Sunday, 16 March 2014

Budhapa ka dard




जैसे महिलायें कतराती हैं
अपनी उम्र बताने से
मर्द भी गुरेज करते हैं
खुद को बूढ़ा कहलाने से .

जब कोई हसीना मुस्कराती है
तो दिल थामना पड़ता है
कहीं कुछ उल्टा न हो जाये
डर से कांपना पड़ता है

पलट कर मुस्कराये तो लोग कहेंगे 
बुड़ढा लाइन मार रहा है
इसके मुंह में दांत नहीं
देखो कैसे मुस्करा रहा है

‘बूड्रढा हो गया शर्म नहीं आती‘
ताने का दर्द सहा नहीं जाता है 
बूढ़ा हो गया सो तो ठीक,
बेजां तोे तब लगता हैं
जब यह जमाना बताता है। 

पार्क में बैठा था
सामने से एक महिला गुजरीं
उनके गुजरने की सुगन्ध से
एक बूड्रढे ने ठंडी आह भरी
सुनकर वो थोड़ी ठिठकीं
मुस्कराई, फिर तमकी

फिर तो न जाने क्या कह सुनाया
राम राम कहने का समय आया
अब भी महिलाओं की ब्यूटी भाती
बुड़ढे को षर्म नहीं आती

उसने भी अपनी हिम्मत बटोरा
और जबाब में उससे बोला
बूढ़ा होगा तेरा बाप
बता कहां है बुढ़ापे की छाप
ब्यूटी देखना क्या युवाओं का कापीराइट है
राम नाम क्या बुड्ढों का पेटेन्ट है
तुझे राम से क्यों परहेज है

बूढ़े इष्क नहीं कर सकते
इष्क क्या जवानों की बपौती है
बाल का रंग बदल जाने से
क्या सीजनल कटौती है

बाल तो सफेद हुये हैं सिर के
रंग तो वही है दिल के
सफेद बाल का हमें खेद नहीं
अरे खून का रंग तो सफेद नहीं

बाल सफा हो गये तो क्या
दिल तो और बड़ा हो गया
जवान का दिल तो क्या है
जैसे कि तंग सेरवानी
किसी बूढ़े के दिल में रहके तो देखो
आने जाने में कितनी आसानी

दांत नहीं हैं सो खट्रटे नहीं होंगे
कच्ची मौसमी का भी जूस पी लेंगे
नरम खा लेंगे आंत की नली तो है
और अपनी जीभ चंगी भली तो है

नजर कमजोर है तो अच्छा ही है
उनका मेकअप भी सच्चा लगेगा
चांद की षीतल चमक तो दिखेगी
पर उस पर लगा दाग छुपा रहेगा




कहते हो कि
बूड्रढे लेकर चलते हैं छड़ी
अरे इसकी जरूरत तो
म्युनिसिपलटी की कमी से पड़ी
पटरी टूटी फूटी रहती है
और घूमते रहते हैं कुत्ते अवारा
ऐसे में तो छड़ी ही है सहारा


वो भी क्या दिन थे
जब दिल में दर्द रहता था
अब तो दर्द भी बेदर्द हो गया
जोड़ों में सताता है
मगर दर्द का भी अपना मजा है
भला बिना दर्द कौन सहलाता है

नीद कम आती है तो लोग समझते हैं
बुड्ढों के सपने कम होते हैं
उन्हें क्या पता कि खुली आंखों से
देखे सपने कितने सच होते हैं

बिन दांत के बच्चों को प्यार है
बिन दांत के बूढ़ों को क्यों नहीं
चलो प्यार ना सही
मगर सत्कार तो हो कहीं

हड्डियों मे ऐंठन चमड़े पर झुर्रियां
उसमें हैरानी क्या है भला
इस बुड्ढे को तो ही बनना है
ड्राइंग रूम की आधुनिक कला

ध्यान से देखो बुड्ढे नहीं
सिनियर सिटिजन हैं ये
तुम्हारे लिये लुटा चुके
अपना तन मन धन हैं ये

कभी बुडढा भी जवान था
आज लाचार है बीमार है
परन्तु अनुभव का भंडार है
ये जो दुनिया दिख रही है
उन्हीं की करामात है

बुड्ढा कुछ न भी दे तो
नेक सलाह तो देता ही है
बूढ़ा पेड़, फल ना भी दे
फिर भी छाया तो देता ही है


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