Saturday, 27 August 2016

Tum yahin kahin ho



कहते हैं ये पक्षी, तुम यहीं कहीं हो।
लगता है सच्ची, तुम यहीं कहीं हो।
नदी जब मचलती, आगे को चलती;
गीत गा के ये कहती, तुम यहीं कही हो।
समझ हम ये जाते, हैं सागर किनारे,
जब लहरें गरजतीं,  तुम यहीं कहीं हो।
पवन की सरसराहट, कानों में आती,
आहट लग जाती, तुम यहीं कहीं हो।
पेड़ों पर बजाकर, हाथों से ताली,
पत्तियां जतातीं, तुम यहीं कहीं हो।
कहता मन तत्पल, झरने की कलकल,
संगीत सुनाती, तुम यहीं कहीं हो।
सारंगी बजा के, रातों को जगा के,
झिंगुरन बताती, तुम यहीं कहीं हो।  

Tuesday, 16 August 2016

Pyar // ghazal


खुदा ने दिया है हमारे लिए, तुम क्यों ले रहे ?
जी रहे हम, जिंदगी अपनी, तुम क्यों ले रहे ?
क्या जानोगे? बेले हैं हम भी, पापड़ कितने,
मुश्किल से मिला, चैन हमारा, तुम क्यों ले रहे ?
भागम भाग की इस जिंदगी में, मिलती कहाँ है,
रातों की मीठी नींद हमारी, तुम क्यों ले रहे?
हमें तो हमेशा रहा, तुम्हारे ईमान का वास्ता,
दिये बिन दिल अपना, हमारा तुम क्यों ले रहे?
कहाँ मिलती है आजादी, किसी से मिलने की
हमारे आने जाने का हिसाब, तुम क्यों ले रहे ?
दबे, पिसे तो पड़े हुए थे, हम कबसे यूँ ही,    
अरे, सख्त होने का सोहरत, तुम क्यों ले रहे ?
मन की बात को, खोलने का जहमत लिए न हम
जज्बात छुपाने का तोहमत, तुम क्यों ले रहे ?

- एस० डी० तिवारी

***************


अँधेरा जब भी गहराता है।
प्यार और गहरा हो जाता है।
प्यार ही प्यार दिखता है बस,
बाकी तो काले में छुप जाता है ।
चाँद से प्यार जताने के लिए
एक एक तारा झिलमिलाता है।
परवाना भी करता इंतजार,
रात में लौ देख पर मडराता है।
अँधेरे में चूसने को ज्यादा रस
भौंरा दल में बंद हो जाता है।
देख के बादल हुई भू अँधेरी,
प्यार में आंसू बहा जाता है।
क्या जाने वो प्यार की गहराई,


रात होते ही, जो सो जाता है।

चाँद की अहमियत तभी होती
जब अँधेरे में चमक जाता है।




जानम का गोरा मुखड़ा हो,
बेशक ना चाँद का टुकड़ा हो।
चेहरा चिकना चुपड़ा हो।
जानम का गोरा ...
पूरब की हो, पश्चिम की हो,
पटियाला चाहे, पंजिम की हो।
मुस्कराता हुआ थोपड़ा हो।
जानम का गोरा ...
सनम का संग मिल जायेगा,
अपन का दिल खिल जायेगा,
संग में कोई ना दुखड़ा हो।
जानम का गोरा ...
रखते वो थोड़ी नरमी हों,
ना रखे मगर  बेशर्मी हों,
तनिक नहीं मन उखड़ा हो।
जानम का गोरा ...
बेशक वो मतवाली हो,
तनिक नहीं पर काली हो,
न पाउडर  क्रीम का पचड़ा हो।
जानम का गोरा ...


एक गजल
वक्त चला चलता रहा, हम दोनों जमे रहे।
सूरज रोज ढलता रहा, हम दोनों जमे रहे।
साथ रहने के लिए, मेहनत भी कम न किये,
पसीना निकलता रहा, हम दोनों जमे रहे।
दरार डालने की, हवाओं की कोशिश का,
सिलसिला चलता रहा, हम दोनों जमे रहे।
देख कर हम दोनों की, बेइंतहां मुहब्बत,
आसमान जलता रहा, हम दोनों जमे रहे।
आते जाते रहे, पतझड़, ताप और बसंत,
प्यार अपना पलता रहा, हम दोनों जमे रहे।
दरख्त बड़े हुए, बदल गयी दुनिया कितनी,
परिवार भी बढ़ता रहा, हम दोनों जमे रहे।
किसी अनजान धागे ने, रखा बांधे कसकर,
गांठ में बल डलता रहा, हम दोनों जमे रहे।



प्यार में लड़ो ना, ये अखाडा नहीं।
प्यार बसावट है, कोई उजाड़ा नहीं।
मिलता है प्यार, देकर ही प्यार,
देना होता है, इसका भाड़ा नहीं।
रट भर लेने से, छा जाये दिल पर,
प्यार होता है, कोई पहाड़ा नहीं।
होता ना प्यार, इतना भी आसान,
तोड़ कर खा जाओ, छुहाड़ा नहीं।
पाने को प्यार, देना होता है दिल,
पका कर के पी जाओ, काढ़ा नहीं।
प्यार ही रखता, बांध के प्यार को, 
कैद में रखे प्यार, कोई बाड़ा नहीं।
हलके रखे, तो क्या निखरेगा प्यार,
प्यार का वो रंग कैसा, गाढ़ा नहीं।

- एस० डी० तिवारी

कुछ भी करना मगर यर ना करना
होठों पर तुम आधार ना धरना

Monday, 15 August 2016

Google sayeen


छुपी कहाँ है, जानू ना मैं जान मेरी
ढूंढ के लाओ, हे गूगल साईं।

गोरा सा मुखड़ा है वो
चाँद का टुकड़ा है वो
काले लम्बे बाल वाली
हिरनी जैसी चाल वाली।
गाल हैं लाल, उसके जैसे होय चेरी
ढूंढ के लाओ, हे गूगल साईं।

होंठ उसके रस की बेरी
ऑंखें है झील सी गहरी
शोख सी अदाएं उसकी
कमर है कमल की ककड़ी।
दिल में रखती, है वह प्यार की ढेरी
ढूंढ के लाओ, हे गूगल साईं।

ऊँचे कद काठी की है
बनी वो पक्के माटी की है
दे दिया है हुलिया सारा
जिसे ढूंढता दिल बेचारा।
और किये बिन, अब तनिक भी देरी
ढूंढ के लाओ, हे गूगल साईं।

वतन के वास्ते जीना वतन के वास्ते मरना
वतन के वास्ते मरने से क्यों कर है डरना
जन्म लिया है माँ सी जिस पावन धरती पर
जज्बा है मन में, उसके लिए कुछ कर गुजरना

Saturday, 13 August 2016

Pakistan ko sandesh


रेडियो मिर्ची की आर जे सायेमा ने अपने पेज पर एक विडियो पोस्ट किया था जिसमे उन्होंने पाकिस्तान से आई निम्न कविता का पाठ किया था और उसका जवाब माँगा था -
 पाकिस्तान से निम्न कविता आई थी और कवि ने इसका जबाब माँगा था
अपने आगन में यह नफरत की जलती आग बुझा देना
हम प्यार की शमा लाये हैं, तुम भी एक दीप जला देना.
जो खेत जला वो अपना था, जो खून बहा वो भी अपना
जो कुछ भी हुआ अच्छा ना हुआ, अब वक़्त है उसको भुला देना
हम हाथ हवा के भेजेंगे खुशबू लाहौर की मिटटी की.
तुम भी रावी की लहरों पर दिल्ली के फूल बहा देना
अपने घर की दीवारों को ऊँचा करना सबका हक़ है.
लेकिन जो दीवारें दिल में हैं, वो सारी आज गिरा देना
वो प्यार भला कब रुकता है, दीवारों से तलवारों से
हम दूर से हाथ हिला देंगे, तुम दूर से ही मुस्का देना
खुश हाल रहो, दिलशाद रहो, तुम फूलो फलो आबाद रहो
हम तुम को दुआएं देते हैं, तुम भी हमको यह दुआ देना
यह प्यार खुदा भगवान् भी है, यह प्यार हे मंदिर मस्जिद
जो सबक सिखाये नफरत का वो मंदिर मस्जिद ढा देना

उसके उत्तर में मेरे ये कुछ शब्द -

हमने तो कभी नफ़रत की आग जलाई नहीं।
जलाये कबसे प्यार की शमा, बुझाई ही नहीं।।
जो खेत जलाई, माचिस सीमा पार से आई।
गोलियां जो खून बहाईं, उधर से ही चलायी।।
हर बात को घुमा कर लाते कश्मीर के रस्ते।
अपने ही किये वादों से, हो बार बार पलटते।।
लेकर खड़े होते हैं जब हम फूलों के गुलदस्ते।
कहते हो हम यह कर रहे, परमाणु के डर से।।
परमाणु हम भी रखे पर दिल में प्यार भरा है।
जानते हो, निहत्थे गाँधी से सारा विश्व डरा है।।
प्यार दूर रखे; हमारे दिल में न दीवार है कोई।
मुहब्बत को काट डाले, न ही तलवार है कोई।।
दूर से क्या हिलाना, हम हाथ मिलाने को बैठे।
पड़ोसियों को मुस्काता देख, मुस्कराने को बैठे।।
कोई करता है तो करे, खुदा को खुश खून से।
हमारे यहाँ अल्ला व ईश खुश होते हैं फूल से।।
हम नहीं बनाते नफ़रत वाले मंदिर, मस्जिद।
शांति, अहिंसा धर्म हमारा, सोचते सबका हित।।
हमारी भी दुआ है, आबाद रहो, खुशहाल रहो।
अमन,चैन रहे दामन में, प्रेम से हर हाल रहो।।
हमारी संस्कृति की धरोहर प्यार, दया व संयम।
तुम ये न समझ लेना कहीं से कमजोर हैं हम। ।
वतन के वास्ते एक एक जवान मर सकता है।
जरुरत पर फिर से, पैंसठ-इकहत्तर कर सकता है।।
पडोसी मुल्क और भी हैं, किसी से न कोई तकरार।
करेगा गर इस्लामाबाद, दिल्ली जरूर करेगी प्यार।।

- एस० डी० तिवारी


आतंकवादी पाक सुन

करता रहता झूठे वादे, रखता है नापाक इरादे।
देख रहे हम वर्षों से पाक, तुझको आतंक फैलाते।

कहता है कुछ और जहाँ से, करता मगर कुछ और
तेरी झूठी बातों का, होता कोई ओर ना छोर।
समझ चुके हैं अब हम तेरी, सारे ही कुटिल इरादे।
देख रहे हम वर्षों से पाक, तुझको आतंक फैलाते।

तुझको तो हम रहे समझते,, सदैव छोटा भाई।
प्यार, प्रगति हमारी पर, तुझे तनिक रास न आई।
दोस्ती का भेजे पैगाम हमारे तुझको नहीं हैं भाते।
देख रहे हम वर्षों से पाक, तुझको आतंक फैलाते।

आजादी पाई थी हमने, खून बहाकर मुश्किल से।
तेरे कारण चल न सके पर, दो कदम हिलमिल के।
शैतानी हरकतों को ही हरदम तूने रखा सजा के।
देख रहे हम वर्षों से पाक, तुझको आतंक फैलाते।

आती नहीं समझ तुझे है, प्रेम शांति की बोली।
छुप छुप कर उधर से हमेशा चलाता रहता गोली।
धैर्य हमारा देख ना समझना, हम हैं सीधे सादे।
देख रहे हम वर्षों से पाक, तुझको आतंक फैलाते।

ऐटम बम बनाकर तू, समझ रहा है बलशाली।
तेरी गीदड़ भभकी में अब ना, दुनिया आने वाली।
मिसाइल रखने का घमंड, तू तो मन से ही हटा दे।
देख रहे हम वर्षों से पाक, तुझको आतंक फैलाते।

जल्लाद पालना शौक है तेरा, खून बहाना पेशा।
दुनिया समझ चुकी है सब कुछ, नहीं चलेगा हमेशा।
आतंकवाद फ़ैलाने को अब तू और नहीं हवा दे।
देख रहे हम वर्षों से पाक, तुझको आतंक फैलाते।

कितनों की गोद की सूनी, कितनों को किया अनाथ।
कितनों को बेवा कर डाला, बनकर तू जल्लाद।
और नहीं चल पायेगा ये  जल्लादों को समझा दे।
देख रहे हम वर्षों से पाक, तुझको आतंक फैलाते।

तेरी ही इन करतूतों को देख, हमने भी अब ठाना है।
हमारा खोया हुआ वो टुकड़ा वापस फिर से पाना है।
कश्मीर को अलग करने की तो, सपने को भुला दे।
देख रहे हम वर्षों से पाक, तुझको आतंक फैलाते।

तेरी प्यारी गौरी को हमारा, नाग ही डंस जायेगा।
गजनवी, हत्फ नभ में ही त्रिशूल में फंस जायेगा।
पृथ्वी, ब्रह्मोस ऐसे हैं सुन जहन्नुम तुझे दिखा दे।
देख रहे हम वर्षों से पाक, तुझको आतंक फैलाते।

अग्नि की आग बुझाने को, मांगेगा रावी का पानी।
सीधे रस्ते आ जा दुष्ट अब, छोड़ हरकत बचकानी।
हम रखते हैं दम ख़म इतना, तिरंगा वहां फहरा दें।
देख रहे हम वर्षों से पाक, तुझको आतंक फैलाते।

एस० डी० तिवारी

इंसानियत का पाठ तूने, पढ़ा नहीं है पूरा।
चोरों जैसा घात लगाकर, पीठ में भौंके छूरा।
तेरी करतूतों की तुझको अल्ला भी सजा दे  ममम










कहता कुछ और जहाँ से, करता है कुछ और
तेरी झूठी बातों का होता, कोई ओर न छोर।
समझ चुके हैं हम तेरी, सभी कुटिल इरादे।
देख रहे वर्षों से पाक, आतंक तुझे फैलाते।

हम रहे समझते सदा, तुझको अपना भाई।
प्यार, प्रगति हमारी तुझको, जरा रास न आई।
दोस्ती का पैगाम भेजते, तुझे नहीं हैं भाते।

आजादी पाई हमने, खून देकर मुश्किल से।
तेरे कारण चल न सके, दो कदम हिलमिल के।
शैतानी हरकतें ही बस, तुझको सदा मजा दे।

ऐटम बम बनाकर तू, समझ रहा बलशाली।
तेरी गीदड़ भभकी में ना, दुनिया आने वाली।
मिसाइल रखने का घमंड, मन से तू हटा दे।

जल्लाद पालना शौक तेरा, खून बहाना पेशा
दुनिया सब समझ चुकी, नहीं चलेगा हमेशा।
आतंकवाद फ़ैलाने को, अब और नहीं हवा दे।

कितनों की गोद सूनी, कितने हुए अनाथ।
कितनों को बेवा किया, बनकर तू जल्लाद।
और नहीं चल पायेगा, जल्लादों को समझा दे।

तेरी इन करतूतों को देख, हमने भी ठाना है।
हमारा वो खोया टुकड़ा वापस फिर से पाना है।
और टुकड़े करने की तो, सपने को भुला दे।

तेरी गौरी को तो हमारा, नाग ही डंस जायेगा।
गजनवी, हत्फ नभ में ही त्रिशूल में फंस जायेगा।
पृथ्वी तो ऐसी है सुन, जहन्नुम तुझे दिखा दे।

अग्नि की आग बुझाने, मांगेगा रावी का पानी।
सीधे रस्ते आ जा अब, छोड़ हरकत बचकानी।
हम हैं दम रखते इतना, तिरंगा वहां फहरा दे।
देख रहे वर्षों से पाक, आतंक तुझे फैलाते।

एस० डी० तिवारी


चोरों जैसा घात लगाकर, भोंकता पीठ में छूरा।
इंसानियत का पाठ तुझे अब पढ़ाना होगा पूरा।
तेरी करतूतों की सजा, देंगें तुझे माकूल पाक हम,
ऑंखें निकाल रख देंगे तेरी, तनिक भी तूने घूरा।

एस० डी० तिवारी


रखता तू नापाक इरादे, करता रहता झूठे वादे।
देख रहे वर्षों से पाक तुझको हम आतंक फैलाते।
सिखलायेंगे तुझको अब, सबक तेरी ही जुबान
धैर्य देख कर समझ न लेना, हमको सीधे सादे।


आती नहीं समझ तुझको, प्रेम, शांति की बोली।
छुप छुप कर उधर से पाक, चलाता रहता गोली।
थूर कर रख देंगे मुंह को तेरे, जान ले भली से तू;
खेलेगा पाकिस्तान अब भी, खेल सांप, सँपोली।


Thursday, 11 August 2016

Ghongha basant


कभी भीतर बैठ, कभी खोल पर सवार
चले घोंघा बसंत
हैं पहने कवच ताकि बनें ना शिकार
चले घोंघा बसंत
घंटे में खिसक करते पूरे कदम चार
चले घोंघा बसंत
धीरज चैतन्य धरे कभी मानें न हार
चले घोंघा बसंत
हौले हौले, बरसात में गाते मल्हार
चले घोंघा बसंत
अपमान का फिकर कूड़े में डार
चले  घोंघा बसंत
जाने ना भाव क्या, सजाने बाजार
चले घोंघा बसंत
रजवाड़े के पिछवाड़े होने शुमार
चले घोंघा बसंत





कभी भीतर बैठ, कभी खोल पर सवार,
चले घोंघा बसंत।
हैं पहने कवच ताकि बनें ना शिकार,
चले घोंघा बसंत।

पांव को जमाते, मतवाली लिए चाल, 
घंटे में खिसक, करते पूरे कदम चार;
चले घोंघा बसंत।

धीर, चैतन्य धरे, मानें न कभी हार,
हौले हौले, बरसात में, गाते मल्हार;
चले घोंघा बसंत।

खाया पिया जो कुछ उन सबको डकार,
अपमान की फिकर सब कूड़े में डार;
चले  घोंघा बसंत।

जाने ना भाव क्या, सजाने बाजार,
रजवाड़े के पिछवाड़े होने शुमार;
चले घोंघा बसंत।

Wednesday, 10 August 2016

Shubhkamana Sonali

सोनाली के लिए शुभकामनाएं

एक तारा चला, आसमान से निकल
धरती पर चमका, सोनाली बन कर
कलम से रोशनाई बिखेरी हवा में
गुनगुनायी फिजां गीत लिखे सुघर

है प्यारी दुलारी पापा मम्मी की वो
है सुन्दर बड़ी, बड़े दिल की भी वो
पढ़ाई में रहती है वो अव्वल सदा
फूलों सी कोमल और मीठी भी वो

ऊँचा उड़ने की वो, सोचती है हरदम
कुछ बनने की खातिर, पायी जनम
मन बसाये हुए, वो परी जो लगन
सफलता चूमेगी, सदा उसके कदम

राहों में उसकी, नहीं आएं मुश्किलें
मुस्कराये सदा जैसे फूल हों खिले
चाहतें जिंदगी की उसकी जो भी हों
ईश्वर करे उसको निश्चित ही मिले

एस० डी० तिवारी



शुभकामनाएं सोनाली

एक नन्हीं सी कली, अम्बर से निकली। 
बनकर सोनाली वह धरती पर खिली। 
महका गयी इस चमन और  फिजां को,   
उसकी भीनी महक जो हवा में घुली। 
बनकर सोनाली वह धरती पर खिली। 

है प्यारी दुलारी, मम्मी पापा की वो। 
बड़ी सुन्दर और बड़े दिल वाली भी वो। 
छोड़ जाती है छाप, मिले जिसे एक बार, 
फूलों सी कोमल, काठ सी हठी भी वो। 
शबनम सी शीतल, कड़क ज्यूँ बिजली। 
बनकर सोनाली वह धरती पर खिली। 


ऊँचा उड़ने की वो, सोचती है हरदम। 
कुछ बनने की खातिर, ली है जनम। 
मन बसाये हुए, वो परी जो लगन, 
चूमेगी कामयाबी, सदा उसके कदम।  
पूरी होंगी जरूर, हर ख्वाइशें दिली।
बनकर सोनाली वह धरती पर खिली। 

राहों में उसकी, ना आएं मुश्किलें। 
मुस्कराये सदा जैसे गुल हों खिले। 
जिंदगी की उसकी जो भी हों चाहतें, 
ईश्वर करे, उसको जी भर के मिलें।  
दिल छूकर गयी, मुझे जब मिली।  
बनकर सोनाली वह धरती पर खिली। 

एस० डी० तिवारी

Monday, 1 August 2016

Haiku Aug 16 / krishn shiv nasha



जुम्मन मियां
खिसकाते खटिया
पुरानी छान्ह

बाढ़ की मार
बहायी सरकार
पानी सा पैसा

ढूंढता चूहा
बरसात में घर
पानी में बिल

किया उत्पात
वस्त्र कुतर कर
चूहे की जात

यार जो रूठा
मधुशाला में ढूंढा
उसका पता

हो गयी लुप्त
मधुशाला में जा के
सुध व बुध

साथ हो जाते
मधुशाला में जा के
अली व खली

नशेड़ी खोया
धन और विवेक
बाद में रोया

भीतर  जाती
जब कभी मदिरा
स्वयं बाहर

पड़े थे भले
जाकर मधुशाला
हुए बर्बाद

हुए बर्बाद
गए मदिरालय
दूर विषाद

गमों का बोझ
जाकर मधुशाला
मिली निजाद

रास्ता पकड़ी
जाते थे मधुशाला
वही औलाद

दिखाई रास्ता
जाने का मधुशाला
किसी की याद

निकल गयी
जो कुछ थी अंदर
पीने के बाद


भक्तों ने बोला
जय हो बम भोला
रखना कृपा

लेकर आये
शिव भक्त चढ़ाये
गंगा से जल

बोल पावन
भोले बाबा की जय
गूंजा सावन

बढ़ा देता है
करना ज्यादा लोभ
मन का तम

जला देता है
करना ज्यादा क्रोध
स्वयं का तन

बेरोजगार
पढ़कर भी छात्र
चिंता की बात

नित दूषित
हो रहा पर्यावरण
चिंता की बात

राजनीति में
भाई-भतीजावाद
चिंता की बात

राजनीति का
गुंडागर्दी आधार
चिंता की बात

लूटा जा रहा
सार्वजनिक धन
चिंता की बात

स्वार्थ ही भारी
साधन सरकारी
 चिंता की बात

गिरता स्तर
जल का निरंतर
चिंता की बात

किया सत्कर्म
देता मन की शांति
मोक्ष की प्राप्ति

द्वार खड़ी थी
पिया निकस गये
मैं ना लड़ी थी

होने के साथ
मधुशाला रंगीन
शाम के स्याह

होते सरल
बड़े कठिन हल
बच्चों के प्रश्न

धूम मचाया
मधुशाला से आया
पीकर पिया

भर के गया
जुआघर से आया
खाली बटुआ

जेब थी खाली


मिल जाता है
सब कुछ माटी में
माटी से जन्म

इन्हीं से बना
पांच तत्वों में मिला
फिर से तन

मांगेगा वह
जिसके लिए भेजा
कर्मों का लेखा

जहाँ से आये
फिर वहीँ है जाना
भूल न जाना

पालती माटी
जीवन के पश्चात्
स्वयं खा जाती

विशुद्ध हवा
स्वस्थ रहने की
उत्तम दवा

रखे तो पाया
विशुद्ध जलवायु
निरोग काया

घटाती आयु
दूषित जलवायु
रखना शुद्ध

हवा सुगंध
चुरा लाई बाग से
मन प्रसन्न

जल के बिना
असंभव है जीना
समझो मोल

आदि मानव
बन पाया आदमी
पाया पावक

चूल्हे में लगा
बुझाती रोज पत्नी
पेट की आग

गर्भ में रखें
धरनी व घरनी
जलती अग्नि

आग रहती
जब तक जलती
बुझी तो राख


अग्नि सुपुर्द
************

द्वार खड़ी थी
सैयां निकस गये
मैं ना लड़ी थी

भीगी अँखियाँ
असुअन की बड़ी
लंबी झड़ी थी

रोके रुके ना
जाने ना कैसी उन्हें
जल्दी पड़ी थी

जुटे संबंधी
मित्रों की उन पर
ऑंखें गड़ी थी

कोरी करारी
खरीद कर लाई
चुन्नी पड़ी थी

चले हिंडोले
बुलाये नहीं बोले
नींद बड़ी थी

चार जने थे
कान्हे पर जिनके
शैय्या चढ़ी थी


मन उघार
तन ढकने हेतु
कई उपाय


**************


संभाल पाया
इंसान कहलाया
इंसानियत

सस्ता  ही जानो
देकर बचे प्राण
इंसानियत

खो मत देना
इंसान बन कर
इंसानियत

माटी का बुत
जिसके पास नहीं
इंसानियत

पैसे के मोल
बेच देता इंसान
इंसानियत

नहीं संजोते
सभी धन को रोते
इंसानियत

सब बेकार
नहीं जिसके पास
इंसानियत

पशु समान
ना होने पे इंसान
इंसानियत


**********



पालक साग
अच्छे स्वाद के साथ
रक्तवर्धक

आलू पराठा
गिलास भर माठा
नाश्ते का मजा

हो गयी मोटी
छोड़ घर की रोटी
खा जंक फ़ूड

विश्व में छाया
भारतीय व्यंजन
अभिनन्दन

पत्नी से प्यार
प्रातः ही उपहार
चाय का कप

लेता जो कोई
कर देती है नंगा
पत्नी से पंगा


***************


जग में धन्य
देवकी वासुदेव
कृष्ण को जन्म

भादों अष्टमी
घोर अँधेरी रात
कृष्णावतार

आठवां लाल
माँ देवकी का जन्मा


कृष्णावतार

हो गया दिव्य
कंस का कारागार
कृष्णावतार

टूटीं बेड़ियाँ
सो गए द्वारपाल
कृष्णावतार

पृथ्वी पे हुआ
बन कंस का काल
कृष्णावतार

हुआ तो हुआ
असुरों का संहार
कृष्णावतार

साधु रक्षार्थ
धर्म संस्थापनार्थ
कृष्णावतार


*************

कृष्ण को सर
ले गए वासुदेव
नन्द के घर

बजी बधाई
आया नन्हा कन्हाई
नन्द के घर

गायीं सोहर
नन्दगांव की स्त्रियां
नन्द के घर

गोद में कृष्ण
लिए यशोदा मग्न
नन्द के घर

धन्य पडोसी
पा के कृष्ण दर्शन
नन्द के घर

हो गए धन्य
पड़े कृष्ण चरण
नन्द के घर

नन्द प्रसन्न
आनंद ही आनंद
नन्द के घर

******************

खाली मटकी
'कान्हा, कान्हा' का शोर
माखनचोर

गयीं गोपियाँ
यशोदा तेरा लाल
माखनचोर

मैं ना मइया
बोल उठे कन्हैया
माखनचोर

नन्हां बालक
हो कैसे चुराकर
माखनचोर

मुंह पे लगा
जानीं देख यशोदा
माखनचोर

चोरी भी किया
तो आनंद ही दिया
माखनचोर

चुरा के चित
हो गया चितचोर
माखनचोर

- एस० डी० तिवारी
************

कृष्ण की बंशी

कानों को तृप्त
करे मन प्रदीप्त
कृष्ण की बंशी

मधुर धुन
झुमा गोकुल सुन
कृष्ण की बंशी

सखा सखियाँ
मुग्ध सुन गईयां
कृष्ण की बंशी

बजती जब
वन में मधुवन
कृष्ण की बंशी

बहे पवन
मन भर उमंग
कृष्ण की बंशी

यमुना तीरे
ठहर जाती साँझ
कृष्ण की बंशी

हो जाता मन
सुन कर पावन
कृष्ण  की बंशी


गोपियों संग
कान्हा की रास रची
मुरली बजी

सुन के वेणु
घेर लेती थीं धेनु
कृष्ण गोपाल

****************

फोड़ी गगरी
किसने गोपियों की
नन्द नगरी

खाया माखन
रे यशोदा मईया
तेरा कन्हैया


विष को पिला
पूतना ने ली बुला
स्वयं का काल




लडके अब
नचनिहा हो गए
खेल में फेल

देश की आन
लड़कियां बचाईं
पदक लायीं

करता गर्व
बेटियों पे अपनी
भारतवर्ष

रियो से लौटे
लडके खाली हाथ
शर्म की बात

घूमे विदेश
ओलिंपिक के नाम
युवा निष्काम

चमके तारे
ओलिंपिक नभ पे
सिंधु व साक्षी



दो घर बार
थाम के पतवार
खेती है बेटी

होतीं बेटियां
बलात की शिकार
हमें धिक्कार  



गालों की राह
टपक रहे मोती
बच्चे को डांट

पूछ लेते हैं
कम हो जाता दर्द
अपने लोग

पता चलता
कष्ट में होने पर
अपना कौन

भोज समाप्त
प्रारम्भ हुआ अब
कौवों का मेला

तास के पत्ते
ले खलिहर बैठे
नीम की छाँव


मालिक खाया
गिन रहा है कुत्ता
कितनी रोटी

जाड़ा के आते
कमर कस लेती
धुनकी रानी  



सक्ते में होता
बिल्ली जब देखता
चूहे के प्राण

कौन है पापी
समझ नहीं पाती
जीभ या पेट

जीवों की जान
ले लेता है इंसान
लेने को स्वाद


मिल जाता है
चूहे से छुटकारा
पाल के बिल्ली

बिल्ली लुभाई
छोड़ दूध मलाई
खाने को चूहा



कितना प्यारा
समझ नहीं पाऊँ
छोडूं कि खाऊँ

दूध मलाई
बिल्ली छोड़ के धाई
चूहे के पीछे

तूझे खाकर
चली जाउंगी हज
सौ हो जायेंगे

हम सबकी
तू तो है बिल्ली मौसी
जान लेगी क्या

जाकर मिल
कूद रहा जो चूहा
मेरे पेट में

घात में बैठी
बिल्ली हुई निराश
चूहा चालाक

चतुर चूहा
पड़ते बुद्धि फेल
बिल्ली का पंजा




कहलायेगा
पप्पू अब पवन
नामकरण

अल्ला बचाये
दे देतीं हसीनाएँ
दिल का दर्द

चल बसता
एक और दिवस
होते ही शाम

जैसे ही देखा
हुआ प्यार में कैद
तेरे जलवे

अपनी  कहूँ
मेरे लिए बहुत
सत्रह वर्ण

भय से मुक्त
गगन में उन्मुक्त
उड़ती काश !

Haiku Aug 16 / krishn



जुम्मन मियां
खिसकाते खटिया
पुरानी छान्ह

बाढ़ की मार
बहायी सरकार
पानी सा पैसा

ढूंढता चूहा
बरसात में घर
पानी में बिल

किया उत्पात
वस्त्र कुतर कर
चूहे की जात

यार जो रूठा
मधुशाला में ढूंढा
उसका पता

हो गयी लुप्त
मधुशाला में जा के
सुध व बुध

साथ हो जाते
मधुशाला में जा के
अली व खली

नशेड़ी खोया
धन और विवेक
बाद में रोया

भीतर  जाती
जब कभी मदिरा
स्वयं बाहर

पड़े थे भले
जाकर मधुशाला
हुए बर्बाद

हुए बर्बाद
गए मदिरालय
दूर विषाद

गमों का बोझ
जाकर मधुशाला
मिली निजाद

रास्ता पकड़ी
जाते थे मधुशाला
वही औलाद

दिखाई रास्ता
जाने का मधुशाला
किसी की याद

निकल गयी
जो कुछ थी अंदर
पीने के बाद


भक्तों ने बोला
जय हो बम भोला
रखना कृपा

लेकर आये
शिव भक्त चढ़ाये
गंगा से जल

बोल पावन
भोले बाबा की जय
गूंजा सावन

बढ़ा देता है
करना ज्यादा लोभ
मन का तम

जला देता है
करना ज्यादा क्रोध
स्वयं का तन

बेरोजगार
पढ़कर भी छात्र
चिंता की बात

नित दूषित
हो रहा पर्यावरण
चिंता की बात

राजनीति में
भाई-भतीजावाद
चिंता की बात

राजनीति का
गुंडागर्दी आधार
चिंता की बात

लूटा जा रहा
सार्वजनिक धन
चिंता की बात

स्वार्थ ही भारी
साधन सरकारी
 चिंता की बात

गिरता स्तर
जल का निरंतर
चिंता की बात

किया सत्कर्म
देता मन की शांति
मोक्ष की प्राप्ति

द्वार खड़ी थी
पिया निकस गये
मैं ना लड़ी थी

होने के साथ
मधुशाला रंगीन
शाम के स्याह

होते सरल
बड़े कठिन हल
बच्चों के प्रश्न

धूम मचाया
मधुशाला से आया
पीकर पिया

भर के गया
जुआघर से आया
खाली बटुआ

जेब थी खाली


मिल जाता है
सब कुछ माटी में
माटी से जन्म

इन्हीं से बना
पांच तत्वों में मिला
फिर से तन

मांगेगा वह
जिसके लिए भेजा
कर्मों का लेखा

जहाँ से आये
फिर वहीँ है जाना
भूल न जाना

पालती माटी
जीवन के पश्चात्
स्वयं खा जाती

विशुद्ध हवा
स्वस्थ रहने की
उत्तम दवा

रखे तो पाया
विशुद्ध जलवायु
निरोग काया

घटाती आयु
दूषित जलवायु
रखना शुद्ध

हवा सुगंध
चुरा लाई बाग से
मन प्रसन्न

जल के बिना
असंभव है जीना
समझो मोल

आदि मानव
बन पाया आदमी
पाया पावक

चूल्हे में लगा
बुझाती रोज पत्नी
पेट की आग

गर्भ में रखें
धरनी व घरनी
जलती अग्नि

आग रहती
जब तक जलती
बुझी तो राख


अग्नि सुपुर्द
************

द्वार खड़ी थी
सैयां निकस गये
मैं ना लड़ी थी

भीगी अँखियाँ
असुअन की बड़ी
लंबी झड़ी थी

रोके रुके ना
जाने ना कैसी उन्हें
जल्दी पड़ी थी

जुटे संबंधी
मित्रों की उन पर
ऑंखें गड़ी थी

कोरी करारी
खरीद कर लाई
चुन्नी पड़ी थी

चले हिंडोले
बुलाये नहीं बोले
नींद बड़ी थी

चार जने थे
कान्हे पर जिनके
शैय्या चढ़ी थी


मन उघार
तन ढकने हेतु
कई उपाय


**************


संभाल पाया
इंसान कहलाया
इंसानियत

सस्ता  ही जानो
देकर बचे प्राण
इंसानियत

खो मत देना
इंसान बन कर
इंसानियत

माटी का बुत
जिसके पास नहीं
इंसानियत

पैसे के मोल
बेच देता इंसान
इंसानियत

नहीं संजोते
सभी धन को रोते
इंसानियत

सब बेकार
नहीं जिसके पास
इंसानियत

पशु समान
ना होने पे इंसान
इंसानियत


**********

खोला लिफाफा
मिला प्यार का धागा
सीमा पे भाई

बांधी कलाई
माथे टीका लगाई
दीदी ने राखी

राखी का धागा
जिसके ना कलाई  
रहा अभागा

भाई बहन
एक दूजे की याद
रक्षा बंधन

भाई मिठाई
दीदी पायी सौगात
राखी त्यौहार

रोली चन्दन
सजा भाई के माथे
रक्षा बंधन 



पालक साग
अच्छे स्वाद के साथ
रक्तवर्धक

आलू पराठा
गिलास भर माठा
नाश्ते का मजा

हो गयी मोटी
छोड़ घर की रोटी
खा जंक फ़ूड

विश्व में छाया
भारतीय व्यंजन
अभिनन्दन

पत्नी से प्यार
प्रातः ही उपहार
चाय का कप

लेता जो कोई
कर देती है नंगा
पत्नी से पंगा


***************


जग में धन्य
देवकी वासुदेव
कृष्ण को जन्म

भादों अष्टमी
घोर अँधेरी रात
कृष्णावतार

आठवां लाल
माँ देवकी का जन्मा


कृष्णावतार

हो गया दिव्य
कंस का कारागार
कृष्णावतार

टूटीं बेड़ियाँ
सो गए द्वारपाल
कृष्णावतार

पृथ्वी पे हुआ
बन कंस का काल
कृष्णावतार

हुआ तो हुआ
असुरों का संहार
कृष्णावतार

साधु रक्षार्थ
धर्म संस्थापनार्थ
कृष्णावतार


*************

कृष्ण को सर
ले गए वासुदेव
नन्द के घर

बजी बधाई
आया नन्हा कन्हाई
नन्द के घर

गायीं सोहर
नन्दगांव की स्त्रियां
नन्द के घर

गोद में कृष्ण
लिए यशोदा मग्न
नन्द के घर

धन्य पडोसी
पा के कृष्ण दर्शन
नन्द के घर

हो गए धन्य
पड़े कृष्ण चरण
नन्द के घर

नन्द प्रसन्न
आनंद ही आनंद
नन्द के घर

******************

खाली मटकी
'कान्हा, कान्हा' का शोर
माखनचोर

गयीं गोपियाँ
यशोदा तेरा लाल
माखनचोर

मैं ना मइया
बोल उठे कन्हैया
माखनचोर

नन्हां बालक
हो कैसे चुराकर
माखनचोर

मुंह पे लगा
जानीं देख यशोदा
माखनचोर

चोरी भी किया
तो आनंद ही दिया
माखनचोर

चुरा के चित
हो गया चितचोर
माखनचोर

- एस० डी० तिवारी
************

कृष्ण की बंशी

कानों को तृप्त
करे मन प्रदीप्त
कृष्ण की बंशी

मधुर धुन
झुमा गोकुल सुन
कृष्ण की बंशी

सखा सखियाँ
मुग्ध सुन गईयां
कृष्ण की बंशी

बजती जब
वन में मधुवन
कृष्ण की बंशी

बहे पवन
मन भर उमंग
कृष्ण की बंशी

यमुना तीरे
ठहर जाती साँझ
कृष्ण की बंशी

हो जाता मन
सुन कर पावन
कृष्ण  की बंशी


गोपियों संग
कान्हा की रास रची
मुरली बजी

सुन के वेणु
घेर लेती थीं धेनु
कृष्ण गोपाल

****************

फोड़ी गगरी
किसने गोपियों की
नन्द नगरी

खाया माखन
रे यशोदा मईया
तेरा कन्हैया


विष को पिला
पूतना ने ली बुला
स्वयं का काल




लडके अब
नचनिहा हो गए
खेल में फेल

देश की आन
लड़कियां बचाईं
पदक लायीं

करता गर्व
बेटियों पे अपनी
भारतवर्ष

रियो से लौटे
लडके खाली हाथ
शर्म की बात

घूमे विदेश
ओलिंपिक के नाम
युवा निष्काम

चमके तारे
ओलिंपिक नभ पे
सिंधु व साक्षी




दो घर बार
थाम के पतवार
खेती है बेटी

होतीं बेटियां
बलात की शिकार
हमें धिक्कार  



गालों की राह
टपक रहे मोती
बच्चे को डांट

पूछ लेते हैं
कम हो जाता दर्द
अपने लोग

पता चलता
कष्ट में होने पर
अपना कौन

भोज समाप्त
प्रारम्भ हुआ अब
कौवों का मेला

तास के पत्ते
ले खलिहर बैठे
नीम की छाँव


मालिक खाया
गिन रहा है कुत्ता
कितनी रोटी

जाड़ा के आते
कमर कस लेती
धुनकी रानी  



सक्ते में होता
बिल्ली जब देखता
चूहे के प्राण

कौन है पापी
समझ नहीं पाती
जीभ या पेट

जीवों की जान
ले लेता है इंसान
लेने को स्वाद


मिल जाता है
चूहे से छुटकारा
पाल के बिल्ली

बिल्ली लुभाई
छोड़ दूध मलाई
खाने को चूहा



कितना प्यारा
समझ नहीं पाऊँ
छोडूं कि खाऊँ

दूध मलाई
बिल्ली छोड़ के धाई
चूहे के पीछे

तूझे खाकर
चली जाउंगी हज
सौ हो जायेंगे

हम सबकी
तू तो है बिल्ली मौसी
जान लेगी क्या

जाकर मिल
कूद रहा जो चूहा
मेरे पेट में

घात में बैठी
बिल्ली हुई निराश
चूहा चालाक

चतुर चूहा
पड़ते बुद्धि फेल
बिल्ली का पंजा




कहलायेगा
पप्पू अब पवन
नामकरण

अल्ला बचाये
दे देतीं हसीनाएँ
दिल का दर्द

चल बसता
एक और दिवस
होते ही शाम

जैसे ही देखा
हुआ प्यार में कैद
तेरे जलवे

अपनी  कहूँ
मेरे लिए बहुत
सत्रह वर्ण

भय से मुक्त
गगन में उन्मुक्त
उड़ती काश !