Thursday, 30 March 2017

Maa tune kya kya n kiye


माँ! मेरे लिए क्या नहीं किया

होठों पर मेरे, मुस्कराहट के लिए।
ओ री माँ! तूने क्या क्या न किये।
जाने अनजाने तुझे कष्ट भी दिए
उफ़ तक न की, रही होठों को सिये।

कहानी सुनाई, लोरी भी गाई होगी।
मेरे कारण, तुझे थकान आई होगी।
मुझे चैन की नींद सुलाने के लिए,
तू अँखियों  को अपनी जगाई होगी।

मेरे मैले वस्त्र, बार बार धोई होगी।
मेरे जिद्द करने पर, तू रोइ होगी।
मेरे आराम में, कोई बाधा न पड़े,
अपने आराम के क्षण खोई होगी।

मेरे खेलने पर तू, रोक लगाती थी।
और नए खिलौने भी ले आती थी।
तेरे मन की जो अथाह गहराई थी
तब मुझे, समझ नहीं आती थी।

मेरे लिए किस किस से लड़ी होगी।
जाने किस किस हाल में पड़ी होगी।
मेरी हर मुसीबतों को भगाने में
रही, आंधी तूफान में खड़ी होगी।

भाइयों से लड़, तुझे तड़पाया होगा।
तेरी बातों का माखौल उड़ाया होगा।
तूने कई बार झगड़ा छुड़ाया होगा
प्रेम और शांति का पाठ पढ़ाया होगा।

चिंता रखी होगी, मेरे स्कूल जाने की।
मेरे नहाने की, समय पर खाने की।
मेरी खातिर, तूने अपने सिर पर,
रखी होगी कितना बोझ ज़माने की।

मैंने जो चखा, तेरे हाथों का पका। 
अमृत का रस, वह मधुर सा लगा।
वो स्वाद, वैसा रस, कहीं भी और
तेरे हाथों के सिवा, मिल न सका।

मिला जो सुख, तेरी आँचल की छाँव।
वैसा आराम, कहाँ और किसी ठाँव।
ढूंढते हैं लोग, आसमानों में  कहीं
जन्नत की ठौर, तले तेरे ही पांव।

मेरे भी दर्द में कराहा, मेरी माँ ने।
मेरे हर काम को सराहा, मेरी माँ ने।
मुझ पर ही कर देती सब न्यौछावर
बदले कुछ नहीं चाहा, मेरी माँ ने।

- एस० डी० तिवारी



माँ! मेरे लिए क्या नहीं किया

होठों पर मेरे, मुस्कराहट के लिए, ओ री माँ! तूने क्या क्या न किये।
जाने अनजाने तुझे कष्ट भी दिए; उफ़ तक न की, रही होठों को सिये।

कहानी सुनाई, लोरी भी गाई होगी, मेरे कारण, तुझे थकान आई होगी।
मुझे चैन की नींद सुलाने के लिए, तू अँखियों  को अपनी जगाई होगी।

मेरे मैले वस्त्र, बार बार धोई होगी, मेरे जिद्द करने पर, तू रोइ होगी।
मेरे आराम में, कोई बाधा न पड़े, अपने आराम के क्षण खोई होगी।

मेरे खेलने पर तू, रोक लगाती थी, और नए खिलौने भी ले आती थी।
तेरे मन की जो अथाह गहराई थी, तब मुझे, समझ नहीं आती थी।

मेरे लिए किस किस से लड़ी होगी, जाने किस किस हाल में पड़ी होगी।
मेरी हर मुसीबतों को भगाने में, रही, आंधी तूफान में खड़ी होगी।

भाइयों से लड़, तुझे तड़पाया होगा, तेरी बातों का माखौल उड़ाया होगा।
तूने कई बार झगड़ा छुड़ाया होगा, प्रेम और शांति का पाठ पढ़ाया होगा।

चिंता रखी होगी, मेरे स्कूल जाने की, मेरे नहाने की, समय पर खाने की।
मेरी खातिर, तूने अपने सिर पर, रखी होगी कितना बोझ ज़माने की।

मैंने जो चखा, तेरे हाथों का पका, अमृत का रस, वह मधुर सा लगा।
वो स्वाद, वैसा रस, कहीं भी और, तेरे हाथों के सिवा, मिल न सका।

मिला जो सुख, तेरी आँचल की छाँव, वैसा आराम, कहाँ और किसी ठाँव।
ढूंढते हैं लोग, आसमानों में  कहीं, जन्नत की ठौर, तले तेरे ही पांव।

मेरे भी दर्द में कराहा मेरी माँ ने, मेरे हर काम को सराहा मेरी माँ ने।
मुझ पर ही कर देती सब न्यौछावर , बदले कुछ नहीं चाहा, मेरी माँ ने।

- एस० डी० तिवारी 
57 C, ऊना एन्क्लेव, मयूर विहार फेज-1
दिल्ली 110091

(यह मेरी मौलिक रचना है )



Saturday, 25 March 2017

Haiku mala

haiku

डाल की पात
बइठल ऊपर
बैठ कर निश्चिन्त
किरौना खात

नाहीं अघात
पालक के पत्ते पे
किरौना खात

*******

खड़ा हो जाता
अपना सीना तान
बौराया आम

भौंरे तमाम
देख के जुट जाते
बौराया आम

आया बसंत
स्वागत में झूमता
बौराया आम

स्वामी का मन
देख कर प्रसन्न
बौराया आम

मन में दौड़ी
उम्मीद की किरण
बौराया आम


*********

उन्मत्त मन
करता विचरण
मेघ आवारा

पूरे आकाश
डोलता मारा मारा
मेघ आवारा

चला है झूम
ढक लेने को धूप
मेघ आवारा

हवा का रुख
चल देता उधर
मेघ आवारा

बना के नाव
तैरता हवा पर
मेघ आवारा

कब ठहरा
नभ का है वो भौंरा
मेघ आवारा

हो जाता कवि
देख चाँद की छवि
मेघ आवारा

देखे न कोई
चाँद को ढक लेता
मेघ आवारा

खेलता संग
चाँद के लुका छुपी
मेघ आवारा

कब रुकेगा
यहाँ पे बरसने
मेघ आवारा


***********

तन के संग
करता मन स्वच्छ
रोज नहाना

पूजा की ठाना
पुजारी को पड़ता
रोज नहाना

जब भी होता
शुभ कार्य पे जाना
रोज नहाना

स्वस्थ रखता
उत्तम खाना और
रोज नहाना

जाड़े के दिन
है किसके वश की
रोज नहाना

ढूंढे बहाना
पड़े नहीं पप्पू को
रोज नहाना

माँ दे दे खाना
है कहती रहती
रोज नहाना

रहोगे ताजा
परीक्षा भर बेटा
रोज नहाना

ठन्डे मुल्कों में
कितना है मुश्किल
रोज नहाना

तंदुरुस्ती की
होता रखे खजाना
रोज नहाना

*************


जूड़ा सजाने
शाम होते ही चली
जूही की कली

जैसे ही खिली
महक गयी हवा
जूही की कली

भीनी महक
मन जाय बहक
जूही की कली

चीन की चाय
महकाती है स्वाद
जूही की कली

नहाते डाल
पानी में जगन्नाथ
जूही की कली

दक्षिण वासी
हरेक अभिलाषी
जूही की कली

गुच्छे का गुच्छा
ले के बेचने चली
जूही की कली

माला में गूँथ
गोरी के गले पड़ी
जूही की कली

लगती भली
जुड़े पे मढ़ जाती
जूही की कली

शाम सुहानी
बना देती दीवानी
जूही की कली

मंदिर

**********

उतरे नेता
सिर पर चुनाव 
कमर कस

रक्षा में डटे
सीमा पर सैनिक
कमर कस

परीक्षा पास 
छात्रों ने लिया अब 
कमर कस 

चला किसान
ले के खुर्पा कुदाल
कमर कस

श्रमिक डटे 
उत्पादन बढ़ाने 

कमर कस  

***********
सच बोलना
है किसी के लिए भी
बड़ी चुनौती

खेल तो लेते
पदक जीत लाना
बड़ी चुनौती

शौच की सोच
सबमे जगा देना
बड़ी चुनौती

अपना मन
नियंत्रित करना
बड़ी चुनौती

दिल जीतना
रण जितने से भी
बड़ी चुनौती


******

निकल जाती
सितारों की बारात
चाँदनी रात

देख के ऑंखें
नभ में टिक जातीं
चांदनी रात

हरेक रात
जी चाहता कि होवे
चांदनी रात

ताजमहल
जैसे चाँद उतरा
चांदनी रात

चाँद अपना
निहारता चकवा
चांदनी रात

*****


ठण्ड / सर्दी की रात

नहाती रही
घास समूची रात
ठण्ड की रात

खोया था चाँद
ढूंढती रहीं ऑंखें
ठण्ड की रात

छिटके मोती
पार्क की घास पर
ठण्ड की रात

जागता रहा
मेरे साथ अलाव
ठण्ड की रात

दौरे का दौर
रजाई में अकेली
ठण्ड की रात



****************

होत विहान
लेकर चले खेत
लोटा का पानी

कलश हेतु
भर कर ले आना
लोटा का पानी


लगती खाली
दूब घास के बिना
पूजा की थाली

अच्छत हल्दी
गुड़ दही से सजी
पूजा की थाली

बहु ले आई
पुजारी ने संभाली
पूजा की थाली

उठा के रखे
पंडित जी बगल
पूजा की थाली

***********

मन में इच्छा
उड़ने की भरते
उड़ते पंछी

बनाया यान
देख कर इंसान
उड़ते पंछी

चंद्र ग्रहण
शाम को लगा देते
उड़ते पंछी

नभ को देते
मनमोहक छवि
उड़ते पंछी

हो जाते बड़े
गगन में मगन
उड़ते पंछी

ठहर जाते
मेरे गाँव भी कई
उड़ते पंछी

बागों में घूम
मचा देते हैं धूम
उड़ते पंछी

शाम सुहानी
करते घर जाते
उड़ते पंछी

बच्चों का मन
देख के उड़ जाता
उड़ते पपंछी

पंख पा जाते
हम भी बन जाते
उड़ाते पंछी

***********

मचाते पंछी
मेरे गांव में शोर
होते ही भोर

रंभाती गाय
हुआ दूध तैयार
होते ही भोर

बज उठती
मंदिर की है घंटी
होते ही भोर

खिल उठता
गुड़हल का फूल
होते ही भोर

आकर मक्खी
जगाने लग जाती
होते ही भोर

लेकर बस्ते
नन्हें मुन्ने चलते
होते ही भोर

मनेगी होली
होने लगी तैयारी
होते ही भोर


लेकर लोटा
चले खेत की ओर
गांव की भोर
*************

कर देता है
उर को पुलकित
शिशु का स्पर्श

दिव्य आनंद
अनुभूति कराता
शिशु का स्पर्श

हर लेता है
मन के सब कष्ट
शिशु का स्पर्श

खिल उठता
करके रोम रोम
शिशु स्पर्श

आनंद भर
गोदी में उठाकर
शिशु का स्पर्श

********


व्यथा
घुलन शील
अश्रु में घुल जाती
मन की व्यथा

कह के कथा
वो कम कर लेती
अपनी व्यथा

बढ़ा देते जो
वे अपने ही होते
मन की व्यथा

किससे कहे
अपनों का ही दिया
मन की व्यथा


निर्धन पाता
भूख से कहीं ज्यादा
तंज की व्यथा

हांसे न कोई
डर से न कहती
मन की व्यथा

पढ़ेगा कौन
उतारे भी पन्नों पे
मन की व्यथा

अपना दर्द
अपनों में ही मथा
बढ़ायी व्यथा

बात की घात
जो दे गयी बहुत
मन की व्यथा

उधार दिया
मिलेगा ब्याज संग
मन की व्यथा

*************

होता है बसा  
कल्पना का संसार
बच्चों के मन

कोरा कागज
कुछ भी लिख लो
बच्चों का मन

जैसे की जल
स्वच्छ और निर्मल
बच्चों का मन

राग न द्वेष
निश्छल निःसंदेह
बच्चों का मन

बहल जाता
मिल जाता खिलौना
बच्चों का मन

टूटे न कहीं
खिलौने के कारण
बच्चों का मन

खिला सा देख
खिल जाता है मन
बच्चों का मन

लड़ झगड़
हो जाता एक शीघ्र
बच्चों का मन

बच्चों के साथ
खेलो गर हो जाता
बच्चों सा मन

रहे प्रसन्न
सबसे बड़ा धन
बच्चों का मन

*****************

चाहता दिल
लगाए रहें टकी
चाँद की छवि

नहीं थकता
निहारते चकोर
चाँद की छवि

चांदनी रात
पाकर इतराती
चाँद की छवि

चाहती सदा
छत पर ही सोना
चाँद की छवि

चाँद देखता
आकाश से झील में
चाँद की छवि

गांव का वासी 
नित दर्शन भागी 
चाँद की छवि 

करवा चौथ
चलनी से चलती
चाँद की छवि

चाँद देखता
छत से नभ पर
चाँद की छवि

लगा के बिंदी
सज जाता अम्बर
चाँद की छवि

बदकिस्मती
देख न पाता रवि
चाँद की छवि


*************

बड़ा शकुन
देती आँखों में भर
शोख लहर

देख के दिल
खेलने लग जाता
शोख लहर

ढाती कहर
बिगड़ जाने पर  
शोख लहर

मन को छूती
सागर में उठती 
शोख लहर

पांव छूकर
दे दिल को ठंडक
शोख लहर

***************
जोत बोकर
किसान अगोरता
गेहूं का खेत

कृष मुस्काता
देख लहलहाता
गेहूं का खेत

होली पश्चात
पक कर तैयार
गेहूं का खेत

सोने का ढेर
पक कर लगता
गेहूं का खेत

भरता पेट
अपने भारत का
गेहूं का खेत

************
बेर

छोटा सा फल
रखे काटों का ढेर
बेर का पेड़

स्वाद में मीठा
गुणकारी अनूठा
बेर का फल

पड़ोस बसा
केला झेला दुर्दशा
बेर का पेड़

थोड़ा सा गूदा
गुठली अति बज्र
बेर का फल

राम को भाया
सबरी का वो जूठा
बेर का फल

कहते ज्ञानी
बेर खा के तुरत
पीना न पानी

प्रभावी दवा
आयुर्वेद का बना
बेर का फल

पेड़ हिलाना
काटों से बचकर
बेर हो पाना

रंग कमाल
जैसे गोरी के गाल
बेर का फल

शिव का होता
शिवरात्रि का भोग
बेर का फल

************

रहना पड़ा
प्यार के हासिये पे
पहरा पड़ा



रहते संग
भिन्न धर्म के लोग
बांटते नेता

राष्ट्र है एक
भाषा क्षेत्र अनेक
बांटते नेता

मान लें कैसे
बांटे व देश भक्त
नेता को ऐसे

कोई हो खंड
मिल जाए प्रभुता
बांटते नेता

जाति के नाम
बँट जाए समाज
चाहते नेता





****

सीखा तुमसे
दिल ने प्रीति की रीति
मन के मीत

सुनाओ कोई
प्यार  से भरा गीत
मन  का मीत

तुम आ जाते
मन में जगती प्रीति
मन के मीत

मिल के दिल
हो जाता पुलकित
मन के मीत

तुम संग मैं
पयार को लूंगा जीत
मन के मीत



****

रखती पीला
रंग है चटकीला
फूली सरसों

कृषक मन
देख होता प्रसन्न
फूली सरसों

जगाती मन
उम्मीद की किरण
फूली सरसों

चुनरी पीली
धरती ने ओढ़ ली
फूली सरसों

करने चली
बसंत का स्वागत
फूली सरसों


पका अनार

****

जलती आग
धधकाती बुझाती
बहती हवा

पेड़ों के पत्ते
हिला बेनी डुलाती
बहती हवा

खिलते फूल
सुगंध लिए आती
बहती हवा

बच्चे प्रसन्न
उड़ा देती पतंग
बहती हवा

भोर की बेला
मन मेरा जुड़ाती
बहती हवा


*************

हो आयी उम्र
करने चलें तीर्थ
सफेद बाल

उम्र की बात
चुगली कर देते
सफेद बाल

आयु छुपाये
रंग कर के काला
सफेद बाल

धूप में सेंक
किया नहीं है मैंने
सफेद बाल

यूँ ही न भाई
रखते प्रभुताई
सफेद बाल

संग छुपाया
वर्षों का अनुभव
सफेद बाल

पाया है मैंने
खुद पक कर के
सफेद बाल

चमक जाता
चाँद देख के और
सफेद बाल

चढ़ के पाया
उम्र की ऊँची चोटी
सफेद बाल

प्रभु को याद
करने का सन्देश
सफेद बाल

कटा के आयी
विग बन के बिका
गोरी का बाल

उम्र की भट्टी
पकाया तब पाया
सफ़ेद बाल

विदका चाँद
चाँद पर देख के
सफ़ेद बाल
   *************



मेघ कहाँ हो !
दिखाती ना नरमी
बेशर्म गर्मी

आओ न मेघ
सताती हठधर्मी
बेशर्म गर्मी

तर बतर
हुई बिस्तर पर
बेशर्म गर्मी

तन से वस्त्र
उतरवा के मानी 
बेशर्म गर्मी

पी गयी सारा
छोटी नदी का जल
बेशर्म गर्मी

भीगा बदन
होली नहीं सावन
बेशर्म गर्मी

रवि का साथ
पाकर हुई जुल्मी
बेशर्म गर्मी

लगी चपत
बिजली की खपत
बढ़ाई गर्मी

ताप में पड़ी
कराहती धरनी
बेशर्म गर्मी

भाड़ बनाई
तपा मरू की भूमि
बेशर्म गर्मी


************


रखती खैर
करना न भूलना
भोर की सैर

पाने को काफी
दिन भर की खैर
भोर की सैर

बिना कीमत
है स्वास्थ्य की नीमत
भोर की सैर

मस्तिष्क खोल
करती स्वच्छ मन
भोर की सैर

किया वो पाया
प्रकृति का खजाना
भोर की सैर

पहली रश्मि
चूमती जो करता
भोर की सैर

किये मिलती
मुस्कराती धरती
भोर की सैर

प्रभु दर्शन
पा जाता जो करता
भोर की सैर

देखा करके
प्रकृति को जगते
भोर की सैर

रात की चढ़ी
उतार रख देती
भोर की सैर

प्रभु का नाम
करने से पहले
भोर की सैर

शुक्रिया खुदा
एक और दिया
भोर की सैर


******

होता न कम
करने से अँधेरा
घना अंधेरा

दर्द का घेरा
गहरा गया और
होते अँधेरा

डर ने घेरा 
काली रातों का फिर 
हुआ अँधेरा 

भागता दूर 
देख ज्योति का डेरा 
कोई अँधेरा 

कभी न घेरा 
प्रकाश लिए चला 
उसे अँधेरा 

जमाया डेरा 
भूतों ने चहुँ ओर 
होते अँधेरा 

कवि बेचारा 
मिली नहीं कविता  
ढूंढा अँधेरा 

प्रेमी युगल 
प्रसन्न बहुतेरा 
मिला अँधेरा 

गयी निखर 
सितारों की चमक 
पा के अँधेरा 

क्या बिगाड़ेगा 
डरता है क्यों दीया  
तेरा अँधेरा

हवा ने चाहा  
दीया को बुझा कर  
लाना अँधेरा  

मनी दीवाली 
अकेले थी वो घर 
रहा अँधेरा 

छुपा न पाता  
दर्द भरी आवाज 
घोर अँधेरा 

डंसने डोला
पा तनहा अकेला
घना अँधेरा



सुबह शाम
लेते हैं तेरा नाम 
तीनों पहर

बसता यार
कैसे जाऊँ मिलने
नदी के  पार


रही बेचारी
सावन में अकेले
गम की मारी

आने को बोला 

गम की मारी
गम की मारी
गम की मारी
गम की मारी

झूठ 

खूब चलाया  
जानते भी ना होते   
झूठ के पैर 

समझा वह 
सफल हो जायेगा 
झूठ को कह 

ढूंढता रहा 
हराने हेतु  न्याय 
झूठे गवाह 

टिक न पाता 
झूठ की नींव पर 
बना जो ढांचा 

झूठ से बनी 
शीघ्र ही टूट जाती 
रिश्ते की टांग 


हटा ही देता 
एक दिन समय 
झूठ से पर्दा 

कुछ भी मिला 
जीवन पर भार 
झूठ के बल 

उड़ न पाता   
कितने भी सुन्दर  
झूठ  के पर 

झूठ ही मेरा 
कुछ हासिल करूँ 
झूठ के बल 

जीते जी मारा  
बोल झूठ बोला था 
प्यार है उसे 


सत्य का पथ 

जोर से बोली 
सच ही नहीं होती 
हर वो बात  

नहीं पड़ता 
कभी भी पछताना 
सत्य के पथ 

जीत के लाता 
दूसरों का भरोसा 
सत्य का पथ 

नेता की कला 
झूठ बोले तो लगे 
सच ही बोला  

झूठ का लाभ 
थोड़ी देर के लिए 
सत्य का सदा 


सच्चाई 

न्याय की हार  
नहीं मिल पाने से 
सच्चे गवाह 

सबके लिए 
राम नाम सत्य है 
अंतिम शब्द 

तैयारी किया 
तो कहीं बोल पाया 
छोटा सा झूठ 

ज्योति से तम 
भाग जाता है दूर 
सच से झूठ 

हजारों चाहे 
झूठों के आगे भारी 
एक ही सच्चा 


होता है सदा
शांति प्रेम से भरा 
सत्य  का पथ 


लेकर जाती 
नरक में अथाह 
पाप की राह 


संतुष्टि बड़ी
जीवन की रखती
नेकनीयती

स्वर्ग की राह
सुगम बना देती
नेकनीयती

सच की राह
सदैव दिखलाती
नेकनीयती

पाप के कर्म
करने से बचाती
नेकनीयती

बेशकीमती
किये काम रख के 
नेकनीयती

मरा मच्छर

कान पे बैठा
कस के मारा हाथ
मरा मच्छर

छेड़ा छिड़क
रासायनिक युद्ध
मरे मच्छर

मसल दिया
मच्छरदानी फंसा
मरा मच्छर

खून का धब्बा
पड़ा कमीज पर
मारा मच्छर

खून पीकर
पड़ते ही नजर
भागा मच्छर 




पक्षी घोसला
गाय चलीं गोशाला
शाम की बेला

आते ही हुआ
आसमान सिंदूरी
शाम की बेला

वापस घर 
लिए निरहू ठेला


शाम की बेला

खगों का मेला
वापस जाते नीड़ 
शाम की बेला

ताक में बैठा
घेरने को अँधेरा
शाम की बेला 


मुस्कराहट

मुस्कराने से
बदले में मिलती 
मुस्कराहट

द्वार खोलती 
जाने का दिल तक 
मुस्कराहट

किसी से मिलो
मुखड़े पर रख
मुस्कराहट

प्रेम की भाषा
शब्द बोले बिना ही 
मुस्कराहट

सूरज आता
मुख पे लिए रोज
मुस्कराहट




चहके पक्षी

 महक जाता

 दहक जाता




हरे मुरारी


कशी के वासी


गंगा किनारे

मन निहारे

काँटों की राह

बड़ी सुहानी

गैंडे की खाल


**********

ओर न छोर
अनंत है संसार
तारों के पार

जाते कहाँ हैं
जीवन उपरांत
तारों के पार

कैसी दुनिया
बस कल्पना मात्र
तारों के पार

खोज न पाया
विज्ञानं भी रहस्य
तारों के पार

कितने तारे
अभी और छुपे हैं
तारों के पार


*****

सहनशक्ति
भी होती है संपत्ति
गधा सिखाता

धैर्य संयम
रखना मनुष्य को
गधा सिखाता

कर्तव्यनिष्ठ
होकर के रहना
गधा सिखाता

जाना सरल
चाहे ऊँचा पर्वत
गधा सिखाता

दुष्कर राह
जमाये चलो पांव
गधा सिखाता

********

कहीं न कहीं

कहीं का नहीं

जाती है घूंट
पानी की बून्द  जब
प्रभु की कृपा

उसी में रमा

प्रभु श्रीराम

तेरा सहारा

किस्मत खोले
जो स्मरण करते
जै बेम भोले


उसका नाम


*******

राम का नाम
हनुमान के सदा
मन में बसा

साधु संतों के
दूसरों का कल्याण
मन में बसा

भाग्यवान वे
पूरा होता जिनके
मन में बसा

एक मूरत
मोहिनी सी उसके
मन में बसा

पूरा करना
मुझको है वो काम
मन में बसा


*****

अंततोगत्वा
विजयी जो चलता
सच की राह

चलने वाला
पाता स्वतः ही लक्ष्य
सच की राह

कभी न हार
हो पाती जो चलता
सच की राह

चलना बड़ी
होती मुश्किलों भरी
सच की राह 

अंत में सुख
भले ही हो दुष्कर
सच की राह

***********

होता है मीठा
जाना सब्र का फल
पढ़ के गीता

जीत सकोगे 
स्वयं अपना मन 
पढ़ के गीता 

करना कर्म 
है मनुष्य का धर्म 
कहती गीता 

कर्मों का फल
होता प्रभु के हाथ
कहती गीता

क्रोध से भ्रम
भ्रम से बुद्धि नष्ट
कहती गीता

प्रभु की प्राप्ति
होती करके भक्ति
कहती गीता

जग में सब
जो है दिया है रब
कहती गीता

है वो सबका
जो है इस जग का
कहती गीता

शंकालु व्यक्ति
कुंठित ही रहता
कहती गीता

भाव अभाव
प्रभाव देते झुका
कहती गीता

***

स्वार्थ ही मित्र
स्वार्थ बनाता शत्रु
गीता की सीख

आत्मा अमर
देह उसका घर
गीता की सीख

सन्मार्ग सदा
सत्कर्म से बनता
गीता की सीख

ज्ञान की शक्ति
मन हो नियंत्रित
गीता की सीख

आज जो तेरा
कल और का डेरा
गीता की सीख

आये हो खाली
जाना है खाली हाथ
गीता की सीख

जैसी प्रवृत्ति
मनुष्य की प्रकृति
गीता की सीख

कर्मों का फल
वह देता अवश्य
गीता की सीख

प्रभु रचित
सबसे रखो प्रेम
गीता की सीख

रखता भय
अहंकारी सदैव
गीता की सीख

*****

कर्म किये जा
छोड़ फल की चिंता
गीता का ज्ञान 

तुम्हारे कर्म 
उसके हाथ फल 
गीता का ज्ञान 

तुम्हारा भाग्य 
वही करेगा तय 
गीता का ज्ञान 

हो ना विस्मृत  
कर्तव्य और ऋण  
गीता का ज्ञान 

कुछ भी चाहो 
मिलेगा जो वो देगा  
गीता का ज्ञान 

पाता दर्शन 
प्रभु का सच्चा मन 
गीता का ज्ञान 

देह नश्वर 
आत्मा अमर पर 
गीता का ज्ञान 

करे जो याद 
सुने वो फरियाद 
गीता का ज्ञान 

भक्तों की सदा 
है ईश्वर सुनता
गीता का ज्ञान 

कर्मों से तय 
होती भाग्य की रेखा 
गीता का ज्ञान 




**********


वन के कष्ट
सीता सही सहज
प्रेम में डूबी

राधा जीवन
की कान्हा को अर्पण
प्रेम में डूबी

पी गयी विष
मीरा बेझिझक
प्रेम में डूबी

चौदह वर्ष
उर्मिला के अकेले
प्रेम में डूबी

रानी से दासी
हो गयी दमयंती
प्रेम में डूबी

जहर खिला
किया हीर की हत्या
प्रेम में डूबी

पाई सौगात
ताज का मुमताज
प्रेम में डूबी

पढ़े थे साथ
थाम के रखी हाथ
प्रेम में डूबी

कह दी साफ
तू मेरा अनुराग
प्रेम में डूबी

तू मेरा दीया
मैं तेरी बाती पिया
प्रेम में डूबी


*************

मैं ना लड़ी थी

द्वार खड़ी थी
सैयां निकस गये
मैं ना लड़ी थी

रोके रुके ना
उन्हें जाने ना कैसी
जल्दी पड़ी थी

विपदा भरी
सहना था मुश्किल
कैसी घडी थी

भीगी अँखियाँ
असुअन की बड़ी
लंबी झड़ी थी

जुटे संबंधी
मित्रों की उन पर
ऑंखें गड़ी थी

तन पे कोरी
खरीद कर लाई
चुन्नी पड़ी थी

सादी सी चुन्नी
ना कोई कढ़ाई ना
गोटा जड़ी थी

मित्रों की लाई
फूलों की उनपर
माला चढ़ी थी

चले हिंडोले
बुलाये नहीं बोले
नींद बड़ी थी

चार जने थे
कान्हे पर जिनके
डोली चढ़ी थी


**************


बदल देती
भोजन की दुनिया
हरी धनिया

हो जाती सूनी
मसाले की दुनिया 
हो धनिया

बिन पंजीरी
जन्माष्टमी अधूरी
हो धनिया 

चटनी बन
खाने की अंगूठी पे
नग धनिया

गजब चीज
बिना फल के बीज
होती धनिया

सुगंध भर
सब्जी स्वादिष्ट कर
देती धनिया

संवार देती
पड़ के दाल सब्जी
हरी धनिया

प्याज का साथ
तड़के में निभाती
हरी धनिया

रूठ जाती तो
मिलती चटनी
मेरी धनिया

कहते सभी
सब्जी वाले डालना 
थोड़ी धनिया


 *************

पहाड़



तू ही करती
माँ भव का उद्भव
सब संभव

फूलों की गंध

पान का पत्ता


टिमटिमाते
झांकने लगे तारे
डूबा सूरज

पंछी के झुण्ड
चले नीड़ की ओर
डूबा सूरज

दूर क्षितिज
रंग गया सिंदूरी
डूबा सूरज

कर्तव्य पर
दीपक है तत्पर
डूबा सूरज

झील में आग
लगा दिया जाकर
डूबा सूरज

ग्रामीण चला
बाजार से वापस
डूबा सूरज

निकला चाँद
करने प्रेमलीला
डूबा सूरज

छुपते देखा
पहाड़ियों के पीछे
डूबा सूरज

पेड़ों की डार
खगों की भरमार
डूबा सूरज

छत पे धुआं
हुई खेतों में हुआँ
डूबा सूरज



**********

हुआ छपाक
पुराने पोखरे  में
कूदा मेढक

झपटा सांप
बचकर जल में
कूदा मेढक

जैसे ही गए
तालाब के किनारे
कूदा मेढक

जूते  में डाला
अँधेरे में ही पांव
कूदा मेढक

नन्हा बालक
पकड़ने को चला
कूदा मेढक

***************

मरू में मन
भटकेगा जन का
वन के बिना

पशु का घर
धरा पर सुन्दर
हैं ये जंगल

बनेंगे कैसे
घर के फर्नीचर
वन के बिना

छीनो न घर
पशु पक्षी का कर
वन दोहन

रह जायेगा
जलधर भी प्यासा
वन के बिना

नित दूषित
हो रहा पर्यावरण
वन दोहन

नहीं रहेंगीं
साथ साँसे अपनी
वन के बिना

रहा है छीन
धरा का आभूषण
वन दोहन

होगी नग्न सी
बेश्रृंगार धरती
वन के बिना

छीन जाएगी
अति बड़ी सम्पदा
वन के बिना




वनस्पति

जड़ी बूटियां
अत्यंत ही दुर्लभ
रखे पर्वत

धरती

पशु

Sunday, 19 March 2017

Paan ka patta

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पान का पता

कई बार सरकार थूकने पर रोक लगा देती है।
पान खाने वालों में शोक जगा देती है।
कहना है कि दीवारें गन्दी होती है।
आधा ही देखती है, सरकार तो अंधी होती है।
गजब सरकार है! पान तो व्यापार है।
पान  का भी भला कोई, करता प्रतिकार है।
पान से चलता बहुत लोगों का रोजगार है। 
थूकना रोक देने पर बेरोजगारी का सवाल है। 
पान खाना तो बड़े लोगों का सदाचार है।
पान खाने वालों का थूकना मौलिक अधिकार है।

पान तो हिंदुस्तान की शान है। 
बड़प्पन की पहचान है।
पुराने ज़माने से नबाबों की शान है।
जब मुंह में होता बीड़ा पान है।
मन में भर जाता आत्मसम्मान है।
एक बीड़ा पान स्वछन्द कर देता है।
सांसों में सुगंध भर देता है।

पान खाने वालों ने संगठन बना लिया है।
थूकने के अधिकार के लिए,
आंदोलन चला दिया है। 
प्रधानमंत्री ने भी माना,
बनारसी पान की कदर जाना,
तभी तो पड़ा उन्हें बनारस आना।

कहीं भी चले जाओ पान लेकर,
न चोरी का, न लुटने का डर,
न ही कोई सरकार का कर।
महोबा हो या बनारस, मुंह में पान हो तो
आसानी से कट है जाता सफर।
पान से मुंह में ताला लग जाता है,
आलतू फालतू बोलने
और खाने से बच जाता है।
यूँ कभी कभी धोखा भी हो जाता है,
पान के कारण कुछ खाने से रह जाता है।

गणेश जी से अब तक
पान खाना कब रुका है।
जब भी आता कोई शुभ मौका है,
पान का  महत्त्व बढ़ जाता है।
पूजा सामग्री में पान अवश्य आता है।
देवताओं ने भी पान चबाया था।
अगर थूका नहीं होगा तो क्या खाया था।
बड़े राजा महाराजा पान का शौक फरमाते थे।
थूकने के लिए चांदी का पीकदान बनवाते थे।

लगाकर के कत्था और चूना,
पान का दाम हो जाता कई गुना।
पार्टी रह जाती है आधी अधूरी।
भोजन के बाद पान न परोसा तो
मेहमानबाजी भी नहीं होती है पूरी।
दुल्हन तो लगा लेती होठलाली।
दूल्हे की पान ही लाता होठों की लाली।

जो भी चालाक नेता है,
बोलने से पहले मुंह में पान दबा लेता है।
कभी मीडिया से बात करने वक्त,
 निकल जाता है, मुंह से कुछ गलत।
मुंह में पान था, बहाना चल जाता है
कहीं और निशाना चल जाता है।

पान खाने की अपनी तमीज होती है।
खाना न आये तो गन्दी कमीज होती है।
हिंदुस्तान में पान एक बड़ी चीज होती है।
बीडा थमा देने से थम जाती
मन में अगर कोई खीझ होती है।
हम स्वच्छ भारत बनाएंगे।
पान मगर, अवश्य खाएंगे।


न्यौता भुला
गांव का आम आदमी

थोड़े में सब्र


चाँद सितारों की रात
गोरु चउओं  के साथ
पड़े रहते हैं द्वार,
कई कुक्कुर बिलार
घर के आस पास
उगे खर पतवार
पड़े झाड़ झंखार
फिर भी गांव की हवा बतास
किसको न आएगी रास।

फूल फुलवारी है
ताज़ी तरकारी है
बैठ कर बकवास
खाने को दूध मलाई है
हरा साग तजा छाछ
कीट पतंगों
पेड़ पत्ता

जोड़ जाड़ ईंट पत्थर
डाल लिया छान्ह छप्पर
चौओं का घेर है
नीम का पेड़ है
नीचे खूंटा गड़ा है
नाद में भूसा डला है
सानी पानी देखना होता
गोबर मूत फेंकना होता
गाय भैंस लग रही
तो रोज रोज दूध दही
वरना चाय भी पीते
काली ही सही
गांव की ताजे दूध की गिलास
किसको न आएगी रास

नाली पंडोहा
चूल्हा चक्की
साडी लुग्गा कचार
अरगनी पर पसार

सुबह होते ही
चिड़ियों का शोर
लोटा का पानी ले
खेत की ओर
पोखरा में नहाना धोना
काम धाम
शाम होते ही चिंता सताती
झट से जले दीया बाती
मोटा पतला
नौकर चाकर
पांव न जूता चप्पल रहता
सांप बिच्छु  का डर रहता
फूलती हुई रंग बिरंगी घास
किसको न आएगी रास

बच्चों की भी अपनी दुनिया है
साथ में होते मुन्नू मुनिया हैं
धूल माटी में खेलना
खेत खलिहान झेलना
तितली के पीछे
पेड़ के नीचे
कभी गुल्ली डंडा
कभी पिट्ठू कंचा
कभी ढेला मारकर
कभी पेड़ पर चढ़ कर
आम अमरुद तोड़ते
पिल्लै के कान मरोडते
मदारी वाले के पीछे चलते
कभी ऑंखें मींचे चलते
गाड़ी सवारी

कूड़ा करकट
थाली कटोरी

कभी कभार
भोर भिनसार
पूजा पाठ
झगड़ा मार

शादी व्याह में
पहले ही शुरू हो जाता
गाना बजाना
उत्सव मनना
खान पीन
दावा दारू

क्रीम पाउडर
गहना गिठौ
चूल्हा चक्की
सीधी सदी

लडके बच्चे
साँझ विहान
पूजा पाठ

दुनिया जहाँ

रुकते चलते
कुर्सी मेज
कोई भी काम
पंडित जी से पूछ कर
पोथी पत्र देख कर
साईत  मुहूर्त
खटिया बिछौना
देवता दानी
साधु संत, पर पहुना
जो भी आता द्वार
आये गए की आदर सत्कार
काम काज
कीड़ा मकोड़ा
बागों में देखना मधुमास
किसको न आएगा रास

खास
चाँद सितारों से भरा आकाश
किसको न आएगा रास
रोहतास
विंदास
अनायास
झकास
आस पास
वास
अभ्यास एहसास
हास परिहास


Thursday, 16 March 2017

Haiku March 17 pariksha masaale


मनाते छोड़
पद पैसा का गर्व
रंगों का पर्व

होली में चूर
दिन भर के लिए
ग़मों से दूर

रंगों के पीछे
किसका मुख छुपा
चला ना पता


होती न पूरी
सिर पर परीक्षा
सोने की इच्छा

छोटी से छोटी
इम्तहान की घडी
हो जाती बड़ी

प्रारम्भ खेल
बोर्ड की परीक्षा का
मस्ती है फेल

पप्पू भी होगा
अब पढ़ के पास
उत्तो प्रदेश

जलती रही
परीक्षार्थी की बत्ती
सुबह तक

सबसे बड़ी
परीक्षार्थी की होती
परीक्षा डर

होगा कलंक
परीक्षा में न आया
बढ़िया अंक

हुई प्रारम्भ
टीवी व पार्टी बंद
बोर्ड परीक्षा

कसे कमर
परीक्षा सिर पर
सभी विद्यार्थी

परीक्षा देने
पहुंचे बिलंब से
छूटे सवाल

उड़ाका दल
परीक्षा केंद्र पर
है हलचल

परीक्षा देने
जाने में हुई देर
छूटे सवाल

सिर पे पड़ा
हल्का हो गया बोझ
ख़त्म परीक्षा

जी भर अब
खेलना और सोना
ख़त्म परीक्षा

जाता है बीत
पास फेल के बीच
यह जीवन

जग में ठग
खरीदना कुछ भी
जाँच परख

गुड़िया चढ़ी
सफलता की सीढ़ी
अगली कक्षा

अगली सांस
मिलती जब पास
मौजूदा श्वांस

सबसे अच्छा
साधारण जीवन
बिना परीक्षा

नारी की होती
परीक्षा में ही पड़ी
हरेक घडी

कैसी व्यवस्था
प्रेम में भी देना होता
स्त्री को परीक्षा

नारी या नर
संवेदना के बिना
है जानवर

बड़ा ही नहीं
छोटा पेड़ भी देता
सबको छाँव
बड़ा न बन सको    
पर पेड़ तो बनो

इच्छा में दम
खुद ही बन जाती
राह सुगम



अनूठा दान
एकलव्य  ने दिया
अंगूठा दान

हुआ अमर
एकलव्य देकर
गुरु दक्षिणा


************


पति ने कहा
आलू पराठा खाना
भूली बनाना

पत्नी ने कहा
कुछ खट्टा ले आना
लाये मखाना


सब्जी में डाला
तेज मिर्च मसाला
खाकर सी-सी

चाय में डाला
अतिथि की प्रशंसा
थोड़ा मसाला

मिर्च की छौंक


आम के साथ
चटनी  का स्वाद
लाता पुदीना

खिल उठता
जल जीरा का रंग
पड़े पुदीना

गर्मी में देता
उदर को राहत

दवा पुदीना


वर्षा का दिन
कबूतरों के बिन
टावर खाली

खुदा के नाम
खुद के चक्कर में
बने महंत  

आम व लीची
एक ही रंग रूप
बने पडोसी

लीची व आम
बौराये साथ साथ
ऋतु की बात

छीन के हक़
वापस देता नेता
खैरात कह

उसके हाथ
तेरी मेरी जिंदगी
हमारा साथ

एक भी पत्ता
नहीं हिल सकता
वो नहीं चाहे


पेन्सिल दे दो
पास कागज नहीं
दीवार सही

- एस० डी० तिवारी

शिशु का खींचा
दीवार पर नक्शा
पूरा ब्रह्माण्ड

क्या बन पाया
मैंने कैसे बनाया
मुझे क्या पता

दीवारें रंगी
भांति भांति चित्रों से
बच्चों का घर

नन्हें बालक
खींच डालते चित्र
घर की भीत

बालक खींच
रंग डालते भीत
अनूठे चित्र

तू बना चित्र
मैं भरूँ शब्दों के रंग
बिटिया मेरी

होते पुताई
दीवार पर मुन्नी
लिखी चौपाई

कुछ भी करें
पर मन के सच्चे
होते हैं बच्चे

कइयों बार
बच्चों की शराररत
देती राहत

नन्हें से बच्चे
उकेरते रंग से
मन का बिम्ब

काफी है नाम
बनाने को बिगड़ी 
जय श्रीराम 

लेते जो नाम
पूरे हो जाते काम  
जय श्रीराम  



होते ही माली
तोड़ने को बेताब
कली से फूल

उगाता भी है
तोड़ भी लेता खुद
फूल को माली

खिलने तक
होता फूल का ख्याल
माली के हाथ

दिल्ली निगम
चुनाव का प्रचार
रिक्शों के कंधे

लेने का वक्त
ना अपनों के पास
खोज खबर

सोचा था लेगा
बुढ़ापे में दायित्व
खुद में बेटा

सीखा तुमसे
मुहब्बत की बाजी
तुम्हें हरा दी

छोड़ो गुमान
उतर के रहेगा
हुस्न है पानी 



****
प्रकृति जब 
दिखे किये श्रृंगार 
कर ले प्यार 

रोज न आये
तन पर निखार  
कर ले प्यार 

रोज न आये
बगिया में बहार 
कर ले प्यार 

रोज न आये 
सावन  कि फुहार  
कर ले प्यार