Thursday, 10 October 2019

Manch muktak 2



मुक्तक  

असंभव कुछ नहीं अगर ठान ले आदमी। 

मुकाम को ठीक से पहचान ले आदमी। 
लगन और साहस है उसकी बड़ी  ताकत, 
बस मेहनत से चलना जान ले आदमी।  

समय था, अकेले में दिख जाता आदमी। 
बड़ी ताकत और सुकून पाता आदमी। 
आज है कि इतना खुंखार हो चुका वह,
डर लगता, अकेले में दिख जाता आदमी। 


शेर कहलाने को जानवर बन जाता है आदमी।
बुरा मान जाता जानवर कहलाता है आदमी
साधना होता है इसे जब कभी मतलब की बात,
भीतर सोया हुआ जानवरजगाता है आदमी

पत्थरों के लिये दौड़ने कोतत्पर है आदमी। 
आदमीयता के मामले मेंसिफर है आदमी। 
पत्थरों की सड़क परसरपट दौड़ती जिंदगी;
पत्थरों के शहर में रहकरपत्थर है आदमी। 


काला धन बढ़ता रहेयुगत लगाता आदमी 
खुद के कुबेर होने का गाना गाता आदमी 
करना सदुपयोग धन का, कहाँ से सीखे वो ,
पत्थर तुड़वाता और पत्थर लगवाता आदमी 


काहे इस तरह खुदगर्ज बना है आदमी। 
इंसानियत का ही मर्ज बना है आदमी। 
खुदा ने भेजा है दौलत बना कर के उसे,    
फिर धरती का क्यों कर्ज बना है आदमी। 


भगवान उठा ले, क्रोध में,  बोलता है आदमी। 
देख यमदूत छुपने की जगह, ढूंढता है आदमी। 
खुद को जिन्दा रखने को  जान भी लेनी हो अगर,
खुद के सगों तक के लिए जहर, घोलता है आदमी। 


जीते जी कितनी आग लगाता है आदमी।
केवल अपना दिल ही जलाता है आदमी।
मरने पर होती दो कुंतल लकड़ी ही काफी 
पूरे ही बदन को फूंक आता है आदमी।

   ****

कहाँ गए कान्हाभारत कौरवान्वित हो रहा है।
होता द्रौपदी चीर हरणगांडीव छुप के रो रहा है।
गांधारी के सामने घूमतानग्न होकर दुर्योधन,
अँधा धृतराष्ट्र तोचीख सुनकर भी सो रहा है।


मोह में पड़ा धृतराष्ट्रशकुनि दुष्टता बो रहा है।
पापों के समक्ष झुकभीष्म विचलित हो रहा है।
गुरु द्रोण सिखाते दाव आजबस धन की खातिर
अर्जुन का छोड़ा तीर, लक्ष्य अपना खो रहा है।


रावणों के बाजार मेंसीता फंस गयी है।
चीर खींचनेदुर्योधनों की टोली जम गयी है।
 कृष्ण कहीं अब जटायु ही दिखता
धृतराष्ट्रों की आत्मा में कालिख भर गयी है।


खिंच रहा है चीर नितभय में है जी रही  नारी।
विधि विधिवत है नहींन्याय की भी लाचारी।
अब तो पुकारती रो रोकरबस तुमको ही है वो
कब आओगे तुम हेलाज बचाने कृष्ण मुरारी।



बुद्धि पर कब्ज़ा कियानीयत खोटी ने।
पथ से भ्रष्ट किया बैठने मेंगोटी ने।
भुला दिए हैंइंसानियत के कायदे सब;
कायदे से मिलतीदो वक्त की रोटी ने।  

मैं तो अपने आईने को पोंछता चमकाता रहा।
वह नमकहराम, मेरा बूढ़ा चेहरा दिखाता रहा।
मैंने रखा था संभाले उसेहमेशा नये के जैसा,
और वक्त के साथ वो बेवफा हुआ जाता रहा।

पतझड़ के पीछे, मौसम सर्द छुपा होता है।  
आये अंधड़ के गर्भ में, गर्द छुपा होता है। 
पत्थर की सुन्दर, मोटी दीवारों के अंदर, 
नहीं जान सकते, कितना दर्द छुपा होता है।  

हौसला वाले कभी रूका नहीं करते। 

मुश्किलों के आगे झुका नहीं करते। 
लेकर जाता है, हौसला ही डर से आगे;
ऊंचाइयां छूने से चुका नहीं करते। 


आम आदमी ही सही, बड़े अरमान पर, 
चले हैं सपने अपने, ऊँची उड़ान पर। 
रखते हैं हौसला सितारों को छूने की,
पैर जमीं पर, निगाह आसमान पर। 




पूर्वजों ने संजोया, उसको मिटाए जा रहे हो।
आज के लिए कल को भी, खाये जा रहे हो।
आगे की पीढ़ी को तो, डाल ही रहे संकट में
अपने भी काल के मुंह में समाये जा रहे हो।

ऊँचे उड़ते जा रहे हो, नीचे हवा तो जरूर होगी। 
कहीं कोई पिन लग जाय, ऊंचाई कफूर होगी।  
जितना ऊँचा जाओगे जमीन उतनी दूर होगी। 
ज्यादा ऊँचे से गिरोगेहड्डी चकनाचूर होगी। 


जो होना होकर रहेगा, कह गए संत फ़क़ीर। 
हानि लाभ की पीटना, फिर क्यों यूँ लकीर। 
ऊपर वाले को रखना, बसा के मन में हरदम, 
खुश रहेगा तो लिखेगा, बढ़िया वह तकदीर। 





सभी चाहते, सब कुछ मुझे ही मिल जाय।
औरों का फूल सूखे, मेरी कली खिल जाय।
एक दूसरे की हड़पने में सब लगे पड़े हैं,
चाहे कहीं तक भी पूरी दुनिया गिर जाय।
 


पच्छिम में अम्बर लाल होते, आती शाम सुहानी एक।
शाम को ख़त्म हो जाती रोज, दिन भर की कहानी एक।
अँधेरा-उजाला देखते, सुबह और शाम रोटियां सेकते
ये उम्र ढल जायेगी, ख़त्म हो जायेगी जिंदगानी एक।

ईश्वर ने बनाया स्वर्ग धरनी पर 
बना रही नर्क तुम्हारी करनी, पर 
करते खिलवाड़ जल, थल, हवा से
क़तर रहे, जिंदगी का अपनी पर ।


अजीब सी एक पहेली है जिंदगी।
गजब मुसीबतें झेली है जिंदगी।
सुलझाना यूँ आसान नहीं होता,
समझ लो तो सहेली है जिंदगी।



मिटटी में ही जन्म लिया हैमिटटी से ही खाना।
मिटटी ही देती सबकोकपड़ालत्ताआशियाना।
मिटटी ला कर घर भर लेतेमिटटी से इतराना।
मिटटी में ही पालन-पोषणमिटटी में मिल जाना।

तकनिकी विकास पर बेशक फक्र करो। 
पर होड़ में इंसानियत का ना क़त्ल करो।    
हो पायेगी जिंदगी तुम्हारी हसीन तभी  
इंसानियत के हर वसूलों का क़द्र करो। 

ढूंढते रहे सुखबंगलेकार में।
पूरी जिंदगी बिताये बेकार में।
उसके नाम का घूंट पिया नहीं,
डूबे रह गये मन के विकार में।


ठूंठ पेड़ के नीचे, छाया ढूंढने से क्या मिलेगा !
मरू में, जल की काया ढूंढने से क्या मिलेगा !
कृपण से दान की उम्मीद, होता रखना बेकार;
निर्दयी के दिल में, माया ढूंढने से क्या मिलेगा !

दुनिया कितनी बेढंगी हुई जाती है
आबो हया छोड़ नंगी हुई जाती है
कायदे की बातों से दोस्ती को छोड़
बेक़ायदों की ही संगी हुई जाती है


किसी गिरते हुये इंसान को उठाकर देखो।  
अपने में से भूखे को रोटी खिलाकर देखो।
तुम्हारे चेहरे पर खुशियां खुद छा जाएँगी,  
कोई रोता हुआ मिले, उसे हंसाकर देखो।

झुकता वही है जिसमें जान होती है।  
अकड़ तो मुर्दे की पहचान होती है। 
झुकने में क्या हर्ज! जब प्यार मिले, 
मुहब्बत से जिंदगी आसान होती है।  


अब हर चीज को और तरह से देखने लगी है।
उठा कर चीजों को कागजों में लपेटने लगी है।
बीबी जबसे विदेश से आई, मैं डरने लगा हूँ,
घर का पुराना सामान, निकाल फेंकने लगी है।

निकले बाजार में दर्द खरीदने।
दुखड़ा रो दिया अपना गरीब ने।
ले जा मुफ्त में, है मुझपे बहुत,
दे दूंगा सब जो दिया नसीब ने।


दूसरों की देख कर के, कभी ना कर डाह।
अपने परिश्रम से ही, पूरी होती हर चाह।
धनी से ज्यादा निर्धन की सहन-शक्ति,
किसी और के सम्पति की, दूजे को  थाह।

आज के ज़माने में हो रहा ऐसा क्यों है!
रिश्तों के बीच में आ जाता पैसा क्यों है!
पैसे से आंका जाता आदमी का बड़प्पन, 
चरित्र हो गया भिखारी के जैसा क्यों है!



फेस बुक भी कितनी बड़ी बीमारी है।
औरतों के लिए बन गयी लाचारी है।
जन्म दिन तक की चुगली कर देता, 
कहाँ उम्र छुपाते जिंदगी गुजारी है।


व्हाट्सअप पर सूक्तियों की भरमार है। 
प्रवचन सुनने, न कहीं जाने की दरकार है। 
मोबाइल के आगे, चैनल फीके पड़ रहे,   
बाबा लोगों का भी बंद हो रहा व्यापार है।

गुजर जायेंगे हमजिधर से वक्त चाहेगा।
रह लेंगे अकेले भीगर वो विरक्त चाहेगा।
कब तक रहेगा छुपाआसमानों के पीछे,
आना होगा एक दिनअगर भक्त चाहेगा।

किसी की मजबूत होती, किसी की कमजोर।
कई तो अपनी उड़ाते, काट के दूसरों की डोर।
कभी कभी उड़ जाती है, सब की ही पतंग
देखना होता बसकब चल रहा हवा का जोर।

दो कदम क्या आगे बढ़ जाती है। 
तू है कि कितना शोर  मचाती है। 
सरि से क्यों न सीखती जिंदगी ?
चुपचाप ही बहती चली जाती है।


चढ़े उन्माद चोटी तकथिरकता गीत गाओ तुम।
खड़े हों उठ वतन वालेलहर ऐसी उठाओ तुम।
रिपु अनेक घुस आये, करते इस जमीं को जख्मी,
जवानी सो रही अब भीउसे कविवर जगाओ तुम 

घेरी आलस्य निद्रा हैशर शब्द चलाओ तुम।
काईपड़ी जो ऊपर हैशब्दों से हटाओ तुम।
लुट जाये ना सब कुछसोती रह जाय जवानी ये,
भूली जो दिशा मंजिल, उसे फिर से चेताओ तुम।


रग में है शीतल रक्तउसकी ताप बढ़ाओ तुम। 
जमे ना निरर्थक हीदेकर आंच खौलाओ तुम। 
कर रहे शत्रु कुछ भी हैंजवानी जा रही सहती
 होगड़ जाय सिर नीचेचिल्लाकर बताओ तुम। 


हुए शहीद अनेकों वीरशौर्य गाथा सुनाओ तुम।
पड़े सोये हैं जज्बे जोउन्हें झकझोर जगाओ तुम।
है भटका जा रहा युवा, बनो अब पथ प्रदर्शक तुम,
लगा दो आग लेखनी से, राहें जगमगाओ तुम।   

अवसरवादियों में आज, देश भक्ति जगाओ तुम।
त्यागें स्वार्थ वे अपना, सोच में बदलाव लाओ तुम। 
कहाँ राणाशिवासुभाष; आजाद को बुलाओ तुम। 
लाये जो रवानी वह, जुनूँ का बिगुल बजाओ तुम।



मुहब्बत

तुम खारा होमगर मैंने, जी भर तुम्हें पीया है 
बुझाकर प्यास तुमसे हीजिंदगी को जीया है 
रेसमुन्दर की लहरोंसुनोतुम मधुर बड़ी;
मैंने तो जिह्वा से नहींनैनों से स्वाद लिया है 


तन्हाइयों में रह केजब कभी ऊब जाऊं 
जी चाहतासमुन्दर पेमेरे मेहबूबजाऊं 
जब तक जी चाहेजी भर के निहारूं उनको,
तेरी यादों से भला कि लहरों में डूब जाऊं 
समुन्दर की लहरों नेआकरकानों में कहा 
खेलो कुछ घड़ी संगमेरे अरमानों मेंकहा 
खारा नीर लिए तो क्यासुनाती गीत मधुर हूँ,
तुम भी तो प्यारे एकमेरे दीवानों मेंकहा 

उदास कभी जब होता हूँलहरों के पास चला जाता हूँ 
सुनातीं हैं वो दास्ताँ अपनीमैं अपनी कुछ सुनाता हूँ 
चंचल अठखेलियां उनकीकर देतीं हैं कोसों दूर गम,
मिलाकर के साथ दिल उनकेमैं खेलने लग जाता हूँ 


बरसात की झड़ीएक छतरी में हम दोनों।
मेरे वो साथ खड़ीएक छतरी में हम दोनों।
कल तक दिखा रही थीअपनी जो हमको,
करके आंखे बड़ीएक छतरी में हम दोनों। 


दिया तुमने तो क्यापिया तो मैंने था 
जहर का स्वाद कैसालिया तो मैंने था 
शिकायत करें तो किस बात की तुमसे,
काम भी कुछ ऐसाकिया तो मैंने था 

देखता हूँगुजरता जब उधर सेपार्क का वह बेंच। 
शोभा पाता है एक जोड़े से नयेपार्क का वह बेंच। 
याद कर वक्त अपनासोचता और दुआ देता हूँ,   
उनमें से  कोई एक बदल लेपार्क का वह बेंच।  

हम दोनों मेंमुहब्बत का जज्बा जरूर था। 
अपनी अपनी ताकत परदोनों को गुरुर था।  
चल  सके दूर तक हमरास्ते पर एक
उन्हें दौलत काहमें मुहब्बत का सुरूर था। 

  
दिल से लहू बहा और आँखों से पानी।
आखिर किया भी तो दोनों ने नादानी।
एक खूबसूरती पे मरा, दूसरा आदतन,
ढोने को मजबूर हुए, दुखभरी कहानी। 


होते ही बरसातउछल पड़ी नदी।
बाँध कर सामानचल पड़ी नदी।
उमड़ा पिया समुन्दर का प्यार ,
डूबने को उसमेंमचल पड़ी नदी।  


कर दिया बेकाबूरंगरेजन ने। 
डाल दिया है जादूरंगरेजन ने। 
होता कभीरंगीन बड़ा दिल,
 
मार दिया है झाड़ूरंगरेजन ने।



उठते ही प्रातः मुंह लग जातीचाय की प्याली 
अच्छे दिन का बिगुल बजातीचाय की प्याली 
मैंने पकड़ा हाथये छोड़ी ना अब तक साथ,
प्याली भर जीवन रोज दे जातीचाय की प्याली 

उसका दिल आईना जानदेखा दिल अपना 
भरा है प्यार कितनानापाबना के नपना 
ठूंसना चाहा औरदबा दबा कर जबरदस्ती,
वह भी कहाँ की कम थीलगा लिया ढकना  

हम मुंबई में रहेवो कांडला। 
फेस बुक पर चलता रहा मामला।
संयोग से हो गया उनका भी,
हमारे ही शहर में तबादला 

कितनी फुर्सत थीतूने सबके अलग नसीब बनाया।
किसी को अमीर तो, किसी को बड़ा गरीब बनाया।
भेजना था इतनी दूरअपनों को ही अपनों से जब,
काहे को किसी को, अपनों के इतना करीब बनाया।
  
कभी बिखरी तो सी लिये जिंदगी।
रूठते मनाते यूँ जी लिये जिंदगी।
खारासादाठंडागरमजैसी रही
पानी के घूंट सा पी लिये जिंदगी।


बिन बात के अनबनयाद हैं बचपन की बातें 
बात बात पर अनसनयाद हैं बचपन की बातें 
इतराना नए वस्त्र पहनपाकर नए खिलौने,
पार हो गए पचपनयाद हैं बचपन की बातें 

गली के नुक्कड़ पे हंसना हँसानायारों के साथ।
कैंटीन में चाय की चुस्की लगानायारों के साथ।
लगता है कि वो गुजरा पलहो अभी बीता कल,
बिना काम मीलों बाइक दौड़ानायारों के साथ।

नन्हें नन्हें पांवों से घूम आएगा। 
अंगना में मेरे खुशियां लुटायेगा। 
लड़का या लड़की हमें क्या पता,
कुछ हफ़्तों में जग जान जायेगा। 

मुझसे भी पहले सुबह, वह जग जाती है।
उसकी पायल की मुझे, रुनझुन जगाती है।
अपने बिस्तर को छोड़, दौड़ी चली आती,
पोती मेरी, मेरे बिस्तर पर पड़ जाती है।

जब कभी आंधियां आतीं थीं।
हमें हिला तक नहीं पातीं थीं।
हम ठूंठ बनकर खड़े हो जाते,
मजबूर होकर चली जातीं थीं।

जब दिल है तो मुहब्बत होगी ही।
कर लिया तूने तो कूबत होगी ही।
अब आंसुओं से घबराता है क्यों,
इश्क की राह में मुसीबत होगी ही।

तुमने देखा होगाकाला जब अम्बर था।
तमाशबीनों की भीड़ का गजब मंजर था।
आकाश में दूर तक फैला जो धुआं था,
कुछ और नहींजल रहा मेरा ही घर था।


फेस-बुक ने तो बड़ा कमाल कर दिया।
हसरतों को आज, मालामाल कर दिया।
मेरे संदेशों को बार बार, मिटाते रहे वो
फिर सामनेबीतने पर, साल कर दिया।


जैसे जैसे उम्र की चोटी चढ़ती गयी 
हृदय रेखा प्रगाढ़तम कढ़ती गयी 
पा गयी जब माँ का कलेजा तन में
प्यार की तिजोरी और बढ़ती गयी 


प्यार से किसी कोभला तसल्ली कहाँ होती।
घूंट भर पी लेने सेकोई टल्ली कहाँ होती।
डूबी हुई उसके नाम में उल जुल बक लेती है,
हो गयी दीवानी जोवो झल्ली कहाँ होती।

गली में उनकी जाने  कितने घायल हुए।
उँगलियों से उनबहुतों के नंबर डायल हुए।
इधर को तो रुख करने से भी कतराते रहे,

वैसे उनकी अदाओं के तो  हम भी कायल हुए।


तुम्हें कुछऔर आँखों को कुछकहते देखा।  
प्यार किसी सेबाँहों में किसी के रहते देखा।
खेलते खेल गजबफरेब की दुनिया के तुम, 
तुम्हारे मजे मेंकिसी का अश्क बहते देखा।



सबने कहा चेहरे को चाँद, जुल्फों को बादल।
आँखों को समुन्दर, काजल को रात श्यामल। 
पुकारते रहे हरदम उसे, उसका नाम लेकर,
पूरी दुनिया में, एक हम ही तो ठहरे पागल।

हम दोनों मेंमुहब्बत का जज्बा जरूर था। 
अपनी अपनी ताकत परदोनों को गुरुर था।  
चल  सके दूर तक हमरास्ते पर एक
उन्हें दौलत काहमें मुहब्बत का सुरूर था। 



उसके पास जो थावो यार बनाती 
मैं चाहता कि उसे वहप्यार बनाती 
मगर वह तो इतनी जालिम निकली,
उसको ही हरदमहथियार बनाती 


हिरनियों से माँगा प्यारगरमा गयीं 
कलियों से माँगा प्यारशरमा गयीं 
प्यार के लिए रंग भी कुछ कम  थे,

तितलियों से माँगा प्यारभरमा गयीं 



वादा तो कर लेते सभीनिभाना बड़ी बात है।
चुराना आसान पर, दिल लुटाना बड़ी बात है।
शुरू तो कर देते सभीमुहब्बत की गाड़ी को,

आखिरी अंजाम तकपहुँचाना बड़ी बात है।


बेवफाई का गम लिए जिंदगी बिताती रही।
बात अपनों सेअपने मन की बताती रही।
उस जहाँ में भी जाकर, वो मिलेगा या नहीं,

चिन्ता उसेउसकी चिता तक सताती रही। 


कितनी बात थी दिल मेंअनकही रह गयी।
 चाहा दिल ने कभी जोवही रह गयी।
रखे थे करके जमातेरी मुहब्बत के रतन,  

चोर समय चट कर गयाबस बही रह गयी।


बड़े दिनों बाद मिले होकुछ कहो  
ऐसे क्यों होंठ सिले होकुछ कहो  
लम्बी ये खामोशियाँ कह रही हैं कुछ,

रखे क्या हमसे गिले होकुछ कहो  


माघ शुक्ल पंचमीधरा पर धरा बसंत कदम।
सर्दी का अंतलहर उठा ऋतुराज का परचम।
पुष्पभ्रमरपक्षी और प्रेमीनभ स्वछन्द में,

लगे हुए हैं हृदय सजानेअनुराग का सरगम।


जब कभी आंधियां आतीं थीं।
हमें हिला तक नहीं पातीं थीं।
हम ठूंठ बनकर खड़े हो जाते,
मजबूर होकर चली जातीं थीं।


जब दिल है तो मुहब्बत होगी ही।
कर लिया तूने तो कूबत होगी ही।
अब आंसुओं से घबराता है क्यों,

इश्क की राह में मुसीबत होगी ही।


गैरों के मिले खत को गौर से ताड़ा उन्होंने। 
हमारे लिखे खतों को पाते ही फाड़ा उन्होंने। 
खत लिखने की जुर्रत हुई तो कैसे उसकी, 
सुनाकर जोर सेसरेआम चिंघाड़ा उन्होंने।  

फोन की घंटी पूरी की पूरी जाती रही। 
जबाब देने से मगर वो कतराती रही।   
अनुत्तरित उन फोनों की सूची बड़ी,    
मेरे जानम को रात भर रुलाती रही। 

तुम्हारे पीछेअपने घर को घर  कहा। 
तुम मुंह मोड़ते रहेबेवफा पर  कहा। 
होगी तुम्हारी आदतदिखाने की अदा,  
 जाओगे एक दिनसोचकर  कहा। 



उसे ही पाने से मजबूर रखताजो मुझे पसंद है। 
खुदावो सब क्यों दूर रखताजो मुझे पसंद है। 
जो कुछ तू देताबच्चों सा मुझे पसंद  आता,
वह सब दूसरों के हाथ पर रखताजो मुझे पसंद है। 

सच है, मेरे बटुये पर नजर गड़ाया है।
इश्क की गाड़ी पर, पटरी पर दौड़ाया है।
हर कदम पर दिया है उसने साथ हमारा,
वही है जिसने जीवन का रंग जमाया है। 

निकल पड़े हम बाहर, घनघोर बदरी में।
उपरवाले ने पलटा, रखा पानी गगरी में।   
मजबूरी कहें या उसकी मेहरबानी इसे,   
दोनों ने साथ बिताया, एक ही छतरी में।   

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