Sunday, 28 June 2015

Ankhon me ansoo naari

तेरी आँखों में नारी

तेरी आँखों में किसी ने झील, किसी ने समुन्दर देखा;
मैंने तो बस बहता आंसू ही देखा, हे नारी!
कभी आत्मज का मोह,  कभी लिए प्रियतम विछोह;
सिसकियों में तुझे डूबे ही देखा, हे नारी!
कभी ममता, कभी कुटुंब का बोझ होता भारी तुझपे;
थके बिन, चारी सी करती सेवा, हे नारी !
शक्ति लिए सृजन की तू, तू ही देती जन्म पुरुष को;
हो जाती उसके हाथ का खिलौना, हे नारी!
डाली से टूट तू मंदिर जाएगी या जाएगी मरघट किसी;
तू भी न जानी भाग्य का लेखा, हे नारी!
जब आता है संकट भारी, हो जाती खड्ग सी कठोर;
पर प्रेम के वश तू हारी  सदा, हे नारी!
दुःख  के घूंट अकेले पी जाती, खुशियों की बाँट लगाती;
अपनों के लिए सर्वस्व लुटाया, हे नारी!
पुष्प और नारी दोनों होते, प्रभु की अति अनुपम रचना
सुगंध से भरती घर की बगिया, हे नारी!
भरी होतीं हैं जग की सब राहें सारी, दुखदायी काँटों से
चलना होता तुझे आंचल बचा,  हे नारी!
पति चाहे पतित, व्यसनी हो, सहती उसको भी चुपके
पति के लिए भी सती ही होती, हे नारी!
अभागे हैं, देख पाते बस यौवन की  जो सुंदरता तेरी
उम्र ढले माँ सी सुन्दर हो जाती, हे नारी!
कितने निष्ठुर होते, दुखा देते जो, तेरे कोमल मन को
और भर देते आँखों में पानी, हे नारी!

       - एस० डी०  तिवारी 





तेरी आँखों में किसी ने झील, किसी ने समुन्दर देखा;
मैंने तो देखा बस बहते हुए पानी, हे नारी!
कभी आत्मज का मोह, लिए कभी प्रियतम विछोह;
देखा सिसकियों में ही तू रह जाती, हे नारी!
कभी ममता, कभी कुटुंब का बोझ होता भारी तुझपे;
थके बिन करती सेवा ज्यूँ चारी, हे नारी !
शक्ति लिए सृजन की तू, तू ही देती जन्म पुरुष को;
उसके हाथ का खिलौना, हो जाती, हे नारी!
डाली से टूट मंदिर जाएगी या जाएगी मरघट किसी;
भाग्य का लेखा, तू भी ना जानी,  हे नारी!
जब आता है संकट भारी, हो जाती खड्ग सी कठोर;
पर प्रेम के वश तू सदा ही हारी, हे नारी!
दुःख  के घूंट स्वयं पी जाती, खुशियों की बाँट लगाती;
अपनों के लिए सर्वस्व लुटाती, हे नारी!
पुष्प और नारी दोनों ही, प्रभु की अति अनुपम रचना;
घर की बगिया में सुगंध भर जाती, हे नारी!
चलना होता तुझे, दुखदायी काँटों से आंचल को बचा,
भरी होतीं हैं जग की राहें सारी, हे नारी!
पति चाहे पतित, व्यसनी हो, सहती उसको भी चुपके;
पति के लिए भी सती हो जाती, हे नारी!
अभागे हैं, देख पाते बस यौवन की जो सुंदरता तेरी;
उम्र ढले माँ सी सुन्दर हो जाती, हे नारी!
कितने निष्ठुर होते, दुखाते जो, तेरे कोमल मन को;


और भर देते हैं आँखों में पानी, हे नारी!

Thursday, 25 June 2015

Ganv rota hai



शहरों में ऊँचे भवन बन गए
गांव आज भी रोता है
सड़कें पक्की बनी हों चाहे
मकान कच्चा होता है.  गांव ..

बिजली के तार बिछे हैं लेकिन
बिजली दौड़ नहीं पाती
हर शाम अँधेरा होता है. गांव ...

प्रकाश पाने हेतु आज भी
तरसता है गांव का वासी
दीया में बाती पिरोता है . गांव ..

सडकों पर गड्ढे घुटने भर
डगमगाती चलती है गाड़ी
राही खाता हिचकोला है. गांव ..

नेता होते वातानुकूल में
किसान नहा के पसीने में
खेतों में बीज बोता है . गांव ..

अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु
समाज टूक टूक करने में
नेता को दर्द न होता है. गांव ..

गाड़ी वालों की दादागिरी
भूसे के जैसे ठूंस ठूंस कर
वह इंसानो को ढोता है. गांव ..

शिक्षा की चलती हैं दुकाने
सरकारी स्कूल में पढ़े छात्र को
मात्र  भाग्य का भरोसा है. गांव ..

छिने बच्चों से क्रीड़ा स्थल
उचित साधन के आभाव में
बच्चों का विकास थोथा है

अस्पताल पड़े स्वयं बीमार
सही चिकित्सा मिल न पाती
रोगी बैतरणी में होता है. गांव ..

पेड़ का पत्ता फांक फांक कर
गाड़ी चिमनी का धुआं
समय परिवर्तन पर रोता है .गांव ..

उनकी राह अब भी कठिन
स्त्रियों की राह में समाज
कुप्रथा के कांटे चुभोता है. गांव ..

बुलबुल व मैना गए विदेश
गौरैया भी आती लुक छुप के
लापता बाग से तोता है . गांव ...

गाय, बकरी खूंटे पर रहते
बूढ़ा पीपल ठूंठ हो चुका है
कुत्ता, बांस की छाँव सोता है . गांव ...

धन कमाने हेतु ग्रामीण
बेटे बेटी को परदेश भेज
सम्पन्नता के सपने संजोता है. गांव ..

वहां की चमक दमक देख
वे भी जा शहरों के हो जाते
घर बुढ़ापा अकेले रोता है. गांव ..

गांव आज भी रोता है

- एस० डी० तिवारी



****************

गांव आज भी रोता है

शहरों में ऊँचे भवन बन गए
गांव आज भी रोता है
सड़कें पक्की बनी हों चाहे
मकान कच्चा होता है.  गांव ..

विद्युत तार बिछे हैं लेकिन
बिजली दौड़ नहीं पाती।
बिजली पाने हेतु आज भी
तरसता है गांव का वासी।
ऊँचे खड़े खम्भों के नीचे
घनघोर अँधेरा होता है।  गांव ..

सडकों पर गड्ढे घुटने भर
डगमगाती चलती है गाड़ी।
गाड़ी वालों की दादागिरी
भूसे सा ठूंस भरें सवारी।
सवार बदन रगड़ता चलता
राही खाता हिचकोला है।  गांव ..

नेता, अफसर धौंस जमाते
भोला भला गांव का वासी।
सरकारी धन गलता जाता
नन्हीं डली ही वहां तक जाती। 
स्वार्थ सिद्धि में बांटे समाज
नेता को दर्द न होता है।  गांव ..

शिक्षा की चल रहीं दुकाने
सरकारी स्कूल पंगु बना ।
ऊपर अभाव रोजगार का
युवकों हेतु भुजंग बना।
भविष्य युवा की कौन सवांरे
भाग्य का रखे भरोसा है। गांव …

अस्पताल पड़े स्वयं बीमार
सही चिकित्सा मिल न पाती।
कभी हो डॉक्टर अनुपस्थित
कभी मिलती नहीं दवाई।
भर्ती रोगी कष्ट में रहता
पांव  बैतरणी में होता है।  गांव ..

बुलबुल व मैना गए विदेश
गौरैया भी आती लुक छुप के।
पेड़ के पत्ते फांकते धुआं
चिमनी के छोड़े फुंक फुंक के।
बाग से हुआ लापता तोता
समय परिवर्तन पर रोता है। गांव ..

गाय, बकरी खूंटे पर रहते
चरागाहों में निर्माण हो रहे ।
बंट बंट के खेत छोटे हो गए
दड़बे से लघुतम घर हो रहे ।
दरवाजे पर पेड़ कहाँ रहे अब
कुत्ता, बांस की छाँव सोता है।  गांव ...

बेटे बेटियों को भेजें परदेश
कमा कर के लाएंगे धन।
मात पिता का होता सपना
होंगे एक दिन वे संपन्न।
वो भी जा शहरों के हो जाते
घर बुढ़ापा अकेले रोता है।  गांव ..


- एस० डी० तिवारी



Monday, 22 June 2015

Hindi haiku - july 2015

नेता के द्वारे
मात्र भिखारी आते
चुनाव हारे

भिन्न कानून
जाति धर्म क्षेत्र के
भारत एक

सोने का खग
पर जकड़े पर
मेरा भारत

थोड़ा घर में
थोड़ा चाहें मन में
भारतवासी


विशिष्ट बने
चुनाव प्रचार में
आम आदमी

भूल जाते हैं
ऋणी नेता चुकाना
मत का ऋण

नेता को धरा -
माइक पे रो रहा
चुनाव ज्वर

निकले नेता
चुनाव की गर्मी में
हवा पानी को

ढूंढने चले
पर्यटक पतंगे
गर्मी में ठण्ड

स्वेद बहा के
चुकाता है श्रमिक
रोटी का मोल

स्वेद बहा के
चुका देता श्रमिक
जीने का ऋण

होता है सना
किसान का पसीना
रोटी रोटी में

स्वेद बहाता
श्रमिक तभी पाता
रोटी में स्वाद

मिलता मोल
सोना व हीरा को भी
श्रम के बल

हीरा भी पाता
श्रमिक के कारण
अपना मोल

करवाता है
श्रमिक का शोषण
लाभ का लोभ

पत्थर दिल
पत्थर तुड़वाते
हैं नन्हों से जो

महल बना
रहता झोपड़ी में
श्रमिक दानी

डुबोता धनी
औरों का हक़ छीन
ऋण में सिर


पाथ रहे हैं
जीवन की अपनी
भट्ठे पे ईंट

गेंद न बल्ला
बचपन में आया
हाथ हथौड़ा

इसी उम्र में
किसने खड़ा किया
उनके बीच

दिया है पाती
श्रमिक के श्रम से
अपनी बाती


बहता  जल
जब ठोकर खाता
गीत सुनाता

तैरती चली
मेघों के जल पर
चाँद की नाव

शोर मचातीं
बूँदें जब गिरतीं
हिम शांति से

रोक न पाती
पत्थर की ठोकर
जल का जोश

नदी का जल
बहता कल कल
मन निश्चल

जितना नीचे
झरने का गिरना
ऊँची चिंघाड़


बहता जल
खा कंकड़ की मार
भरे चिंघाड़


नहीं थकता
एक पांव पे वक
लक्ष्य पे ध्यान

वक रखता
ध्यान व एकाग्रता  
लक्ष्य की प्राप्ति


राह में आईं
चट्टानें बढ़ा देतीं
नदी का जोश

साहस भरी
गिर कर भी चींटी
कभी न हारी

धकेल देती
निकलते ही माँ
बच्चों के पंख

बीस से साठ
पाया उनका साथ
निभाया साथ

पक्का बनाती
विश्वास के रोड़ी ही
प्रेम की राह

खोलते ताला
साहस श्रम आस्था
सफलता का

थोड़ा सा प्यार -
इतना दिया तूने
अर्पित तुझे  


रोज दो बार
बताती सही वक्त
बंद घडी भी

अधिक स्पष्ट
शहर की तस्वीर
रात्रि प्रहर

भोर में रात
अभी और सोयेगी
काले बादल

लम्बी हो जाती
स्वयं की परछाईं
रात्रि से पूर्व

बढ़ती जाती
लेखनी की गति भी
रात के साथ

मिल के लिखे
स्याही दीप व दिल  
प्यार का खत

रही जलती
परीक्षार्थी की बत्ती
सुबह तक    


मूर्ति गढ़ती
सहती जब शिला
प्रसव पीड़ा

शिला ले पाती
चोट खाने के बाद
मूर्ति का रूप

दे देता वृक्ष
औरों को सारा फल
स्वयं न खाता

ज्यादा थकाती
काम को करने से
काम की चिंता


मेढक बैठा
मेढक के ऊपर
झड़ी के बीच

टहनी पर
चिपका माँ के पेट से
बच्चा वानर

पेट की थैली
लिए कंगारू बच्चा
चरता घास

मुर्गे की बांग
पहलवान जी का
ट्रेक्टर स्टार्ट

होते ही भोर
बछड़ा करे शोर
खूंटे से खोल

ले के गिलास
मुन्नी गाय के पास
दूहते बापू

हाथ में लोटा
चले खेत की ओर
गांव की भोर

स्वयं बनाया
मुर्गों का कब्रिस्तान
स्वयं का पेट

तुम्हारी ना ने
सिखा दिया करना
अपने आप


बारिश आई
अपने शहर की
मुफ्त धुलाई

पानी दे पानी
मेघा राजा पानी दे
जिंदगानी दे

ढका सूरज
पवन को पुकारे
मेघ हटा रे

नृत्य करता
भंवर में चलता
नदी का जल

खोकर तट
नदी हो गयी झील
अति वृष्टि में

उम्र गुजारी
सागर की खोज में
जीवन नदी

घटा जो घेरी
हो गयी दोपहरी
घोर अँधेरी

चींटा खे रहा
बारिश के पानी में
मुन्ने की नाव

मिली हैं गिन
धुआं न ले ले छीन
साँसे अपनी

स्वर्ण कलश
लटके पेड़ों पर
मुंह में पानी

आते ही आंधी
 आम हेतु लगा दी
बच्चों ने दौड़


यह जीवन
धनी समझे क्रीड़ा
निर्धन पीड़ा

गर्मी में गांव
दिन निकलते ही
खाट भीतर

बाबा की कुर्सी
दिन भर सेकती
जाड़े में धूप





Saturday, 13 June 2015

Kitana roi hogi Heer

रब्बा !
मेनू, होंदा कलेजे विच पीर।
सोच, किन्ना, रोई होगी हीर !

घर दी दीवारां जालिम, सिगीं जेलखाना।
होगा बना जे दुश्मन,  सारा जमाना।
पांवा  विच होंगी, पड़ी जंजीर।
किन्ना रोई होगी हीर।

खाट बिछौना छड, सोयी होगी धरती उत्ते।
सुध बुध खोई फिरदी होगी वो इत्थे उत्थे।
दिल विच चुभोई होगी तीर।
किन्ना ...

भरी हुई दुनिया विच, ताकी होंगी अखां।
काली काली रातां, काटी होंगी कल्लां।
झर झर बहाई होगी नीर।
किन्ना ...

खाना ते पानी दा, भूख ना प्यास होगी।
रांझणा दे आवन दा, हरदम आस  होगी।
अंसुअन भिगोई होगी चीर।
किन्ना ...

ले के फरियाद अपनी आई होगी द्वार तेरे।
माथा पटक के साईं, लेवण अरदास तेरे।
बनके मोहब्बत दी फ़कीर।
किन्ना ...

लोकां दी सताई होणी, होगी मजबूर वो।
जहर दा निवाला खाई, हुई मशहूर वो।
रब्बा कैसी लिखी तकदीर।
किन्ना ...

Friday, 12 June 2015

Limericks


पंचपांती

सिर करके नीचे, चमगादड़ पेड़ से लटका
तबियत हुई ख़राब, लगा जोर का झटका
बार बार आ जाती दस्त
निर्बल, हो गया वो पस्त
उसका किया विष्टा, उसी के तन अटका


एकांत देख बिल्ली, चल पड़ी दूध पीने
हंड़िया में फंसी गर्दन, छूट गए पसीने
भीगी! भाग चली घबराकर
सोची, कर लें हज, नहाकर
दिखा राह में चूहा, दौड़ी उसे पकड़ने


चूहे को मिल गया, अन्न का एक दाना
कर में दबा के, आरम्भ किया चबाना
घुमाई जब उसने नजर
देख आती बिल्ली उधर
भगा बिल में, छोड़ कर अपना खाना


एक ने अपना माथा दूसरी से टकराई
दो भैसों के बीच, हो गयी तेज लड़ाई
एक, दूजे को पटकी
सिंग में सिंग अटकी
बिना बात के ही, अपनी सिंग तुड़वाई


दिन ढल गया, हुई अँधेरी  रात
चाँद निकला, ले तारों की बारात
टिम टिम करते तारे
प्यारे लगते सारे
जी चाहे मैं भी घूमूं उनके साथ


गरजते बरसते आ गए  बादल
खेत खलिहान में भर गया जल
खुश हो के मछली
तालाबों में उछलीं;
गीत सुनाते मेढक  टर्र टर्र टर्र


आई बरसात, घुसा बिल में पानी
भुर भुर कर निकली, चींटी रानी
मिला कहीं न ठौर,
चलीं घरों की ओर;
उन्हें खिलाई चीनी बुढ़िया नानी


श्यामू ले आया एक काला घोडा
पीठ पर बैठा, पर वो ना दौड़ा
श्यामू ने सोचा
कुछ करना होगा
भागा वह तेज, लगाया जब कोड़ा


आ गए सियार, होते ही अँधेरा
हुआँ हुआँ  कर, शोर बिखेरा
कुत्ते जागे
पीछे भागे
पीछा करके, उन्हें दूर खदेड़ा


मजे से बैठे धूप में, मामा मगरमच्छ
सुबह से शाम हुई, मिला न कोई भक्ष
बैठे रहे भाग्य भरोसे
फिर वे किस्मत को कोसे
चले नदी में वापस, पीने जल स्वच्छ


जाल बना कर, बैठी मकड़ी
एक टांग की, थी वो लंगड़ी
फंसा जाल में मच्छर
पड़ी जब नजर उस पर
पांच टांग से, झट से दौड़ी


गांव का धोबी ले आया गदहा
खूंटे से बाँधा कसकर पगहा
था वो ताकतवाला
खूंटे को उखाड़ डाला
सरपट दौड़ा जैसे कि खरहा


ले के चले  ऊंट जी, पीठ पर पहाड़ी
ढो लेते हैं उस पर, कोई बोझा भारी
जाऊंगा शहर अजमेर
कसे काठी और नकेल
मैं भी करूंगा थोड़ी, ऊंट की सवारी


बिल्ली मौसी दिल्ली पहुंची, गयी इंडिया गेट
थोड़ी सी खूंखार थी वो, भारी था उसका वेट
चूहों में मच गयी खलबली
कहाँ से आई ऐसी बिल्ली
पार्लियामेंट में प्रश्न उठाने, लेने गये डेट


बालक खा रहा रोटी, उडता आया कागा
देख न पाया उसको, रोटी छीन के भागा
बालक चिलाया जोर से
माँ तब आई दौड़ के
दूसरी रोटी देने को, उठा गोद में टांगा


हाथी और चींटी में, होने लगी लड़ाई
हाथी था घमंड में, दिखाने लगा ढिठाई
अपने पांव के तले
कई चींटी को कुचले
चींटी घुसी सूंड में, हाथी की शामत आई


नयी नवेली दुल्हन कल्लू के घर आई
बड़े प्रेम से, कद्दू की सब्जी पकाई
पद गयी कुछ ज्यादा मिर्ची
निकल गयी सबकी सी सी
पानी में जीभ डूबोकर, बैठे कल्लू भाई


बनाने को हलवा, माँ ने कड़ाही चढ़ाया  
गैस हो गयी ख़त्म, हलवा बन न पाया
जिद्द में हलवा खाने
पप्पू लगा चिल्लाने
तब देकर के मिठाई, माँ ने चुप कराया  


बरसात का मौसम, घेर के आये बादल
छत पर जाके मोर, नाचा पंख फैलाकर
देख कर सुन्दर नाच
गड गयी सबकी आँख
आई जोर की बूँदें, भागा तब घबरा कर


हाथी के पास खड़ा होकर, सोच रहा था अँधा
दांत मानो भाला हो कोई और कान हो पंखा
पूँछ छूकर, समझ वो लाठी
पैर छुआ तो, खम्बा है हाथी?
सूंड छूकर भागा दूर, हुई अजगर की आशंका


अंगना में मेरे रोज, गौरैया रानी आ जाती
इधर उधर बिखरा दाना, चुग कर खा जाती
उसके लिए थी, एक कटोरी
भर कर पानी, रख देता पूरी
खा पी खुश हो जाती, ची ची गीत सुना जाती


तितली रानी कहाँ से पाई, इतने सुन्दर पंख
लहराती हो तुम हवा में, फूलों से सुन्दर रंग
हमारे मन को खूब लुभाती
कभी पास कभी दूर हो जाती
आओ हमारे पास खेलो, तुम भी हमारे संग


बोझ ढो ढो कर, थक गया बेचारा
ऊपर से धोबी ने, डंडा एक मारा
गदहा बैठा था उदास
धोबी लेकर आया पास
घास खिला के, फिर उसे पुचकारा


चिड़िया देखी पेड़ पर, बन्दर रहा था भीग
बोली, मामा तुम भी, क्यों न बनाते नीड
बन्दर ने क्रोध में नोचा
पक्षी का सुन्दर खोता
चिड़िया को  मंहगी पड़ी, बन्दर को सीख

भेड़ जा रही है बाल कटाने
बाल जायेगा ऊन कारखाने
ऊन  का बनेगा स्वेटर
और बनेगा कम्बल चद्दर
काम आएंगे सब ठण्ड भगाने


हरे रंग का तोता होता, पत्तों में छुप जाता है
अपनी लाल चोंच मारकर, मीठे फल खाता है
उड़कर आता जब मेरे घर
मुझको लगता है अति सुन्दर
मिठ्ठू मिठ्ठू कहता हूँ, मुझसे वो बतियाता है


लम्बे पांव और लम्बी गर्दन, लिए हुये जिर्राफ
पेड़ के ऊँचे पत्तों को भी, कर देता है साफ़
अफ्रीका का निवासी है
रेगिस्तान का वासी है
चीता जैसा कोट पहने, बड़े और भूरे छाप


 घुस आई घर में बिल्ली, पी गयी सारा दूध
रोने लगा बिट्टू, जोर की लग गयी भूख
माँ मांग के पड़ोस से लाई
दूही गाय तो फिर लौटाई
कैसे लाती बाजार से, घर से था वह दूर

फूलों से रस लाकर, शहद बनाती मधुमक्खी
कभी कभी दे देती माँ, शहद चुपड़ के रोटी
स्वाद भरा और मीठा मीठा
सेहत के लिए भी है ये अच्छा
छत्ते से मधु निकालना, काम न सबके बस की


पापा के संग पप्पू गया, देखने चिड़ियाघर
देख के बड़े लुभाये, तरह तरह के जानवर
हरिण, बाघ, हाथी, चीता
गैंडा, भालू, बारह सिंगा
शेर दहाड़ा, दुबका पापा के पास, डरकर


ज़ेबरा भाई! लगते तो तुम गधे से हो
धरे काली धारी, दिखते अलग से हो
चंचल  होने के नाते
खूंटे से नहीं बंध पाते
तभी तो जंगल में, घूमते मजे से हो

स्कूल में बना था, लड़का एक मुर्गा
गुजर रहा मुर्गा, देख हुआ शर्मिंदा
ये तो मुर्गों की बेइज्जती 
है मास्टरजी की गलती 
बांग लगाया, दोहराना मत आईंदा

देखा जब छाई घटा घनघोर
खुश होकर नाचने लगा मोर
देखने आये लोग
शाम और सुबोध
देखकर हुए सब भाव विभोर

मुर्गे ने बांग लगाई और जोर से बोला
होने वाला है विहान, जागने की बेला
डब्लू, बबलू, पप्पू जागो
बबली, पिंकी, चिंकी जागो
देखो सूरज आ रहा, बना आग का गोला

चंदा मामा कभी कभी, तुम कहाँ छुप जाते
हम सब बच्चे आसमान में, ढूंढते रह जाते
तुम्हे ढूंढते ये भी मिल सारे
मंगल, बुध, शुक्र, शनि तारे
धीरे धीरे चलकर के, कहाँ से फिर आ जाते

मक्खी रानी लगती तो हो बड़ी सयानी
तुम करती रहती हो, फिर क्यों नादानी
आकर खाने पे बैठ जाती
इस तरह से रोग फैलाती
ढक कर रखेंगे खाने को, हमने भी ठानी


एक हंस का जोड़ा, पकड़े रस्सी का छोर
लटका चला कछुआ, दूसरे तालाब की ओर
जा रहे, जहाँ ज्यादा था पानी
कहने लगा कछुआ एक कहानी
मुँह खोला, गिरा धड़ाम, टूटे हड्डी के पोर


एक राजा ने रख लिया, बन्दर को नौकर
देखा वो मक्खी बैठी, राजा के  नाक पर
लगा मक्खी को उड़ाने बानर
बैठ जाती फिर से वो आकर
सोचा दूँ मार, काटा नाक तलवार चलाकर


एक डाल पर, घोसला बनायी चिड़िया
चढ़कर शरारती बालक ने दिया हिला
घोसला गिर गया नीचे
उसके दोनों अंडे फूटे
ची चिं करके रोने लग गयी चिड़िया

बहेलिया ने एक बड़ा सा जाल बिछाया
अनेकों चिड़ियों को उसमें साथ फंसाया
सब चिड़िया साथ मिलीं
जाल लेकर के उड़ चलीं
दूर गयीं तब चूहा आया, काट छुड़ाया


चूहा भाई! लगते तो तुम भले चंगे हो  
कपड़ों से मगर क्यों लेते रहते पंगे हो
बिना बात कुतर देते
बिना काम के कर देते
कपड़ों में पाते क्या, रहते तो नंगे हो

गिलहरी रानी, पूंछ रखे हो कितना भारी
पेट लिये सफेद, तुम्हारी पीठ पर धारी
बीज, फल जो भी पाती
कुतर कुतर कर खाती
बड़ी बड़ी सी आँखे, लगती हैं बड़ी प्यारी
  

कौवा बोले कांव कांव, कोयल करे कू
कुत्ता भौंके भौं भौं, बिल्ली करे म्याऊं
शेर करे दहाड़
हाथी की चिंघाड़
बकरी बोले में में, मुर्गा कुकड़ू कूँ


किसान बोता खेत में सब्जी गेहूं दाल
धान भी उगाता है वह हर साल
काट कर लाता फसल
डंठल से करता अलग
हम मजे से खाते हैं रोटी सब्जी दाल


चिड़िया रानी! तुम कैसे उड़ जाती हो
हम भी उड़ना चाहें, पर नहीं बताती हो
चाहें हम बैठें तुम्हारे साथ
पर तुम आती नहीं हो हाथ
पास आयें तो चीं चीं करती उड़ जाती हो


जाओ जाओ बरखा रानी, जाओ अपने घर
खेल रहा है अभी हमारा देखो राजकुंवर
किसी और दिन फिर आना
नन्हीं प्यारी बूँदें लाना
छतरी लेकर देखेंगे हम, बरसना जी भर


नानी का घर था, नदी के पार।
रमेश ताकता, होकर लाचार।
जाकर अपने गांव,
लेकर आया नाव;
नाव में चढ़ कर पहुंचा पार।

लाल बत्ती पर रूक जाती गाड़ी।
फिर चल जाती,  होती जब हरी।
पीली करे सावधान,
रुकने का रखो ध्यान;
रुकने की रेखा से पीछे हो खड़ी।

नदी का जल है बड़ा स्वच्छ।
पर रहते उसमें मगरमच्छ।
जाल उनके फैले,
जाना नहीं अकेले;
वरना, बन जाओगे भच्छ। 


रखी थी मईया कर के जतन।
कान्हा खा गए सारा मक्खन।
थोड़ा था मुंह लगा,
जान गयी माँ यशोदा;
खुला रह गया, मटकी का ढक्कन।  


सूरज जाता चंदा आता, दोनों का ना मेल।
खेलते हैं ऐसे दोनों, लुक छिपी का खेल।
चंदा के संग आते सारे,
बाहर निकल कर तारे;
चमकता रहता है सूरज, पूरे दिन अकेल।

निकला शेर, करने को शिकार।
हाथी मिल गया, हुई तकरार।
हाथी था बलवान,
शेर भी महान;
लड़े दोनों,  किसी की जीत न हार।  


पूरब में प्रातः सूरज उगता।
धीरे धीरे वह ऊपर उठता।
दिन भर वह चमक,
करता जग जगमग;
शाम को पश्चिम में डूबता।


धरती है अपनी, संतरे सी गोल।
नार्थ और साउथ, इसके दो पोल। 
समुद्र ने छिना भाग तीन।
एक बचा हिस्सा जमीन।
पाल हमें, देती जीवन अनमोल।



किया बड़ा ही गड़बड़झाला।
दीवारों को गन्दा कर डाला।
शामत आयी,
जब हुई सफाई;
उजड़ गया मकड़ी का जाला।

उछल उछल कर गेंद चली।
इधर से उधर सोनू की गली।
सोनू ने चौका जमाया,
मोनू पकड़ नहीं पाया;
मुश्किल से उसकी हार टली। 

एक बार हुई सब्जियों में तकरार
बच्चों को किससे ज्यादा है प्यार
मटर पनीर बोले हम 
आलू गोभी बोले हम 
करेले ने मान लिया दूर से ही हार

डाली ने अपना जन्मदिन मनाई 
पार्टी देने, सहेलियों को घर बुलाई 
शाम को केक कटा 
डाली को गिफ्ट मिला 
बोले सब 'जन्मदिन की बहुत बधाई' 

एक वर्ष के बाद दिवाली आयी
खाने को मिलेगी खूब मिठाई
पप्पू ने पटाखे फोड़ा
शामू फूलझड़ी छोड़ा
शाम होते ही सबने दीप जलाई

Sunday, 7 June 2015

Rah na thakati


राही थक जाया करते
राह न थकती है कभी।
झरने झर जाया करते
नदी न झरती है कभी।
शाम डर जाती तम से
सुबह न डरती है कभी।
रेत बिखर जाया करती
शिला न बिखरती है कभी।
तूफान ठहर जाया करते
हवा न ठहरती है कभी।
पत्ते बिछुड़ जाया करते
शाखा न बिछुडती है कभी।
फूल मुरझाया करते
तितली न मुरझाती कभी।
घुँघरू बज जाया करते
पांव न बजते हैं कभी।
झंडे तो फहराया करते
गड़े डंडे न फहराते हैं कभी।
कांटे चुभ जाया करते
फूल न चुभते हैं कभी।
तालाब सूख जाया करते
समुद्र न सूखते हैं कभी।
देह मर जाया करती
आत्मा न मरती है कभी।
चाँद, सूरज छुप जाया करते
सच्चाई न छुपती है कभी। 

Thursday, 4 June 2015

Smay kahan jata hai

हे प्रभु !
तूने समय को दे दिया
इंजन और पहिया
मगर क्लच और ब्रेक
कदापि नहीं दिया
दौड़ते ही देख रहा हूँ
जबसे तूने पैदा किया

हे प्रभु !
समय की गाड़ी
तू ऐसी तीव्र गति से चलाता
इसे कोई थाम न पाता
समय की गाड़ी पर सवार
कई तो आनंद उठाते
कईयों का दब, कचूमर निकल जाता

हे प्रभु !
पिछला पल तो बीत चुका
अगला पल अभी तेरी ही कोख में
अभी का पल, लगता तो है साथ
किन्तु नहीं रख पाता, पास मै

हे प्रभु !
बता दे, मुझे भी यह रहस्य
कहाँ चला जाता है सारा समय
भागता हुआ तीन सौ साठ सेकंड
प्रति घंटे से होके गतिमय

हे प्रभु !
अब तक, जग से जाने
कितने ही लोग, हो चुके विदा
कहा हैं?  न कोई पद चिन्ह,
न कोई संकेत, न उनका कोई पता

हे प्रभु !
जो मै समझ पाता हूँ,
समय तेरा भक्ष है; शेष सब समय का
जिसे पीसते रहते तेरे दन्त
यदि, असत्य कहूँ तो कहना
आदि से, तेरे मुख में समाता जा रहा
और अनंत ही है इसका अंत

Unaki mashahoori


किसी को खंजर तो किसी को छुरी ने मारा। 
हमको तो उनकी मशहूरी ने मारा। 

दूरी कस्तूरी मगरूरी जरूरी मजबूरी पूरी शरूरी मजूरी दस्तूरी लंगूरी 


मशहूरी ने उनकी, हमकोबेगाना बना दिया।
उनको तो मगर ज़माने का, नजराना बना दिया। 

हो गए मसगूल वो तो, अपने फन में कुछ ऐसे; 
उन्हेंउनकी फनकारी का, दीवाना बना दिया।

गुजरे हुए वक्त ने उनको, मशहूर किया इतना;
मेरी मुद्दत की उल्फत को, बचकाना बना दिया।

जब जब भी वो आये, लगा हवा का झोंका आया, 

मौसम हमारे घर का बहुत, मस्ताना बना दिया।  

पहले तो धर लेते थे हम, कहीं से डोर उनकी;
उनको कटी पतंग सी अब, ये जमाना बना दिया।

घूमते रहे पीछे-पीछे, हम तो महफ़िल-महफ़िल;
उन्होंने महफ़िलों का हमें, परवाना बना दिया।


ढूंढते रहते हैं उन्हें अब, बीमार दिल को लिए;
यूँ लगता है उनको मेरा, दवाखाना बना दिया


अब हमारे ही केवल हैं वो, कैसे कहें हम देव!
गैरों में फन की दाद ने तो, ठिकाना बना दिया।


गए जब कहीं पर, हुनर को अपने दिखाने
तूफानों से घिरा मेरा आशियाना बना दिया। 








जो राह में यूँ ही चलते हैं, वो राही हैं, दोस्त कहाँ हैं !
जो कुछ दूर तक साथ चलें, हमराही हैं, दोस्त कहाँ हैं !
राह चलने और वादा करने से, दोस्त नहीं मिला करते,
हाथ पकड़ के साथ चले, तो ही जानें, दोस्त कहाँ है !