बनकर आया राम का, वकील है यह ग्रन्थ।
अयोध्या है युग युग से, मंदिर राम अनंत।
मंदिर, मन-मस्तिष्क है, जो ध्यावे श्रीराम।
राम रमता उस हृदय, हिय का मंदिर राम।
सदियों से चला आ रहा, राम-मंदिर विवाद।
निबटने का नाम न लेता, कितने हुए संवाद।
जन्म-स्थल जहाँ राम का, मंदिर बन जायेगा।
धर्म रक्षा का कार्य भार, निश्चिन्त निभाएगा।तर्क लेकर पक्ष में, हरि मंदिर के अलबत्ता।
वकालत करने आ गया, राम का अधिवक्ता।
प्रस्तुत राम का वकील सुनो।
लेकर आया, कई दलील सुनो।
न्यायाधीश है वह सृष्टि का,
मेरा मगर, मुवक्किल सुनो।
उसे न्याय मिले, सम्मान मिले।
उसका निर्दिष्ट जन्म-स्थान मिले।
जन्म हुआ है इसी धरती पर,
इस तथ्य का पत्र प्रमाण मिले।
जन्म से नागरिकता उसकी,
है युगों से भारत का वासी।
बुरी शक्तियों को मार भगाता,
सहारे उसके साधु, सन्यासी।
राम विरोध में विदेशों के भी
राक्षस हैं जाते हिल मिल, सुनो।
राम-नाम में बड़ी शक्ति समायी।
करोड़ों की इसमें भक्ति समायी।
राम-नाम कितना प्यारा जग में,
जन जन की अनुरक्ति समायी।
करोड़ों जीवन का आधार वही है।
सबके जीने का सार वही है।
आस्था नहीं, है अटल सत्य वह;
करता सब कुछ साकार वही है।
सबके जीवन की यात्रा का,
राम नाम है अंतिम मील, सुनो।
सम्पूर्ण सृष्टि का ईश है वो।
सर्वश्रेष्ठ न्यायाधीश है वो।
समूचा संसार चलाने वाला,
त्रिलोक स्वामी, जगदीश है वो।
उसके पास जब तुम जाओगे।
न्याय पाने का बिगुल बजाओगे।
करनी होयेगी जो भी तुम्हारी,
उसी का तुम प्रतिफल पाओगे।
दोगे कितने भी तर्क वितर्क,
वो ना देगा न्याय में ढील, सुनो।
करता सबका बेड़ा पार है, राम।
अपने भक्तों पर न्यौछार है, राम।
राम का नाम है एक परम शक्ति,
कुछ थोड़ों पर क्यों भार है, राम!
करता जो विरोध, रावण ही होगा।
लाता जो अवरोध, रावण ही होगा।
राक्षसी प्रवृत्तियां वो मार भगाता,
जिसको नहीं बोध, रावण ही होगा।
राम का नाम रखता इतना दम,
घोर पाप भी जाता लील, सुनो।
बुद्ध से पहले भी था राम का नाम।जन्म हुआ है इसी धरती पर,
इस तथ्य का पत्र प्रमाण मिले।
जन्म से नागरिकता उसकी,
है युगों से भारत का वासी।
बुरी शक्तियों को मार भगाता,
सहारे उसके साधु, सन्यासी।
राम विरोध में विदेशों के भी
राक्षस हैं जाते हिल मिल, सुनो।
बस एक नर्स की ही गवाही पर,
मिल जाता जन्म प्रमाण पत्र।
करोड़ों भक्त खड़े साक्ष्य में,
राम की नहीं सुनवाई मगर।
उस युग का निगम कहाँ से लाएं !
त्रेता के रजिस्टर कहाँ से लाएं !
बाल्मिकी का ग्रन्थ है प्रस्तुत,
जन्म-पत्री ढूंढ कर कहाँ से लाएं !
चैत्र-नवमी को कौशिल्या की
खिली थी गोदी स्वप्निल, सुनो।
अयोध्या में वो जन्म लिया है।
पूरे भारत का मर्म लिया है।
भक्तों हेतु समर्पित है वह,
जग कल्याण का कर्म लिया है।
नृप दशरथ का पुत्र बड़ा है।
अम्बर, रघुवंशी सूर्य जड़ा है।
अमानवीयता से नित लड़ता,
मर्यादा का एक सूत्र खड़ा है।
उसकी माया से निर्झर बहता,
सुन्दर सरि सरयू सलिल, सुनो।
अरबों की बात अनसुनी हो रही।
लोकतंत्र की कहानी रो रही।
कुछ लोगों का स्वार्थ है भारी,
और उनकी मनमानी हो रही।
उनका कहा पत्थर की लकीर।
समझते राम तक को फ़क़ीर।
समझ रहे उनके ही हाथ की,
कठपुतली भारत की तक़दीर।
जन जन को प्यारा राम का नाम,
कुछ लोगों को क्यों बोझिल, सुनो।
मिल जाता जन्म प्रमाण पत्र।
करोड़ों भक्त खड़े साक्ष्य में,
राम की नहीं सुनवाई मगर।
उस युग का निगम कहाँ से लाएं !
त्रेता के रजिस्टर कहाँ से लाएं !
बाल्मिकी का ग्रन्थ है प्रस्तुत,
जन्म-पत्री ढूंढ कर कहाँ से लाएं !
चैत्र-नवमी को कौशिल्या की
खिली थी गोदी स्वप्निल, सुनो।
अयोध्या में वो जन्म लिया है।
पूरे भारत का मर्म लिया है।
भक्तों हेतु समर्पित है वह,
जग कल्याण का कर्म लिया है।
नृप दशरथ का पुत्र बड़ा है।
अम्बर, रघुवंशी सूर्य जड़ा है।
अमानवीयता से नित लड़ता,
मर्यादा का एक सूत्र खड़ा है।
उसकी माया से निर्झर बहता,
सुन्दर सरि सरयू सलिल, सुनो।
अरबों की बात अनसुनी हो रही।
लोकतंत्र की कहानी रो रही।
कुछ लोगों का स्वार्थ है भारी,
और उनकी मनमानी हो रही।
उनका कहा पत्थर की लकीर।
समझते राम तक को फ़क़ीर।
समझ रहे उनके ही हाथ की,
कठपुतली भारत की तक़दीर।
जन जन को प्यारा राम का नाम,
कुछ लोगों को क्यों बोझिल, सुनो।
राम-नाम में बड़ी शक्ति समायी।
करोड़ों की इसमें भक्ति समायी।
राम-नाम कितना प्यारा जग में,
जन जन की अनुरक्ति समायी।
सबके जीने का सार वही है।
आस्था नहीं, है अटल सत्य वह;
करता सब कुछ साकार वही है।
सबके जीवन की यात्रा का,
राम नाम है अंतिम मील, सुनो।
सम्पूर्ण सृष्टि का ईश है वो।
सर्वश्रेष्ठ न्यायाधीश है वो।
समूचा संसार चलाने वाला,
त्रिलोक स्वामी, जगदीश है वो।
उसके पास जब तुम जाओगे।
न्याय पाने का बिगुल बजाओगे।
करनी होयेगी जो भी तुम्हारी,
उसी का तुम प्रतिफल पाओगे।
दोगे कितने भी तर्क वितर्क,
वो ना देगा न्याय में ढील, सुनो।
करता सबका बेड़ा पार है, राम।
अपने भक्तों पर न्यौछार है, राम।
राम का नाम है एक परम शक्ति,
कुछ थोड़ों पर क्यों भार है, राम!
करता जो विरोध, रावण ही होगा।
लाता जो अवरोध, रावण ही होगा।
राक्षसी प्रवृत्तियां वो मार भगाता,
जिसको नहीं बोध, रावण ही होगा।
राम का नाम रखता इतना दम,
घोर पाप भी जाता लील, सुनो।
मुहम्मद नहीं थे, था राम का नाम।
महावीर, जीसस से युगों पहले था।
गुरुनानक ने भजा, राम का नाम।
हिन्दू ना कोई मुसलमान है राम।
सभी धर्मों का धाम है राम।
सृष्टि को रावण से मुक्त कराता,
हर युग में ही, भगवान है राम।
राम का प्रभाव भस्म कर देता,
रावण की हर चाल कुटिल, सुनो।
अम्बर में कहीं अलौकिक रहकर,
देखता दशानन के उत्पातों को।
प्रकट हो जाता है अति होने पर,
काटने को उसके सब घातों को।
निति व आदर्शों का अनुयायी है।
भक्तों की रक्षा का उत्तरदायी है।
बिना पुकारे ही प्रकट हो जाता,
भक्तों पर जब विपदा आयी है।
राम नाम का जो भी जप करते,
उनसे वो रहता स्नेहिल, सुनो।
भजे रघुपति राघव राजा राम,
संविधान में पर ना दिए स्थान।
चलाता है जो सृष्टि का विधान,
उसे डराते दिखाकर संविधान।
निर्माण का यश भक्तों को मिले,
इस लिए बनाता स्वयं न मंदिर।
मंदिर है बना, राम तो रमता,
हर भारतवासी के दिल, सुनो।
संविधान में पर ना दिए स्थान।
चलाता है जो सृष्टि का विधान,
उसे डराते दिखाकर संविधान।
वो है 'लॉर्ड्स का लार्ड', मे लार्ड।
आया लेकर दरख्वास्त, मे लार्ड।
होती है जब, कृपा दृष्टि उसकी,
होता तभी लार्ड भी लार्ड, मे लार्ड।
उस 'राम' की जन्म भूमि का न्याय,
करते क्यों हो इतना जटिल, सुनो।
जब चाहेगा, मंदिर बन जायेगा।
राम का काम कौन रोक पायेगा।
राम करेगा जब भी अपने काम,
मर्यादा भी अवश्य निभायेगा।
नर के निर्णय पर वो न निर्भर।
राम हेतु कुछ भी नहीं दुष्कर।आया लेकर दरख्वास्त, मे लार्ड।
होती है जब, कृपा दृष्टि उसकी,
होता तभी लार्ड भी लार्ड, मे लार्ड।
उस 'राम' की जन्म भूमि का न्याय,
करते क्यों हो इतना जटिल, सुनो।
जब चाहेगा, मंदिर बन जायेगा।
राम का काम कौन रोक पायेगा।
राम करेगा जब भी अपने काम,
मर्यादा भी अवश्य निभायेगा।
नर के निर्णय पर वो न निर्भर।
निर्माण का यश भक्तों को मिले,
इस लिए बनाता स्वयं न मंदिर।
मंदिर है बना, राम तो रमता,
हर भारतवासी के दिल, सुनो।
तट सरयू, सुन्दर शाम, अवध पुरी में।
है राम का पावन धाम, अवध पुरी में।
भगवान राम लिए, जहाँ पर अवतार।
पवित्र हुआ स्थल और सरयू की धार।
कर लेना मात्र दर्शन ही अयोध्या का,
बन जाता है, परम सुखों का आधार।
लिखा कण कण पर राम, अवध पुरी में। है राम का ...
भर देता झोली, उसको जो भी ध्याता।
सुखी हो जाता जीवन, और निर्मल मन,
कितना भी विकट कष्ट, सब कट जाता।
भजे लेकर उसका नाम, अवध पुरी में। है राम का ...
यहाँ पर बसता साधु संतों का जमघट।
होता है एक ही नाम, जन जन के घट।
कर लेते जीवन को अपने धन्य, सफल,
रहते जो लगाये नित, राम नाम की रट।
कौड़ी लगे ना दाम, अवध पुरी में। है राम का ...
२
मात्र आस्था ही नहीं, एक सच्चाई है राम।
मानवता के सब दुर्गुणों की सफाई है राम।
भव से पार लगाता, राम का स्मरण मात्र।
दुर्गम दुःख दूर भगाता, राम का वरण मात्र।
राम का नाम मिटाने, राक्षस आते रहते।
राम दिव्य शक्तियों से, उन्हें मिटाते रहते।
धरा पर, कितनी ही बुरी आत्माएं आयीं।
अपने बुरे कर्मों से, सब बुरी गति को पायीं।
पापी राक्षस धरा पर, जब जन्म लेता है।
आ विष्णु का रूप कोई, कर भस्म देता है।
नहीं आवश्यक राम हो साक्षात् प्रकट।
किसी रूप में भी कृपा पा जाता भक्त।
बड़े बड़े राक्षस तक इस धरती पर आये।
राम की महिमा से सब गए मिटाये।
राम का नाम यहाँ, तभी भारत है पावन।
भारत की भू पर भूपति, महिपति आये।
जैसे कर्म किये वैसा ही भोग भी पाये।
सन पंद्रह सौ छब्बीस में भारत आया था।
इब्राहिम के ही गद्दारों ने उसे बुलाया था।
उज्बेकिस्तानी था, जालिम, हत्यारा था।
इब्राहिम लोदी को मौत के घाट उतारा था।
मुसलमान था पर लूट का सितारा था।
हजारों मुसलमान सैनिकों को मारा था।
पानीपत के मैदान में हुई बड़ी लड़ाई।
हजारों सैनिकों ने अपनी जान गँवाई।
सैनिक वे, हिन्दू थे या मुसलमान थे।
बाबर के शत्रु बड़े, सभी एक समान थे।
उसे क्या फर्क, हिन्दू या मुस्लमान मरे।
उसने तो हिंदुस्तान, अपने नाम करे।
लोदी के सैनिक भी मुसलमान ही थे।
वे भी तो हाड़ मांस के इंसान ही थे।
मरे जो सौ, दो सौ नहीं, कई हजार थे।
प्राणों की दुआ माँगते बार बार थे।
बाबर को अपना साम्राज्य बढ़ाना था।
फर्क नहीं था, किसका रक्त बहाना था।
लहू बहाने में दर्द नहीं, जहाँपनाह था।
खुदा के बन्दे मारना, उसे न गुनाह था।
इब्राहिम के गद्दारों ने भी धोखा खाया।
लोदी का राज खुद बाबर ने हथियाया।
दौलत व आलम खान जो उसे बुलवाये।
भतीजे इब्राहिम को मरवा, कुछ न पाए।
वो भूखा, नंगा था, आया भारत लूटने।
मातृ-भूमि छुड़ाया उसे खुद की भूख ने।
हिन्दू दलन की निति थी मन में गढ़ी।
हिन्दुओं पर भरपूर धाक ज़माने को।
बुत-परस्ती का विरोधी, दिखाने को।
खड्ग से डरे हिन्दुओं को और डराया।
जन्म-भूमि पर बना, मंदिर तुड़वाया।
राम-लला का मंदिर करवा के धराशायी।
उस स्थल पर उसने मस्जिद बनवायी।
अवध के रामकोट पर अधिपत्य जमाया।
अपने दूत मीर बांकी को वहां बिठाया।
राम के मंदिर की रक्षा कर ना सके थे।
मस्जिद-ए-जन्मस्थान का नाम दिया।
हिन्दू को निर्बल करने का काम किया।
हिन्दुओं ने उस पापी के अत्याचार सहे।
आतंक में रह, अपने धर्म पर अडिग रहे।
राम-नाम की शक्ति से अन्जान था वह।
आततायी अधिक, कम इंसान था वह।
अपने पोषण हेतु, भारत वह आया था।
स्वार्थ में जाने न कितना खून बहाया था।
यदि ना रक्त बहाता, ना हत्यारा होता।
वह अच्छा इंसान, राम का प्यारा होता।
खाली थी उस काल, राज्य की धरती पूरी।
फिर मस्जिद की उसे, वहीँ क्यों सूझी।
वो तो बुत-परस्ती के एकदम विरुद्ध था।
हिन्द के संग ठाना राम-नाम से युद्ध था।
हिंदुस्तान से राम का नाम हटाना चाहा।
सभ्यता, संस्कृति को मिटाना चाहा।
फिर परास्त करेगी, वो राम की भक्ति है।
राम-मंदिर से हिन्द शक्तिशाली होगा।
देश से बेदखल तब आक्रमणकारी होगा।
राम-नाम हिन्द की, सदियों की धरोहर है।
हिन्दू धर्म की निधि, अमूल्य एक मोहर है।
हिन्दुओं की शक्ति वह करने को क्षीण।
लगा रखा था प्रतिनिधि, प्रबुद्ध, प्रवीण।
उसे तो राम-मंदिर का नाम मिटाना था।
हिंदुस्तान की जनता को आजमाना था।
रामकोट के मंदिर पर, धाक जमाना था।
उसे क्या पता, राम-नाम मिटा नहीं करता।
राक्षसों के यत्न से भी घटा नहीं करता।
राम-नाम की लौ पूरे ब्रह्माण्ड में फैली।
दैत्य भी न कर सके पावनता को मैली।
उसने भी राम-नाम रस पी लिया होता।
पावनता के साथ हिन्द में जी लिया होता।
भारत का आज नहीं खलनायक होता।
वह सुशासक कहलाने के लायक होता।
जन्म-स्थान पर मस्जिद बनवाया था।
करना चाहा था, राम जन्म-मंदिर सिद्ध।
मस्जिद-ए-जन्मस्थान नाम से प्रसिद्ध।
बाबर उज्बेकिस्तान से आया आक्रांता था।
कितने ही हिन्दू, मुसलमानों का हन्ता था।
जनता निर्बल थी, बादशाह हार चुका था।
बाबर पानीपत में, लोदी को मार चुका था।
मनमानी किया, कोई ना प्रतिरोध झेला।
निर्बल जनता का ना ही वो आक्रोश झेला।
पहले भी तो देश में हिन्दू-मुस्लमान थे।
मंदिर-मस्जिद के फसाद के न निशान थे।
आगे चलकर, अकबर ने निभाना चाहा।
हिन्दू-मुस्लिम को साथ लेकर भाई चारा।
आरम्भ में तो वह भी हिन्दू विरोधी था।
हिंदुत्व के प्रसार प्रचार का अवरोधी था।
कालांतर में अन्य धर्मों में रूचि दिखाई।
पाटा कुछ हिन्दू-मुस्लिम के बीच की खाईं।
अयोध्या की पावनता का उसे बोध हुआ।
राम की शरण, जयंती मनाने का जोश हुआ।
सरयू तट पर, अपनी जयंती मनाया था।
सेनानायकों में हिन्दुओं का भी स्थान था।
राज्य में कला, संस्कृति, मुल्ला, पुजारी थे।
मुसलमानों के साथ हिन्दू भी दरबारी थे।
वह अपना साम्राज्य बढ़ाने का भूखा था।
अतः बार बार युद्ध का बिगुल फूंका था।
इस कारण मानवता पर आघात हुआ।
हिंदुस्तान में बहुत ही रक्तपात हुआ।
रामकोट पर अधिकार भर जमाया था।
औरंगजेब था जो पूरा मंदिर तुड़वाकर।
मस्जिद बनवाया राम जन्म-स्थान पर।
हिन्दुओं पर वह नाना अत्याचार किया।
जो उसका विरोध किया, उसे मार दिया।
हिन्दू त्यौहारों पर वो प्रतिबन्ध लगाया।
हिन्दुओं पर जजिया कर तक लगाया।
सोलह सौ निन्यानबे में मंदिरों को तोड़ा।
काशी, मथुरा, अयोध्या भी नहीं छोड़ा।
अनेकों हिन्दुओं को उसने मरवा दिया।
विवादित मस्जिद का ढांचा बनवा दिया।
सत्ता की सनक, पिता को कैद में रखा।
भाई शिकोह को दिया फांसी का फंदा।
औरंगजेब ने मराठों से मुंह की खायी थी।
उन्मादी को सिक्खों ने भी धूल चटाई थी।
बाप भाई का न था, वो राम का क्या होगा।
निरीह हत्याओं ने उसे अंत-काल कचोटा।
अल्लाह को याद करते, मरते वक्त कहा।
खाली आया, पापों का बोझ लिए जा रहा।
आत्मा साफ़-पाक थी, मैली क्यों किया।
जूनून और गुरूर में, विषैली क्यों किया।
राम विमुख, अंत काल बहुत रोया था।
अपने ही हाथों वह अपनों को खोया था।
पापों के भारी बोझ में ही वह दबे चला।
किया न भला तो कैसे होता अंत भला।
राम के विरुद्ध अगर वो काम न करता।
अंतकाल इतना पश्चाताप न करता।
धार्मिक अतिवाद की नीति नहीं फली।
मुग़ल वंश को पतन की ओर ले चली।
अनेक निर्दोष प्राणियों का प्राण बचता।
प्रेम, अहिंसा, भाई-चारा, सत्कार, सत्य।
उसे क्या पता जो राम में रमा होता है।
उसका सबसे बड़ा गुण क्षमा होता है।
उसे क्या पता, राम नाम के कितने प्रहरी हैं।
हिन्दू-धर्म की जड़ें, कितनी गहरी हैं।
विश्व में सबसे पुरातन, धर्म सनातन।
जुड़ा हुआ, अरबों हिन्दुओं का तन मन।
एक क्या! कितने भी औरंगजेब मिलते।
हिन्दू धर्म की जड़ हिला तक नहीं सकते।
पर वो सम्राट मुगल, ऐसा बीज बो गया।
हिन्दू-मुस्लिम का नाता कटु अति हो गया।
ढांचा वो हिन्दू-मुस्लिम का विवाद बना।
अंग्रेजों को जैसे मुंह माँगा वरदान मिला।
हिन्दू-मुसलमानों को वे भिड़ाये रखे।
अपने साम्राज्य को सतत बढ़ाये रखे।
बांटों और राज करो की अंग्रेजी निति थी।
भारतीय लड़ते और उनकी जीत थी।
बार बार उठता रहा, जन आंदोलन।
मंदिर की ओर ध्यान न दिया प्रशासन।
मंदिर को पुनः बनाने हेतु दर्जनों संघर्ष,
निकाल न पाए कोई अनुकूल निष्कर्ष।
हिन्दू, जन्म-स्थल पर, मंदिर की मांग रखे।
अंग्रेज थे कि बीच में, अपनी टांग रखे।
हजारों हिन्दुओं ने दी प्राणों की आहुति।
शासन ने मंदिर की पर दिया न अनुमति।
उल्लू सिद्ध करना, धर्म को बांटकर था।
हिन्दू-मुसलमान, न्यारा न्यारा किया।
सौ साल में भी झगड़ा सुलझाया नहीं।
राम-मंदिर निर्माण की राह बनाया नहीं।
जन्म-स्थल की भूमि, आधी आधी देकर।
लड़ने के लिए छोड़ा, दोनों को वर्षों तक।
वे चाहते तो मामला, सुलझा सकते थे।
राम को जन्म-स्थान, दिला सकते थे।
इसमें लाभ से ज्यादा उन्हें, हानि दिखी।
दोनों के वैमनश्य में उनको, शान दिखी।
उन्हें तो था कि हिन्दू-मुस्लिम भिड़े रहें।
कैसे भी हो परस्पर वे निरंतर लड़े रहें।
राम-मंदिर का चिरंतन, विवाद चले।
और अंग्रेजों का शासन, निर्वाध चले।
उन्नीस सौ सैतालिस में देश बंट गया।
अयोध्या का मामला किनारे हट गया।
३
बंटवारे का आधार था, हिन्दू-मुस्लमान।
कट्टर मुसलमानों को मिला पाकिस्तान।
हिन्दू को इस बंटवारे से बहुत दुःख था।
संतोष था, जो पाकिस्तान पाया खुश था।
लगा राम को विवादों से छुटकारा मिला।
अयोध्या में उसका धाम, प्यारा मिला।
हिन्दुओं को लगा, जन्म-स्थल मिलेगा।
रामकोट में राम का मंदिर, भव्य बनेगा।
हिन्दू मुसलमान का अब विवाद टलेगा।
भारत में सभी धर्मों का सौहार्द चलेगा।
हर भारतीय का मन, तब उन्मादित था।
राम-मंदिर बनेगा, हिन्दू आह्लादित था।
मगर अभी राम के लिए, दिल्ली दूर थी।
राम भक्तों की परिस्थिति, मजबूर थी।
राजनितिक नेताओं का था, स्वार्थ बड़ा।
मंदिर का मामला, ठन्डे बस्ते में पड़ा।
अंग्रेज, अपना भूत पीछे छोड़ गए थे।
लोक नीतियों की टांग मरोड़ गए थे।
नेताओं ने अंग्रेजों की बनाई, राह चली।
बाँट के राज करो की निति, लगी भली।
राम चरित मानस का अखंड पाठ कर।
उन्नीस सौ उनचास में कराया स्मरण।
हिन्दुओं को राम लला की लगन लगी।
अयोध्या में मंदिर बनेगा, उम्मीद जगी।
जाति, धर्म तक का तो प्रावधान रखा।
संविधान में पर ना, राम का स्थान रखा। इस बात का कोई नहीं, संज्ञान लिया।
बिना राम के, भारत को संविधान दिया।
हिन्दू मुस्लिम गये, दोनों फिर से अड़।
और मंदिर बना रहा, झगड़े की जड़।
अंग्रेजों से लड़ने, दोनों एक हो गए थे।
हिन्दू-मुस्लिम, परस्पर नेक हो गए थे।
अंग्रेजों से भारत, जब आजाद हुआ।
मंदिर निर्माण में क्यों न सौहार्द हुआ।
हिन्दू-मुस्लिम, अगर दिखाते एकता।
देश का नेता, अपनी रोटी कैसे सेकता।
गणतंत्र के अभी चालीस साल हुए थे।देश का नेता, अपनी रोटी कैसे सेकता।
कई कंगाल नेता भी मालामाल हुए थे।
राम जन्म-भूमि को हिन्दू अपना समझे।
राम-मंदिर की बनती योजना समझे।
पंचकोसी परिक्रमा पर, भक्त आये थे।
अयोध्या की गलियों में, मेघ सा छाये थे।
अयोध्या की गलियां, ठसाठस भरी थीं।
संकट देख भी भीड़, टस से मस नहीं थी।
एक इंच जगह भी, कहीं खाली नहीं थी।गोली चलने पर भी, हटने वाली नहीं थी।
उन्नीस सौ नब्बे में पुनः डायर आया था।
बहादुर नहीं, वह कोई कायर आया था।
नवम्बर मास, निहत्थे राम के भक्तों पर,
एक बार फिर से करने फायर आया था।
बूटों के आवाज चल रही थी. रक्तों पर।
दया का नामोनिशान नहीं था, संतों पर।
डंडे चल रहे साधु और बूढ़े आसक्तों पर।
साकेत की गलियों में भक्तों के जत्थे थे।
गोलियां बरसाती पुलिस, वो निहत्थे थे।
गोलियां खाकर, सड़क पर गिरतीं लाशें।
पतझड़ में जैसे गिर रहे, पेड़ों से पत्ते थे।
सौ थे, पचास थे, आंकड़े तक न बटोरे गए।
थोड़ा संयम, अगर दिखाया गया होता।
मरा जो, उसका प्राण बचाया गया होता।
वोट बैंक, लोगों के प्राणों से प्रिय था।
केवल राजनितिक पहलू ही हिय था।
हिन्दू धर्म ने उन सभी को दुत्कारा है।
राम-नाम द्वारा, उन्हें जड़ों से उखाड़ा है।
मुस्लिम भी राम को खुदा ही मानता।
प्रेम सबसे बड़ा धर्म, भली से जानता।
अयोध्या में परस्पर, कोई द्वेष नहीं।
मुस्लिम को भी, मंदिर से परहेज नहीं।
ईश्वर अल्लाह एक है, दोनों ही मानते।
एक दूजे की पूजा में नहीं विघ्न डालते।
मंदिर के मामले में बाहरी नेता खेल रहे।
अयोध्या के वासी, कठिनाईयां झेल रहे।
नेताओं को मंदिर, न खुदा की दर चाहिए।
अयोध्या का हर हिन्दू, मुस्लमान चाहता।
देखना राम-मंदिर आलीशान चाहता।
होटल खुलेंगे, पर्यटन कारोबार बढ़ेगा।
अयोध्या वासियों का व्यापार बढ़ेगा।
आय बढ़ेगी, जनता खुशहाल होगी।
श्रीराम की कृपा पाकर, निहाल होगी।
यही सिद्धांत, हिंदुत्व का सदैव रहता।
चाहे नदी, पर्वत, जीव या आसमान हो।
ताकि मानव जाति का उसे सम्मान हो।
राष्ट्र-प्रेम के बिना, भारतीत्व क्या है।
राम के बिना, भारत का अस्तित्व क्या है।
राम, राष्ट्र की महानता का प्रतीक है।
राम भारतीयों के जीने का आधार है।
राम नाम में छुपा, जीवन का सार है।
पतझड़ में जैसे गिर रहे, पेड़ों से पत्ते थे।
अपने राम के लिए, सैकड़ों बलिदान हुए।
राम के नाम काम आये और महान हुए।
वह तो मात्र पत्थरों का एक ढांचा था।
निर्बल जनता पर, सत्ता का तमाचा था।
समाचार तक को जनता से छुपाया गया।
मृतकों के परिजनों को न बताया गया।
राम भक्त थे वो राम का मंदिर चाहते।
कई पहुंचे अस्पताल विलखते, कराहते।
राष्ट्र के शत्रु पर भी कोई नहीं करता।
लोगों की सरकार ने किया ऐसी बर्बरता।
थोड़ा भी संयम अगर दिखलाया जाता।
सैकड़ों कुटुंब उजड़ने से बचाया जाता।
आतंकी मरने पर, संसद में चर्चा होती है।
आम जन की सरकार को चिंता कहाँ होती है।
आम जन की सरकार को चिंता कहाँ होती है।
मृत आतंकी, परिजनों को लौटाया जाता है।
या फिर उसे, सम्मान से दफनाया जाता है।
राम के भक्तों पर, कहर जब ढाया गया।
निरीहों को कफ़न तक न ओढ़ाया गया।
राम के भक्तों पर, कहर जब ढाया गया।
निरीहों को कफ़न तक न ओढ़ाया गया।
शवों को अज्ञात स्थलों पर फेंका गया।
परिजनों के द्वारा तक न देखा गया।
सौ थे, पचास थे, आंकड़े तक न बटोरे गए।
राजनितिक बयान बस, हवा में छोड़े गए।
अयोध्या का, एक और काला दिवस था।
राम-भक्त, वो दिन देखने को विवश था।
थोड़ा संयम, अगर दिखाया गया होता।
मरा जो, उसका प्राण बचाया गया होता।
वोट बैंक, लोगों के प्राणों से प्रिय था।
केवल राजनितिक पहलू ही हिय था।
राजनितिक पार्टियों का न होता छल।
राम-मंदिर का निकल गया होता हल।
राम-मंदिर का निकल गया होता हल।
जनता में फैला, एक बड़ा आक्रोश था।
राष्ट्र की सेवा, सबसे बड़ा धर्म होता है।
राम के प्रताप से ही, यह कर्म होता है।
राम ने सत्य व प्रेम की राह दिखाया।
मानव मात्र का अनेकों दुःख भगाया।
राम-नाम कई कष्टों से छुटकारा देता।
परमानन्द पाता, जो राम का नाम लेता।
भारत राम की भूमि है, सदा रहेगी।
विलास के भोगी व अत्याचारी हुए।
नब्बे का बानबे में लेना प्रतिशोध था।
गोली चलाने वालों पर, वश नहीं था।
राम-मंदिर बिन, अवध का रस नहीं था ।
उसी खड़े ढांचे पर ही बस, दांव चला।
गिराने के लिए, भीड़ का जमाव चला।
आवेश में जनता, ढांचे को हटाना चाही।
सदियों के झगड़े का जड़, मिटाना चाही।
नेताओं ने अवसर का लाभ उठाया।
ललकार भीड़ को वो ढांचा गिरवाया।
बाबर ने मस्जिद की ऐसी जगह चुनी।
चार सौ वर्षों तक फसाद की वजह बनी।
बाबर ने मस्जिद या कोई काल बनाया।
जिसके पीछे हजारों ने प्राण गंवाया।
बाबर ने मस्जिद की ऐसी जगह चुनी।
चार सौ वर्षों तक फसाद की वजह बनी।
बाबर ने मस्जिद या कोई काल बनाया।
जिसके पीछे हजारों ने प्राण गंवाया।
ढांचे ने कई हजार लोगों के प्राण लिए।
राम लला को भी बरबस बनबास दिए।
पाकिस्तान हेतु सुनहरा अवसर था।
उसे भारतवर्ष को करना अस्थिर था।
भारत में जब जब भी कुछ होता है।
पाक को मस्जिद तो एक बहाना था।
भारत में उसे आतंकवाद फैलाना था।
मुस्लिमों को किया हिन्दुओं के विरुद्ध।
ताकि दोनों कर बैठें, वे आपस में युद्ध।
यहाँ कुछ भी हो, हलचल पाक में होती।
कूड़ा यहाँ सड़े बदबू उसकी नाक में होती।
पाक बालि बनने का प्रयत्न करता है।
आवाम को लड़ाने का यत्न करता है।
लोगों को भड़काने का क्रम कब टूटेगा।
पाकिस्तान तो विष के बीज बोता है।
पाक को मस्जिद तो एक बहाना था।
भारत में उसे आतंकवाद फैलाना था।
मुस्लिमों को किया हिन्दुओं के विरुद्ध।
ताकि दोनों कर बैठें, वे आपस में युद्ध।
अपने देश में तो मंदिरों को तुड़वाया।
भारत में सांप्रदायिक दंगा भड़काया।
फिर से हजारों हिन्दू, मुस्लमान मरे।
अपराधी पनाह को पाकिस्तान धरे।
भारत के मामलों में पाक क्यों आता है?
बेमतलब हर बात में टाँग अड़ाता है।
यहाँ कुछ भी हो, हलचल पाक में होती।
कूड़ा यहाँ सड़े बदबू उसकी नाक में होती।
पाक बालि बनने का प्रयत्न करता है।
आवाम को लड़ाने का यत्न करता है।
लोगों को भड़काने का क्रम कब टूटेगा।
खुद बालि समझने का भ्रम कब टूटेगा।
पाक भी यदि राम की शरण में आये।
शांति-प्रेमी और आदर्श राष्ट्र हो जाए।
राष्ट्र की सेवा, सबसे बड़ा धर्म होता है।
राम के प्रताप से ही, यह कर्म होता है।
राम ने सत्य व प्रेम की राह दिखाया।
मानव मात्र का अनेकों दुःख भगाया।
राम-नाम कई कष्टों से छुटकारा देता।
परमानन्द पाता, जो राम का नाम लेता।
भारत राम की भूमि है, सदा रहेगी।
उनके आदर्श संस्कारों की नदी बहेगी।
युगों से यह धरती, राम की रही है।
उनके प्रताप से ही पावन, यह मही है।
राक्षसों ने जब जब उत्पात मचाया।
राम ने धरा यह, उनसे मुक्त कराया।
पृथ्वी को घेरी, जब राक्षसों की छाया।
राम की शक्तियों ने, उन्हें मार भगाया।
हिन्दुओं में भी राजा दुराचारी हुए।
राक्षसों ने जब जब उत्पात मचाया।
राम ने धरा यह, उनसे मुक्त कराया।
पृथ्वी को घेरी, जब राक्षसों की छाया।
राम की शक्तियों ने, उन्हें मार भगाया।
हिन्दुओं में भी राजा दुराचारी हुए।
हिन्दू धर्म ने उन सभी को दुत्कारा है।
राम-नाम द्वारा, उन्हें जड़ों से उखाड़ा है।
मुस्लिम भी राम को खुदा ही मानता।
प्रेम सबसे बड़ा धर्म, भली से जानता।
अयोध्या में परस्पर, कोई द्वेष नहीं।
मुस्लिम को भी, मंदिर से परहेज नहीं।
ईश्वर अल्लाह एक है, दोनों ही मानते।
एक दूजे की पूजा में नहीं विघ्न डालते।
अवध में सांप्रदायिक सौहार्द, मैंने देखा है।
मुस्लिमों को बेचते प्रसाद, मैंने देखा है।
नेतागिरी चमकाने, व अपनी दाल गलाने,
नेताओं को फैलाते फसाद, मैंने देखा है।
फेंक कर बहुतों ने, राम नाम का चोला।
नेताओं के दिए, नए परिधान को ओढ़ा।
बहुतों को देखा राम नाम से विमुख होते।
बहकावे में उनको वास्तविक सुख खोते।
अयोध्या के वासी, कठिनाईयां झेल रहे।
नेताओं को मंदिर, न खुदा की दर चाहिए।
उन्हें अयोध्या में झगड़े की जड़ चाहिए।
अयोध्या का हर हिन्दू, मुस्लमान चाहता।
होटल खुलेंगे, पर्यटन कारोबार बढ़ेगा।
अयोध्या वासियों का व्यापार बढ़ेगा।
आय बढ़ेगी, जनता खुशहाल होगी।
श्रीराम की कृपा पाकर, निहाल होगी।
मुसलमानों को भी, अब समझना होगा।
पाक के इरादों से, उनको बचना होगा।
देश में सदियों हिन्दू-मुस्लिम साथ रहे।
धूप, बारिश, बाढ़ और ठण्ड साथ सहे।
उन्हें भी राष्ट्र हित में हाथ बढ़ाना होगा।
अमन चैन का बिगुल बजाना होगा।
यूँ तो क़ुरबानी का त्यौहार मनाते हो।
राम-जन्म भूमि पर फसाद फैलाते हो।
पाक के इरादों से, उनको बचना होगा।
देश में सदियों हिन्दू-मुस्लिम साथ रहे।
धूप, बारिश, बाढ़ और ठण्ड साथ सहे।
उन्हें भी राष्ट्र हित में हाथ बढ़ाना होगा।
अमन चैन का बिगुल बजाना होगा।
यूँ तो क़ुरबानी का त्यौहार मनाते हो।
राम-जन्म भूमि पर फसाद फैलाते हो।
सभी धर्मों को अब एकता दिखलाना है।
भारत के सब अभिन्न अंग, जताना है।
रंग बिरंगे फूलों की फुलवारी है राष्ट्र।
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख की यारी है राष्ट्र।
लंका भी पर्यटन चलाता, राम नाम से।
प्रति वर्ष धन कमाता, राम नाम से।
कुछ नेताओं को फिर क्या आपत्ति।
राम-नाम तो भारत की अमोल संपत्ति।
राम-नाम की शक्ति से शांत हिंदुस्तान है।
प्रेम, भक्ति, अहिंसा हिन्दू की पहचान है।
जिस पर जीवन आश्रित, उसे देव कहता। कुछ नेताओं को फिर क्या आपत्ति।
राम-नाम तो भारत की अमोल संपत्ति।
राम-नाम की शक्ति से शांत हिंदुस्तान है।
प्रेम, भक्ति, अहिंसा हिन्दू की पहचान है।
ताकि मानव जाति का उसे सम्मान हो।
राष्ट्र-प्रेम के बिना, भारतीत्व क्या है।
राम है करुणा, और कृपा का सागर।
प्राणी भव से पार उतरता, नाम पाकर।राम, राष्ट्र की महानता का प्रतीक है।
मानवता की राह, दिखाने का दीप है।
राम भारतीयों के जीने का आधार है।
राम नाम में छुपा, जीवन का सार है।
राम ने मानव को प्रेम ही सिखाया है।
प्रेम वश, सबरी के जूठे बेर भी खाया है।
हिंदुत्व का आधार प्रेम व भक्ति रही है।
सभी धर्मों का सम्मान, शक्ति रही है।
राम अयोध्या में जन्मे, किसे संशय है।
राम, सृष्टि के हर जीव का भगवान् है।
राम का न जन्म होता न ही मरता है।
राम हर पल, हर स्थल पर विद्यमान है।
राम-मंदिर बनना, नितांत आवश्यक।
दर्शनार्थियों का बने, सन्मार्ग का प्रेरक।
प्रेम वश, सबरी के जूठे बेर भी खाया है।
हिंदुत्व का आधार प्रेम व भक्ति रही है।
सभी धर्मों का सम्मान, शक्ति रही है।
राम अयोध्या में जन्मे, किसे संशय है।
आदि काल से भारत के, किसे संशय है।
राम, हिन्दू, बौद्ध न हि मुसलमान है।
राम भारत के थे, क्या प्रमाण देना होगा।
अभी और कितनों को प्राण देना होगा।
राम, सृष्टि के हर जीव का भगवान् है।
राम का न जन्म होता न ही मरता है।
राम हर पल, हर स्थल पर विद्यमान है।
राम-मंदिर बनना, नितांत आवश्यक।
दर्शनार्थियों का बने, सन्मार्ग का प्रेरक।
राम का वकील
मेरी बात
मेरी बात
श्रीराम का जन्म सरयू तट पर बसे अयोध्या में हुआ था, किसे संशय है। हजारों वर्ष से श्रीराम कथा किसी न किसी रूप में चली आ रही है। अनेकानेक ग्रन्थ हैं, जो अयोध्या में श्रीराम के अवतार का वर्णन करते हैं। श्रीराम हिन्दुओं के इष्ट देव हैं, जिनकी पूजा व जाप हर हिन्दू करता है। अयोध्या में राम के जन्मस्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण हो, हिन्दुओं की सदियों से मांग रही है। कहते हैं जिस स्थल को राम का जन्म स्थान माना जाता है, वहां पर श्रीराम का मंदिर था, परन्तु सन १५२८ में बाबर ने, पानीपत युद्ध में इब्राहिम लोदी को मारकर, भारत पर अधिकार जमाया और जन्म-भूमि पर बने श्रीराम का मंदिर तुड़वाकर, वहां मस्जिद का ढांचा खड़ा कर दिया। बस यहीं से राम मंदिर का विवाद आरम्भ हो गया। उसके पश्चात्, उसी के वंशज औरंगजेब ने हिन्दुओं के और भी बहुत से मंदिर तुड़वाकर, वहां मस्जिद बनवाये। उसने हिन्दू धर्म को निर्बल करने के लिए, हिन्दुओं पर तरह तरह के अत्याचार भी किये। हिन्दू संस्कृति पर मुगलों का निरंतर आघात होता रहा। औरंगजेब ने हिन्दुओं के पूजा और उत्सवों पर प्रतिबन्ध लगाया और हिन्दुओं पर जजिया कर भी लगाया।
सोलहवीं से अठारहवीं शताब्दी तक, एक ओर तो मुग़ल शासक अपना साम्राज्य बढ़ाने के लिए युद्ध और रक्तपात का सहारा लेते रहे वहीँ दूसरी ओर शांति और अहिंसा का सन्देश फैलाते, कई संतों ने जन्म लिया। इस अवधि में अनेकों धर्म ग्रन्थ भी लिखे गए। यह साहित्य का भक्तिकाल भी माना जाता है। इसी अवधि में सूरदास, सूरदास, मीराबाई, रहीम, मलूकदास, अग्रदास, ईश्वरदास, केशवदास, नाभादास, रसखान आदि संत हुए और कई धार्मिक ग्रंथों की रचनाएँ हुईं। तुलसीदास कृत रामचरित मानस और सूरदास का सूरसागर इसी अवधि में लिखी गयीं। सिक्खों का पवित्र ग्रन्थ श्री गुरु ग्रन्थ साहिब भी इसी अवधि यानि १६०४ ईशवी में प्रकाशित हुआ।
अयोध्या एक पावन स्थल है, जहाँ श्रीराम चंद्र का जन्म हुआ था। अयोध्या की पावनता और भव्यता का महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में वर्णन किया है। साफ और स्वच्छ अयोध्या पुरी, भव्य ऊँची अट्टालिकाएं, रत्नों से विभूषित महल, सुन्दर राजमार्ग, मनमोहक उद्यान और कानन, हरे भरे वृक्ष, नाना प्रकार के सुगन्धित पुष्प, कुशल, कृपालु और दयावान राजा, संपन्न, सुखी और प्रसन्न प्रजा, रमणीय सरयू का तट, सुन्दर वन और पशु पक्षी आदि जैसी विशेषताएं पढ़कर लगता है कि उस काल स्वर्ग यहीं पर रहा होगा।
इसी नगरी के नरेश इक्ष्वाकु वंश के राजा दशरथ के घर भगवान विष्णु ने प्रभु श्रीराम के रूप में अवतार लिया। महर्षि वाल्मीकि ने लिखा है, राक्षसों के बढ़ते आतंक को समाप्त करने के लिए, देवता अपनी मदद की प्रार्थना लेकर, ब्रह्मा के पास गए। वहां विष्णु भगवान् ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे मनुष्य के रूप में, पृथ्वी पर अवतार लेंगे और राक्षसों का नाश करेंगे। उसी फलस्वरूप, विष्णु भगवान ने श्रीराम के रूप में पृथ्वी पर आकर, अपनी लीलाओं की क्रीड़ा करते, राक्षसों का नाश किया। श्री राम का अवतार, अबसे लाखों वर्ष पूर्व त्रेता युग में हुआ था। श्रीराम चंद्र के जन्म और उनकी लीलाओं का रामचरित मानस में सजीव और सुन्दर वर्णन है। अयोध्या में दशरथ के महल के विषय में तुलसीदास ने कहा है -
नृप मंदिर सुन्दर सब भाँती।
खचित कनक मनि नाना जाती।
बरनि न जाइ रुचिर अंगनाई।
जँह खेलत नित चारिउ भाई।
श्रीरामचंद्र ने ग्यारह हजार वर्षों तक, पृथ्वी पर रहकर और अपनी लीलाओं को पूरा करके जलसमाधि ले लिया। उन्होंने पृथ्वी को राक्षसों से मुक्त करा दिया। श्रीरामचंद्र कोई मनुष्य नहीं थे, वे स्वयं ईश्वर थे, विष्णु के अवतार थे। मानव रूप में पृथ्वी पर, बस अपनी लीलाओं को करने के लिए आये थे। आदि काल से देवता, संत, ऋषि, मुनि राम की पूजा करते आ रहे हैं। मैं समझता हूँ यह केवल श्रद्धा और विश्वास नहीं अपितु उनकी ईश्वरीय शक्ति ही है। सभी धर्म अपने धार्मिक ग्रंथों के आधार पर ही चलते हैं और सबका अपना पूजा स्थान होता है।
हिन्दू धर्म के अनेक देवी देवता हैं परन्तु उनमें सबसे प्रमुख राम हैं। सबसे अधिक राम को ही भजा जाता है, राम का संकीर्तन होता है, रामचरित मानस का पाठ और राम लीला तथा विजयदशमी का आयोजन होता है। भारत इस बात के लिए, एक गौरवशाली राष्ट्र है कि यहाँ भगवान श्रीराम स्वयं प्रकट हुए थे और इस बात का विषाद भी है कि उसी भारत में राम के जन्म स्थान पर मंदिर बनाने हेतु, भूमि के एक छोटे से टुकड़े के लिए, सदियों से विवाद चल रहा है। जबकि सभी पक्षों को पता है कि श्रीराम के जन्म स्थान पर मंदिर बनना, किसी समुदाय विशेष नहीं, अपितु पूरे राष्ट्र के हित की बात है। मंदिर बन जाने से एक वर्ग को अलौकिक संतुष्टि तो होगी ही, साथ ही सम्पूर्ण अयोध्या क्या, समीपवर्ती क्षेत्रों का भी विकास होगा, पर्यटन बढ़ेगा, यातायात के साधन बढ़ेंगे, व्यापार बढ़ेगा जिसका लाभ सभी धर्मों के लोगों को मिलेगा।
अयोध्या में श्रीराम के जन्मस्थान पर मंदिर बनाने में स्थानीय लोगों को कोई आपत्ति नहीं है। वे इन बातों से भली-भांति अवगत हैं कि मंदिर बनने से सभी को लाभ है, परन्तु कुछ बाहरी तत्व अपने निहित स्वार्थों के चलते हिन्दुओं और मुसलमानों में धार्मिक उन्माद फैलाये रखते हैं। इसी बहाने वे अपनी एक पृथक सत्ता स्थापित करना चाहते हैं। मंदिर के पीछे कई बार धार्मिक संघर्ष हुए हैं और हजारों लोगों ने अपने प्राण गवाए हैं। इसीलिए, मैं इस बात की वकालत करने आया हूँ की अयोध्या में जन्म भूमि पर श्रीराम का भव्य मंदिर बने ताकि देश- विदेश के पर्यटक वहां आएं। वे श्रीराम और सरयू के दर्शन का लाभ पाएं और क्षेत्र के लोग परस्पर सौहार्द के साथ आर्थिक लाभ पाएं। धनवान व्यक्ति अपने वैभवपूर्ण जीवन के लिए, चाहे अपने पुरुषार्थ पर गर्व करे, किन्तु निर्धन व्यक्ति राम नाम के सहारे, अपना जीवन अतीव संतुष्टि के साथ बिता लेता है। करोड़ों लोगों के जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग श्री राम-नाम में निवेश है। राम की पूजा, राम का भजन, कीर्तन, जाप, पाठ राम-लीलाओं के द्वारा भारत की एक बड़ी जनसंख्या अपना जीवन संतुष्टि और प्रसन्नता के साथ बिताती है। राम का नाम तो एक राष्ट्रीय निधि है। राम के जन्म-स्थान पर, मंदिर बन जाने से इस निधि में वृद्धि होना और भारत का समृद्ध होना, स्वाभाविक है। मस्जिद तो बस एक प्रतिष्ठा और विवाद का प्रश्न लेकर खड़ा है। मंदिर अथवा मस्जिद यदि राष्ट्रीय हितों के उद्देश्यों को भी पूरा करती हो तो सरकार को आगे आकर मदद करना ही चाहिए। सरकारें विभिन्न परियोजनाओं के लिए भूमि का अधिग्रहण करती रहती हैं। कई बार हिन्दू मंदिरों का अधिग्रहण किया है और उन्हें चलाने के लिए प्रशासक नियुक्त किया है। अयोध्या में भी जन्म-भूमि का विवादित स्थान अधिग्रहित कर, मंदिर बनवाने में क्यों हिचकिचाती हैं। मैं अपनी इस पुस्तक ' __ का वकील' के द्वारा यही तर्क लेकर आया हूँ कि राष्ट्र और लोक हित में शीघ्रातिशीघ्र, राम जन्म-स्थान पर मंदिर बने। इस पुस्तक में सम्मिलित ऐतिहासिक तथ्य इंटरनेट पर उपलब्ध सूचनाओं पर आधारित हैं। राम के विषय में उद्धृत संतों की वाणी को उद्धरण चिन्हों के अंतरगत दिया गया है। एक बार पुनः आप के स्नेह व शुभेच्छाओं का आकांक्षी -
एस. डी. तिवारी, एडवोकेट
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