जहाँ हाइकु १७ वर्णों में लिखी जाने वाली कविता है माहिया ३४ मात्राओं में लिखी जाती है। माहिया का गेय होने आवश्यक है जब कि हाइकु में गेयता या उसका तुकांत होना अनिवार्य नहीं है। हाइकु का प्रादुर्भाव जापान में हुआ और माहिया पंजाब वाला एक लोक गीत है।
माहिया और हाइकु कुछ समानता अवश्य है, पर दोनों एक दूसरे के पूरक नहीं हो सकते। दोनों लघु कविता हैं और तीन पंक्तियों में लिखी जाती हैं।
१. हिंदी में हाइकु लिखने का क्रम ५-७-५ वर्ण है जब कि माहिया का क्रम है १२-१०-१२ मात्रा।
२. हाइकु तुकांत नहीं होता जबकि माहिया की प्रथम व अंतिम पंक्तियाँ तुकांत होती हैं।
३. हाइकु को अभी भी सूक्षतम कविता होने का गौरव प्राप्त है।
४. माहिया भाव प्रधान कविता है, हाइकु में भाषा का पैंतरा
५. हाइकु में दो भाव अथवा बिम्ब होना आवश्यक है। दोनों बिम्बों में विच्छेदन होना चाहिए।
६. माहिया की सुंदरता उसके गायकी में है जबकि हाइकु की सुंदरता उसके सारगर्भिता में है।
नूतन वर्ष
सुन्दर तीर्थयात्री
द्वार पे खड़ा
आया बसंत
गौरैयों का मुखड़ा
खुशियों भरा
त्यौहार बीता
अभी भी
नहीं आया
मेरा नौकर
पड़े झुग्गी
में
नव वर्ष
आरम्भ
दोपहरी में
प्रथम मॉस
दूसरे दिन मेरे
दुखते हाथ
प्रथम माह
खर्च का
बना रहा
अब हिसाब
मेरी झोपड़ी
इसी में बसंत की
पहली भोर
अद्भुत पल
बसंत का
आरम्भ
जहाँ मैं
जन्मा
मिट्टी का तन
खिला मेरा बसंत
प्रभु की कृपा
पहली चाय
वर्ष की उठा रही
नभ में भाप
टूटा छप्पर
स्वागत में जुटा
पहली वर्षा
दो दिन छुट्टी
मजदूर मनाते
गांव में मौज
कितनी बार
नववर्ष सौगात
ये पंखा देगा
नन्हां वो मुन्ना
सोया गहरी नींद
पतंग दबा
दातों को किया
मजकर के तेज
भात न भोज
बिल्ली ले गयी
नववर्ष की पाई
हंस के खाई
हल्का हिमपात
खोद के बना रहा
श्वान स्थान
बर्फ के फाहे
आधे रस्ते में ख़त्म
वर्षा की झड़ी
चूहा भी सो के
आराम कर रहा
वर्षा की झड़ी
ठीक करता
पुजारी जीर्ण वस्त्र
वर्षा की ऋतु
बसंती हवा
लोमडे व शैतान
दिखने लगे
मित्रों,
कोबयाशी इस्सा के अंग्रेजी में अनुवादित कुछ हाइकु, मुझे एक वेब साइट पर पढ़ने को मिले। उनमें से कुछ हाइकु, मैं हिंदी में अनुवादित करके यहाँ पोस्ट करता रहूँगा ताकि हाइकु लिखने पढ़ने वालों को हाइकु की बारीकियों एवं धार का ज्ञान हो सके।
हाइकु के जनक बाशो के ये दो प्राक्कथन यहाँ उद्धृत करना चाहूंगा -
१ 'यदि किसी ने एक भी अच्छी कविता लिख दिया, उसका जीवन व्यर्थ नहीं गया।'
२ 'एक अच्छे हाइकु के शब्द थम जाते हैं किन्तु व्याख्या चलती रहती है।'
ज्ञातव्य हो कि इस्सा के हाइकु जापानी परिप्रेक्ष्य में लिखे गए हैं, कई स्थितियों में जापानी परिवेश भारत से बिलकुल भिन्न हैं। मैंने उन परिस्थितियों में हाइकु को भारतीय परिप्रेक्ष्य में ही रखा है। कई बार जापानी परिवेश भारत से बिल्कुल ही भिन्न होने के कारण, जापानी हाइकु कि हिंदी में व्याख्या तो कि जा सकती है किन्तु हिंदी में हाइकु रूपांतर करना असंभव प्रतीत होता है। ऐसी बहुत सी परिस्थितियां हैं जैसे कि वहां कि भौगोलिक स्थिति, व्यव्हार, जीवन, संस्कृति और त्यौहार इत्यादि जिनका भारत से दूर दूर तक कोई समानता नहीं है और जिन्हें समझने के लिए पर्याप्त अध्ययन की आवश्यकता है, ऐसे हाइकु को मैंने छोड़ देना ही उचित समझा। मुझे उम्मीद है कि ये हाइकु पढ़कर सदस्यों को अपनी लेखनी में सुधार करने का अवसर मिलेगा। चूकि मैंने अंग्रेजी अनुवाद पढ़कर ही हिंदी में रूपांतर किया है, उस अंग्रेजी अनुवादक का नाम तो नहीं ज्ञात परन्तु मैं आभार व्यक्त करता हूँ।
एस डी तिवारी
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