Wednesday, 27 April 2016

Pyali toot gayee

प्याली टूट गयी

एक एक बर्तन लिए, धो रही थी।
पता नहीं जाग रही कि सो रही थी।
एक प्याली हाथ से छूट गयी।
नीचे गिरी और फूट गयी।
मालकिन को इसका होते ही बोध।
उमड़ पड़ा मुनि परशुराम सा क्रोध।
ज्वालामुखी की आग सी बरस पड़ी।
लगा दी फ़ौरन, अपशब्दों की झड़ी।
जी भर कर, खरी खोटी सुनाया।
और बेचारी का दिल खूब दुखाया।
उसने फिर भी आंसू नहीं बहाया।
जबकि दुबली का खून तक सुखाया।
मालकिन जाने क्या क्या कह गयी।
और वह चुप चाप सब सह गयी।
सोची, काश मैं भी पढ़ी होती!
तो ये, यूँ, सर पर नहीं चढ़ी होती।
अब आ गया महीने का अंत।
बेचारी रह गयी एकदम सन्न।
अपने किये की सजा तो पा चुकी थी।
आंसू और खून भी सुखा चुकी थी।
उसपर फिर हुआ एक बार वज्रपात।
बीस रुपये कटकर वेतन आया हाथ।


एस० डी० तिवारी 

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