Thursday, 16 March 2017

Haiku March 17 pariksha masaale


मनाते छोड़
पद पैसा का गर्व
रंगों का पर्व

होली में चूर
दिन भर के लिए
ग़मों से दूर

रंगों के पीछे
किसका मुख छुपा
चला ना पता


होती न पूरी
सिर पर परीक्षा
सोने की इच्छा

छोटी से छोटी
इम्तहान की घडी
हो जाती बड़ी

प्रारम्भ खेल
बोर्ड की परीक्षा का
मस्ती है फेल

पप्पू भी होगा
अब पढ़ के पास
उत्तो प्रदेश

जलती रही
परीक्षार्थी की बत्ती
सुबह तक

सबसे बड़ी
परीक्षार्थी की होती
परीक्षा डर

होगा कलंक
परीक्षा में न आया
बढ़िया अंक

हुई प्रारम्भ
टीवी व पार्टी बंद
बोर्ड परीक्षा

कसे कमर
परीक्षा सिर पर
सभी विद्यार्थी

परीक्षा देने
पहुंचे बिलंब से
छूटे सवाल

उड़ाका दल
परीक्षा केंद्र पर
है हलचल

परीक्षा देने
जाने में हुई देर
छूटे सवाल

सिर पे पड़ा
हल्का हो गया बोझ
ख़त्म परीक्षा

जी भर अब
खेलना और सोना
ख़त्म परीक्षा

जाता है बीत
पास फेल के बीच
यह जीवन

जग में ठग
खरीदना कुछ भी
जाँच परख

गुड़िया चढ़ी
सफलता की सीढ़ी
अगली कक्षा

अगली सांस
मिलती जब पास
मौजूदा श्वांस

सबसे अच्छा
साधारण जीवन
बिना परीक्षा

नारी की होती
परीक्षा में ही पड़ी
हरेक घडी

कैसी व्यवस्था
प्रेम में भी देना होता
स्त्री को परीक्षा

नारी या नर
संवेदना के बिना
है जानवर

बड़ा ही नहीं
छोटा पेड़ भी देता
सबको छाँव
बड़ा न बन सको    
पर पेड़ तो बनो

इच्छा में दम
खुद ही बन जाती
राह सुगम



अनूठा दान
एकलव्य  ने दिया
अंगूठा दान

हुआ अमर
एकलव्य देकर
गुरु दक्षिणा


************


पति ने कहा
आलू पराठा खाना
भूली बनाना

पत्नी ने कहा
कुछ खट्टा ले आना
लाये मखाना


सब्जी में डाला
तेज मिर्च मसाला
खाकर सी-सी

चाय में डाला
अतिथि की प्रशंसा
थोड़ा मसाला

मिर्च की छौंक


आम के साथ
चटनी  का स्वाद
लाता पुदीना

खिल उठता
जल जीरा का रंग
पड़े पुदीना

गर्मी में देता
उदर को राहत

दवा पुदीना


वर्षा का दिन
कबूतरों के बिन
टावर खाली

खुदा के नाम
खुद के चक्कर में
बने महंत  

आम व लीची
एक ही रंग रूप
बने पडोसी

लीची व आम
बौराये साथ साथ
ऋतु की बात

छीन के हक़
वापस देता नेता
खैरात कह

उसके हाथ
तेरी मेरी जिंदगी
हमारा साथ

एक भी पत्ता
नहीं हिल सकता
वो नहीं चाहे


पेन्सिल दे दो
पास कागज नहीं
दीवार सही

- एस० डी० तिवारी

शिशु का खींचा
दीवार पर नक्शा
पूरा ब्रह्माण्ड

क्या बन पाया
मैंने कैसे बनाया
मुझे क्या पता

दीवारें रंगी
भांति भांति चित्रों से
बच्चों का घर

नन्हें बालक
खींच डालते चित्र
घर की भीत

बालक खींच
रंग डालते भीत
अनूठे चित्र

तू बना चित्र
मैं भरूँ शब्दों के रंग
बिटिया मेरी

होते पुताई
दीवार पर मुन्नी
लिखी चौपाई

कुछ भी करें
पर मन के सच्चे
होते हैं बच्चे

कइयों बार
बच्चों की शराररत
देती राहत

नन्हें से बच्चे
उकेरते रंग से
मन का बिम्ब

काफी है नाम
बनाने को बिगड़ी 
जय श्रीराम 

लेते जो नाम
पूरे हो जाते काम  
जय श्रीराम  



होते ही माली
तोड़ने को बेताब
कली से फूल

उगाता भी है
तोड़ भी लेता खुद
फूल को माली

खिलने तक
होता फूल का ख्याल
माली के हाथ

दिल्ली निगम
चुनाव का प्रचार
रिक्शों के कंधे

लेने का वक्त
ना अपनों के पास
खोज खबर

सोचा था लेगा
बुढ़ापे में दायित्व
खुद में बेटा

सीखा तुमसे
मुहब्बत की बाजी
तुम्हें हरा दी

छोड़ो गुमान
उतर के रहेगा
हुस्न है पानी 



****
प्रकृति जब 
दिखे किये श्रृंगार 
कर ले प्यार 

रोज न आये
तन पर निखार  
कर ले प्यार 

रोज न आये
बगिया में बहार 
कर ले प्यार 

रोज न आये 
सावन  कि फुहार  
कर ले प्यार 


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