता मिल भू पर उतारा।
रावण पाया था वारदाना।
मार सके ना उपाय नाना।
देव, गन्धर्व, दैत्य से रक्षित।
नर से पर वो था न सुरक्षित।
कष्ट पा ऋषि मुनि बहुभाँती।
सोच मिटे रावण उत्पाती।
जाय किये ब्रह्मा से वंदन।
नष्ट हो रावण कीजौ यतन।
विष्णु बोले नर रूप में आऊं।
रावण को परलोक पठाऊँ।
शुक्ल पक्ष व चैत्र के मास।
नवमी तिथि लई राम अवतार।


गीत

दशरथ जी के अंगना, 
कौशिल्या मगन हुई।  

सभी सुखों के धाम, 
उसके गोदी में खेलें राम, 
पुलकित बदन हुई। कौशिल्या  ..    

राम लिए अवतारी, 
बनी वो भाग्यवान महतारी, 
माँओं में रतन हुई। कौशिल्या  ..   

सुबह से लेकर शाम, 
वो रटती रहती राम राम, 
राम की भजन हुई। कौशिल्या  ..  

करे जग जिसे प्रणाम, 
छूकर चरण वही श्रीराम, 
मातु की नमन हुई। कौशिल्या  ...   




महर्षि वेदव्यास


ऋषि पराशर के सुपुत्र रूप में प्रभु वेदव्यास का हुआ अवतरण ।
तीन हजार वर्ष ईशा पूर्व पड़े, व्यास मुनि के पृथ्वी पर चरण।

श्रीराम लला की वेदव्यास ने लीलाओं का करके वर्णन। 
श्रीमदभागवत पुराण की महिमा में दिया कर और भी वर्धन। 

'खट्वांगाद दीर्घबाहुश्च रघुस्तस्मात पृथुश्रवाः।
अजसततओ महाराजस्तस्माद दशऱथोभवत।
तस्यापि भगवानेश साक्षाद ब्रह्ममयो हरिः।
अंशाशेन चतुर्धागात पुत्रत्वं प्रार्थितः सुरैः।
रामलक्ष्मणभरतशत्रुघ्ना  इति संज्ञया।'

खट्वांग के सुत दीर्घबाहु, उनके रघु करते सत्य का पालन।  
रघु के आत्मज जन्मे थे अज, अज के सुत थे दशरथ राजन। 

देव गये सब शरण परमब्रह्म, दैत्यों के आतंक के कारण। 
श्री हरि हुए साक्षात् प्रकट तब नर का रूप कर के धारण। 

परमेश्वर के अंश से दशरथ के हुए आत्मज चार विलक्षण।  
लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और बड़े राम रूप में स्वयं नारायण। 


महाकवि कालीदास 

ईशा पूर्व ही रचे महाकवि कालीदास। 
अद्भुत ग्रन्थ रघुवंशम, विश्व भर में प्रख्यात।  

अयोध्या में  रघुवंशी नृपों का किया वर्णन।  
रघु की कई पीढ़ियां अलंकृत भांति रतन। 

राम की विदित पीढ़ियां, पचास से भी अधिक। 
साठ से अधिक पूर्वज, वेदों में हैं वर्णित। 

पीढ़ियों का सिलसिला महाभारत काल तक।   
पूर्वज हैं इक्ष्वाकु से दशरथ के राज तक।   

रघुवंशम में महाकवि कालीदास ने किया। 
रामायण की उल्लिखित प्रभु राम की कथा।  

मर्यादा पुरुषोत्तम दशरथ-पुत्र राम हुए। 
रघुवंश की कीर्तियों को दिगंतव्यापी किये।  





नामदेव जी
बारह सौ सत्तर में जन्मे, साक्षी।
संत शिरोमणि नामदेव जी।
राम नाम को बड़ा धन जाने।
आठ सिद्धि, नव निधि माने।
'राम नाम शेती राम नाम बारी।
 हमारे धन बाबा बनवारी।
या धन की देसहु अधिकाई।
तस्कर हरै न लागे काई।
दहदिसि राम रह्या भरपूर।
संतनि नियरे साकत दूरि।
राम सो धन ताको कहा अब थोरो।
अठ सिधि नव निधि करत निहोरो।'




स्वामी रामानंद १३००

तेरह सौ ईशवी में जन्मे स्वामी रामानंद। 
पूर्णतः राममय होकर पाये जीवन आनंद। 
प्रभु राम की महिमा का किये खूब बखान। 
करने में जीवन किया अर्पण राम गुणगान। 


'लोकाभिरामं रनरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्। 
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये। '

सम्पूर्ण लोकोंमें सुन्दर और रणक्रीडामें धीर, 
कमलनेत्र, रघुवंश नायक, तुमसे बड़ा न वीर। 
करुणा की मूर्ति तुम, हो करुणा के सागर, 
श्रीराम की शरण मैं,  धन्य चरणों को पाकर।  

'माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र:।  स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:। 
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु। नान्यं जाने नैव जाने न जाने। '

श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , 
मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं। 
दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं, 
उनके सिवा मेरा और न दूजा।  



संत रैदास
चौथे साक्षी, रैदास न झूठे।
पीकर राम के नाम को घूँटे,
चौदहवीं सदी में मुंह से फूटे -
'राम बिन संसै गाँठ न छूटे। 
काम, क्रोध, मोह, मद, माया 
इन पंचन मिल लूटे।' 

राम की भक्ति मन में समायी। 
राम नाम की दे के दुहाई,
आगे बोले रैदास चिल्लाई -
'ऐसी भगति न होइ रे भाई। 
राम नाम बिन जे कुछ करिये 
सो सबहि भरम कहाई।' 



संत कबीर
साक्षी संख्या पांच की सुनो 'मे लार्ड'।
कबीर ने भी है कहा अपने सद्विचार।

पंद्रहवीं शताब्दी में मुग़लों से पहले
कबीर ने लिखा अपनी कबीरी में -

'जो सुख पाऊं राम भजन में
सुख नहीं पाऊं अमीरी में।
मन लागा मेरो फकीरी में।'

राम भजन को कहत कबीर
सुन ले मनवा ध्यान धरी -

'भजो रे भैया राम गोविन्द हरी।
जप तप साधन नहीं कछु लागत
खरचत नहिं गठरी।
संतत सम्पत सुख के कारन
जैसे भूल परी।
कहत कबीर राम नहीं जा मुख
ता मुख धूल भरी।'


रहीम

एक साक्षी और है, रहीम बड़े ही नेक।
सज्जित थे अकबर के नवरत्नों में एक।

'गहि सरनागत राम की भव सागर की नाव।
रहिमन जगह उद्धार को और न कछु उपाय।

राम नाम जान्यो नहीं, जान्यो सदा उपाधि।
कहि रहीम तिहि अपुनो जनम गँवायो बाधि।

अब रहीम मुश्किल पड़ी, गाढ़े दोऊ काम।
सांचे से तो जग नहीं झूठे मिले न राम।'

रहिमन धोखे भाव से मुख से निकसे राम।
पावत पूरन परम गति कामादिक कौ धाम।

राम नाम जान्यो नहीं भइ पूजा में हानि।
कहि रहीम क्यों मानिहै जन के किंकर कानि।



सूरदास
ग्रन्थ प्रस्तुत, अद्भुत सूर-सागर।
हृदय की भर लिया सूरदास ने, हरि नाम से गागर।
धन हो गए सोलह सदी में, प्रभू का नाम पाकर।
कितने साधू, संत तर गए, लिखे भजन को गाकर।
पढ़े उर आनंद भर देता, कर दे भक्ति उजागर।
राम कथा को दोहराया, रामावतार समाकर।
उसी सूरसागर के पद ये लाया हूँ मैं सजाकर।


अयोध्या बाजत आज बधाई।
गर्भ मुच्यौ कौशल्या माता, रामचंद्र निधि आयी।
गावैं सखी परस्पर मंगल, रिपि अभिषेक कराई।
भीर भई दसरथ के आंगन, सामवेद धुन छाई।
पूछत रिपहिं अजोध्या कौ पति, कहियै जनम गुसाईं।
भौम वॉर नौमी तिथि निकी, चौदह भुवन बड़ाई।
चारि पुत्र दसरथ के उपजै, तिहुँ लोक ठकुराई।
सदा सर्वदा राज राम कौ सूर दादि तँह पाई।

दस सूत मनु के उपजे और।
भयउ इच्छवाकु सबनि सिरमौर।
सूरजबंसी सो कहवाये।
रामचंद्र ताही  कुल आये।
रावण कुम्भकरण सोइ भये।
 राम जनम तिनके हित लये।
दसरथ नृपति अयोध्या राव।
ते के गृह किये आविर्भाव।


अजु दसरथ के आंगन भीर।
ये भू भार उतारन कारन प्रगटे स्याम सरीर।
फूले फिरत अयोध्या वासी गनत न त्यागत चीर।
परिरमन हँसि देत परसपर आनंद नैनन नीर।
त्रिदशी नृपति, रिपि व्यौम विमानन देखत रह्यौ न धीर।
त्रिभुवन-नाथ दयालु दरस है, हरि सबन की पीर।
देत दान राख्यो न भूप कछु, महा बड़े नाग हीर।
भये निहाल सूर जब जाचक, जे जांचे रघुबीर।



मीराबाई

कृष्ण-भक्त मीराबाई जाने सब कोई। 
राम-नाम भजकर के वो भी मस्त होई। 

पायो जी मैं तो राम रतन धन पायो। 
वास्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो। 
जनम जनम की पूंजी पायी, जग में सब खोवायो। 
खावे न खरच चोर न लेवे, दिन दिन बढ़त सवायो। 
सात की नव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।  
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरस हरस जस गायो।  

मेरो मन राम नाम रटै 
राम नाम रट लीजै प्राणी! कोटिक पाप कटै। 
जनम जनम के खत जो पुराने, नामहि लेत फटै। 
कनक कटोरे इमरत भरियो, नामहि लेत नटै। 
मीरा के प्रभु हरि अविनासी, तन मन ताहि पटै। 


गोस्वामी तुलसीदास

अब मैं समक्ष कर रहा श्रीमान,
तुलसीदास को प्रस्तुत।
पावन रामचरित मानस रचकर,
कार्य किया है अद्भुत।

श्रीराम का प्राकट्य जिन्होंने
अयोध्या में बतलाया।
उसी तिथि रमचरित मानस
प्रकाशित राम की माया।

तुलसी ने कह पूरी राम कथा,
सरयू, अवध का वर्णन।
पावन ग्रन्थ रामचरित मानस,
जग को किया था अर्पण।


'सादर सिवहि नै अब माथा।
बरनउँ बिसद राम गुन गाथा।
सम्बत सोरह सै एकतीसा।
करऊँ कथा हरि पद धरि सीसा।'
"नौमी भौम बार मधुमासा।
अवधपुरी यह चरित प्रकासा।
जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं।
तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं।
परम परस मज्जन अरु पाना।
हरई पाप कह बेद पुराना।
नदी पुनीत अमित महिमा अति।
कहि न सकइ सारदा बिमल मति।

राम धामदा पूरी सुहावनि।
लोक समस्त बिदित अति पावनि।
रचि महेस निज मानस राखा ,
पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा।
कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई।
सादर सुनहु सूजन मन लाई।'

रामचरित मानस में, कहे जो तुलसीदास।
तिथि नौमी राम प्रकट, शुक्ल चैत्र के मास।

'नौमी तिथि मधुमास पुनीता।
सुकल पक्ष अभिजित हरिप्रीता।
मध्य दिवस अति सीत न घामा।
पावन काल लोक विश्रामा।

सीतल मंद सुरभि बह बाऊ।
हरषित सुर संतान मन चाऊ।
सो अवसर बिरंचि जब जाना।
चले सकल सुर साजि बिमाना।

बरषहिं सुमन सुअंजुलि साजी।
गहगहि गगन दुंदुभी बाजी।
अस्तुति करहिं नाग मुनि देवा।
बहुबिधि लावहिं निज निज  सेवा।'


राम के प्राकट्य को तुलसी ने
इस प्रकार से ढाला है।
रामचरित मानस में सुन्दर
शब्दों की एक माला है।

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।                                                        हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी।।                                                        लोचन अभिरामा तनु घनश्यामा निज आयुध भुज चारी।                                                  भूषन बनमाला नयम बिसाला सोभासिंधु खरारी।।                                                                
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता। 
माया गुन ग्यानतीत अमाना बेद पुरान भनंता।।     
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता। 
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता।। 

ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रों प्रति बेद कहै। 
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर रहै।। 
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै। 
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै।।                                                   

माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा।।   
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा। 
यह चरित जे गावहिं हरि पद पावहिं ते परहिं भवकूपा।।


एक सोहर गीत

कहाँ पर मंगल गान, कौन जे गावे सोहर हो।
ललना, कहाँ पर बाजे बधाई, कि कहाँ पर मनोहर हो।
अवध में मंगल गान, मिल नारी गावें सोहर हो।
ललना, अयोध्या में बाजे बधाई, कि लागे मनोहर हो।

कहाँ पर जन्मे श्रीराम, किसकी गोदी में हो।
ललना, गहि गहि बाजे बधाई, कि किसके घर में हो।
अयोध्या में जन्म लिए राम, कौशिल्या की गोदी हो।
ललना, गहि गहि बाजे बधाई कि दशरथ घर में हो।

कौन लुटावे अन्न धनवा, कौन सी नगरी हो।
ललना, अम्बर से बरसे फूल, कि खुश नर नारी हो।
दशरथ लुटावें अन्न धनवा, अयोध्या नगरी हो।
ललना, प्रसन्न तीनों महतारी, अवध के नर नारी हो।


सुनहु राम कर सहज सुभाऊ
जान अभिमान न राखहिं काऊ
नृप मंदिर सुन्दर सब भांति
खचित कनक मनि नाना जाती
बरनि न जाइ रुचिर अंगनाई
जांच खेलत नित चरिउ भाई


मलूकदास

पंद्रह चौहत्तर में, दिखाए मलूक दास। 
उन्हें अपने राम में, देखो कैसा विश्वास - 

'अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम। 
दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।'  

अब तेरी सरन आयो राम। 
जबै सुनिए साधके मुख, पतित पावन नाम। 
यही जान पुकार किन्ही, अति सतायो काम।
बिषयसेति भयो आजिज, कह मलूक गुलाम।



स्वामी अग्रदास

पंद्रह सौ छिहत्तर में आयी। 
स्वामी अग्रदास की चौपाई। 

'जीव मात्र से द्वेष न राखे। 
सो सिय राम नाम रस चाखे। 
दीन भाव निज उर में लावै। 
सिया राम सन्मुख छवि छावै।
तौन उपासक ठीक है भाई। 
वाकी समुझौ बनी बनाई।
सियाराम निशि वासर ध्यावै। 
अन्त त्यागि तन गर्भ न आवै।'


'पहरे राम तुम्हारे सोवत, 
मैं मतिमंद अँधा सैम जोवत।  
अपमारग मारग महि जान्यो,
इंद्री पोषि पुरुषारथ मान्यो।
औरन के बल अनतप्रकार, 
अग्रदास के राम अधार। 


स्वामी नाभादास 

अग्रदास के शिष्य थे, सदी थी सत्रहवी।   
संत नाभादास रचे, रामध्यानमंजरी

'अवधपुरी की शोभा जैसी।  
कह नहिं सकहिं शेष श्रुति तैसी। 
रचित कोट कलधौत सुहावन।
बिबिधा रंग मति अति मनभावन। 
चहुँ दिसि विपिन प्रमोद अनूपा। 
चतुरवीस जोजन रस रूपा। 
सुदिसि नगर सरजूसरि पावनि। 
मनिमय तीरथ परम सुहावनि।  
बिगसे जलज भृंग रस भूले।

गुंजत जल समूह दोउ कूले।' 




श्री गुरुग्रन्थ साहिब 

श्री गुरुग्रन्थ साहिब ने किया धारण,  
राम नाम के मन्त्र असाधारण -

जा कउ भए कृपाल प्रभ हरि हरि सेइ जपात  ५२१ १९४ ११५९ ६५९ ३३५ ३२९ 

'नानक प्रीति लगी तीन राम सिउ भेटत साध संगात 
राम गुरमति हरि लिव लागे 
घट घट रमईया रमत राम 
चतुरथी चारे वेद सुणि सोधियो तत बिचारू। 
सरब खेम कलिआण निधि राम नामु जपि सारू।   


निर्गुण राम गुणई वसि होई। 
आपु निवारि बीचारे सोई। 
ऊँचे मंदर सुन्दर नारी। 
राम नाम बिन बाजी हारी।  
राम राइ होहि बैद बनवारी। 
अपने संतह लेउ उबारी। 
हरि गन कहते कहनु न जाई।  
जैसे गूंगे की मिठियाई। 
निज पद ऊपर लागो धिआनु। 
राजा राम नामु मोरा ब्रह्म गियानु। 
अवलोकउ राम को मुख़ार बिन्द।  
खोजत खोजत रतन पाइयो बिसरी सभ चिंद।  
साधु मिले सिधि पाइये कि एहु जोगु कि भोगु। 
दुहु मिलि कारज उपजै राम नाम संजोगु। 
जो धुरि लिखया लेखु प्रभ मेटणा न जाई। 
रामु नामु धन वेखरो नानक सदा धिआई। 
सुखु माँगत दुखु आगे आवे। 
सो सुखु हमहु न माँगिआ जावे। 
बिखिया अजहु सुरति सुख आसा।  
कैसे होइ है राजा राम निवासा। 
राम नामि जिनि प्रीति पियारू। 
आपि उतरे सभि कुल उधारण हारू। 
कलजुग महि राम नामु उर धारू। 
बिन नावै माथै पावै छारु।  
कलजुग महि राम नामु है सारू।  
गुरमुखि साचा लगै पिआरु। 
राम नामु जान भालहि सोइ। 
पुरे गुरु से प्रापत होइ।' 



 केशवदास

हिन्दुओं पर औरंगजेब जब कर रहा अत्याचार था।
सत्रहवीं सदी में राम चन्द्रिका, लिख रहा केशवदास था।

'शुभ सूरज कुल-कलश नृपति दशरथ भये भूपति।
तिनके सुत भये चारि चतुर चितचारु चारुमति।
रामचंद्र भुवचंद्र भरत भारत-भुव-भूषण।
लक्ष्मण अरु शत्रुघ्न दीह दानव दल-दूषण।

उपज्यो तेहि कुल मंदमति, सठ कवि केशवदास।
रामचंद्र की चंद्रिका, भाषा करी प्रकास।
सोरह सै अट्ठावनै, कार्तिक सुदि बुधवार।
रामचंद्र की चंद्रिका, तब लीन्हो अवतार।

दरसन देत, जिन्हें दरसन समुझैं न,
‘नेति नेति’ कहै वेद छाँड़ि आन युक्ति को।
जानि यह केशोदास अनुदिन राम राम
रटत रहत न डरत पुनरुक्ति को।'


सेनापति

सत्रहवीं शताब्दी भई, सेनापति जनम लई
राम की महिमा को कविता में बखान्यो है।

सुधा के समान, भोग-मुकुति-निधान,
महामंगल निदान 'सेनापति पहचान्यो है। '
कामना को कामधेनु, रसना को बिसराम,
धरम को धाम, राम-नाम जग जान्यो है।

तुम करतार जान रक्षा के करनधार,
पुजवनहार मनोरथ चित चाहे के।
यह जिन जानि, सेनापति है सरन आयो,
जिए सरन महा पाप-ताप दाहे को।

रावण को बीर 'सेनापति रघुबीर जू की,
आयोा है सरन छाँड़ि ताही मद अंध को।
मिलत ही ताको राम कोप कै करीहे ओप
नाम जोय दुर्जन-दलन दीनबन्ध को।



रामनगर, काशी में रामलीला

काशी नरेश की प्रस्तुत करता हूँ गवाही।
रामचरित मंचन करा, लूटी वाह-वाही।

रामचरित मानस लिखे, तप कर तुलसीदास।
पचीस बरस काशी में, रहकर अस्सी घाट।

रामनगर में करवा कर सुन्दर आयोजन।
काशी नरेश ने किया, रामलीला मंचन।

चल रहा है चार शतक वर्षों से चिरन्तन।
सोलह सौ इक्कीस में, आरम्भ वो प्रचलन।

राम चरित्र की छवि जन मानस के मन छपी।
होती है राम लीला देश की गली गली।

होता रामलीला का दस दिन निष्पादन।
अश्विन माह, दशमी को होता है समापन।

आप ही बतलाओ, इन सबसे बड़ा नाम।
कहाँ से अब मैं लाऊँ, ढूढूं कौन से धाम।


विश्व में राम

नवीं शताब्दी में निर्मित एक मंदिर विशेष।
इंडोनेशिया में विराजे ब्रह्मा, विष्णु, महेश।

धर्म, आस्था और कला का अद्भुत संगम।
सुन्दर, विशाल बना यह मंदिर प्रमबनन।

सम्पूर्ण विश्व का विचित्र एक धरोहर है।
श्रीराम-कथा की चित्रकारी यहाँ मनोहर है। 

बाली में होता नित्य, रामलीला का मंचन। 
नृत्य नाटिका में राम-पराक्रम, लंका दहन।


बारहवीं सदी के बने अंग्कोरवाट मंदिर में।
विष्णु की मूर्ति जोड़ दिया बुद्ध के सिर में।

बौद्ध भक्तों ने मिल ऐसा एक काम किया।
मंदिर को विष्णु-बुद्धा मंदिर का नाम दिया।

राम की लीलाओं की चित्रकारी मनोहर।
देखी जा सकती है अब भी, उन दीवारों पर।

कम्बोडिया में स्थित यह मनोहारी मंदिर।
राम का साक्ष्य, विश्व संस्कृति की धरोहर।

कम्बोडिया के राजमहल की दीवारों पर भी।
अंकित सुन्दर चित्र, राम की कथा हैं कहतीं।

पाकिस्तान ने तो परिचय दिया, अधर्म का।
मंदिर अनेक तोड़, अपने पापों के कर्म का।

सैकड़ों में से बचे हैं पाक में बीस-पच्चीस।
राम से हर पाकिस्तानी रहता है भयभीत।

सिडनी से टोरेंटो तक, मंदिरों में अभिव्यक्त।
सदियों से विश्व व्यापी, प्रभु राम व भक्त। 



जन्मस्थल की खुदाई

इक्कीसवीं सदी का अब, प्रस्तुत है साक्ष्य।
सबसे ताजा और महामहिम को मान्य।

करके सुनवाई, न्यायालय ने ही करवाई।
दो हजार तीन में उस स्थल की खुदाई।

उपस्थित वहां, पुरातत्व के विशेषज्ञ थे।
खुदाई में मिले, प्राचीन मंदिर के खम्भे।

वहां मंदिर होने के, कई प्रमाण मिले।
मूर्तियों के अवशेष और पाषाण मिले।

हिन्दू, मुस्लिम प्रतिनिधि उपस्थित थे।
अभिलेखकर्ता, कर रहे व्यवस्थित थे। 

नक्काशी किये वहां पर, पत्थर मिले।
विष्णु की प्राचीन मूर्ति व कलश मिले।

मगर के मुख वाली, पतनाली मिली।
शिला-कृति, हजारों वर्ष पुरानी मिली।

मिले अनेक अवशेष थे, जो खंडित थे।
हिन्दुओं के चिन्ह, मान रहे पंडित थे।

पुरातत्व विभाग ने निरीक्षण किया है।
वहां मिली सामग्री का परीक्षण किया है।

मंदिर के खम्भों पर, मस्जिद खड़ी थी। 
सबने माना, मगर राजनीति बड़ी थी। 

कुछ चीजों की व्याख्या अलग की गयी।
और स्थल को मुस्लिमों की कही गयी।

मगर वहां जो भी विद्वान निष्पक्ष थे।
माना, निःसंदेह मंदिर के ही साक्ष्य थे।

साक्षी इस बात के,  हजारों इतिहासकार।
उस काल का कर चुके, जो थे साक्षात्कार।

बाबर आक्रांता था, विदेश से आया था।
बल पूर्वक ही यहां, अधिकार जमाया था।

साम्राज्य बढ़ाने की ओर वो अग्रसर था।
भोले लोगों पर आकर,  ढाया कहर था।

फूले फले उस काल भी, भली से प्रभु राम।
साधु संतों ने जी भर जीया राम का नाम।

मुग़ल-काल में अत्याचारों को टक्कर।
साधु संतों ने दिया राम का नाम जपकर।


सिद्ध करने को क्या ये पर्याप्त नहीं है।
राम, क्या पूरे विश्व में व्याप्त नहीं है। 



५ पंचम भाग


मामला यह, मंदिर-मस्जिद का नहीं है।
और क्या है? कुछेक की जिद का नहीं है।

मामला जब सुलझने के समीप होता है। 
खड़ा, कोई नया बखेड़ा अजीब होता है। 

नेता लोगों को भिड़ा, एक ओर हो जाता। 
आम आदमी है कि अपना रक्त बहाता। 

राम की अयोध्या, मुस्लिम जानता है।  
बाबर से पहले मस्जिद न थी, मानता है। 

जानता, अयोध्या विवाद, अकारण है।
करना चाहता, ना पर कोई निवारण है।

गंगा जमनी तहजीब तो कहते हो भाई। 
अलग धार में फिर क्यों बहते हो भाई। 

दो नदियों के संगम की भांति मिल। 
मुख्य धारा में क्यों नहीं रहते हो भाई ?

कई बार दरियादिली, दिखाने को होता। 
कोई बाहरी आकर, जहर के बीज बोता। 

जो भी सच्चा, हिन्दू या मुसलमान है।
करता वह सभी धर्मों का सम सम्मान है।

मुगलों से पहले भी यहाँ मुसलमान थे।
मंदिरों के विवाद के पर नहीं निशान थे।

गाँधी को राष्ट्र का जनक बोला जाता।
इष्ट राम को साम्प्रदाय से तोला जाता।

अंत-काल मुंह से निकला सहज 'हे राम'।
छुट्टी मिली समाधि पर खुदवाकर 'हे राम'। 

भारत वर्ष का राम राज्य का सपना है।
प्राप्ति हेतु पहले, राम राम ही जपना है।

उसके लिए राम-चरित्र को निभाना होगा।
दुर्गुणों से दूर, आदर्शों को अपनाना होगा।

राम का भव्य मंदिर, यह याद दिलाएगा।
जिसे देख देख कर रावण खौफ खायेगा।

राम महापुरुषों के, शक्ति का स्रोत है।
दया, धर्म, प्रेम, आदर्शों से ओत प्रोत है।

अयोध्या तो राम का है, राम का रहेगा।
भूमि सुचि पर, दैत्य प्रवृत्ति क्यों सहेगा।



अयोध्या पावन है, स्थल पावन रहने दो।
निर्झर बहती सरयू, जल पावन रहने दो।

राम नाम अरबों लोगों को आश्रय देता।
कष्ट में होने पर कई रूप में प्रश्रय देता।

जो भी भक्त आता, राम गले लगाता।
सबरी, सुग्रीव, अहिल्या को भी उठाता।

राम नाम राक्षसी प्रवृत्ति भस्म करता है।
लोभ, क्रोध और तृष्णा को ख़त्म करता है।

अपनी तो सुविधाओं के वे विधि बनाये।
सदन में पहुंचे सदस्यों ने निधि बनाये। 

उसके भी काम में अगर तुम दोगे ध्यान।
तो राम बना रहेगा, सदैव कृपा निधान।

युगों से, खरबों की भक्ति है, राम नाम में।
तभी तो सबसे बड़ी शक्ति है, राम नाम में।

राम ही है जो राष्ट्र को संभाले, मत भूलो।
राम नाम ही जनता को पाले, मत भूलो।

रावण तो राम-मंदिर का विरोध करेगा।
निर्माण में नित खड़ा अवरोध करेगा।

रावण को डर है, जब राम के भक्त होंगे।
उसके काम में निश्चित, बाधक होंगे।

राम के आगे सीता का चीर कैसे हरेगा?
राम-मंदिर बनेगा, रावण का कुनबा डरेगा।

औरों का माल छीन झपट कैसे खायेगा।
राम-राज्य में स्वर्ण महल कैसे बनाएगा।



राम का भव्य मंदिर बन जाएगा।
देश-विदेश से पर्यटक आएगा।
अयोध्यावासी की आय बढ़ेगी,
क्षेत्र का आर्थिक सुधार हो पायेगा।

अयोध्या में राम भक्त पटे होंगे।
भक्तों की सेवा में लोग जुटे होंगे।
कई व्यवसाय व सेवाओं से लोग,
कमाई के साथ खुशियों से अटे होंगे।

वृहत राष्ट्र का यह पर्यटन होगा।
उमड़ता यहाँ पर जन जन होगा।
इस सृष्टि को जो है चलाने वाला,
प्रभु राम को करता नमन होगा।

यहाँ मंदिर बना आलीशान होगा।
लोगों के सौहार्द का निशान होगा।
प्रसाद बेच रहा, इस स्थल पर,
बैठा हिन्दू और मुसलमान होगा।


वह बाहर से आया था, आक्रांता था
लिखी हुई है इसकी रिपोर्ट, सुनो।
घसीटा जा रहा राम के मंदिर का,
झगड़ा फिर क्यों कोर्ट से कोर्ट, सुनो।

चलाता है सम्पूर्ण सृष्टि का विधान।
संविधान से उसको डराता है इन्सान।
रखता शक्ति, वो चाहेगा लिख देगा,
मिटाकर, राष्ट्र का नया संविधान।

राम-नाम में लगा अरबों का मन है।
राम नाम ही साधु संतों का जीवन है।
कितनों के कठिन समय का सहारा,
कितनों का निःशुल्क मनोरंजन है।

अवध से है रामसेतु तक, राम का नाम।
जोड़ रखा है राष्ट्र को सब, राम का नाम।
राम नाम में है सफल, एक अपार बल,
रोकता दुष्परिणाम सकल, राम का नाम।


श्रीलंका पर्यटन चला रहा, राम के नाम पर।
करोड़ों प्रति वर्ष कमा रहा, राम के नाम पर।
भारत में जन्मा, जन्म स्थान का विवाद कर, 
राष्ट्र को क्षति पहुंचा रहा, राम के नाम पर। 

मन में विश्वास जगाता, राम का नाम।
कर्म हेतु उत्साह जगाता, राम का नाम।
राम नाम हर लेता बहुतों के दुःख को,
बुरी शक्ति को है भगाता, राम का नाम।

दशानन के शीश दस, मिथ्या, घृणा, लोभ,
मद, मत्सर, ईर्ष्या, काम, मोह, द्वेष व क्रोध।
कुचल के रख देता सभी को राम का नाम,
और मिटा देता है जीवन के सब क्षोभ।

जीवित रहे राम का नाम, रावण क्यों चाहेगा !
धरती से हो पाप तमाम, रावण क्यों चाहेगा !
उसे तो भोग चाहिए, वैभव, विलास चाहिए,   
कोई धाम हो राम के नाम, रावण क्यों चाहेगा !


खुद के कार्य हों निर्वाध, रावण यही चाहता।
वाधित हो राम के काम, रावण यही चाहता।
दुनिया हो गयी राम-मय तो उसकी न चलेगी,
फैले उसी का ताम झाम, रावण यही चाहता।

मंदिर से और भी सुदृढ़ होगा राम का नाम।
अब कभी नहीं संकीर्ण होगा राम का नाम।
विश्व भर में छाया हुआ है राम का प्रताप,
और बढ़ेगा, जब जीर्ण होगा राम का नाम।


सरकार भूमि का अधिग्रहण करती है।
धर्म-स्थलों में अपना दखल रखती है।
मंदिरों में प्रशासक नियुक्त कर देती,
राम को भूमि देने से फिर क्यों डरती है?

राजनिति का वाद शीघ्र निबटाया जाता।
फ़िल्मी विवाद अविलम्ब सुलझाया जाता।
जो जग के सबसे बड़ा न्याय का मंदिर,
उसके मंदिर का मामला लटकाया जाता।

लोकतंत्र में किसी के वोट बैंक के डर से। 
बहुसंख्यक अपने अधिकार को तरसे। 
रहना पड़ा, राम लला को भटकते दूर,
कहीं पर बाहर, अपने अवध नगर से। 

राम में करोड़ों लोग लगे बझे होते हैं।
मन के विकारों को सब तजे होते हैं।
कोई पूजा, दर्शन और कीर्तन करता,
बहुत से लोग राम नाम भजे होते हैं।

राम नाम में अगर वो नहीं समायेंगी।
वो सभी शक्तियां आसुरी हो जाएँगी।
विध्वंसक कार्यों में विनिवेशित होकर,
कहीं न कहीं राष्ट्र को क्षति पहुंचाएंगी।

सद्चरित्र को पुष्ट करता, राम का नाम।
मन में उपजे कष्ट हरता, राम का नाम। 
आसुरी शक्तियां जो भी उत्पन्न होतीं,
उन सबको नष्ट करता, राम का नाम। 

मन का मैल धुल जाता, भजने से 'राम'।
जीवन अमृत मिल जाता, भजने से 'राम'।
दुर्गुणों से लड़ने का अद्भुत बल मिलता,
रावण का दम हिल जाता, भजने से 'राम'।


राम, मात्र नाम नहीं, रामायण-सूत्र है।
है तो ईश्वर, कहने को दशरथ पुत्र है।
राम-नाम में मानवता के आदर्श सभी,
कृपा, करुणा, और सुखों का समुद्र है।


राम-पूजन में निवेश है, कितनी शक्ति।
राम-भजन में निवेश है, कितनी शक्ति।
जाने से बच जाती है विध्वंस की ओर,
राम-नमन में निवेश है, कितनी शक्ति।

दुःख, दरिद्रता के शाप हटाता, राम का नाम।
ऊपर आये सब पाप भगाता, राम का नाम।
बस जाता है राम का नाम जिसके हृद में,
अनेकानेक संताप मिटाता, राम का नाम।

राम-नाम में दया, धर्म और करुणा रमा 
राम का नाम ही है दान, कृपा और क्षमा
विश्व में शांति स्थापित करने का 'राम'
संतों ने दिया है एक अद्भुत मन्त्र थमा

राम नाम अनेक लोगों को भक्ति देता।
भक्तों को अनेक पापों से विरक्ति देता।
आदर्श के पथ पर चलने को प्रेरित कर,
राष्ट्र को प्रेम की अलौकिक शक्ति देता।

राम-नाम जीवन का एक महामंत्र है।
कलियुग में निष्पाप का अद्भुत यंत्र है।
जगत को शांति मार्ग पर चलाने वाला,
मिला एक अलौकिक और सरल तंत्र है।



  **********



जब जहाँ मेरा वादी चाहेगा, मे लार्ड!
राम-मंदिर तो बन जायेगा, मे लार्ड!

भक्तों पर अनेक कृपा बरसाई।
राक्षसों से पृथ्वी रिक्त कराई।
अपने मंदिर को तरस रहा है,
जिसने है सारी सृष्टि बनायी।
एक दिन महिमा दिखलायेगा,
मंदिर भी वही बनाएगा, मे लार्ड! राम मंदिर  ...

भक्त बनाने जब आगे आते। 
प्रतिवादी अनेक धौंस जमाते।
झगड़ा तो कभी रगड़ा करने को,
नेता उन्हें बहु भांति उकसाते।
भक्त, कब तक प्राण सुखायेगा!
एक दिन राम को बुलाएगा, मे लार्ड! राम मंदिर ..

मूर्त रूप में नहीं दिखता वो।
हर जीव में मगर बसता वो।
प्राण जिसे कहते, वही तो है,
वायु बन सांसों में चलता वो।
विरोधियों के बुद्धि में घुस कर,
अपनी शक्ति दिखायेगा, मे लार्ड! राम मंदिर  ...

मेरे तर्क, यदि मान्य न होंगे।
प्रभु के गुण सम्मान्य न होंगे।
पापियों का बल बढ़ता जायेगा,
देश में भरे धन धान्य न होंगे।
उसको यदि न्याय नहीं मिला,
तो  न्याय भी पछतायेगा, मे लार्ड! राम मंदिर  ...

अवमानना से वह नहीं डरेगा।
तुम्हें भी कटघरे में खड़ा करेगा।
कुछ भी नहीं असंभव उसको,
मंदिर तो उसका अवश्य बनेगा।
पापी हैं जो भी इस धरती भर,
करनी का भोग चखायेगा, मे लार्ड! राम मंदिर  ...

धर्मों से ऊपर, भगवान है वो। 
सबका ही कृपानिधान है वो।
नाम लेकर गया दुनिया से,
धरती पर रहा महान है वो।
कितना भी अमृत करे धारण,
 रावण, फिर भी मर जायेगा, मे लार्ड! राम मंदिर  ...

मनुष्यों में रह, वह देखता सब।
आवश्यकता  पर, होगा प्रकट।
मंदिर है उसके होने का प्रतीक,
राष्ट्र का होता है, जैसे ध्वज।
एक नाम रोकता, कितने विध्वंस,
पुण्यात्मा ही समझ पायेगा, मे लार्ड! राम मंदिर  ...

ऐसे ही बेघर रहे यदि राम लला।
मंदिर बना रहे विवाद का मसला।
करोड़ों की भावना से हो खिलवाड़,
राष्ट्र का कैसे हो पायेगा भला।
राम के बिना, दानव सिर उठाएंगे,
मानव व्याकुल हो जायेगा, मे लार्ड! राम मंदिर  ...

बड़ा ही धैर्य दिखाया है राम ने।
इतना सहा, नहीं आया सामने।  
बन जाने दो अब मंदिर श्रीमान,
न तो, न आएगा वो तुम्हें थामने।
भक्त न होंगे, मोड़ लेगा मुंह वह,
दैत्यों से फिर कौन बचायेगा, मे लार्ड! राम मंदिर  ...



अयोध्या

पूरा अवध है पावन स्थल, मंदिर राम का।
वही करेगा निर्माण सफल, मंदिर राम का।

जन्म स्थल पर बनने का अब हो चुका है,
प्रभु राम का आदेश अटल, मंदिर राम का।

राष्ट्र का है अनमोल धरोहर, राम का नाम,
और राम का प्रतीक अविरल, मंदिर राम का।

राम है, आत्म विश्वास की एक शक्ति प्रबल,
आम आदमी का है बल, मंदिर राम का।

संघर्षरत है निर्माण के लिए, राम का भक्त, 
लड़ते रहते राजनितिक दल, मंदिर राम का। 

लंबित पड़ा जन्म-भूमि का वर्षों से विवाद,
जब कि है अयोध्या सकल, मंदिर राम का। 

बनने से राम की जन्म भूमि के स्थान पर, 
छटपटाता क्यों दिखता खल, मंदिर राम का। 

राम विमुख, रावण परस्त, पाप समर्थक,
बनने में रचता रहता छल, मंदिर राम का।




तू जाकर बैठा अम्बर में कहीं
नहीं पूछता कैसे हैं भारत के लोग
जनसंख्या बहुत बढ़ गयी है
मकानों की मंजिलें एक दूसरे पर चढ़ गयी हैं

शिक्षा अब व्यापार है
डॉक्टर  पैसे का बीमार है
जनता बेहाल है
कहीं बाढ़ कहीं कहीं सूखा है
मगर अफसर नोट का
नेता वोट का भूखा है


 राम राज्य के सपनों की दशा देखि नहईं जाती
इसलिए लिखता हूँ तुझको पाती
सडकों पर सरपट गाड़ियां दौड़ रही हैं
कला धुआं छोड़ रही है
मंगाई जनता की कमर तोड़ रही है
किसी तरह रोटी मिल जाती है
शासक व्यवस्था से ऊब गए हैं
अफसर भ्रष्टाचार में डूब गए हैं
सब चाहते जिनको अवसर है
बड़े अधिकारी नेता का हाथ सर पर है
जल्दी से जल्दी घर भर लेना
कई पुश्तों का प्रबंध कर देना


जन्म भूमि पर मंदिर

श्रीराम ने जन्म लिया, भारत रखता गर्व
सर्वस्व
गंगा सरयू हो जाये, चाहे कभी निर्जल
राम का नाम चलेगा, पृथ्वी पर अविरल

त्रेता, द्वापर में जब किसी धर्म का नहीं था नाम
धरती पर तब भी विद्यमान थे, श्री राम


राम नाम है सबका
मनुवा राम नाम में राम जा

देता जय
करता ऐश्वर्य प्रदान
 भक्ति मिलती शक्ति
कृपानिधान शरणागत को

दशरथ नंदन,
असुर निकंदन।
लगा के चन्दन,
करें ऋषि मुनि वंदन।
भाग जाता दुःख
करे भजन।
किये सिय स्वम्बर,
शिव धनु भंजन।
सत्य की रक्षा में
भटके वन वन।
संग  में भार्या,
भाई लक्ष्मण।
नाम से ही दूर
दैत्य और दुर्जन।
संवार दे तन मन 
नाम ही धन।


राम नाम नहीं भजते
भगवान् राम सद्बुद्धि दे


लुजियान यूनिवर्सिटी अमेरिका के प्रो. सुभाष काक ने अपनी पुस्तक 'द एस्ट्रोनॉमिकल कोड ऑफ ऋग्वेद' में श्रीराम के उन 63 पूर्वजों का वर्णन किया है जिन्होंने अयोध्या पर राज किया था। रामजी के पूर्वजों का वर्णन उन्होंने क्रमश: इस प्रकार किया- मनु, इक्ष्वाकु, विकुक्शी (शषाद), ककुत्स्थ, विश्वरास्व, आर्द्र, युवनाष्व (प्रथम), श्रावस्त, वृहदष्व, दृधावष्व, प्रमोद, हर्यष्व (प्रथम), निकुंभ, संहताष्व, अकृषाश्व, प्रसेनजित, युवनाष्व (द्वितीय), मांधातृ, पुरुकुत्स, त्रसदस्यु, संभूत, अनरण्य, त्राशदष्व, हर्यष्व (द्वितीय), वसुमाता, तृधन्व, त्रैयारूण, त्रिशंकु, सत्यव्रत, हरिश्चंद्र, रोहित, हरित (केनकु), विजय, रूरुक, वृक, बाहु, सगर, असमंजस, दिलीप (प्रथम), भगीरथ, श्रुत, नभाग, अंबरीष, सिंधुद्वीप, अयुतायुस, ऋतपर्ण, सर्वकाम, सुदास, मित्राशा, अष्मक, मूलक, सतरथ, अदिविद, विश्वसह (प्रथम), दिलीप (द्वितीय), दीर्घबाहु, रघु, अज, दशरथ और राम।

राम के बाद कुश का कुल चला। कुश से अतिथि, निषाध, नल, नभस, पुंडरीक, क्षेमधन्व, देवानीक, अहीनगु, परिपात्र, बाला, उकथ, वज्रनाभ, षंखन, व्युशिताष्व, विश्वसह (द्वितीय), हिरण्यनाभ, पुश्य, ध्रुवसंधि, सुदर्शन, अग्निवर्ण, शीघ्र, मरू, प्रसुश्रुत, सुसंधि, अमर्श, महाष्वत, विश्रुतवंत, बृहदबाला, बृहतक्शय और इस तरह आगे चलकर कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए, जो महाभारत में कौरवों की ओर से लड़े थे।



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