कुटी मैं छवाउंगी, गंगा के तीरे।
सजन पास जाउंगी, मैं धीरे धीरे।
निहारूँगी छवि उसकी, गंगा के जल में।
बंध के रहूँ ना, पत्थरों के महल में।
मिलना पिया से, है मुझको सखी रे
सुना है वहां रोज, आता सजन है।
करना नित उसका, मुझको भजन है।
भजन में ही उसके, हैं सुख के जखीरे।
आयेगा मिलने रे, पिया मेरे धाम।
लूंगी कृपा, करके उसको प्रणाम।
धुल जाएगी मन की, काई जमी रे।
कुटी मैं छवाउंगी, गंगा के तीरे। ...
हमसे खफा क्यों, सजन हो गए हैं। हुए जाते हैं।
उन बिन अकेले, अपन हो गए हैं।
जाने न हमसे, हुई क्या खता थी
पराये से हम जाने मन हो गए हैं।
बिछुड़ चुकी हैं बहारें अब हमसे
वीराने से ये चमन हो गए हैं।
तनहा रहने की आदतों के मारे
खुद के ही हम दुश्मन हो गए हैं।
दरश हुये उनके बीत गए बरसों
अलसाये से ये नयन हो गए हैं।
क्या क्या न किये हम उनके लिए
गुमसूमियत में दफ़न हो गए हैं।
यादें ढक चुकीं वक्त के एसडी पीछे
बीते हुये लमहे चिलमन हो गए हैं।
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