माँ! मेरे लिए क्या नहीं किया
होठों पर मेरे, मुस्कराहट के लिए।
ओ री माँ! तूने क्या क्या न किये।
जाने अनजाने तुझे कष्ट भी दिए
उफ़ तक न की, रही होठों को सिये।
कहानी सुनाई, लोरी भी गाई होगी।
मेरे कारण, तुझे थकान आई होगी।
मुझे चैन की नींद सुलाने के लिए,
तू अँखियों को अपनी जगाई होगी।
मेरे कारण, तुझे थकान आई होगी।
मुझे चैन की नींद सुलाने के लिए,
तू अँखियों को अपनी जगाई होगी।
मेरे जिद्द करने पर, तू रोइ होगी।
मेरे आराम में, कोई बाधा न पड़े,
अपने आराम के क्षण खोई होगी।
मेरे आराम में, कोई बाधा न पड़े,
अपने आराम के क्षण खोई होगी।
और नए खिलौने भी ले आती थी।
तेरे मन की जो अथाह गहराई थी
तब मुझे, समझ नहीं आती थी।
मेरे लिए किस किस से लड़ी होगी।
जाने किस किस हाल में पड़ी होगी।
मेरी हर मुसीबतों को भगाने में
रही, आंधी तूफान में खड़ी होगी।
भाइयों से लड़, तुझे तड़पाया होगा।
तेरी बातों का माखौल उड़ाया होगा।
प्रेम और शांति का पाठ पढ़ाया होगा।
चिंता रखी होगी, मेरे स्कूल जाने की।
मेरे नहाने की, समय पर खाने की।
मेरी खातिर, तूने अपने सिर पर,
रखी होगी कितना बोझ ज़माने की।
मैंने जो चखा, तेरे हाथों का पका।
वो स्वाद, वैसा रस, कहीं भी और
तेरे हाथों के सिवा, मिल न सका।
मिला जो सुख, तेरी आँचल की छाँव।
वैसा आराम, कहाँ और किसी ठाँव।
ढूंढते हैं लोग, आसमानों में कहीं
जन्नत की ठौर, तले तेरे ही पांव।
मेरे भी दर्द में कराहा, मेरी माँ ने।
मेरे हर काम को सराहा, मेरी माँ ने।
मुझ पर ही कर देती सब न्यौछावर
बदले कुछ नहीं चाहा, मेरी माँ ने।
- एस० डी० तिवारी
माँ! मेरे लिए क्या नहीं किया
होठों पर मेरे, मुस्कराहट के लिए, ओ री माँ! तूने क्या क्या न किये।
जाने अनजाने तुझे कष्ट भी दिए; उफ़ तक न की, रही होठों को सिये।
मेरे मैले वस्त्र, बार बार धोई होगी, मेरे जिद्द करने पर, तू रोइ होगी।
मेरे खेलने पर तू, रोक लगाती थी, और नए खिलौने भी ले आती थी।
तेरे मन की जो अथाह गहराई थी, तब मुझे, समझ नहीं आती थी।
मेरे लिए किस किस से लड़ी होगी, जाने किस किस हाल में पड़ी होगी।
मेरी हर मुसीबतों को भगाने में, रही, आंधी तूफान में खड़ी होगी।
भाइयों से लड़, तुझे तड़पाया होगा, तेरी बातों का माखौल उड़ाया होगा।
तूने कई बार झगड़ा छुड़ाया होगा, प्रेम और शांति का पाठ पढ़ाया होगा।
चिंता रखी होगी, मेरे स्कूल जाने की, मेरे नहाने की, समय पर खाने की।
मेरी खातिर, तूने अपने सिर पर, रखी होगी कितना बोझ ज़माने की।
मैंने जो चखा, तेरे हाथों का पका, अमृत का रस, वह मधुर सा लगा।
वो स्वाद, वैसा रस, कहीं भी और, तेरे हाथों के सिवा, मिल न सका।
मिला जो सुख, तेरी आँचल की छाँव, वैसा आराम, कहाँ और किसी ठाँव।
ढूंढते हैं लोग, आसमानों में कहीं, जन्नत की ठौर, तले तेरे ही पांव।
मेरे भी दर्द में कराहा मेरी माँ ने, मेरे हर काम को सराहा मेरी माँ ने।
मुझ पर ही कर देती सब न्यौछावर , बदले कुछ नहीं चाहा, मेरी माँ ने।
दिल्ली 110091
(यह मेरी मौलिक रचना है )
माँ! मेरे लिए क्या नहीं किया
जाने अनजाने तुझे कष्ट भी दिए; उफ़ तक न की, रही होठों को सिये।
कहानी सुनाई, लोरी भी गाई होगी, मेरे कारण, तुझे थकान आई होगी।
मुझे चैन की नींद सुलाने के लिए, तू अँखियों को अपनी जगाई होगी।
मुझे चैन की नींद सुलाने के लिए, तू अँखियों को अपनी जगाई होगी।
मेरे आराम में, कोई बाधा न पड़े, अपने आराम के क्षण खोई होगी।
तेरे मन की जो अथाह गहराई थी, तब मुझे, समझ नहीं आती थी।
मेरे लिए किस किस से लड़ी होगी, जाने किस किस हाल में पड़ी होगी।
मेरी हर मुसीबतों को भगाने में, रही, आंधी तूफान में खड़ी होगी।
भाइयों से लड़, तुझे तड़पाया होगा, तेरी बातों का माखौल उड़ाया होगा।
चिंता रखी होगी, मेरे स्कूल जाने की, मेरे नहाने की, समय पर खाने की।
मेरी खातिर, तूने अपने सिर पर, रखी होगी कितना बोझ ज़माने की।
मैंने जो चखा, तेरे हाथों का पका, अमृत का रस, वह मधुर सा लगा।
मिला जो सुख, तेरी आँचल की छाँव, वैसा आराम, कहाँ और किसी ठाँव।
ढूंढते हैं लोग, आसमानों में कहीं, जन्नत की ठौर, तले तेरे ही पांव।
मेरे भी दर्द में कराहा मेरी माँ ने, मेरे हर काम को सराहा मेरी माँ ने।
मुझ पर ही कर देती सब न्यौछावर , बदले कुछ नहीं चाहा, मेरी माँ ने।
- एस० डी० तिवारी
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(यह मेरी मौलिक रचना है )
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