Tuesday, 26 June 2018

Dilli ke bajar me

दिल्ली के बाजार में

लुट गए हम तो भैया, दिल्ली के बाजार में।
लोग, कितने कमा गए, उलटे सीधे व्यापार में।

टी. वी. पर विज्ञापन होता, 'माल की है लूट'।
दाम दूना लिख के कहते, आधे की है छूट।
पैसे हाथ आते ही विक्रेता का जिम्मा ख़त्म,
सामान में मिल जाय अगर, कोई टूट फूट।
बुद्धि चकरा जाती, मोल भाव के तकरार में। लुट गए  ...

अलग अलग मंडी में होता, घूमने का लफड़ा। 
अनाज, सब्जी, श्रृंगार की मंडी या हो कपड़ा।
चांदनी चौक, खारी बावली, सदर और शाहदरा, 
माल में शॉपिंग करनी तो बजट चाहिए तगड़ा।
नाक दबा के जाना होता मच्छी के बाजार में। लुट गए  ...

चोरी के पुर्जे बिकते, आदमी के गुर्दे बिकते।
तरह तरह के मिष्ठान, मंडी में मुर्गे बिकते।
बिक जाता है ईमान, दिल का भी सौदा होता,
दिल्ली में राजनीति के, बड़े बड़े गुर्गे बिकते।
खरीद फरोख्त होती रहती, बनने सरकार में। लुट गए  ...

सुई से जहाज, मंडी की दुल्हन सी सजावट।
कभी घपलेबाजी होती, और कभी मिलावट।
सस्ता है, महंगा है, सबका काम चल जाता,
हर मौसम दाम बढ़ जाता, होती ना फिर गिरावट। 
सरकार भी हाथ खड़े कर देती, इसके सुधार में। लुट गए  ...

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