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पाकर के अकेले सताया हमें।
साल अबकी बसंत न भाया हमें।
रूठकर हमसे तुम गये हो किधर?
रह गए थामे हम तो दिल को इधर।
रातें काली कितनी भयानक हुईं।
बिन तुम्हारे अकेले लगता है डर।
छुप गया चाँद हमसे मुंह मोड़ के,
टिमटिमा तारों ने उलझाया हमें।
पंख तितलियों
के बदरंग से लगे।
पल काटे तुम बिन भुजंग से लगे।
गौरैयों
का निसदिन मेरे अंगना,
आकर के चहकना
बेढंग से लगे।
बहारें लगीं रूठी रूठी सी ही ,
फूलों
ने अलबत्ता हंसाया हमें।
बगिया उदास जाने क्या सोचकर।
फिर गए भृंग वापस मन मसोस कर।
पतझड़ सा लगा अबकि मधुमास भी,
कुहुकिनी भी गाती हमें कोस कर।
क्रूर ऋतु तो हमसे रहती ही थी,
चाँद भी जब निकला जलाया हमें।
दिन ने
छीना हमसे सुख चैन को।
रात कटती हमारी जगा नैन को।
काटना एक पल था दुष्कर बड़ा,
सुनाते भी किसको हृदय बैन को।
समझ आता नहीं हम जाते किधर,
राह ने कर भ्रमित भटकाया हमें।
एस. डी. तिवारी
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