मुक्तक
असंभव कुछ नहीं अगर ठान ले आदमी।
मुकाम को ठीक से पहचान ले आदमी।
लगन और साहस है उसकी बड़ी ताकत,
बस मेहनत से चलना जान ले आदमी।
पतझड़ के पीछे, मौसम सर्द छुपा होता है।
आये अंधड़ के गर्भ में, गर्द छुपा होता है।
हौसला वाले कभी रूका नहीं करते।
मुश्किलों के आगे झुका नहीं करते।
लेकर जाता है, हौसला ही डर से आगे;
ऊंचाइयां छूने से चुका नहीं करते।
आम आदमी ही सही, बड़े अरमान पर,
चले हैं सपने अपने, ऊँची उड़ान पर।
रखते हैं हौसला सितारों को छूने की,
पैर जमीं पर, निगाह आसमान पर।
असंभव कुछ नहीं अगर ठान ले आदमी।
मुकाम को ठीक से पहचान ले आदमी।
लगन और साहस है उसकी बड़ी ताकत,
बस मेहनत से चलना जान ले आदमी।
समय था, अकेले में दिख जाता आदमी।
बड़ी ताकत और सुकून पाता आदमी।
आज है कि इतना खुंखार हो चुका वह,
डर लगता, अकेले में दिख जाता आदमी।
शेर कहलाने को जानवर बन जाता है आदमी।
बुरा मान जाता जानवर कहलाता है आदमी।
बुरा मान जाता जानवर कहलाता है आदमी।
साधना होता है इसे जब कभी मतलब की बात,
भीतर सोया हुआ जानवर, जगाता है आदमी।
पत्थरों के लिये दौड़ने को, तत्पर है आदमी।
आदमीयता के मामले में, सिफर है आदमी।
पत्थरों की सड़क पर, सरपट दौड़ती जिंदगी;
पत्थरों के शहर में रहकर, पत्थर है आदमी।
काला धन बढ़ता रहे, युगत लगाता आदमी।
खुद के कुबेर होने का गाना गाता आदमी।
करना सदुपयोग धन का, कहाँ से सीखे वो ,
पत्थर तुड़वाता और पत्थर लगवाता आदमी।
काहे इस तरह खुदगर्ज बना है आदमी।
इंसानियत का ही मर्ज बना है आदमी।
खुदा ने भेजा है दौलत बना कर के उसे,
फिर धरती का क्यों कर्ज बना है आदमी।
खुदा ने भेजा है दौलत बना कर के उसे,
फिर धरती का क्यों कर्ज बना है आदमी।
भगवान उठा ले, क्रोध में, बोलता है आदमी।
देख यमदूत छुपने की जगह, ढूंढता है आदमी।
खुद को जिन्दा रखने को जान भी लेनी हो अगर,
खुद के सगों तक के लिए जहर, घोलता है आदमी।
जीते जी कितनी आग लगाता है आदमी।
केवल अपना दिल ही जलाता है आदमी।
मरने पर होती दो कुंतल लकड़ी ही काफी
पूरे ही बदन को फूंक आता है आदमी।
****
कहाँ गए कान्हा, भारत कौरवान्वित हो रहा है।
होता द्रौपदी चीर हरण, गांडीव छुप के रो रहा है।
गांधारी के सामने घूमता, नग्न होकर दुर्योधन,
अँधा धृतराष्ट्र तो, चीख सुनकर भी सो रहा है।
मोह में पड़ा धृतराष्ट्र, शकुनि दुष्टता बो रहा है।
पापों के समक्ष झुक, भीष्म विचलित हो रहा है।
गुरु द्रोण सिखाते दाव आज, बस धन की खातिर
अर्जुन का छोड़ा तीर, लक्ष्य अपना खो रहा है।रावणों के बाजार में, सीता फंस गयी है।
चीर खींचने, दुर्योधनों की टोली जम गयी है।
न कृष्ण कहीं अब, न जटायु ही दिखता
धृतराष्ट्रों की आत्मा में कालिख भर गयी है।
खिंच रहा है चीर नित, भय में है जी रही नारी।
विधि विधिवत है नहीं, न्याय की भी लाचारी।
अब तो पुकारती रो रोकर, बस तुमको ही है वो
कब आओगे तुम हे! लाज बचाने कृष्ण मुरारी।
बुद्धि पर कब्ज़ा किया, नीयत खोटी ने।
पथ से भ्रष्ट किया बैठने में, गोटी ने।
भुला दिए हैं, इंसानियत के कायदे सब;
कायदे से मिलती, दो वक्त की रोटी ने।
पथ से भ्रष्ट किया बैठने में, गोटी ने।
भुला दिए हैं, इंसानियत के कायदे सब;
कायदे से मिलती, दो वक्त की रोटी ने।
मैं तो अपने आईने को पोंछता चमकाता रहा।
वह नमकहराम, मेरा बूढ़ा चेहरा दिखाता रहा।
मैंने रखा था संभाले उसे, हमेशा नये के जैसा,
और वक्त के साथ वो बेवफा हुआ जाता रहा।
आये अंधड़ के गर्भ में, गर्द छुपा होता है।
पत्थर की सुन्दर, मोटी दीवारों के अंदर,
नहीं जान सकते, कितना दर्द छुपा होता है।
नहीं जान सकते, कितना दर्द छुपा होता है।
मुश्किलों के आगे झुका नहीं करते।
लेकर जाता है, हौसला ही डर से आगे;
ऊंचाइयां छूने से चुका नहीं करते।
आम आदमी ही सही, बड़े अरमान पर,
चले हैं सपने अपने, ऊँची उड़ान पर।
रखते हैं हौसला सितारों को छूने की,
पैर जमीं पर, निगाह आसमान पर।
पूर्वजों ने संजोया, उसको मिटाए जा रहे हो।
आज के लिए कल को भी, खाये जा रहे हो।
आगे की पीढ़ी को तो, डाल ही रहे संकट में
अपने भी काल के मुंह में समाये जा रहे हो।
ऊँचे उड़ते जा रहे हो, नीचे हवा तो जरूर होगी।
कहीं कोई पिन लग जाय, ऊंचाई कफूर होगी।
जितना
ऊँचा जाओगे
जमीन उतनी दूर होगी।
ज्यादा
ऊँचे से गिरोगे, हड्डी
चकनाचूर होगी।
जो होना होकर रहेगा, कह गए संत फ़क़ीर।
हानि लाभ की पीटना, फिर क्यों यूँ लकीर।
ऊपर वाले को रखना, बसा के मन में हरदम,
खुश रहेगा तो लिखेगा, बढ़िया वह तकदीर।
सभी चाहते, सब कुछ मुझे ही मिल जाय।
औरों का फूल सूखे, मेरी कली खिल जाय।
एक दूसरे की हड़पने में सब लगे पड़े हैं,
चाहे कहीं तक भी पूरी दुनिया गिर जाय।
औरों का फूल सूखे, मेरी कली खिल जाय।
एक दूसरे की हड़पने में सब लगे पड़े हैं,
चाहे कहीं तक भी पूरी दुनिया गिर जाय।
पच्छिम
में अम्बर
लाल होते,
आती शाम सुहानी एक।
शाम को ख़त्म हो जाती रोज, दिन भर की कहानी एक।
अँधेरा-उजाला देखते,
सुबह और शाम रोटियां
सेकते
ये उम्र ढल जायेगी, ख़त्म हो जायेगी
जिंदगानी एक।
ईश्वर ने बनाया स्वर्ग धरनी पर ।
बना रही नर्क तुम्हारी करनी, पर ।
करते खिलवाड़ जल, थल, हवा से
क़तर रहे, जिंदगी का अपनी पर ।
अजीब सी एक पहेली है जिंदगी।
गजब मुसीबतें झेली है जिंदगी।
सुलझाना यूँ आसान नहीं होता,
समझ लो तो सहेली है जिंदगी।
गजब मुसीबतें झेली है जिंदगी।
सुलझाना यूँ आसान नहीं होता,
समझ लो तो सहेली है जिंदगी।
मिटटी में ही जन्म लिया है, मिटटी से ही खाना।
मिटटी ही देती सबको, कपड़ा, लत्ता, आशियाना।
मिटटी ला कर घर भर लेते, मिटटी से इतराना।
मिटटी में ही पालन-पोषण, मिटटी में मिल जाना।
तकनिकी
विकास पर बेशक फक्र करो।
पर होड़ में इंसानियत का ना क़त्ल करो।
हो पायेगी जिंदगी तुम्हारी हसीन तभी
इंसानियत के हर वसूलों का क़द्र करो।
ढूंढते रहे सुख, बंगले, कार में।
पूरी जिंदगी बिताये बेकार में।
उसके नाम का घूंट पिया नहीं,
डूबे रह गये मन के विकार में।
पूरी जिंदगी बिताये बेकार में।
उसके नाम का घूंट पिया नहीं,
डूबे रह गये मन के विकार में।
ठूंठ पेड़ के नीचे, छाया ढूंढने से क्या मिलेगा !
मरू में, जल की काया ढूंढने से क्या मिलेगा !
कृपण से दान की उम्मीद, होता रखना बेकार;
निर्दयी के दिल में, माया ढूंढने से क्या मिलेगा !
दुनिया कितनी बेढंगी हुई जाती है
।
आबो हया छोड़ नंगी हुई जाती है ।
कायदे की बातों से दोस्ती को छोड़
बेक़ायदों की ही
संगी हुई जाती है ।
किसी गिरते हुये इंसान को उठाकर देखो।
अपने में से भूखे को रोटी खिलाकर
देखो।
तुम्हारे चेहरे पर खुशियां खुद छा जाएँगी,
कोई रोता हुआ मिले, उसे हंसाकर देखो।
झुकता वही है जिसमें जान होती है।
अकड़ तो मुर्दे की पहचान होती है।
झुकने में क्या हर्ज! जब प्यार मिले,
मुहब्बत से जिंदगी आसान होती है।
अब हर चीज को और तरह से देखने लगी है।
उठा कर चीजों को कागजों में लपेटने लगी है।
बीबी जबसे विदेश से आई, मैं डरने लगा हूँ,
घर का पुराना सामान, निकाल फेंकने लगी है।
निकले
बाजार में दर्द खरीदने।
दुखड़ा
रो दिया अपना गरीब ने।
ले जा मुफ्त
में, है मुझपे बहुत,
दे दूंगा सब जो दिया नसीब ने।
दूसरों
की देख कर के, कभी ना कर डाह।
अपने परिश्रम से ही, पूरी होती हर चाह।
धनी से ज्यादा निर्धन की सहन-शक्ति,
किसी और के सम्पति की, दूजे को न थाह।
आज के ज़माने में हो रहा ऐसा क्यों
है!
रिश्तों के बीच में आ जाता पैसा
क्यों है!
पैसे से आंका जाता आदमी का बड़प्पन,
चरित्र हो गया भिखारी के जैसा क्यों
है!
फेस बुक भी कितनी बड़ी बीमारी है।
औरतों के लिए बन गयी लाचारी है।
जन्म दिन तक की चुगली कर देता,
कहाँ उम्र छुपाते जिंदगी गुजारी है।
व्हाट्सअप पर सूक्तियों की भरमार है।
प्रवचन सुनने, न कहीं जाने की दरकार है।
मोबाइल के आगे, चैनल फीके पड़ रहे,
बाबा लोगों का भी बंद हो रहा व्यापार है।
औरतों के लिए बन गयी लाचारी है।
जन्म दिन तक की चुगली कर देता,
कहाँ उम्र छुपाते जिंदगी गुजारी है।
व्हाट्सअप पर सूक्तियों की भरमार है।
प्रवचन सुनने, न कहीं जाने की दरकार है।
मोबाइल के आगे, चैनल फीके पड़ रहे,
बाबा लोगों का भी बंद हो रहा व्यापार है।
गुजर जायेंगे हम, जिधर से वक्त चाहेगा।
रह लेंगे अकेले भी, गर वो विरक्त चाहेगा।
कब तक रहेगा छुपा, आसमानों के पीछे,
आना होगा एक दिन, अगर भक्त चाहेगा।
रह लेंगे अकेले भी, गर वो विरक्त चाहेगा।
कब तक रहेगा छुपा, आसमानों के पीछे,
आना होगा एक दिन, अगर भक्त चाहेगा।
किसी की मजबूत
होती, किसी की कमजोर।
कई तो अपनी उड़ाते, काट के दूसरों
की डोर।
कभी न कभी उड़ जाती है, सब की ही पतंग
देखना
होता बस, कब चल रहा हवा का जोर।दो कदम क्या आगे बढ़ जाती है।
तू है कि कितना शोर मचाती है।
सरि से क्यों न सीखती जिंदगी ?
चुपचाप ही बहती चली जाती है।
चढ़े उन्माद चोटी तक, थिरकता गीत गाओ तुम।
खड़े हों उठ वतन वाले, लहर ऐसी उठाओ तुम।
रिपु अनेक घुस आये, करते इस जमीं को जख्मी,
जवानी सो रही अब भी, उसे कविवर जगाओ तुम ।
घेरी आलस्य निद्रा है, शर शब्द चलाओ तुम।
काई, पड़ी जो ऊपर है, शब्दों से हटाओ तुम।
लुट जाये ना सब कुछ, सोती रह जाय जवानी ये,
भूली जो दिशा मंजिल, उसे फिर से चेताओ तुम।
रग में है शीतल रक्त, उसकी ताप बढ़ाओ तुम।
जमे ना निरर्थक ही, देकर आंच खौलाओ तुम।
कर रहे शत्रु कुछ भी हैं, जवानी जा रही सहती,
न हो, गड़ जाय सिर नीचे, चिल्लाकर बताओ तुम।
हुए शहीद अनेकों वीर, शौर्य गाथा सुनाओ तुम।
पड़े सोये हैं जज्बे जो, उन्हें झकझोर जगाओ तुम।
है भटका जा रहा युवा, बनो अब पथ प्रदर्शक तुम,
लगा दो आग लेखनी से, राहें जगमगाओ तुम।
अवसरवादियों में आज, देश भक्ति जगाओ तुम।
त्यागें स्वार्थ वे अपना, सोच में बदलाव लाओ तुम।
कहाँ राणा, शिवा, सुभाष; आजाद को बुलाओ तुम।
लाये जो रवानी वह, जुनूँ का बिगुल बजाओ तुम।
त्यागें स्वार्थ वे अपना, सोच में बदलाव लाओ तुम।
कहाँ राणा, शिवा, सुभाष; आजाद को बुलाओ तुम।
लाये जो रवानी वह, जुनूँ का बिगुल बजाओ तुम।
मुहब्बत
तुम खारा हो, मगर मैंने, जी भर तुम्हें पीया है ।
बुझाकर प्यास तुमसे ही, जिंदगी को जीया है ।
रे! समुन्दर की लहरों! सुनो, तुम मधुर बड़ी;
मैंने तो जिह्वा से नहीं, नैनों से स्वाद लिया है ।
बुझाकर प्यास तुमसे ही, जिंदगी को जीया है ।
रे! समुन्दर की लहरों! सुनो, तुम मधुर बड़ी;
मैंने तो जिह्वा से नहीं, नैनों से स्वाद लिया है ।
तन्हाइयों में रह के, जब कभी ऊब जाऊं ।
जी चाहता, समुन्दर पे, मेरे मेहबूब, जाऊं ।
जब तक जी चाहे, जी भर के निहारूं उनको,
तेरी यादों से भला कि लहरों में डूब जाऊं ।
जी चाहता, समुन्दर पे, मेरे मेहबूब, जाऊं ।
जब तक जी चाहे, जी भर के निहारूं उनको,
तेरी यादों से भला कि लहरों में डूब जाऊं ।
समुन्दर की लहरों ने, आकर, कानों में कहा ।
खेलो कुछ घड़ी संग, मेरे अरमानों में, कहा ।
खारा नीर लिए तो क्या! सुनाती गीत मधुर हूँ,
तुम भी तो प्यारे एक, मेरे दीवानों में, कहा ।
खेलो कुछ घड़ी संग, मेरे अरमानों में, कहा ।
खारा नीर लिए तो क्या! सुनाती गीत मधुर हूँ,
तुम भी तो प्यारे एक, मेरे दीवानों में, कहा ।
उदास कभी जब होता हूँ, लहरों के पास चला जाता हूँ ।
सुनातीं हैं वो दास्ताँ अपनी, मैं अपनी कुछ सुनाता हूँ ।
चंचल अठखेलियां उनकी, कर देतीं हैं कोसों दूर गम,
मिलाकर के साथ दिल उनके, मैं खेलने लग जाता हूँ ।
बरसात की झड़ी, एक छतरी में हम दोनों।
मेरे वो साथ खड़ी, एक छतरी में हम दोनों।
कल तक दिखा रही थी, अपनी जो हमको,
करके आंखे बड़ी, एक छतरी में हम दोनों।
दिया तुमने तो क्या! पिया तो मैंने था ।
जहर का स्वाद कैसा, लिया तो मैंने था ।
शिकायत करें तो किस बात की तुमसे,
काम भी कुछ ऐसा, किया तो मैंने था ।
देखता हूँ, गुजरता जब उधर से, पार्क का वह बेंच।
शोभा पाता है एक जोड़े से नये, पार्क का वह बेंच।
याद कर वक्त अपना, सोचता और दुआ देता हूँ,
उनमें से न कोई एक बदल ले, पार्क का वह बेंच।
शोभा पाता है एक जोड़े से नये, पार्क का वह बेंच।
याद कर वक्त अपना, सोचता और दुआ देता हूँ,
उनमें से न कोई एक बदल ले, पार्क का वह बेंच।
हम दोनों में, मुहब्बत का जज्बा जरूर था।
अपनी अपनी ताकत पर, दोनों को गुरुर था।
चल न सके दूर तक हम, रास्ते पर एक,
उन्हें दौलत का, हमें मुहब्बत का सुरूर था।
दिल से लहू बहा और आँखों से पानी।
आखिर किया भी तो दोनों ने नादानी।
एक खूबसूरती पे मरा, दूसरा आदतन,
ढोने को मजबूर हुए, दुखभरी कहानी।
आखिर किया भी तो दोनों ने नादानी।
एक खूबसूरती पे मरा, दूसरा आदतन,
ढोने को मजबूर हुए, दुखभरी कहानी।
होते ही बरसात, उछल पड़ी नदी।
बाँध कर सामान, चल पड़ी नदी।
उमड़ा पिया समुन्दर का प्यार ,
डूबने को उसमें, मचल पड़ी नदी।
कर दिया बेकाबू, रंगरेजन ने।
डाल दिया है जादू, रंगरेजन ने।
होता कभी, रंगीन बड़ा दिल,
मार दिया है झाड़ू, रंगरेजन ने।
मार दिया है झाड़ू, रंगरेजन ने।
उठते ही प्रातः मुंह लग जाती, चाय की प्याली ।
अच्छे दिन का बिगुल बजाती, चाय की प्याली ।
मैंने पकड़ा हाथ, ये छोड़ी ना अब तक साथ,
प्याली भर जीवन रोज दे जाती, चाय की प्याली ।
अच्छे दिन का बिगुल बजाती, चाय की प्याली ।
मैंने पकड़ा हाथ, ये छोड़ी ना अब तक साथ,
प्याली भर जीवन रोज दे जाती, चाय की प्याली ।
उसका दिल आईना जान, देखा दिल अपना ।
भरा है प्यार कितना, नापा, बना के नपना ।
ठूंसना चाहा और, दबा दबा कर जबरदस्ती,
वह भी कहाँ की कम थी, लगा लिया ढकना ।
भरा है प्यार कितना, नापा, बना के नपना ।
ठूंसना चाहा और, दबा दबा कर जबरदस्ती,
वह भी कहाँ की कम थी, लगा लिया ढकना ।
हम मुंबई में रहे, वो कांडला।
फेस बुक पर चलता रहा मामला।
संयोग से हो गया उनका भी,
हमारे ही शहर में तबादला ।
फेस बुक पर चलता रहा मामला।
संयोग से हो गया उनका भी,
हमारे ही शहर में तबादला ।
कितनी फुर्सत थी, तूने सबके अलग नसीब बनाया।
किसी को अमीर तो, किसी को बड़ा गरीब बनाया।
भेजना था इतनी दूर, अपनों को ही अपनों से जब,
काहे को किसी को, अपनों के इतना करीब बनाया।
कभी बिखरी तो सी लिये जिंदगी।
रूठते मनाते यूँ जी लिये जिंदगी।
खारा, सादा, ठंडा, गरम, जैसी रही,
पानी के घूंट सा पी लिये जिंदगी।
रूठते मनाते यूँ जी लिये जिंदगी।
खारा, सादा, ठंडा, गरम, जैसी रही,
पानी के घूंट सा पी लिये जिंदगी।
बिन बात के अनबन, याद हैं बचपन की बातें ।
बात बात पर अनसन, याद हैं बचपन की बातें ।
इतराना नए वस्त्र पहन, पाकर नए खिलौने,
पार हो गए पचपन, याद हैं बचपन की बातें ।
बात बात पर अनसन, याद हैं बचपन की बातें ।
इतराना नए वस्त्र पहन, पाकर नए खिलौने,
पार हो गए पचपन, याद हैं बचपन की बातें ।
गली के नुक्कड़ पे हंसना हँसाना, यारों के साथ।
कैंटीन में चाय की चुस्की लगाना, यारों के साथ।
लगता है कि वो गुजरा पल, हो अभी बीता कल,
बिना काम मीलों बाइक दौड़ाना, यारों के साथ।
नन्हें नन्हें पांवों से घूम आएगा।
अंगना में मेरे खुशियां लुटायेगा।
लड़का या लड़की हमें क्या पता,
कुछ हफ़्तों में जग जान जायेगा।
अंगना में मेरे खुशियां लुटायेगा।
लड़का या लड़की हमें क्या पता,
कुछ हफ़्तों में जग जान जायेगा।
मुझसे भी पहले सुबह, वह जग जाती है।
उसकी पायल की मुझे, रुनझुन जगाती है।
अपने बिस्तर को छोड़, दौड़ी चली आती,
पोती मेरी, मेरे बिस्तर पर पड़ जाती है।
जब कभी आंधियां आतीं थीं।
हमें हिला तक नहीं पातीं थीं।
हम ठूंठ बनकर खड़े हो जाते,
मजबूर होकर चली जातीं थीं।
जब दिल है तो मुहब्बत होगी ही।
कर लिया तूने तो कूबत होगी ही।
अब आंसुओं से घबराता है क्यों,
इश्क की राह में मुसीबत होगी ही।
तुमने देखा होगा, काला जब अम्बर था।
तमाशबीनों की भीड़ का गजब मंजर था।
आकाश में दूर तक फैला जो धुआं था,
कुछ और नहीं, जल रहा मेरा ही घर था।
फेस-बुक ने तो बड़ा कमाल कर दिया।
हसरतों को आज, मालामाल कर दिया।
मेरे संदेशों को बार बार, मिटाते रहे वो,
फिर सामने, बीतने पर, साल कर दिया।
तमाशबीनों की भीड़ का गजब मंजर था।
आकाश में दूर तक फैला जो धुआं था,
कुछ और नहीं, जल रहा मेरा ही घर था।
फेस-बुक ने तो बड़ा कमाल कर दिया।
हसरतों को आज, मालामाल कर दिया।
मेरे संदेशों को बार बार, मिटाते रहे वो,
फिर सामने, बीतने पर, साल कर दिया।
जैसे जैसे उम्र की चोटी चढ़ती गयी ।
हृदय रेखा प्रगाढ़तम कढ़ती गयी ।
पा गयी जब माँ का कलेजा तन में
प्यार की तिजोरी और बढ़ती गयी ।
पा गयी जब माँ का कलेजा तन में
प्यार की तिजोरी और बढ़ती गयी ।
प्यार से किसी को, भला तसल्ली कहाँ होती।
घूंट भर पी लेने से, कोई टल्ली कहाँ होती।
डूबी हुई उसके नाम में उल जुल बक लेती है,
हो गयी दीवानी जो, वो झल्ली कहाँ होती।
गली में उनकी जाने न कितने घायल हुए।
उँगलियों से उन, बहुतों के नंबर डायल हुए।
इधर को तो रुख करने से भी कतराते रहे,
वैसे उनकी अदाओं के तो हम भी कायल हुए।
तुम्हें कुछ, और आँखों को कुछ, कहते देखा।
प्यार किसी से, बाँहों में किसी के रहते देखा।
खेलते खेल गजब, फरेब की दुनिया के तुम,
तुम्हारे मजे में, किसी का अश्क बहते देखा।
सबने कहा चेहरे को चाँद, जुल्फों को बादल।
आँखों को समुन्दर, काजल को रात श्यामल।
पुकारते रहे हरदम उसे, उसका नाम लेकर,
पूरी दुनिया में, एक हम ही तो ठहरे पागल।
आँखों को समुन्दर, काजल को रात श्यामल।
पुकारते रहे हरदम उसे, उसका नाम लेकर,
पूरी दुनिया में, एक हम ही तो ठहरे पागल।
हम दोनों में, मुहब्बत का जज्बा जरूर था।
अपनी अपनी ताकत पर, दोनों को गुरुर था।
चल न सके दूर तक हम, रास्ते पर एक,
उन्हें दौलत का, हमें मुहब्बत का सुरूर था।
उसके पास जो था, वो यार बनाती ।
मैं चाहता कि उसे वह, प्यार बनाती ।
मगर वह तो इतनी जालिम निकली,
उसको ही हरदम, हथियार बनाती ।
हिरनियों से माँगा प्यार, गरमा गयीं ।
कलियों से माँगा प्यार, शरमा गयीं ।
प्यार के लिए रंग भी कुछ कम न थे,
तितलियों से माँगा प्यार, भरमा गयीं ।
वादा तो कर लेते सभी, निभाना बड़ी बात है।
चुराना आसान पर, दिल लुटाना बड़ी बात है।
शुरू तो कर देते सभी, मुहब्बत की गाड़ी को,
आखिरी अंजाम तक, पहुँचाना बड़ी बात है।
बेवफाई का गम लिए जिंदगी बिताती रही।
बात अपनों से, अपने मन की बताती रही।
उस जहाँ में भी जाकर, वो मिलेगा या नहीं,
चिन्ता उसे, उसकी चिता तक सताती रही।
चुराना आसान पर, दिल लुटाना बड़ी बात है।
शुरू तो कर देते सभी, मुहब्बत की गाड़ी को,
आखिरी अंजाम तक, पहुँचाना बड़ी बात है।
बेवफाई का गम लिए जिंदगी बिताती रही।
बात अपनों से, अपने मन की बताती रही।
उस जहाँ में भी जाकर, वो मिलेगा या नहीं,
चिन्ता उसे, उसकी चिता तक सताती रही।
कितनी बात थी दिल में, अनकही रह गयी।
न चाहा दिल ने कभी जो, वही रह गयी।
रखे थे करके जमा, तेरी मुहब्बत के रतन,
चोर समय चट कर गया, बस बही रह गयी।
न चाहा दिल ने कभी जो, वही रह गयी।
रखे थे करके जमा, तेरी मुहब्बत के रतन,
चोर समय चट कर गया, बस बही रह गयी।
बड़े दिनों बाद मिले हो, कुछ कहो न ।
ऐसे क्यों होंठ सिले हो, कुछ कहो न ।
लम्बी ये खामोशियाँ कह रही हैं कुछ,
रखे क्या हमसे गिले हो, कुछ कहो न ।
माघ शुक्ल पंचमी, धरा पर धरा बसंत कदम।
सर्दी का अंत, लहर उठा ऋतुराज का परचम।
पुष्प, भ्रमर, पक्षी और प्रेमी, नभ स्वछन्द में,
लगे हुए हैं हृदय सजाने, अनुराग का सरगम।
सर्दी का अंत, लहर उठा ऋतुराज का परचम।
पुष्प, भ्रमर, पक्षी और प्रेमी, नभ स्वछन्द में,
लगे हुए हैं हृदय सजाने, अनुराग का सरगम।
जब कभी आंधियां आतीं थीं।
हमें हिला तक नहीं पातीं थीं।
हम ठूंठ बनकर खड़े हो जाते,
मजबूर होकर चली जातीं थीं।
हमें हिला तक नहीं पातीं थीं।
हम ठूंठ बनकर खड़े हो जाते,
मजबूर होकर चली जातीं थीं।
जब दिल है तो मुहब्बत होगी ही।
कर लिया तूने तो कूबत होगी ही।
अब आंसुओं से घबराता है क्यों,
इश्क की राह में मुसीबत होगी ही।
गैरों के मिले खत को गौर से ताड़ा उन्होंने।
हमारे लिखे खतों को पाते ही फाड़ा उन्होंने।
खत लिखने की जुर्रत हुई तो कैसे उसकी,
सुनाकर जोर से, सरेआम चिंघाड़ा उन्होंने।
हमारे लिखे खतों को पाते ही फाड़ा उन्होंने।
खत लिखने की जुर्रत हुई तो कैसे उसकी,
सुनाकर जोर से, सरेआम चिंघाड़ा उन्होंने।
फोन की घंटी पूरी की पूरी जाती रही।
जबाब देने से मगर वो कतराती रही।
अनुत्तरित उन फोनों की सूची बड़ी,
मेरे जानम को रात भर रुलाती रही।
जबाब देने से मगर वो कतराती रही।
अनुत्तरित उन फोनों की सूची बड़ी,
मेरे जानम को रात भर रुलाती रही।
तुम्हारे पीछे, अपने घर को घर न कहा।
तुम मुंह मोड़ते रहे, बेवफा पर न कहा।
होगी तुम्हारी आदत, दिखाने की अदा,
आ जाओगे एक दिन, सोचकर न कहा।
उसे ही पाने से मजबूर रखता, जो मुझे पसंद है।
खुदा, वो सब क्यों दूर रखता? जो मुझे पसंद है।
जो कुछ तू देता, बच्चों सा मुझे पसंद न आता,
वह सब दूसरों के हाथ पर रखता, जो मुझे पसंद है।
सच है, मेरे बटुये पर नजर गड़ाया है।
इश्क की गाड़ी पर, पटरी पर दौड़ाया है।
हर कदम पर दिया है उसने साथ हमारा,
वही है जिसने जीवन का रंग जमाया है।
निकल पड़े हम बाहर, घनघोर बदरी में।
उपरवाले ने पलटा, रखा पानी गगरी में।
मजबूरी कहें या उसकी मेहरबानी इसे,
दोनों ने साथ बिताया, एक ही छतरी में।
उपरवाले ने पलटा, रखा पानी गगरी में।
मजबूरी कहें या उसकी मेहरबानी इसे,
दोनों ने साथ बिताया, एक ही छतरी में।
No comments:
Post a Comment