सोनाली के लिए शुभकामनाएं
एक तारा चला, आसमान से निकल
धरती पर चमका, सोनाली बन कर
कलम से रोशनाई बिखेरी हवा में
गुनगुनायी फिजां गीत लिखे सुघर
है प्यारी दुलारी पापा मम्मी की वो
है सुन्दर बड़ी, बड़े दिल की भी वो
पढ़ाई में रहती है वो अव्वल सदा
फूलों सी कोमल और मीठी भी वो
ऊँचा उड़ने की वो, सोचती है हरदम
कुछ बनने की खातिर, पायी जनम
मन बसाये हुए, वो परी जो लगन
सफलता चूमेगी, सदा उसके कदम
राहों में उसकी, नहीं आएं मुश्किलें
मुस्कराये सदा जैसे फूल हों खिले
चाहतें जिंदगी की उसकी जो भी हों
ईश्वर करे उसको निश्चित ही मिले
एस० डी० तिवारी
शुभकामनाएं सोनाली
एक नन्हीं सी कली, अम्बर से निकली।
बनकर सोनाली वह धरती पर खिली।
महका गयी इस चमन और फिजां को,
उसकी भीनी महक जो हवा में घुली।
बनकर सोनाली वह धरती पर खिली।
है प्यारी दुलारी, मम्मी पापा की वो।
बड़ी सुन्दर और बड़े दिल वाली भी वो।
छोड़ जाती है छाप, मिले जिसे एक बार,
फूलों सी कोमल, काठ सी हठी भी वो।
शबनम सी शीतल, कड़क ज्यूँ बिजली।
बनकर सोनाली वह धरती पर खिली।
ऊँचा उड़ने की वो, सोचती है हरदम।
कुछ बनने की खातिर, ली है जनम।
मन बसाये हुए, वो परी जो लगन,
चूमेगी कामयाबी, सदा उसके कदम।
पूरी होंगी जरूर, हर ख्वाइशें दिली।
बनकर सोनाली वह धरती पर खिली।
राहों में उसकी, ना आएं मुश्किलें।
मुस्कराये सदा जैसे गुल हों खिले।
जिंदगी की उसकी जो भी हों चाहतें,
ईश्वर करे, उसको जी भर के मिलें।
दिल छूकर गयी, मुझे जब मिली।
बनकर सोनाली वह धरती पर खिली।
एस० डी० तिवारी
एक तारा चला, आसमान से निकल
धरती पर चमका, सोनाली बन कर
कलम से रोशनाई बिखेरी हवा में
गुनगुनायी फिजां गीत लिखे सुघर
है प्यारी दुलारी पापा मम्मी की वो
है सुन्दर बड़ी, बड़े दिल की भी वो
पढ़ाई में रहती है वो अव्वल सदा
फूलों सी कोमल और मीठी भी वो
ऊँचा उड़ने की वो, सोचती है हरदम
कुछ बनने की खातिर, पायी जनम
मन बसाये हुए, वो परी जो लगन
सफलता चूमेगी, सदा उसके कदम
राहों में उसकी, नहीं आएं मुश्किलें
मुस्कराये सदा जैसे फूल हों खिले
चाहतें जिंदगी की उसकी जो भी हों
ईश्वर करे उसको निश्चित ही मिले
एस० डी० तिवारी
शुभकामनाएं सोनाली
एक नन्हीं सी कली, अम्बर से निकली।
बनकर सोनाली वह धरती पर खिली।
महका गयी इस चमन और फिजां को,
उसकी भीनी महक जो हवा में घुली।
बनकर सोनाली वह धरती पर खिली।
है प्यारी दुलारी, मम्मी पापा की वो।
बड़ी सुन्दर और बड़े दिल वाली भी वो।
छोड़ जाती है छाप, मिले जिसे एक बार,
फूलों सी कोमल, काठ सी हठी भी वो।
शबनम सी शीतल, कड़क ज्यूँ बिजली।
बनकर सोनाली वह धरती पर खिली।
ऊँचा उड़ने की वो, सोचती है हरदम।
कुछ बनने की खातिर, ली है जनम।
मन बसाये हुए, वो परी जो लगन,
चूमेगी कामयाबी, सदा उसके कदम।
पूरी होंगी जरूर, हर ख्वाइशें दिली।
बनकर सोनाली वह धरती पर खिली।
राहों में उसकी, ना आएं मुश्किलें।
मुस्कराये सदा जैसे गुल हों खिले।
जिंदगी की उसकी जो भी हों चाहतें,
ईश्वर करे, उसको जी भर के मिलें।
दिल छूकर गयी, मुझे जब मिली।
बनकर सोनाली वह धरती पर खिली।
एस० डी० तिवारी
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