Saturday, 4 January 2020

Tere munh modane ke baad

तुम्हारे लिए तो दिल में प्यार उमड़ रहा था
तुम मुंह मोड़ने लगे सारा खेल बिगड़ रहा था
तुमको पता है, कितनी, मुश्किलों से लपेटा था
तुम डोर खींच रहे थे, मैं छोर से उधड़ रहा था
देखते ही देखते मेरे, तुम तो हवा हो गए
जिस राह गए तुम, हवाओं को पकड़ रहा था
पल पल तुम तो दूर, जा रहे थे होते हमसे
बहारों में भी हमको, सूनापन जकड़ रहा था
डर डर के कट रहीं थीं, तन्हाईयों की रातें
अंधेरों में डराने, काला, बादल घुमड़ रहा था
जब जाना ये जमाना, मैं अकेला हो गया हूँ
चिढ़ाने लगीं बहारें, हर फूल अकड़ रहा था
चले जाते रहे तुम तो, फिर देखा नहीं फिर के
दरिया में आंसुओं का शैलाब उमड़ रहा था


रोकने  के लिए तुमको मैं नाक रगड़ रहा था
पिछड़ झगड़ लड़ बिगड़ बिछुड़


छुप छुप कर करना बात, याद तुम्हें भी आती होगी
चांदनी में मिलना रात,  याद तुम्हें भी आती होगी
सिनेमा देखने के लिए कक्षा छोड़ के भाग निकलना
और पकड़ कर घूमना हाथ, याद तुम्हें भी आती होगी
एक लिफाफे से मूंगफली पार्क मेंं बेंच पर बैठ खाना
लाइब्रेरी में बगल की सीट पर बैठना
मम्मी क बनाए आलू के पराठे
खाना मेरी टिफ़िन से निकाल याद तुम्हें भी आती होगी।
होम वर्क करवाना
शतरंज में देना मात याद तुम्हें भी आती होगी
माल मेंं दाम पूछ बहाना कर ही चल देना
खरीदने की होती न अवकात याद तुम्हें भी आती होगी
घात सौगात


प्यार में विष पी लिया तू तो कमाल का है
फिर भी तनहा जी लिया तू कमाल का है
जहर भरे दो चार शब्दों को छिड़क कर
होठों को सी लिया, तू कमाल का है
दोनों ने एक साथ चोट खाया
सारा दर्द खुद ही लिया, तू कमाल का है
गली सभी  वही नहीं 

घोड़ीवाले लाल लगाम लगाना 
पीठ पर गद्दी नरम लगाना  
घोड़ी तुम विदक न जाना 
बैठेगा मेरा दुलहा 
पीढ़ा को सजाना 
लाल लगाम लगाना 

छोड़ चली जाएगी मायके 
डाल दूंगा केस डिवोर्स का 
धारा बारह तू झूठे लगाएगी 
दूंगा वनवास बारह वर्ष का 
डाल दे गियर रिवर्स का 


जीभ लपलपाती है  पीने से पहले
नमकीन सज जाती  है पीने से पहले
सलाद
ब्रांड याद आती है
गपसप हो जाती
मेज



मचलती, मंद बयार से प्यार है, मुझे।
बहती नदी की धार से प्यार है, मुझे।
बोलते झरने, डोलते मेघों का झुण्ड,
गिरती रिमझिम फुहार से प्यार है, मुझे।
चलती मंद बयार से
मुझको है प्यार बहुत
बहती सरि की धार से
प्यार है, मुझे।
बजाते ताली, बिखेरते हरियाली; पत्तों,
मस्त हवाओं की बहक से प्यार है, मुझे।
पूर्णिमा की बिखरी चांदनी से प्यार है, मुझे।
सुरीले कंठ की रागनी से प्यार है, मुझे।
जिंदगी का आनंद सब, बसा प्यार में प्यारे 
किसी सुभाषिनी, नाजनी से प्यार है, मुझे।


एक ही घर में रहते
शुभकामना देते फेसबुक पर


उनकी आँखों में खुद को देखा
प्रेम मंदिर में एक बुत को देखा
पालने में देखा सुत को
बदलते देखा रुत को
मिले कुछ पल अद्भुत को देखा 




सौ पर भारी
पांच ही धर्मचारी
महाभारत

खाकर कीड़ा
मटर की फलियां
आंख गिरोड़ा

मिलते ही
लहराने लगे
महासागर


सूना सावन
आये नहीं साजन
डंसने खड़ा

आग बुझाई
सावन में नहाई
पृथ्वी भी साथ

हुई सुघड़
सावन में धरती
नहा धोकर

हाथों में सजी
झूल रही मेहंदी
तीज का झूला

हरी चूड़ियाँ
हरियाला सावन
मन भावन

आग लगायी
सावन की फुहार
दिल जलाई

'आई लव यू'
जैसे ही बोली वह  
बैटरी ख़त्म 

शब्दों का तीर 
वेध कर जिगर 
देता है पीर 

काम ही काम 
सुस्ताने का न नाम 
चींटी के जिम्मा 

घर में घुसे 
जूते में लगी मिट्टी  
पांव पोंछते 

उठीं श्रीमती 
बैठने का निशान 
घास पे छोड़ 


श्रम करती
तभी पेट भरती 
तितली रानी 


मुंह सुजाया 
झाड़ी से मुन्ना आया 
बर्र का छत्ता 

बड़ी हैरानी 
मुझे देख के उड़ी 
तितली रानी !

पटरी पर
दानी की दरकार
एक कम्बल 


दौरे का दौर 
रजाई में अकेली 
ठण्ड की रात 

सेवा में 
संपादक 
SPEIL दर्पण 

महोदय 
मैं अपने निम्न कुछ हाइकु जो शरद ऋतु के विषय में हैं, आपकी पत्रिका में प्रकाशित होने के लिए भेज रहा हूँ 

श्री एस. डी. तिवारी के शरत ऋतु के कुछ हाइकु 


जागता रहा
अलाव सारी रात
हमारे संग 

मेघ में छुपा 
बरसात की रात  
दिखा न चाँद  

ठण्ड की रात
ढूंढते रहे चाँद 
धुंध में खोया 

गिरा जो पारा 
घास पर छिटके 
मोती के दाने 

नहाती रही
ठण्ड में पूरी रात  
ओस में घास 
लेकर हाथ 
ठंडक से दो हाथ
चाय का कप

धूप में बैठी
मिल के दीं माँ बेटी
ठण्ड को मात

पारा क्या गिरा
चढ़ गये ऊपर
अनेक वस्त्र

आते ही जाड़ा 
गरम कपड़ों का 
संदूक खाली

मन को भाता
और चीजों से ज्यादा
ठण्ड में धूप

कहाँ रोजाना
है वश की  नहाना
सर्दी के दिन 

धुन्ध में घिरा
पूरे गांव में बस
मेरा ही घर

कोहरा छाया 
सूरज नहीं आया 
काम पे आज 

ओढ़े कम्बल 
धुंध में सोते रहे 
रवि अंकल 

1 comment:

  1. बहुत बढ़िया। मेरे ब्लॉग पर भी आइये।
    iwillrocknow.com

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