हास्य -
सावधि जमा
भुनने को तैयार
मियाद पूरी
शृंगार व प्रेम -
आज चन्दन
कभी माथे पे होती
रंगीन बिंदी
चूमती जब
होती थी गुदगुदी
मुझे भी हवा
3. करुण रस
हाथ कांपते
झुर्रियों से भागते
मेरे अपने
मेरी छाँव में
सबके सब पले
दूर हो चले
4. रौद्र रस
दवा को नहीं
संवारने में खर्च
बीबी का रूप
5. वीर रस
तीन के तीन
मनसरहंग थे
मैंने ही पाले
6. भयानक रस
ऐंठी हड्डियां
चेहरे पे झुर्रियां
अभी भी जीना !
7. वीभत्स रस
रखा है छुपा
देखने वाला तो हो
झुर्री में दर्द
8. अद्भुत रस
झुर्रियां नहीं
तजुर्बे के पहाड़
चेहरे पर
9. शांत रस
उम्र बिताई
चेहरे की झुर्रियां
यही कमाई
१० वात्सल्य रस
फल न भी दे
छाँव तो देता ही है
बूढ़ा हो पेड़
११ भक्ति
लगा है मन
अब प्रभु में मेरा
उसी की आस
किसे दे जाऊं
रखवाला तो मिले
संभाली यादें
खींची रेखाएं
चेहरे पर लिखी
लम्बी कहानी
एस० डी० तिवारी
हरेक दिन
कुछ नया सिखाता
गुरु हमारा
खुद पे डंडा
लगा भर देने से
हो जाता खुदा
दुखी किसान
मुरझाई फसल
गर्मी की मार
प्यासे डोलते
पशु छटपटाते
गर्मी के मारे
तपती राह
पथिक है व्याकुल
गर्मी की मार
दुबके रहें
जी करता घर में
गर्मी के मारे
बनी है भट्टी
धूप में खड़ी कार
गर्मी की मार
प्यासा लातूर
जल हो गया दूर
गर्मी की मार
रख दी खोल
सरकार की पोल
एक तस्वीर
लुढ़क गया
मारता था उसकी
गली के फेरे
पत्थर टूटने लगे
कहीं भी दिखे
भारतीय व्यंजन
मुंह में पनि
सहमी ऑंखें
फिर न होंगी तन्हा
माँ का ढाढस
मेरी लाडली
कितनी बहादुर
अकेले रही
ये फटी ऑंखें
देख फटा जा रहा
मम्मी का दिल
मेरी गुड़िया
फिर नहीं छोड़ेंगे
अकेले घर
पापा विदेश
मम्मी की ड्यूटी
बेटी रही अकेले
आई मैं बेटी
फिर नहीं छोडूंगी
लाडो को ऐसे
माँ का आँचल
भूल गयी पाकर
पिछले गम
जल का मोल
प्यासा ही समझता
बूँद भी मोती
'एक दिन तो
साथ छोड़ जायेगा'
कहती रेत
'मुझे पानी की प्यास'
सुन रेत उदास
पछुआ चली
पहुंची मेरी गली
गरम हवा
कैसी भी धार
बहादुरों की कभी
न होती हार
यदि हो मन
सहस व लगन
बौना गगन
दृढ निश्चय
सरल कर देता
दुष्कर लक्ष्य
नाप के आयी
सिंधु की गहरायी
साहस नाव
रखी है खोल
पुत्रों हेतु धरती
अपनी छाती
अच्छी फसल
किसान का नियोग
वर की खोज
धुमिल न हो
मां मही का आँचल
रखना ध्यान
मां मही का आँचल
रखना ध्यान
मां वसुंधरा
संतानों हेतु वक्ष
देती है खोल
संतानों हेतु वक्ष
देती है खोल
गर्मी में कुत्ता
बचा पानी ज्यों फेंका
उसी पे बैठा
सूखा तालाब
तलहटी में दबी
मछली भुनी
तलहटी में दबी
मछली भुनी
पुत्र सा पाला
फसल जीवन का
मात्र सहारा
फसल जीवन का
मात्र सहारा
चांद उतर
झील मे निहारता
मुख सुन्दर
झील मे निहारता
मुख सुन्दर
अच्छी फसल
किसान का नियोग
वर की खोज
किसान का नियोग
वर की खोज
यंत्रों से खेती
घूम रहे हैं बैल
होकर सांड
घूम रहे हैं बैल
होकर सांड
हल्का हो गया
ट्रेकटर के चलते
हल का काम
है भूख भगाने का
अहम हल
कांधे फावड़ा
चले चौधरी चाचा
नरेगा केंद्र
होते जो वीर
बढ़ते चले जाते
लहरें चीर
सूखे की मार
खेती का बंटाधार
घटी उपज
सूखे की मार
कृषक है बेहाल
तंगी में साल
ऐसे ही रूठे
कब तक रहोगे
आओ न मेघ
कबसे प्यासी
धरती है उदासी
बिन बादल
हालत देख
तेरे बिन ताप में
धरा है मेघ
कोने में खड़ा
शीतल जल हेतु
बुलाता घड़ा
खोल दे प्रभु
तू अपना फव्वारा
नहा ले धरा
विलोक छटा
मुस्कराती वसुधा
घुमड़ी घटा
हरेक जन
देख के घेरे घन
मुदित मन
तू ही जीवन
व्याकुल जन जन
बरसो घन
घुमड़े घन
देख धरा प्रसन्न
जल की आस
बहती वायु
हो के उन्मत्त मन
नाचती घास
बदरी छाई
हम रहे देखते
हवा उड़ाई
घेर के आये
फिर भी तरसाये
कारे बदरा
लिये उधार
अकड़ता बादल
लौटा दे जल
उदंड सूर्य
सर्दी में छुप जाता
गर्मी में उग्र
आँख न दिखा
आते ही होंगे रवि !
घेर के मेघ
हो गये बैल
ट्रैक्टर के चलते
बेरोजगार
बिजली कौंधी
कड़कती जोर से
अँखियाँ चौंधी
कहते मेघ
बरस रहे हम
बाहर देख
छू मत लेना
दामिनी का दामन
जल जाओगे
सूरज कि अकड़
घेरे बादल
जला के टोर्च
जल का वितरण
देखते मेघ
जला के बत्ती
निहारते बादल
मही का रूप
चाबुक दिखा
आसमान कहता
बरसो घटा
आई और कर दी
समां सुहानी
बिजली गिरी
पर तटस्थ रही
बेख़ौफ़ मही
भागता रहा
साँझ तक तिमिर
पकड़ा गया
चलती रही
सुबह तक रात
कहीं जा छुपी
चलता रहा
शाम तक दिवस
था वो विवश
आम के वृक्ष
लटके भरे रस
स्वर्ण कलश
खुलती नींद
सर्दियों में रवि की
बिलम्ब से ही
कैसा नसीबा
बना है घरबार
पानी का पीपा
होता बसर
मुसीबत में बना
पाइप घर
इन पीपों को
पढ़ लिख जाएगी
तू लगाएगी
तू भी करेगी
हम जैसी मजूरी
जो न पढ़ेगी
की मजदूरी
बच्चों को पाला पोशा
थी मज़बूरी
बहुमंजिले घर
झुग्गी में रह
नभ सा ऊँचा
समुद्र सा गहरा
है माँ का प्यार
ठहर जरा
टांक तेरी हूँ तेरी
टूटी बटन
टांक दो जरा
कमीज की बटन
देर हो रही
हार जाएगी
बिटिया से गरीबी
आएगा दिन
क्या अपराध
किया है हमने माँ
पीपा आवास
बहती वायु
हुई उन्मत्त मन
नाचती घास
जला के बत्ती
निहारते बादल
कैसी धरती
नहीं रुकेंगे
अभाव के चलते
डग बेटी के
माँ की दुलारी
बनेगी एक दिन
माँ का सहारा
बनेगी बेटी
घर की पतवार
पायेगी प्यार
करोगे प्यार
बेहतर जिंदगी
रहेगी यार
नहीं है देखा
पशु पर हँसता
कोई भी पशु
बड़ों का फर्ज
प्यार और सुरक्षा
छोटो का कर्ज
होता न युद्ध
कभी जानवरों में
सम्पदा हेतु
दिल की बात
बन्दर भी करता
बच्चों से प्यार
कैसे सीखेगा
जाति धर्म में बंटा
मनुष्य प्यार
कनेर पर
टंगी पीली घंटियां
ध्वनि के बिना
सूरजमुखी
सूरज को ताकती
वो भाग जाता
आम जो कच्चा
कर दे दांत खट्टा
बड़े बड़ों का
कैद हो जाता
और के चक्कर में
भौरा बेचारा
देख करके
दिल खिल उठते
फूल खिलते
पल पल जी
कर लेती तितली
लम्बा जीवन
बिखरे रंग
घुल जाती है आत्मा
प्रकृति संग
अपनी धरा
बिखेरती है छवि
हरा हो भरा
हर बसंत
प्रकृति भी मनाती
उत्सवानन्द
देख के चाँद
हिमालय का रूप
शर्माया खुद
प्रकृति ने दी
अनुपम सौगात
हंसीं प्रभात
सूर्य भेजता
किरणों की नमस्ते
खोवो न सस्ते
होते ही भोर
सुन नाचता मन
पक्षी का शोर
प्रातः की बेला
बच्चे चले ले बस्ते
निरहू ठेला
भेजा सूर्य ने
रख लेना सम्भाल
सोने के तार
सिंधु से कढ
चले हैं दिनकर
नभ की ओर
प्रातः है सोना
पड़ जाय कहीं न
सोने में खोना
गर्व में डूबा
प्रातः भर सागर
सोने का जल
होते ही भोर
जगाने चला आता
घंटे का शोर
गुलाबी गाल
दिल श्वेत बेदाग
लूटती प्यार
गर्मी की रानी
पिलाती मीठा पानी
लीची दीवानी
गुलाबो रानी
मुंह से लेना हाल
टोए न गाल
प्रकृति को न होती
ऋतु में फल
तर बतर
पसीने में पियवा
गर्मी के मारे
गर्मी की मार
ऊपर से हो जाती
बिजली गुल
पंखे की हवा
लगती लू के जैसी
गर्मी के मारे
भूख से ज्यादा
लगे जेठ में प्यास
गर्मी की मार्
पशु बेचारे
डोलते हो बेकल
गर्मी के मारे
शीतल पेय
दिल चाहता और
गर्मी के मारे
शीतल जल
भर कर बोतल
बिकता खूब
बोतल में ले
पी रहे हिंदुस्तानी
महंगा पानी
waah
बिखरे रंग
घुल जाती है आत्मा
प्रकृति संग
प्रातः की बेला
बच्चे चले ले बस्ते
निरहू ठेला
गर्मी में तर
करता तरबूज
खा लो जी भर
है जिंदगानी
नारियल का पानी
गर्मी की काट
रत्नाकर से
निकले दिनकर
नहा धोकर
सज संवर
निकले दिनकर
होते ही भोर
पूरब छाई
नभ में अरुणाई
रवि उदित
सूरज आता
चन्द्रमा छुप जाता
नभ में कहां
टूटी थी थोड़ी
वो देख मुस्कराए
मेरी छतरी
सहता छाता
धूप व बरसात
देने को छाँव
हर्षित प्रभा
आया लेकर सूर्य
स्वर्णिम आभा
नभ से झाँका
खिल उठे जलज
सूर्य की आभा
हुआ विहान
खिले भर मुस्कान
पद्म के होंठ
किये तड़ाग
कुमुद का श्रृंगार
शोभा में डूबा
कर तो दिए
जोड़ कर दिखाओ
दिल के टूक
होंगे ना एक
फिर से हम दोनों
दिल दो टूक
किसी ने साजा
कोई बनेगा काल
कछुआ राजा
हजारों ऑंखें
टूट कर पड़तीं
सुन्दर वस्तु
सूखा दें चाहे
तोड़ ही लेते दुष्ट
सुन्दर पुष्प
ऑंखें निहारें
जीभ लपलपाए
दोनों में द्वन्द
सज़ा सलाद
देख मुंह में पानी
लेने को स्वाद
जेठ में ज्यादा
पानी की दरकार
गर्मी की मार
खोल दो टोंटी
अपने फव्वारे की
इंद्र जी अब
इंद्र देवता
तर करो धरती
मेरी विनती
तपते दिन
बादल लाये पानी
मन प्रसन्न
कोई भी जल्दी
प्रकृति को न होती
ऋतु में फल
गर्मी की मार
ऊपर से हो जाती
बिजली गुल
पंखे की हवा
लगती लू के जैसी
गर्मी के मारे
पशु बेचारे
डोलते हो बेकल
गर्मी के मारे
शीतल पेय
दिल चाहता और
गर्मी के मार्
स्वाद का स्वाद
गरमी से निजाद
आम का पन्ना
शीतल जल
भर कर बोतल
बिकता खूब
बोतल भर
पी रहे हिंदुस्तानी
महंगा पानी
सूरज आता
चन्द्रमा छुप जाता
न जाने कहां
दें जिंदगानी
नारियल का पानी
गर्मी में चैन
जीवों से ज्यादा
मरी चीजों से प्यार
मनु स्वभाव
भीगा बदन
पर भीगा न मन
गया बदरा
उमस भरी
पसीने में भिगोती
गरमी मरी
आज सवेरे
सोया रहा सूरज
बादल घेरे
दिखा के छटा
हमसे मुंह मोड़
जाओ न घटा
देखती गंगा
लिए जल की आस
नभ में घटा
************
आये बदरा
उमड़ घुमड़ के
दिल हरषे
झलक दिखा
चले गये बदरा
बिन बरसे
मन उदास
हुई न बरसात
हम तरसे
तेज बारिश
निकले ले छतरी
हम घर से
बिजली कौंधी
छुप गये घर में
फिर डर से
महानगर
जमीं ना मयस्सर
हवा में घर
नशे में कीट
छिड़काव के बाद
कीट नाशक
जाग उठते
आस पास के लोग
बूढ़ों की खांसी
रंभाती गाय
सुबह खूंटे पर
दूध तैयार
मुस्करा देते
गुड़हल के फूल
सूर्य को देख
हो न्यूनतम
वह सबसे बड़ा
जिसकी चाह
मरू की भांति
विरहन की ऑंखें
पिऊ की प्यासी
कल सवेरे
सोया रहा सूरज
बादल घेरे
करोगे मैला
नदी भी परोसेगी
जल विषैला
सिंधु का प्रेम
जाकर डूब जाती
नदी दीवानी
कम पड़ेंगे
जलाने में पापों को
जग के वन
नयी फसल
गिरता निरन्तर
शिक्षा का स्तर
डिग्री पे भारी
संपर्क में यदि हो
प्रभावशाली
ले फर्जी डिग्री
बन सकते मंत्री
मेरा भारत
पी गए घोल
स्वार्थ में लज्जा शर्म
बजा के ढोल
होने लगी है
सत्ता की वसीहत
मेरा भारत
तीन तलाक
कहने से वर्षों का
रिश्ता बेबाक !
घटा दें यदि
मुझमे से तुझको
हाथ में शून्य
वे ही आते हैं
जिन्हे भूलना चाहें
अक्सर याद
अपने ही देश में
माँ बाप तन्हा
छोड़ेगा तीर
अषाढ़ में छुप के
सूरज वीर
ताल तरसा
मेघ नहीं बरसा
मत्स्य बेचैन
गति बढ़ाओ
मानसूनी घटाओं
दिल्ली आ जाओ
ऊपर घेरी
बरसी ना बदरी
प्यासी धरती
हँसता सिंधु
देख सूखे नयन
रोतीं नदिया
पहुंची नदी
सागर से मिलने
खाली ही हाथ
मांग रही है
मिनरल वाटर
प्यासी सरिता
रवि ने छोड़े
अपने सात घोड़े
उगलें आग
अपने सात घोड़े
उगलें आग
रोजा रखते
वे भली समझते
जल का मोल
वे भली समझते
जल का मोल
मिलता अब
बोतल बंद पानी
सूखती प्यास
बोतल बंद पानी
सूखती प्यास
रखें जो जाने -
एकादशी का व्रत
पानी का क़द्र
बेटे विदेश
अपने ही देश में
माँ बाप तन्हा
कोई निर्जल
कोई पिलाए जल
जेठ एकाशी
बेटे विदेश
अपने ही देश में
माँ बाप तन्हा
आते ही नीचे
शुरू मेढ़ों के गीत
मेघों के बूँद
एक असत्य
छुपाने को बोलोगे
कितने झूठ
करती रही
इंसानियत घाव
छोड़ा न साथ
चलती चढ़
इंसानियत सदा
प्यार व दया
कर देती है
आदमीयता छोटी
नियत खोटी
मारता नित
इंसान को दौड़ा के
लोभ का विष
जल प्रपात
देख के बढ़ जाती
आँखों की प्यास
संगीत भरा
कल कल झरना
मुग्ध नयना
गंगा आरती
दुष्कर्मों से तारती
पावन मन
लक्ष्मी करतीं
गंगा नहा के दिव्य
काशी का तट
बन जाती है
नाच रही मोरनी
चित्त चोरनी
मजे से रहो
कब्र के इर्द गिर्द
कीड़े मकोड़ो
आक के पत्तों
सोयी है जान मेरी
तुम्हारे नीचे
देख के मोर
छाये बादल कारे
लगाते नारे
हुई बारिश
गाने लगा मल्हार
मेढक बैंड
गिरि पहने
कुंदन के गहने
गर्व में डूबा
रह जाएगी
जलाओगे दिल तो
हाथ में राख
देते जीवन
मेघ पर्वत सरि
बनो न अरि
नदी विकल
प्रतीक्षा में आने की
बर्फ पिघल
चांदी पहन
हिमपात के बाद
सजा पहाड़
थी जो उड़ती
चप्पल में चिपकी
हुई बारिश
खो गया मन
बूँद बूँद बूँदों में
बरसा घन
बरसा घन
चले काम पे
ले के हाथ छतरी
घेरी बदरी
आई बारिश
अम्बर में बिजली
नीचे बिछली
नीक ना लागे
बरसात में झूला
सजना भूला
झुलूंगी झूला
डाल नीम की डाल
सावन आया
पेड़ लगाया
निरहू के पापा ने
बैठे छाँव में
आंच तो आती
रोशनी नहीं आती
दिल जलाए
चाहा था मैंने
बदल दूँ दुनिया
खुद बदला
फिर से पाया
किसी अन्य रूप में
जो कुछ खोया
बहेगी मन
मन से करो कुछ
हर्ष की नदी
छुपाए होता
जो विनाश भी होता
नया खजाना
मैं तो गाता हूँ
कोई सुने ना सुने
खगों की भांति
पड़ी अकेली
नैनों से बरसात
सावन मास
पढ़ के पाती
सखि पुरानी बातें
भूल न पाती
**************
धारे बरसा
पपीहरा तरसा
सावन मास
लायी बहार
रिमझिम फुहार
सावन मास
महक उठे
मुहब्बत के फूल
पिया खिलाये
लेकर आये
उपहार पिया जी
मन को भाये
खेलती खुशी
खेलते जब संग
बच्चे व बूढे
जब भी पाता
बूढापा मुस्कराता
बच्चों का साथ
चहक उठी
उल्फत की बगिया
साजन आये
ड़ूबी गलियां
बारिश में किसी की
ड़ूबीं अंखियां
कानून अंधा
चिल्लाते अधिवक्ता
बधिर भी क्या ?
लुढ़क गयी
गरीब की थाल से
महंगी रोटी
जलाया घर
था खुद का जलाया
अपना दीया
मौन जो रही
वह अदालत थी
चीखा खंजर
चीखे बहुत
इंसाफ को खंजर
मौत के बाद
सखी करूँ क्या
घिर आये बदरा
पी ना पजरा
कैसे सहेली
रे अबकी सावन
भीगूँ अकेली
सुनी पुकार
बादलों ने मही की
लाये फुहार
रात मे खेलें
लुका छुपी का खेल
चांद व मेघ
होने को कामयाब
जरूरी युक्ति
बहा ले गयी
अबकी बरसात
खाट भी साथ
यार जो रूठा
मधुशाला में ढूंढा
उसका पता
देश को दिया
कैसा ये लोकतंत्र
लूट का मंत्र
हो के स्वतंत्र
पाया सत्ता का तंत्र
लूट की छूट
हो गयी लुप्त
मधुशाला में जा के
सुध व बुध
मिले न मन
वैवाहिक जीवन
होता दुस्वार
मिला ना मन
सूना रहा सावन
दोनों की रार
कुछ हुआ था
जब वह छुआ था
पहली बार
पढ़ के पाती
सखि पुरानी बातें
भूल न पाती
वैवाहिक जीवन
होता दुस्वार
मिला ना मन
सूना रहा सावन
दोनों की रार
कुछ हुआ था
जब वह छुआ था
पहली बार
पढ़ के पाती
सखि पुरानी बातें
भूल न पाती
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