इंद्रप्रस्थ
इंद्रप्रस्थ, एक अद्भुत नगरी।
अपनों के ही कलह में उजड़ी ।
दुर्योधन की धारणा भ्रष्ट।
हथियाना चाहा इंद्रप्रस्थ।
विनाशकाल, विपरीत बुद्धि।
लेकर मामा की युक्ति।
कुटिल चाल, शकुनि ने चली।
इंद्रप्रस्थ एक अद्भुत नगरी।
इंद्रप्रस्थ लगा, पांडव के हाथ।
थे सच्चे पांडव कर्मठ, कुशल;
श्रम से बनाये, भव्य महल।
दुर्योधन देखा, नीयत बदली।
इंद्रप्रस्थ एक अद्भुत नगरी।
सोचा, महासम्राट जीत रण।
शकुनि ने, यह करने से रोका।
और अनैतिक काम में झोंका।
भांजे! पांडव, तुमसे भी बली।
इंद्रप्रस्थ एक अद्भुत नगरी।
स्व बंधुओं को अति पीड़ा दी।
खुलेआम द्रौपदी चीर हरा।
नीचता से नीचे, नीच गिरा।
अपमानित, भरी सभा में कली।
इंद्रप्रस्थ एक अद्भुत नगरी।
लौटे पांडव, वर्ष तेरह बाद।
इंद्रप्रस्थ, छीना दुर्योधन।
उसने किया कुछ ऐसा यतन।
घुसें न पांडव अपनी ही गली।
इंद्रप्रस्थ एक अद्भुत नगरी।
कृष्ण बने, पांडव शांति दूत।
पांच गांव से, टल जाता युद्ध।
संधि ठुकराया, दुर्योधन दुष्ट।
मामा की ही पुनः सलाह ली।
इंद्रप्रस्थ एक अद्भुत नगरी।
पिता व गुरु का सम्मान गया।
प्रीत गयी, मूल्यों की नीति गयी।
वापस ना आयी, जो बीत गयी।
कलुषित भावना, मन में फली।
इंद्रप्रस्थ एक अद्भुत नगरी।
रखे, ग्यारह अक्षौहिणी सेना।
पांडव पाये, प्रभु कृष्ण का साथ।
करने, दुष्ट कौरवों से दो हाथ।
बुरी से लड़ेगी, नीति भली।
इंद्रप्रस्थ एक अद्भुत नगरी।
गुरु, पिता की आज्ञा न माना।
महत्वाकांक्षा व गलत सलाह,
लायी दुर्योधन को युद्ध की राह।
कौरव विनाश, होनी न टली।
इंद्रप्रस्थ एक अद्भुत नगरी।
धर्म और सत्य से भटकाकर।
शकुनि ने महाभारत रचाकर।
कौरव पांडव में कराई लड़ाई।
लड़ मरे परस्पर, भाई भाई।
अंत में धर्म विजय की डगरी।
इंद्रप्रस्थ एक अद्भुत नगरी।
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