Sunday, 19 March 2017

Paan ka patta

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पान का पता

कई बार सरकार थूकने पर रोक लगा देती है।
पान खाने वालों में शोक जगा देती है।
कहना है कि दीवारें गन्दी होती है।
आधा ही देखती है, सरकार तो अंधी होती है।
गजब सरकार है! पान तो व्यापार है।
पान  का भी भला कोई, करता प्रतिकार है।
पान से चलता बहुत लोगों का रोजगार है। 
थूकना रोक देने पर बेरोजगारी का सवाल है। 
पान खाना तो बड़े लोगों का सदाचार है।
पान खाने वालों का थूकना मौलिक अधिकार है।

पान तो हिंदुस्तान की शान है। 
बड़प्पन की पहचान है।
पुराने ज़माने से नबाबों की शान है।
जब मुंह में होता बीड़ा पान है।
मन में भर जाता आत्मसम्मान है।
एक बीड़ा पान स्वछन्द कर देता है।
सांसों में सुगंध भर देता है।

पान खाने वालों ने संगठन बना लिया है।
थूकने के अधिकार के लिए,
आंदोलन चला दिया है। 
प्रधानमंत्री ने भी माना,
बनारसी पान की कदर जाना,
तभी तो पड़ा उन्हें बनारस आना।

कहीं भी चले जाओ पान लेकर,
न चोरी का, न लुटने का डर,
न ही कोई सरकार का कर।
महोबा हो या बनारस, मुंह में पान हो तो
आसानी से कट है जाता सफर।
पान से मुंह में ताला लग जाता है,
आलतू फालतू बोलने
और खाने से बच जाता है।
यूँ कभी कभी धोखा भी हो जाता है,
पान के कारण कुछ खाने से रह जाता है।

गणेश जी से अब तक
पान खाना कब रुका है।
जब भी आता कोई शुभ मौका है,
पान का  महत्त्व बढ़ जाता है।
पूजा सामग्री में पान अवश्य आता है।
देवताओं ने भी पान चबाया था।
अगर थूका नहीं होगा तो क्या खाया था।
बड़े राजा महाराजा पान का शौक फरमाते थे।
थूकने के लिए चांदी का पीकदान बनवाते थे।

लगाकर के कत्था और चूना,
पान का दाम हो जाता कई गुना।
पार्टी रह जाती है आधी अधूरी।
भोजन के बाद पान न परोसा तो
मेहमानबाजी भी नहीं होती है पूरी।
दुल्हन तो लगा लेती होठलाली।
दूल्हे की पान ही लाता होठों की लाली।

जो भी चालाक नेता है,
बोलने से पहले मुंह में पान दबा लेता है।
कभी मीडिया से बात करने वक्त,
 निकल जाता है, मुंह से कुछ गलत।
मुंह में पान था, बहाना चल जाता है
कहीं और निशाना चल जाता है।

पान खाने की अपनी तमीज होती है।
खाना न आये तो गन्दी कमीज होती है।
हिंदुस्तान में पान एक बड़ी चीज होती है।
बीडा थमा देने से थम जाती
मन में अगर कोई खीझ होती है।
हम स्वच्छ भारत बनाएंगे।
पान मगर, अवश्य खाएंगे।


न्यौता भुला
गांव का आम आदमी

थोड़े में सब्र


चाँद सितारों की रात
गोरु चउओं  के साथ
पड़े रहते हैं द्वार,
कई कुक्कुर बिलार
घर के आस पास
उगे खर पतवार
पड़े झाड़ झंखार
फिर भी गांव की हवा बतास
किसको न आएगी रास।

फूल फुलवारी है
ताज़ी तरकारी है
बैठ कर बकवास
खाने को दूध मलाई है
हरा साग तजा छाछ
कीट पतंगों
पेड़ पत्ता

जोड़ जाड़ ईंट पत्थर
डाल लिया छान्ह छप्पर
चौओं का घेर है
नीम का पेड़ है
नीचे खूंटा गड़ा है
नाद में भूसा डला है
सानी पानी देखना होता
गोबर मूत फेंकना होता
गाय भैंस लग रही
तो रोज रोज दूध दही
वरना चाय भी पीते
काली ही सही
गांव की ताजे दूध की गिलास
किसको न आएगी रास

नाली पंडोहा
चूल्हा चक्की
साडी लुग्गा कचार
अरगनी पर पसार

सुबह होते ही
चिड़ियों का शोर
लोटा का पानी ले
खेत की ओर
पोखरा में नहाना धोना
काम धाम
शाम होते ही चिंता सताती
झट से जले दीया बाती
मोटा पतला
नौकर चाकर
पांव न जूता चप्पल रहता
सांप बिच्छु  का डर रहता
फूलती हुई रंग बिरंगी घास
किसको न आएगी रास

बच्चों की भी अपनी दुनिया है
साथ में होते मुन्नू मुनिया हैं
धूल माटी में खेलना
खेत खलिहान झेलना
तितली के पीछे
पेड़ के नीचे
कभी गुल्ली डंडा
कभी पिट्ठू कंचा
कभी ढेला मारकर
कभी पेड़ पर चढ़ कर
आम अमरुद तोड़ते
पिल्लै के कान मरोडते
मदारी वाले के पीछे चलते
कभी ऑंखें मींचे चलते
गाड़ी सवारी

कूड़ा करकट
थाली कटोरी

कभी कभार
भोर भिनसार
पूजा पाठ
झगड़ा मार

शादी व्याह में
पहले ही शुरू हो जाता
गाना बजाना
उत्सव मनना
खान पीन
दावा दारू

क्रीम पाउडर
गहना गिठौ
चूल्हा चक्की
सीधी सदी

लडके बच्चे
साँझ विहान
पूजा पाठ

दुनिया जहाँ

रुकते चलते
कुर्सी मेज
कोई भी काम
पंडित जी से पूछ कर
पोथी पत्र देख कर
साईत  मुहूर्त
खटिया बिछौना
देवता दानी
साधु संत, पर पहुना
जो भी आता द्वार
आये गए की आदर सत्कार
काम काज
कीड़ा मकोड़ा
बागों में देखना मधुमास
किसको न आएगा रास

खास
चाँद सितारों से भरा आकाश
किसको न आएगा रास
रोहतास
विंदास
अनायास
झकास
आस पास
वास
अभ्यास एहसास
हास परिहास


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