Monday, 1 August 2016

Haiku Aug 16 / krishn shiv nasha



जुम्मन मियां
खिसकाते खटिया
पुरानी छान्ह

बाढ़ की मार
बहायी सरकार
पानी सा पैसा

ढूंढता चूहा
बरसात में घर
पानी में बिल

किया उत्पात
वस्त्र कुतर कर
चूहे की जात

यार जो रूठा
मधुशाला में ढूंढा
उसका पता

हो गयी लुप्त
मधुशाला में जा के
सुध व बुध

साथ हो जाते
मधुशाला में जा के
अली व खली

नशेड़ी खोया
धन और विवेक
बाद में रोया

भीतर  जाती
जब कभी मदिरा
स्वयं बाहर

पड़े थे भले
जाकर मधुशाला
हुए बर्बाद

हुए बर्बाद
गए मदिरालय
दूर विषाद

गमों का बोझ
जाकर मधुशाला
मिली निजाद

रास्ता पकड़ी
जाते थे मधुशाला
वही औलाद

दिखाई रास्ता
जाने का मधुशाला
किसी की याद

निकल गयी
जो कुछ थी अंदर
पीने के बाद


भक्तों ने बोला
जय हो बम भोला
रखना कृपा

लेकर आये
शिव भक्त चढ़ाये
गंगा से जल

बोल पावन
भोले बाबा की जय
गूंजा सावन

बढ़ा देता है
करना ज्यादा लोभ
मन का तम

जला देता है
करना ज्यादा क्रोध
स्वयं का तन

बेरोजगार
पढ़कर भी छात्र
चिंता की बात

नित दूषित
हो रहा पर्यावरण
चिंता की बात

राजनीति में
भाई-भतीजावाद
चिंता की बात

राजनीति का
गुंडागर्दी आधार
चिंता की बात

लूटा जा रहा
सार्वजनिक धन
चिंता की बात

स्वार्थ ही भारी
साधन सरकारी
 चिंता की बात

गिरता स्तर
जल का निरंतर
चिंता की बात

किया सत्कर्म
देता मन की शांति
मोक्ष की प्राप्ति

द्वार खड़ी थी
पिया निकस गये
मैं ना लड़ी थी

होने के साथ
मधुशाला रंगीन
शाम के स्याह

होते सरल
बड़े कठिन हल
बच्चों के प्रश्न

धूम मचाया
मधुशाला से आया
पीकर पिया

भर के गया
जुआघर से आया
खाली बटुआ

जेब थी खाली


मिल जाता है
सब कुछ माटी में
माटी से जन्म

इन्हीं से बना
पांच तत्वों में मिला
फिर से तन

मांगेगा वह
जिसके लिए भेजा
कर्मों का लेखा

जहाँ से आये
फिर वहीँ है जाना
भूल न जाना

पालती माटी
जीवन के पश्चात्
स्वयं खा जाती

विशुद्ध हवा
स्वस्थ रहने की
उत्तम दवा

रखे तो पाया
विशुद्ध जलवायु
निरोग काया

घटाती आयु
दूषित जलवायु
रखना शुद्ध

हवा सुगंध
चुरा लाई बाग से
मन प्रसन्न

जल के बिना
असंभव है जीना
समझो मोल

आदि मानव
बन पाया आदमी
पाया पावक

चूल्हे में लगा
बुझाती रोज पत्नी
पेट की आग

गर्भ में रखें
धरनी व घरनी
जलती अग्नि

आग रहती
जब तक जलती
बुझी तो राख


अग्नि सुपुर्द
************

द्वार खड़ी थी
सैयां निकस गये
मैं ना लड़ी थी

भीगी अँखियाँ
असुअन की बड़ी
लंबी झड़ी थी

रोके रुके ना
जाने ना कैसी उन्हें
जल्दी पड़ी थी

जुटे संबंधी
मित्रों की उन पर
ऑंखें गड़ी थी

कोरी करारी
खरीद कर लाई
चुन्नी पड़ी थी

चले हिंडोले
बुलाये नहीं बोले
नींद बड़ी थी

चार जने थे
कान्हे पर जिनके
शैय्या चढ़ी थी


मन उघार
तन ढकने हेतु
कई उपाय


**************


संभाल पाया
इंसान कहलाया
इंसानियत

सस्ता  ही जानो
देकर बचे प्राण
इंसानियत

खो मत देना
इंसान बन कर
इंसानियत

माटी का बुत
जिसके पास नहीं
इंसानियत

पैसे के मोल
बेच देता इंसान
इंसानियत

नहीं संजोते
सभी धन को रोते
इंसानियत

सब बेकार
नहीं जिसके पास
इंसानियत

पशु समान
ना होने पे इंसान
इंसानियत


**********



पालक साग
अच्छे स्वाद के साथ
रक्तवर्धक

आलू पराठा
गिलास भर माठा
नाश्ते का मजा

हो गयी मोटी
छोड़ घर की रोटी
खा जंक फ़ूड

विश्व में छाया
भारतीय व्यंजन
अभिनन्दन

पत्नी से प्यार
प्रातः ही उपहार
चाय का कप

लेता जो कोई
कर देती है नंगा
पत्नी से पंगा


***************


जग में धन्य
देवकी वासुदेव
कृष्ण को जन्म

भादों अष्टमी
घोर अँधेरी रात
कृष्णावतार

आठवां लाल
माँ देवकी का जन्मा


कृष्णावतार

हो गया दिव्य
कंस का कारागार
कृष्णावतार

टूटीं बेड़ियाँ
सो गए द्वारपाल
कृष्णावतार

पृथ्वी पे हुआ
बन कंस का काल
कृष्णावतार

हुआ तो हुआ
असुरों का संहार
कृष्णावतार

साधु रक्षार्थ
धर्म संस्थापनार्थ
कृष्णावतार


*************

कृष्ण को सर
ले गए वासुदेव
नन्द के घर

बजी बधाई
आया नन्हा कन्हाई
नन्द के घर

गायीं सोहर
नन्दगांव की स्त्रियां
नन्द के घर

गोद में कृष्ण
लिए यशोदा मग्न
नन्द के घर

धन्य पडोसी
पा के कृष्ण दर्शन
नन्द के घर

हो गए धन्य
पड़े कृष्ण चरण
नन्द के घर

नन्द प्रसन्न
आनंद ही आनंद
नन्द के घर

******************

खाली मटकी
'कान्हा, कान्हा' का शोर
माखनचोर

गयीं गोपियाँ
यशोदा तेरा लाल
माखनचोर

मैं ना मइया
बोल उठे कन्हैया
माखनचोर

नन्हां बालक
हो कैसे चुराकर
माखनचोर

मुंह पे लगा
जानीं देख यशोदा
माखनचोर

चोरी भी किया
तो आनंद ही दिया
माखनचोर

चुरा के चित
हो गया चितचोर
माखनचोर

- एस० डी० तिवारी
************

कृष्ण की बंशी

कानों को तृप्त
करे मन प्रदीप्त
कृष्ण की बंशी

मधुर धुन
झुमा गोकुल सुन
कृष्ण की बंशी

सखा सखियाँ
मुग्ध सुन गईयां
कृष्ण की बंशी

बजती जब
वन में मधुवन
कृष्ण की बंशी

बहे पवन
मन भर उमंग
कृष्ण की बंशी

यमुना तीरे
ठहर जाती साँझ
कृष्ण की बंशी

हो जाता मन
सुन कर पावन
कृष्ण  की बंशी


गोपियों संग
कान्हा की रास रची
मुरली बजी

सुन के वेणु
घेर लेती थीं धेनु
कृष्ण गोपाल

****************

फोड़ी गगरी
किसने गोपियों की
नन्द नगरी

खाया माखन
रे यशोदा मईया
तेरा कन्हैया


विष को पिला
पूतना ने ली बुला
स्वयं का काल




लडके अब
नचनिहा हो गए
खेल में फेल

देश की आन
लड़कियां बचाईं
पदक लायीं

करता गर्व
बेटियों पे अपनी
भारतवर्ष

रियो से लौटे
लडके खाली हाथ
शर्म की बात

घूमे विदेश
ओलिंपिक के नाम
युवा निष्काम

चमके तारे
ओलिंपिक नभ पे
सिंधु व साक्षी



दो घर बार
थाम के पतवार
खेती है बेटी

होतीं बेटियां
बलात की शिकार
हमें धिक्कार  



गालों की राह
टपक रहे मोती
बच्चे को डांट

पूछ लेते हैं
कम हो जाता दर्द
अपने लोग

पता चलता
कष्ट में होने पर
अपना कौन

भोज समाप्त
प्रारम्भ हुआ अब
कौवों का मेला

तास के पत्ते
ले खलिहर बैठे
नीम की छाँव


मालिक खाया
गिन रहा है कुत्ता
कितनी रोटी

जाड़ा के आते
कमर कस लेती
धुनकी रानी  



सक्ते में होता
बिल्ली जब देखता
चूहे के प्राण

कौन है पापी
समझ नहीं पाती
जीभ या पेट

जीवों की जान
ले लेता है इंसान
लेने को स्वाद


मिल जाता है
चूहे से छुटकारा
पाल के बिल्ली

बिल्ली लुभाई
छोड़ दूध मलाई
खाने को चूहा



कितना प्यारा
समझ नहीं पाऊँ
छोडूं कि खाऊँ

दूध मलाई
बिल्ली छोड़ के धाई
चूहे के पीछे

तूझे खाकर
चली जाउंगी हज
सौ हो जायेंगे

हम सबकी
तू तो है बिल्ली मौसी
जान लेगी क्या

जाकर मिल
कूद रहा जो चूहा
मेरे पेट में

घात में बैठी
बिल्ली हुई निराश
चूहा चालाक

चतुर चूहा
पड़ते बुद्धि फेल
बिल्ली का पंजा




कहलायेगा
पप्पू अब पवन
नामकरण

अल्ला बचाये
दे देतीं हसीनाएँ
दिल का दर्द

चल बसता
एक और दिवस
होते ही शाम

जैसे ही देखा
हुआ प्यार में कैद
तेरे जलवे

अपनी  कहूँ
मेरे लिए बहुत
सत्रह वर्ण

भय से मुक्त
गगन में उन्मुक्त
उड़ती काश !

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