बेचारी की किस्मत छली गयी।
सोने की नयी चेन ली वो भी चली गयी।
एक विद्यालय में अध्यापन कर रही थी।घर के सामने रिक्शा से उतर रही थी।
मगर पुलिस भी उससे दबी हुई थी।
मामले में कुछ नहीं कर रही थी
पुलिस स्वयं ही डरी हुई थी।
दरोगा ने पूछा, किसने देखा? गवाह कहां है?
कौन ले गया? साक्ष्य कहां है?
पहचान का चिन्ह बताओ,
चेन की फोटो और बिल लाओ।
चेन तुम्हारी ही है इसका सबूत दिखाओ
तभी हम कुछ कर पायेंगे
और तुम्हारी चेन वापस दिलायेंगे।
मुकदमा दायर हुआ,
कचहरी गांव से दूर थी।
मग्गू के पास, भैंस पाने का
जज्बा भरपूर थी।
वह प्रातः ही तैयार हो जाता,
ठीक से खाने का समय भी नहीं मिल पाता।
बीबी खाना बांध देती थी,
रोटी, तरकारी के साथ देती थी।
मग्गु समय से कचहरी पहुंच जाता
कभी जज साहब छुट्टी पर होते
कभी वकील तैयारी करके नहीं आता।
तारीख पड़ जाती
अगली तारीख पर फिर तारीख पड़ जाती।
कोर्ट का मामला था
हर तारीख पर जाना आवष्यक होता।
हर बार वकील को पैसे देने होते
भाड़ा किराया, सो अलग होता।
मग्गू की जेब खाली होती गई
दिन ब दिन, उसकी बदहाली होती गई।
अगली तारीख पर फैसला दिला दूंगा कहकर हांकता
अबकी पैरबी के लिये वकील
साथ ही पैसे मांगता।
अन्त में आ ही गई वह षुभ घड़ी
जिस दिन मिलनी थी मग्गू को डिक्री।
सभी आष्चर्य से उसे देखने लगे
कचहरी के बाबू इनाम मांगने लगे।
बधाइयों का तांता लगा
अन्जान लोगों से भी नाता लगा।
करनी पड़ी जेब, थोड़ी और ढीली
उसे आदेष की प्रति मिली।
भैंस लेने का आदेष लेकर पहंुचा थाने
भैंस तो जमा थी मवेषी खाने।
दस साल बीत चुके थे
मग्गू जी मुकदमा जीत चुके थे।
भैंस को उन्हें वापस दिलवाने,
सिपाही ले गया मवेषी खाने।
मग्गू ने कोर्ट का आदेष दिखाया
चौकीदार भैंस को लेकर आया।
खाने बगैर वह बेहाल हो गई थी
वह बेचारी भैस क्या थी
भैंस का कंकाल हो गई थी।
समीप आते आते वह गिर पड़ी
अब भैंस का षव ही मग्गू के सिर पड़ी।
सिपाही ने समझाया,
करने के लियेे भैंस का मुआवजा हासिल,
करना होगा नये सिरे से मुकदमा दाखिल।
या फिर कसाईखाने से सम्पर्क कर लो
इसके खाल के ही कुछ ले लो।
मग्गू ने मरी भैंस लेने से मना कर दिया
नया मुकदमा दाखिल कर दिया।
फिर वही तारीख पर अगली तारीख
सालों साल गये बीत।
मग्गू एक दिन जोर का बिगड़ा
वकील से कर बैठा झगड़ा
इतना समय निकल गया
कब आयेगा फैसला।
न्यायालय की लेकर आड़
वकील ने भी लगायी लताड़।
पता है कोर्ट में कितना काम होता है
फैसला करना क्या आसान होता है!
चारा का फैसला हो गया क्या
तुम्हारा केस तो बाद में आया।
फिर से दस साल लगे
सत्य की विजय हुई।
फैसला हुआ मग्गू को कीमत मिले
जितने में वह भैंस खरीदी।
सोचकर उसका दिल हिल रहा था
इतना तो चमड़े का ही मिल रहा था।
फिर भी बूढ़ा मग्गू खुष है
भागते भूत की लंगोटी भली
दवाई मंगाने के लिये पैसे नहीं है
चलो उधार लेने की मुसीबत टली।
मग्गू का मुक़दमा
बेचारे मग्गू की किस्मत छली गयी
उसकी भैंस चोरी चली गयी।
चारा चराने के लिए छोड़ा था
पेड़ के नीचे तनिक पड़ा था।
जैसे ही थोड़ी आंख लगी
बेचारी जाने कहाँ जा लगी।
चारों ओर ढूंढा पता नहीं लगा
बेचारा रह गया जैसे ठगा।
रपट लिखाने वह थाने गया
दरोगा ने रपट लिखने से मना किया।
बोला बीमा तो नहीं करवाया है!
खुद ही गायब कर दावा करने आया है।
जाओ अभी बहुत काम है
मेरा दिमाग पहले ही जाम है।
वी आई पी विजिट है बंदोबस्त करना है।
विधायक के लापता कुत्ते को ढूंढना है।
जाओ खुद ढूंढ लो मिल जय तो बता देना
तभी आकर रपट लिखा देना।
मग्गू इधर उधर सिर पटका भैंस नहीं मिली
पड़ोसियों ने मिलकर प्रदर्शन किया तो रपट लिखी।
दरोगा ने पूछा किसने देखा घ् गवाह कहाँ है घ्
कौन ले गया घ् साक्ष्य कहाँ है घ्
पहचान का चिन्ह बताओ
भैंस की फोटो लाओ।
किसी तरह पता चल ही गया
भैंस एक दबंग के यहाँ थी बंधी।
मगर पुलिस उससे दबी हुई थी
मामले में कुछ नहीं कर रही थी
क्योंकि स्वयं ही उससे डरी हुई थी।
दरोगा टालते हुए बोला दूसरे दिन आना
भैंस तुम्हारी ही है इसका सबूत लाना।
तभी हम कुछ कर पाएंगे
और तुम्हारी भैंस वापस दिलाएंगे।
मुक़दमा दायर हुआ
कचहरी गांव से दूर थी।
मग्गू के पास भैंस पाने का
जज्बा भरपूर थी।
वह तड़के ही तैयार हो जाता
ठीक से खाने का समय भी नहीं मिल पाता।
बीबी खाना बांध देती थी
रोटी तरकारी के साथ देती थी।
मग्गू समय से कचहरी पहुँच जाता
कभी जज साहब छुट्टी पर होते
कभी वकील तैयारी करके नहीं आता।
तारीख पड़ जाती
अगली तारीख पर फिर तारीख पड़ जाती।
कोर्ट का मामला था
हर तारीख पर जाना आवश्यक होता।
हर बार वकील को पैसे देने होते
भाड़ा किराया सो अलग होता।
मग्गू की जेब खाली होती गयी
दिन ब दिन उसकी बदहाली होती गयी।
अगली तारीख पर फैसला दिला दूंगा कहके हांकता
अबकी पैरबी के लिए वकील साथ ही पैसे मांगता।
अंत में आ ही गयी वह शुभ घडी
जिस दिन मिलनी थी मग्गू को डिक्री।
सभी आश्चर्य से उसे देखने लगे
कचहरी के बाबू इनाम मांगने लगे।
बधाईयों का तांता लगा
अनजान लोगों से भी नाता लगा।
करनी पड़ी जेब थोड़ी और ढीली
उसे आदेश की प्रति मिली।
भैंस लेने का आदेश लेकर वह पहुंचा थाने
भैंस तो जमा थी मवेशीखाने।
दस साल बीत चुके थे
मग्गू जी मुक़दमा जीत चुके थे।
भैंस को उन्हें वापस दिलवाने
सिपाही ले गया मवेशीखाने।
मग्गू ने कोर्ट का आदेश दिखाया
नम्बरदार भैंस को लेकर आया।
चारा वगैर वह बेहाल हो गयी थी
बेचारी भैंस क्या थी भैंस का कंकाल हो गयी थी।
पास आते ही वह गिर पड़ी
अब भैंस की लाश ही मग्गू के सिर पड़ी।
सिपाही ने बताया करना जो मुआवजा हासिल
करना होगा नए सिरे से मुक़दमा दाखिल।
या फिर चमड़े वाले से संपर्क कर लो
इसके खाल के ही कुछ ले लो।
मग्गू ने मरी भैंस लेने से मना कर दिया
दावे का मुक़दमा दाखिल कर दिया।
फिर वही तारीख पर अगली तारीख
सालों साल गए बीत।
मग्गू एक दिन जोर का बिगड़ा
वकील से कर बैठा झगड़ा।
इतना समय निकल गया कब आएगा फैसला।
न्यायलय की लेकर आड़
वकील ने भी लगाई लताड़।
पता है कोर्ट में कितना काम होता है
फैसला करना क्या आसान होता है!
चारा का फैसला हो गया क्या घ्
तुम्हारा केस तो बाद में आया।
फिर से दस साल लगे
सत्य की विजय हुई।
फैसला हुआ मग्गू को कीमत मिले
जितने में उसने भैंस खरीदी।
सोच कर उसका दिल हिल रहा था
इतना तो चमड़े का ही मिल रहा था।
फिर भी बूढ़ा मग्गू खुश है
भागते भूत की लंगोटी भली
दवाई लाने के लिए पैसे नहीं है
चलो उधार लेने की मुसीबत टली।
No comments:
Post a Comment