दास्तां अपनी कहते रहे, वो अनसुनी करते रहे ।
अर्से से मन में अरमां लिए, सहलाते संवारते रहे ।
अनबुझी वो बातें, भांति उपले की सुलगती रहीं ।
बुझाने को ना डाले पानी भी,आहें बस भरते रहे ।
चाहे से मिलता नहीं, बिन चाहे मिल जात।
मिल जाये वो भी कभी, मन आवे ना रास।
रखता है याद खोये को, सदा ही ये आदमी
पाता है ईश्वर से जो, जल्दी देता बिसरात।
अजीब सी एक पहेली है जिंदगी।
गजब मुसीबतें झेली है जिंदगी।
सुलझाना यूँ आसान नहीं होता
समझ लो तो सहेली है जिंदगी।
अकड़ तो मुर्दे की पहचान होती है।
झुक जाने से प्यार मिले, हर्ज नहीं
मुहब्बत से जिंदगी आसान होती है।
जिंदगी जीना आसान कहाँ।
बिना संघर्ष कोई महान कहाँ।
छत पर ऊंचा उग भी जाये
होती पीपल की पहचान कहाँ।
थोड़े में संतोष करना सीखो।
जो मिले पसंद करना सीखो।
उतना ही देगा, जो वो चाहेगा
बस उसको याद करना सीखो।
जिंदगी कभी तो हंसाती है।
कभी बिना बात रुलाती है।
हर हाल जो खुश रह लेते
उसके आगे सिर झुकाती है।
जो होना होकर रहेगा, कह गए संत फ़क़ीर।
हानि लाभ की फिर क्यों, पीटना यूँ लकीर।
ऊपर वाले को रखना हरदम, मन में बसा के
खुश रहेगा तो बढ़िया वह लिखेगा तकदीर।
एक दिन हर किसी का साथ छूट जाता है
किसी के अश्क की वजह बनूँ ,ऐ खुदा न करना।
किसी के दर्द की वजह बनूँ , ऐ खुदा न करना।
ख्वाइशें इतनी बड़ी न हों किसी का हक़ छीनूँ
अगर अपने में से दे न पाऊं, ऐ खुदा न करना।
जीतने के लिए
रहे अधूरी
बादशाह की इच्छा
संत की पूरी
ये जिंदगी का फंडा है बॉस दुखो वाली रात निंद नही आती और खुशी वाली रात .कौन सोता है..
मनुष्य सुबह से शाम तक काम करके उतना नहीं थकता; जितना क्रोध और चिंता से एक क्षण में थक जाता है।
जैसे: दरिया - खुद अपना पानी नहीं पीता।
पेड़ - खुद अपना फल नहीं खाते।
सूरज - अपने लिए हररात नहीं देता।
फूल - अपनी खुशबु अपने लिए नहीं बिखेरते।
खुदा को
नुमाईन्दगी मिलती है
किसी से कुछ मांगने पर एहसान और शर्मिंदिगी मिलती है
बुरे कामों से दरिंदगी मिलती है
पानी से तस्वीर बनाने वालो।
ख्वाबों से तकदीर बनाने वालो।
रिश्तों को निभाना सच्चे दिल से
कागज की नाव चलाने वालो।
पैसे से क्या सब कुछ पाओगे !
पैसे से क्या हवा भी लाओगे !
नरम गद्दा तो आ जायेगा मगर,
पैसे से कहाँ से नींद ले आओगे !
सदाचार विपत्ति को दूर भगाता है।
शुद्ध विचार सदैव सुमति लाता है।
सुकर्म से ही मिलता है आनंद
बुरा कर्म बस संकट में ले जाता है।
सत्पुरुष बुरे कर्म से सदा ही डरते
किसी निर्बल का अहित नहीं करते
ईर्ष्या क्रोध कटुवचन कामुकता
मिथ्या और लोभ से दूर ही रहते।
अधर्म कार्य ले जाता अधोगति को।
सदाचार पाता प्रतिष्ठा संपत्ति को।
बुरा कर्म है अग्नि से भी भयावह
अच्छे कर्म लता आनंद सुमति को।
जहाँ की सुंदरता रामती आँखों में।
प्यार की पौध पनपती आँखों में।
लेकर जाने वाली सीढियाँ होतीं,
जो दिल में उतरतीं, आँखों में।
जब निगाहें टिक जाती हैं आँखों में।
आ मुहब्बत बस जाती है आँखों में।
हो जाती ओझल जब आँखों से ऑंखें,
बाढ़ से आ जाती है इन आँखों में।
आँखों ने देखा उन आँखों में।
कुछ बातें हो गयीं आँखों में।
भा गयी तस्वीर कुछ ऐसी,
वो आन बसे इन आँखों में।
जब सुरमा लग जाता है
चार चाँद सा लग जाता है
प्यार ही तो जिंदगी का सम्भल है।
प्यार के बिना जीवन मरुस्थल है।
दया, धर्म व निष्ठा उसी के पास,
प्यार से भरा जिसका वक्षस्थल है।
जिनकी जिंदगी में प्यार नहीं होता।
औरों के हित का उद्गार नहीं होता।
वो जिंदगी को जिए बस अपने लिए
जीवन में उनके कोई सार नहीं होता।
प्यार कभी आँखों में झलक जाता है।
प्यार कभी आंसूं बन छलक जाता है।
ऐसा कोई ताला नहीं बंद कर दे प्यार,
प्यार का नूर तो दूर तलक जाता है।
आँखों में पानी इतना, मन में फिर प्यास क्यों है !
फूल देखकर हंस रहे शायद, दिल ये उदास क्यों है !
यार दूर चला गया होगा, शहर में कयास क्यों है !
पूरा शहर यहीं खड़ा, अकेलेपन का एहसास क्यों है
एक हाथी चीटियों को देह पर रेंगने देता।
यहाँ तक कि अपना सूंड़ भी नहीं समेटा।
कुछ चीटियां तो घुस गयीं सूड़ के भीतर,
उसे पागल होने से फिर कौन बचा लेता।
रगड़ से अगर घबराओगे ,
भाग्य कैसे चमकाओगे !
बिना रगड़ पालिश न होगी,
तो दर्पण कैसे बन पाओगे !
प्यार कभी आंसूं बन छलक जाता है।
ऐसा कोई ताला नहीं बंद कर दे प्यार,
प्यार का नूर तो दूर तलक जाता है।
आँखों में पानी इतना, मन में फिर प्यास क्यों है !
फूल देखकर हंस रहे शायद, दिल ये उदास क्यों है !
यार दूर चला गया होगा, शहर में कयास क्यों है !
पूरा शहर यहीं खड़ा, अकेलेपन का एहसास क्यों है
एक हाथी चीटियों को देह पर रेंगने देता।
यहाँ तक कि अपना सूंड़ भी नहीं समेटा।
कुछ चीटियां तो घुस गयीं सूड़ के भीतर,
उसे पागल होने से फिर कौन बचा लेता।
रगड़ से अगर घबराओगे ,
भाग्य कैसे चमकाओगे !
बिना रगड़ पालिश न होगी,
तो दर्पण कैसे बन पाओगे !
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