Wednesday, 27 June 2018

Relgadi

रेलगाड़ी
दनदनाती, सिटी बजाती, चली आती, रेलगाड़ी।
हजारों ले जाती, हजारों ढोकर लाती, रेलगाड़ी।

दो दिलों को जुड़ते देखा, कितनों को बिछुड़ते देखा।
दिल्ली का स्टेशन है ये, जगह के लिए झगड़ते देखा।
चली बिठाये, नन्हीं, खिड़की से हाथ हिलाती, रेलगाड़ी। 

प्लेटफार्म पर ही काट ली है, दोनों ने जिंदगानी।
मोहन चाय बेचते, और मोहसिन बोतल का पानी।
दूर पास के हर कोने को छूकर आती, रेलगाड़ी।

वक्त-बेवक्त, गर्मी-बरसात, इसको है आराम कहाँ।
सभी कुचलते स्टेशन को,  मिलता इसे इनाम कहाँ।
रात दिन का भेद, नहीं है कभी मनाती, रेलगाड़ी।

लेट लतीफी झेली सबने,  बहुतों ने रात गुजारी है।
स्टेशन से गायब सामान, यात्री की जिम्मेदारी है।
चलने से पहले भीड़ दिखती है अकुलाती, रेलगाड़ी।

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