Wednesday, 23 October 2019

Diwakar

एक लेखक
साहित्य का सेवक 
प्रवीण शुक्ल 

वंदनवार
जो साहित्य के द्वार  
प्रवीण शुक्ल  


तारीख थी वो बारह नवम्बर।   
जब मुस्करा रहा था अम्बर।
प्रवीण रूप में साहित्य का दूत,
अवतरित हुआ था धरती पर।

प्रेम में डुबोकर शब्दों को हँसते। 
चुन चुन कर पुस्तकों के रस्ते।
छंदों में ढाल, कभी शेरों पर सवार
डालता रहा साहित्य के बस्ते।

जिसकी कलम साहित्य में छायी हो। 
माँ शारदे के कमंडल में नहाई हो।
उस प्रवीण शुक्ल को जन्म दिन पर,
हम साहित्यकारों की ढेरों बधाई हो।



डॉ. महेश दिवाकर कृत लोक धारा १ पढ़ने का अवसर मिला। लगभग ६५०० दोहों का यह वृहत संग्रह अपने आप में एक अद्वितीय ग्रन्थ है। आठ सौ से भी अधिक पृष्ठों का काव्य संग्रह शायद ही कहीं देखने, पढ़ने को मिलता है। इस पुस्तक के प्रथम खंड 'भाव सुमन' के आरम्भ के कुछ दोहे ईश्वर, जिनमें सरस्वती, शिव, राम, कृष्ण आदि सम्मिलित हैं, को समर्पित हैं।

चाहे बोलो राम तुम, चाहे शिव घनश्याम
राम श्याम शिव एक हैं, मन के पवन धाम

तन मन में जगदीश हैं, कर्म सत्य की छाँह
उसका कुछ बिगड़े नहीं, जिस पर उसकी बांह


३१ मन में दृढ विश्वास हो,उर में सच्ची प्रीति
धीर नहीं जो छोड़ते, मिलती उनको जीत

नहीं यार कुछ चाहते, केवल हंसकर बोल
जग मीठे बोल का, बहुत बड़ा है मोल

कबीर ऐसी बानी बोलिये


जहाँ धर्म है साथ में, नहीं शांति अवरूद्ध
धर्म गया यदि दूर तो, हुआ वहां ही युद्ध  ३१७


आज देश को बेचते, खुलकर कुछ तो लोग
जो चुप होकर देखते, वे भी करते योग ३४०

माता भगिनी सहचरी, तीनों रूप अपार
नारी जग में पूज्य तो, क्यों होता व्यभिचार ७०७

सतयुग द्वापर युग नहीं, यह कलियुग का द्वार
पैसा लेकर तुम चलो, कहलाओ अवतार


राजनीति ने धर दिया, गुंडों के सिर ताज
गोरी छोरी दिन की, अब न बचेगी लाज  पृ ३३५








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