Saturday, 18 February 2017

seth ka bhandara

सेठ जी का भंडारा

छोटा सा तंबू तना हुआ था।
सड़क पर भोजनालय बना हुआ था।
तम्बू में तीन चार मेज लगीं थी।
टीम ने टोकरी भगौना सहेज लई थी।
अच्छी खासी भीड़ कतार में लग गयी थी।
प्रसाद पाने को मजलिस सज गयी थी।
स्वयं  सेवी कार्यक्रम सम्हाल रहे थे।
खड़े हो, दोनों में  सब्जी डाल रहे थे।
चार चार पूड़ी के साथ पकड़ा रहे थे।
कई जल्दी पाने के लिए घबरा रहे थे।
हलवाई बड़े पौने से पूड़ी तल रहा था।
सेठ जी का भंडारा चल रहा था।
दीनू को भी पता लग गया था।
इत्मिनान से लाइन में लग गया था।
जैसे ही पाया एक ओर होकर खाया।
उसके बाद दुखंती का नंबर आया।
दुखंती को स्वयंसेवी ने टोका।
'तुम पहले भी ले गए', कहकर रोका।
मम्मी नहीं आयी, पहले वाला दे आया हूँ।
अपने लिए, अब लेने आया हूँ।
सेठ जी ने दोना थमा कर बोला।
भंडारे के साथ अपना दिल भी खोला।
'ये लो, मगर यहीं पर खाना।
कोई भी दोना घर नहीं ले जाना।
खाकर और ले लेना, पेट भर खा लो।
लेकर नहीं जाना, ये ठीक से जान लो।'
यूँ तो दोने फेंकने के लिए, टब रखा था।
पर जूठा दोना, चारों ओर बिखरा था।
बिखरे दोनों पर, कुत्तों का मजमा था।
थोड़ी देर के लिए ट्रैफिक थमा था।
दुखंती पेट भर खाकर बहुत खुश हुआ ।
बहन के लिए नहीं, पाया मायूस हुआ।
टब तो उठ गया था, दोने पड़े फैले रहे।
दो तीन दिनों तक, मक्खियों के डेरे रहे।

एक दिन पता चला सेठ जी का जलसा है।
दीनू वहीँ, पंडाल के बाहर बैठा है।
दीनू को भूख लगी थी पर अंदर नहीं गया।
बज रहे गीतों से ही अपना पेट भर रहा।
पंडाल के बाहर ही खड़ा हाथ फैला देता।
कोई दे देता तो कोई ना कर देता।
दीनू अपनी दीनता की ऑंखें टांगता रहा।
पंडाल में आने जाने वालों से मांगता  रहा।
किसी की कार का गेट पकड़, बंद कर देता।
कोई हाथ पर, दस पांच का नोट रख देता।
भंडारे की भांति, उसने भी भेदभाव नहीं रखा।
कोई  देता या ना देता, सबको दुआ देता।

तभी पंडाल में कुछ हलचल हुई।
दीनू की निगाह भी चंचल हुई।
देखा किसी को कुछ लोग पकड़ पीट रहे थे।
'चोर है, मारो' कहकर घसीट रहे थे।
इसने पंडाल से पूड़ी चुराई है।
डेढ़ हजार की प्लेट में रख कर खाई है।
कहां, वह पांच रुपये का खाना खाने वाला था।
डेढ़ हजार की प्लेट जूठी कर डाला था।
भंडारे में सेठ की उदारता से अभिभूत था।  
दूर से देख लिया, सेठ भी भीतर मौजूद था।
लालच और भूख भीतर खींच ले गयी। 
बदकिस्मती अकल की आंखे मींच ले गयी।
दीनू ने दुखंती को पहचान लिया।
तस्वीर देखते ही सब कुछ जान लिया। 
बीच बचाव करके उसे वहां से भगा दिया।  
सुबह होते अस्पताल की कतार में लगा दिया।

एस० डी० तिवारी



चार तरह के आदमी
एक  मूंछ रखता है दाढ़ी नहीं
एक दाढ़ी रखता मूंछ मुंडवा देता
एक दाढ़ी मूंछ दोनों रखता \
एक दाढ़ी मूंछ दोनों मुड़ाव देता

एक बंगलों में रहता
एक फ्लैट में रहा
एक झुग्गी में

एक टोपी लगता
एक पगड़ी
नंगे सिर
एक  मफलर

पन्त कमीज
कुरता पजामा
धोती कुरता
लुंगी

मंत्री
नेता
अधिकारी
आम आदमी



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