Wednesday, 27 April 2016

khilaune ki dukan par



यह उसका अपना नसीब था।
माँ बाप थे, तो वह भी गरीब था।
कम उम्र में ही, जाने लगा काम पर।
नौकरी मिली, खिलौने की दुकान पर।
खिलौने निकाल, ग्राहक को दिखलाता था।
चाभी भरने को, उसका जी ललचाता था।
चाभी दुकानदार ही भर सकता था।
वह तो बस नजर भर सकता था।
दुकानदार चाभी भर ग्राहक को दिखलाता।
तो वह उसे देख देख कर मुस्कराता।
ग्राहक को उसकी मुस्कान भा जाती।
खिलौना लेने की मन आ जाती।
एक बार दुकानदार से खिलौना गिर गया।
बेचारा शेर था, माथा फिर गया।
शेर अब लंगड़ा था, एक टांग टूटी थी।
साथ में काना, क्योंकि आँख भी फूटी थी।
दयालु दुकानदार ने, उसे दान दे दिया।
बड़ा खुश होकर, वह उसे घर ले गया।
उसे अब इस बात का गम नहीं था।
भूली बिसरी बात सा, दिल में कहीं था-
जब एक बार, बिना पूछे चाभी भरा था।  
दुकानदार ने दन से चाटा जड़ा था।
अब वह जी भर, चाभी भर छोड़ता है।
तीन टांग का शेर, पंचानन बन दौड़ता है।


No comments:

Post a Comment