तेरा अपार स्नेह, दिल के पार हो गया।
दिल्ली तुझसे मुझको, गहरा प्यार हो गया।
राम करे कुछ ऐसा, तुझसे जुदा ना होऊं।
गोद में तेरी जागूँ, घड़ी फुरसत की सोऊँ।
दामन में रहने का तेरे खुमार हो गया।
दिल्ली तुझसे मुझको, गहरा प्यार हो गया।
सासों में है गर्मी, बाँहों में तेरी नरमी।
लाखों तेरे दीवाने, कैसी तेरी बेशर्मी!
छुपाया तो बहुत था, पर इजहार हो गया।
दिल्ली तुझसे मुझको, गहरा प्यार हो गया।
आँचल में भरी खुशबु, दिल में रखे है पत्थर।
ब्यूटी को तेरी कोई, दे नहीं सकता टक्कर।
तुझ पे अपना जीवन, ये न्यौछार हो गया।
दिल्ली तुझसे मुझको, गहरा प्यार हो गया।
सज-धज के तू रहती, झिल मिल लिए सितारे।
बहके न कोई कैसे, देखे तेरे नज़ारे।
रीझ अदाओं पे तेरी, मैं बीमार हो गया।
दिल्ली तुझसे मुझको, गहरा प्यार हो गया।
कालिंदी की चाह
करते कहीं कल कल कहीं छल छल।
यद्यपि तुम्हें तुम्हें मेरी कोई परवाह नहीं।
करते हो कर्तव्यों का तुम निर्वाह नहीं।
मुझे आगे जाना होता, अपने कन्हैया से मिलने।
फिर बहन जान्हवी, तुम्हारी गंगा मैया से मिलने।
किन्तु मेरे परिधान तुम मैला कर देते हैं।
मेरा पूरे बदन को विषैला कर देते हो।
मलिन वस्त्र में अग्रजा से मिलती हूँ, लाज आती है ।
वह कितनी भली है, फिर भी गले लगाती है।
मुझे अपनी अग्रजा से दो चार होना पड़ता है।
मगर मेरे प्यार में उसे लाचार होना पड़ता है।
अपने ररथ में बिठाये आगे लिए चलती है।
मेरे वस्त्र भी धोकर स्वच्छ करती है।
तुमने अन्य नगरों की सरिताओं को देखा होगा !
घाटों पर विचरती सभ्यताओं को देखा होगा !
और तुम हो कि मुंह मोड़े रहते हो।
मुझे मेरे ही हाल पर छोड़े रहते हो।
मैं स्वयं को स्वतः कितना स्वच्छ रख पाऊँगी!
तुम्हारी छोड़ी कितनी मलिनता बहाऊँगी!
मुझे भी कोई सजाये सँवारे, जी चाहता है।
मेरे अपने पास आयें बैठें निहारे, जी चाहता है।
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