खिल पलाश
जंगल में दहका
आया बसंत
आया बसंत
जवान दिलों पर
छाया बसंत
छाया बसंत
कोयल के कंठ से
गाया बसंत
माल में पैंट
आकर्षण का केंद्र
रखे जो छेद
रखे जो छेद
फैशन के नाम पे
महंगा टैग
महंगा टैग
खिड़की खोले पैंट
आज का ट्रेंड
प्रेम का खेला
ढूंढने में हो गयी
साँझ की बेला
साँझ की बेला
भागने लगा दूर
हुस्न का मेला
हुस्न का मेला
मृगतृष्णा बन के
दिल से खेला
देखे न होंगे
शहर के शराबी
तेरा जलवा
तेरा जलवा
कर दिया घायल
बना शायर
बना शायर
गाता फिरता अब
दिल का दर्द
बहती रही
बनी तू प्रेम नदी
मैं प्यासा रहा
मैं प्यासा रहा
लगाए आशा रहा
तू चली गयी
तू चली गयी
सिंधु की गली गयी
मुझको छोड़
मैंने समझा
मेरी हमजोली थी
बड़ी भोली थी
बड़ी भोली थी
जेब को टटोली थी
दिल को नहीं
दिल को नहीं
ढूंढती रही कहीं
नए भ्रमर
चलाने चले
इश्क की वो दुकान
गंवाये जान
गंवाए जान
ना सके पहचान
इश्क की धार
इश्क की धार
बस घाव ही छोड़ी
चीर निगोड़ी
उनकी गली
लगी बड़ी पतली
वापस चला
वापस चला
मिली नहीं पनाह
इश्क की राह
इश्क की राह
बड़ी थी काटों भरी
चुभती रही
No comments:
Post a Comment