Monday, 27 October 2014

man bawra



मन बांवरा ...
 रे मन बांवरा ...
क्यों बना है फिरता जहाज का पंछी
डोले लोभ का मारा
बिना कोई सहारा
मिलने से किनारा  रह जाये तू वंचित
मन बावरा ...
कभी ईत तू झांके
कभी उत  तू ताके
खुद को न आंके ठहरे न किंचित
मन बावरा ...
रहे आगे ही आगे
मैं सोऊँ तू जागे
तृष्णा में भागे करे सपनों को संचित
मन बांवरा  ...


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