Sunday, 15 January 2017

Haiku Jan 17 bahu beti


उसका नाम
कितना भी पी जाओ
होगा न कम

उसके सिवा
करे जो बेडा पार  
कोई न यार


बना के छुट्टी
संक्रांति पे खिचड़ी
खुश गृहिणी

खिचड़ी खिला
पत्नी कर ली छुट्टी
पिला दी घुट्टी

खा के खिचड़ी
करते हम गर्व
संक्रांति पर्व

खिचड़ी मनी
खा के लड्डू गज्जक
तिल की बनी


तन के साथ
मन भी धुल  जाता
गंगा नहान

प्यासा कश्मीर  
बर्फ़बारी में जमा   
नल का पानी 

जेब में भर 
जाते पानी लेकर 
घाटी के लोग  

दुखी किसान 
आलू को मारा पाला
चिंता में डाला 


जिंदगी खेल 
नियम से खेलोगे  
होंगे न फेल 

रहे अंजाना
कहाँ से आये हम 
कहाँ है जाना 


चूल्हे की आग
बुझाने को जरूरी 
पेट की आग 

सुबह शाम 
कड़कती ठण्ड में  
भाये अलाव 


खाओ जी भर  
पोंगल के व्यंजन 
पर्व ही धन 

बड़े ही लंबे
चलना सम्हल के
जीवन पथ

खुश हैं हम
जीवन में तुम्हारे
साथ का दम

ढूंढने में ही
तुम्हें जिंदगी मेरी
साँझ हो गयी

***********

बड़ा जो खेता
परिवार की नाव
बेटी या बेटा

सम्हाल लेती
दो घरों की लगाम
बेटी महान

दो परिवार
बेटी प्यार की डोर
बांधती साथ

बोझ ना कोई
घर को महकाती
फूल है बेटी

दोनों रखती
सुंदरता व शक्ति
बेटी महती

बेटी बनाती
संसार को सुन्दर
करो आदर

कैसा भी सही
अब अभेद्य नहीं
बेटी को लक्ष्य

ख़त्म करेगा
बहू बेटी का भेद
नारी का हक़



प्यार व सेवा
बहू को जानो बेटी
दोनों की लब्धि

पहले होती
हर किसी की बहू
किसी की बेटी

नाजों की पली
किसी और का घर
बसाने चली

बहू बनके
जुड़ गये नवल
अनेकों रिश्ते

कर दी सूना
बहू पिया का भर
पिता का घर

चहक उठा
ससुर का आंगन
नई दुल्हन

पा के मगन
नया घर आंगन
नई दुल्हन

पायेगी प्यार
परिवार में बहू
देगी हुब हू

बहू जाकर
देगी पिया के घर
आनंद भर


उलटी हुई
ननद घबराई
सास मुस्काई

बहू सिखाती
टच स्क्रीन चलाना
नया जमाना

लगा है दिल
बक बक करने
हाँ प्यार हुआ


सुन री सखी
तंग हो गयी चोली
गर्भ से, भोली!


घर में मेरी
मिठास भर देती
मृदुल बेटी

तभी रुकेगी
कविता नहीँ होगी
कलम मेरी 


सुख का पता
अँधेरे में रहता
दुःख क्या जाने


हवा ले चूम
आग धधक जाती
ख़ुशी में झूम

गर्मी में छुपें
सर्दी में ढूंढें हम
दिन की धूप



किये पश्चात्
फहराया तिरंगा
अनेकों त्याग

मिली आजादी
शहीदों ने लगाई
प्राणों की बाजी

राष्ट्र ध्वज की
कभी झुके न शान
रखना ध्यान


खा जाती रिश्ते
मन की कड़वाहट
बुरी बीमारी

आधुनिकता
और अभी सो रही
शौच की सोच


हमें देखना
आग नहीं देखती
क्या है जलाना

कुछ भी चले
संभव जब आग
दिल में जले

आधुनिकता
दो धारी तलवार
वर व ध्वंस

जीवन की किताब
पढने लायक न रही
आग में झोंक दी

पुरानी हुई
जिंदगी कि किताब
धुंधले शब्द

स्त्री को पसंद
ना कि सिर के बाल
दिल की आग

हमें देखना
आग नहीं देखती
क्या है जलाना

आग की बात
चली तो आई याद
एक सौ एक 

हमें देखना
जली लौ से क्या लेना
आंच या ज्योति

खा जाती रिश्ते
मन की कड़वाहट
घातक रोग

हवा ले चूम
आग धधक जाती
ख़ुशी में झूम

जिनकी मुट्ठी
वे मुट्ठी भर लोग
है पूरा देश



लिए जा रही
अंधकार की राह
आधुनिकता

शीश झुकाये
आशीष ही मिलता
बड़ों के आगे

वृद्ध की सेवा
करने से मिलता
मीठा ही मेवा  

रखा कदम 
धरती पे बसंत 
फूली सरसों 

आम बौराये  
बसंत ! ला बुला के  
पिया न आये 

भयी दीवानी 
विलोक श्रृंगार में   
ऋतु की रानी 

आम की डाली 
देख के मन मोरा 
डोला टिकोरा 

गोरा मुखड़ा
गाल पे काला तिल
हुआ कातिल 

गाल पे तिल
आम पर कोपल
अटका दिल 

संघर्षरत
चींटी के कदमों में
उसका लक्ष्य

संघर्ष बिना
होता नहीं संभव
शीर्ष को छूना

छोड़ अकड़
शिष्टाचार पकड़
मिलेगा प्यार

बदल जाता
आदमी का रवैया
पैसा पा जाता

रहा है दौड़
हड़पने की होड़
लिए हरेक


लेते हैं बना
घिस कर पत्थर
मूर्ति सुन्दर

सीख है देती
सम्हलना फिर से
गिर के चींटी

महका देता
घिसकर चन्दन
सबका मन

तराश कर
बन जाता पत्थर
एक नगीना

छोड़ अकड़
शिष्टाचार पकड़
मिलेगा प्यार


प्रेम से ज्यादा
दिखावे में सलंग्न
प्रेम दिवस
****************

रंगों के साथ
बसंत का आगाज
मन रंगीन

मेरी चौखट
बसंत का दस्तक
मन रंगीन


आये सनम
जैसे ही घर आया
ऋतु बसंत

महकी हवा
बहक गया मन
ऋतु बसंत

फूली सरसों
इठलाई मन सों
ऋतु बसंत

ऋतु  की रानी
भौरों को की दीवानी
ऋतु बसंत

आम बौराये
फूले नहीं समाये
ऋतु बसंत

फूली बगिया
रंगों में सराबोर
ऋतु बसंत

कली क्या खिली
मंडराये आ अलि
ऋतु बसंत

************
व्याह शादी में
गर नोट उड़ाना
कर चुकाना

देख प्रसन्न
खेतिहर का मन
फूली सरसों

आम की डाली
गायी कोयल काली
बसंती राग

कोयल कूकी
बगिया में बहार
सुनने रुकी

आये सनम
आते ही घर पर
बसंत ऋतु

महकी हवा
बहक गया मन
ऋतु बसंत

सींचना होता
पाने को फूल फल
माली को बाग़

देता है फल
सींचने पर जड़
पूरा ही पेड़

प्यासा ही जाने
क्या होता घूंट भर
जल का मोल

रखना होगा
सोच समझकर
जल का स्तर

खाद तो पूरा
मगर पानी कम
फसल नम

रंगों में डूबा
बसंत में हो गया
मन रंगीन

कोयल तोता
पेड़ पे दो गायक
मात्र मैं श्रोता

चली बयार
झूमा तरु का मन
हो के प्रसन्न

आम बौराये
फूले नहीं समाये
ऋतु बसंत

फूली बगिया
रंगों में सराबोर
ऋतु बसंत

कष्ट भगाय
ॐ नमः शिवाय
मंत्र उद्घोष

छोड़ा भारत
आग लगी चीन में
राकेट यान

पीकर घूंट
दो एक प्रशंसा के
चली कलम

अच्छे नंबर
पाने को शिक्षक की
भरी चीलम

आया बसंत
ले के मधु का प्याला
पी मतवाला

मदिरालय
बन गया बसंत
बेसुध मन

ऋतु बसंत
अंगड़ाई न टूटे
पिया न रूठे

काँटों में खिल
नागफनी का फूल
हर ले दिल 


जागा श्रृंगार
जाओ न बसंत में
छोड़ अकेले

जाने न दूंगी
बसंत में पिया को
बांधे रखूंगी


मिले न चैन
चंचल हुये नैन
खोजें उनको

मैं पी जाउंगी
पपीहरा से छीन
स्वाती की बूंद

डालो न रंग
भीगे अंगिया सारी
देखो मुरारी

डालो गुलाल
ना मारो पिचकारी
मोपे मुरारी

जाने न दूंगी
मैं तोहें रंग दूंगी
होली के रंग

खेलो रे होरी
करो ना बरजोरी
मोसे कन्हैया

खेलेंगे होली 
आ मेरे हमजोली
रंगों में भीग  

तुम्हीं सहारा
हरो संकट भारी
हे त्रिपुरारी

रचते लोग
कितनी कहानियां
प्रेम है एक


तुम्हीं सहारा
हरो संकट भारी
हे त्रिपुरारी

नारी दिवस
महिलाओं को मिले
उनका हक़

जहाँ पे होता
महिला का सम्मान
देश महान

नारी ही होती
घर में खुशियों की
बीज जो बोती

जूही की कली
 

लीजो सुखाय
खेलन दे रे होरी
चुनरी गोरी

नहीं छोडूंगी 
नन्द जी के लाला को 
रंग डालूंगी 

वो नन्दलाला
हम भी ब्रजबाला
जमेगी होली

खेलो फगुआ
जाओ न फागुन में
छोड़ अकेले

आ गई होली
ले के निकली रंग
मस्तों की टोली 

आ गई होली
उमंग भर डोली 
ब्रज की गली

मिले न चैन
चंचल हुये नैन
खोजें उनको

पी जाउंगी मैं
छीन पपीहरा से
स्वाती की बूंद



उत्तो प्रदेश
वंश की राजनीति
बदली रीति

खिला कमल
बाकियों का सफाया 
मोदी लहर

रामा हो रामा
आखिरकार ख़त्म
फॅमिली ड्रामा

पंजाब प्रान्त
नशे में लुट गया
अकाली दल


होली की धूम 
मची बरसाने में
मस्ती में झूम  

लेकर रंग
करती हुड़दंग
होली की टोली

मंगल होली
खुशियों से भरी हो
आपकी झोली

उड़ा गुलाल
होली पर आकाश
हो गया लाल

राधा ने डाली 
भीगी अंगिया सारी 
कान्हा पे रंग


चली है टोली
ले खेलन को होली
ढोल मजीरा

पप्पू ने मारी
गुड्डू पे पिचकारी
भीगा मुरारी

भरी बालटी
रंग पा गयी साली
जीजा पे डाली

होली पे जूली
कितनी थी गुजिया
खाकर भूली

होली पे हुआ
जी भर खाया पुआ
पेट ख़राब 

उठाई बाल्टी
भाभी पर डाल दी
रसोई बंद 

डालो न रंग
भीगे अंगिया सारी
देखो मुरारी

जाने न दूंगी
मैं तोहें रंग दूंगी
होली के रंग

गोरी का मुख
होली पर हो गया 
इंद्रधनुष

कितनी भोली 
मित्र से खेली होली
संग में हो ली

भाभी के हाथ
नन्द ने देखा रंग 
धरी पलंग

नहीं खेलते
मम्मी पापा की गोद
दिलेर बच्चे

मम्मी का हाथ
और दोस्त का साथ
फिर क्यों मात

आवा खेलीं जा 
हमनी क फगुआ
हे हो बबुआ

खेला तू होरी
ना करा बरजोरी
मोसे कन्हैया

रूठल भौजी
खेले खातिर होली
कहवां जाईं

जूही की कली


वो नन्दलाला
हम भी ब्रजबाला
जमेगी होली 

कोयल गायी
बसंत में जगाई
प्रेम का राग
पिऊ कब आओगे
आ गया देखो फाग



************

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