चौराहे की चिलपों
लाल बत्ती पर जैसे ही गाड़ी खड़ी की।
दिखाने लगी करतब, वो नन्ही सी लड़की।
कभी हाथों के बल खड़ी हो जाती।
कभी पेट, पैर उठा, छाती के बल पड़ी हो जाती।
कभी पीछे से पूरा शरीर मोड़ लेती।
अपनी चोटी को एड़ी से जोड़ लेती।
उसके पास लोहे की रॉड का एक गोला था।
बदन पर मैला सा नन्हां चोला था।
उस छोटे से गोले में पूरा देह डाल लेती।
घुटने पर सिर रख, गोले से निकाल लेती।
फिर एक एक कर, कार का शीशा खटखटायी।
'खाने के लिए कुछ दे दे साँईं। '
किसी से मिला, किसी से पाए बिन आगे बढ़ी।
अगरबत्ती बेचती, दूसरी आ धमकी।
'नहीं चाहिये' बोलने पर बोली -
'कुछ खाने को दे दो, मैं हूँ भूखी।'
पेन, कंघी, गुब्बारे वाला भी आया।
सबने अपनी अपनी सुनाया।
बोल कर टाला, 'शॉपिंग के लिए थोड़े खड़े हैं।
लाल बत्ती है, इसलिए पड़े हैं। '
तभी ताली बजाते चार पांच आ गए।
अलग अलग गाड़ियों पर छा गए।
दस, बीस, पचास कुछ भी निकाल।
बाबू ! हमारे पेट का भी है सवाल।
तुरन्त ही ट्रैफिक वाला आ गया।
चौराहे पर लेन देन गैर कानूनी है, समझा गया।
जान बची, बत्ती ने रंग बदला।
देर किये बिन, गाड़ी गियर में डाला।
तभी डिब्बे में तेल लिए, एक आया।
बाबू, इसमें कुछ डाल, मिटा लो शनि की छाया।
कुछ नहीं मिला तो उसने कुछ बका।
कोई श्राप दे रहा हो, ऐसा लगा।
बत्ती अभी पीली ही हुई थी ।
गरर गरर की ध्वनि गूंज गई थी ।
जब तक बत्ती लाल से हरी हो पाती।
अनेकों गाड़ियां, चौराहे के पार थीं।
अपनी तो गाडी का इंजिन बंद हो गया।
पीछे का यातायात मंद हो गया।
अगल बगल हॉर्न का शोर मच गया।
लगा कि आपात का साईरन बज गया।
भोंपू बजाते लोग, अपनी लेन छोड़ने लगे।
बगल से निकलने के लिए, गाड़ी मोड़ने लगे।
अगल बगल से जो भी निकलता।
कोई बड़ा अपराध किया हो, ऐसे घूरता।
तभी मुस्कराते हुए दो किशोर आ गए।
अंकल, धक्का लगाना है? फरमा गए।धकेल कर गाड़ी एक ओर कर देते हैं।
वहीँ देख लेगा, मिस्त्री को बुला देते हैं।
सोच, मंजूर किया कि ट्रैफिक जाम न हो।
धक्का लगा के वे बोले, 'चार सौ रुपये दे दो'।
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