Sunday, 13 October 2024

Hindu Dharm



शाश्वत धर्म सनातन, जिसका ओर न छोर।
थमाया है मनुष्य को, मानवता की डोर।\

हिन्दू-धर्म करवाता, स्वयं से पहचान। 
आत्मदर्शन से मिले, साक्षात् भगवान।

धर्म मानव का रक्षक, जीवन का आधार।
धर्म यदि मर जाएगा, तुमको देगा मार।


 


हिन्दू-धर्म ब्रह्म का दर्पण है।
सम्पूर्ण जीवन का दर्शन है।
मानव जाति का मार्गदर्शक;
यह आत्म-शुद्धि का साधन है।

हिन्दू धर्म जीवन का दर्शन है। 
आध्यात्मिकता का दर्पण है।   
मानवता व प्रकृति का पोषक,    
ईश्वर की लब्धि का साधन है।


हिन्दू धर्म प्रदर्शन नहीं, दर्शन है। 
सुचिता, संयम अरु अनुशासन है। 
सुखमय जीवन का मार्गदर्शक,   
मोक्ष प्राप्त करने का साधन है। 


सनातन धर्म उदार है; ना कट्टर, ना जड़। 

मानवता का धर्म ये, सच्चरित्र देता गढ़।

ईश्वर का विधान ये, विज्ञान है महान ये।
जीवन-मोक्ष के मार्ग को, ज्ञानी लेते पढ़।

महान भारत का अस्तित्व निहित हिंदुत्व में। 
हिंदुत्व का अस्तित्व धर्म-ग्रंथों के प्रभुत्व में। 

धर्म-ग्रंथों की प्रभुता; उनके ज्ञान, सम्मान से,   
ज्ञान-चक्र का सतत संवेग, ग्रंथों के अमरत्व में। 



हिन्दू धर्म, राम के आदर्शों का आधार है।
हिन्दू धर्म, श्रीकृष्ण के ज्ञान का भंडार है।
धरती को पाप, अधर्म से बचाने के लिए,
समय समय पर करता दानवों का संहार है। 



विज्ञान प्रभु का विधान नहीं, वरदान है एक।
जीवन को सुविध बनाने का निदान है एक।
जीव और तत्वों के गुणों का ईश्वर ही दाता,
विज्ञान विद्यमान तथ्यों का ज्ञान है एक।


शिक्षा, स्वास्थ का समान अधिकार है, संविधान में!
जाति, धर्म का फिर क्यों आधार है, संविधान में?
निर्धन जन तो पड़ा हुआ अब भी पिछड़ों के जैसा,
नाम का पिछड़ा मलाई खाता अपार है, संविधान में।


ईश्वर का सबसे प्यारा, हिन्दू धर्म। 
मानवता का है सहारा, हिन्दू धर्म। 
बहता रहेगा अनवरत, अनंत तक,  
बनकर अमृत की धारा, हिन्दू धर्म। 



सबसे सुन्दर जगत में, हिन्दू धर्म महान। 
जन्म से मरण तक, संस्कार विद्यमान। 
आत्मा से परमात्मा के संबंधों का दर्शन,
जीवन सुगम करने का, है सम्पूर्ण विधान। 


राम, कृष्ण की जन्म भूमि, शिवशंकर का वास।

मद्धम हुआ प्रभाव अब, दिखता नहीं प्रकाश।

रावण, कंस के वंशज दिखते, यत्र, तत्र, सर्वत्र;

किसका ये अभिशाप; हुआ पावनता का नाश।




सबसे सुन्दर हिन्दू धरम है।
हर जीव का रखता मरम है,
मेरा पावन हिन्दू धरम है।

ब्रह्मा, विष्णु अरु शिव यहाँ हैं।
मानवी गुणों की नींव यहाँ है।
सत्य का है प्रतीक धर्म ये,
प्रभु को प्रिय हर जीव यहाँ है।
वैदिक धर्म, पावन परम है।

 

यहाँ ॐ मन्त्र का उच्चारण।  

ब्रह्म तत्व करता है धारण।
ईश्वर की भक्ति और श्रद्धा।

पर-उपकार पुण्य का कारण।

परपीड़न तो पाप चरम है। 

 

जीवन का पूर्ण यह दर्शन।
ईश्वर का विनम्र यह वंदन।
वेदों का ज्ञान, सिद्धांत यहाँ,  

शुचि संस्कारों का यह उपवन। 

मानव-धर्म उसका ही करम है। 

 

संचालक स्वयं नारायण हैं। 

हरि-वचन गीता, रामायण हैं।

दान, दया, अध्यात्म नीतियां, 

प्रभु के घर का पथ पावन है। 

मिटा देता मिथ्या भरम है। 

सबसे सुन्दर हिन्दू धरम है।



धर्म तो आचरणपरक है; 

मानव मूल्यों का कनक है;

नियमों से ये बंधा हुआ, 

धर्म जीवन की सड़क है। 

 

धर्म, जीवन का दर्शन है;  

सम्यक ज्ञान व चिंतन है;

परमात्मा की गवेषणा में,  

धर्म, आत्मा का मंथन है।  

 

मानवता की साधना में है, 

धर्म संयम-अनुपालना में है; 

धर्म, परहित में समाहित, 

ईश्वर की उपासना में है। 

 

नहीं टीका, ना छत्रों में है; 

धर्म, न रंगीन वस्त्रों में है; 

ना ही किसी आडम्बर में ये, 

धर्म तो वेद-मन्त्रों में है।  

 

धर्म, पाप के वारण में है;

नैतिकता के धारण में है; 

सत्पुरुषों के आचरण में, 

धर्म, सत्य के कारण में है। 

 

धर्म सुखों का आधार है; 

धर्म श्रेष्ठतम व्यवहार है; 

परमात्मा की ओर उन्मुख,

धर्म ही जीवन का सार है। 

 

वेदों के अभिमन्त्रण में है; 

ईश्वर के आमंत्रण में है; 

धर्म है मानवता की धुरी,  

धर्म आत्मनियंत्रण में है।  



समाज को कर्मपूजा की विधि सिखाया ब्राह्मण ने।    

वेद, पुराण, ग्रंथों को कंठस्थ कर बचाया ब्राह्मण ने।

धर्मसंस्कृति और संस्कारों को रखे हुए है जीवित वो,  

धर्मोत्थान कर, ईश्वर में आस्था जगाया ब्राह्मण ने। 

 

स्वयं दरिद्र होकर भीसमाज को ऊँचा रखता रहा। 

पूजापाठदान से ही, जीवन उसका चलता रहा।
विरोध और त्रासदियां झेल कर भी ब्राह्मण वर्ग;
नीतिगत शिक्षा प्रदानचरित्र निर्माण करता रहा।



गुण, दोष और कर्म सब, है ईश्वर के हाथ।  

करता वही ऊंच नीच, कुल में भेजता नाथ।


जाति में बंटा था समाज, उसे तो कोसते हो!

उसी जाति, धर्म को फिर क्यों पोषते हो?

आपस में लड़ा भिड़ा कर काम निकालते,

बाद में दिखावे के लिए मन मसोसते हो!




दुनिया में पैदा किया, जीव सभी भगवान। 

मिटाये उसकी कृति को, होता वो शैतान।  


धर्म के प्रति जो कट्टरपन है, 

दिखावा और अक्खड़पन है।  

आस्था से अधिक स्वार्थ, ढोंग;  

सत्ता हथियाने का प्रयत्न है।  


गंगा-जमुनी तहजीब तो कहते हो।

पृथक प्रवाह में फिर क्यों बहते हो?

दो नदियों के संगम की भांति मिल,

मुख्य धारा में क्यों नहीं रहते हो?

 



सनातन धर्म के सपूतों, उर में श्रद्धा जगाओ तुम।

त्याग आलस्य, निद्रा को, धर्म की ज्योति जलाओ तुम।

जगत में सबसे है सुन्दर, हिन्दू-धर्म ये तुम्हारा,  

लगे न कुदृष्टि शोभा को, प्राण की भांति बचाओ तुम। 

 

ज्ञान के कोष वेदों में, सभी का लाभ उठाओ तुम। 

पुष्पों से चारु कानन के, जीवन अपना सजाओ तुम।  

प्रभु का प्रताप है तुम पर, हृदय रखना बसा कर के,    
श्रेष्ठतम है सनातन धर्म, जगत भर को जताओ तुम।

 

पाठ, शान्ति अहिंसा का, विश्व भर को पढ़ाओ तुम।  

विरोधी षड्यंत्र न रच लें, सजग सचेत हो जाओ तुम। 

हिन्दू-धर्म की जय हो, उपायों को करो ऐसे, 

रुधिर बह जाये रक्षा में, तनिक न हिचकिचाओ तुम। 


हिन्दू धर्म विशाल महासागर है 
पंथ बनाने वाले तालाब बनकर रह जाएंगे 
हिन्दू धर्म पर्वत की भांति अटल है 
पंथ बनाने वाले तिनके सा बह जायेंगे 
हिन्दू धर्म सूर्य  शाश्वत उज्जवल /प्रदीप्त 
पंथ तो नन्हें तारों सा मात्र टिमटिमाएँगे  




रिम झिम होय रही सावन में, राम अकेले वन में ना। 
सिया की धरे वियोग मन में, राम अकेले वन में ना। 

बादल अमृत जल बरसाए, तरुवर पुष्प लता हरषाये 
सारे जीव युगल कानन में, राम अकेले वन में ना। 

दादुर मोर मचावें शोर, पपीहा गावे होते भोर  
बिजली चमके रह रह घन में, राम अकेले वन में ना। 

सुग्रीव हनुमत को पठायो, जाओ शीघ्र ढूंढ के लाओ 
सीता छुपी कहाँ त्रिभुवन में, राम अकेले वन में ना। 






भारत प्रयाग में सिमट गया, कुम्भ के नहान में। 
संगम लोगों से पट गया, कुम्भ के नहान में। 

महाकुम्भ का अजब संयोग।  
श्रद्धालुओं को पुण्य का भोग।  
बीस पच्चीस का अद्भुत मेला, 
संसार भर से आये लोग। 
संतों का रेला डट गया, कुम्भ के नहान में।

सामाजिक अंतर पाट कर। 
धनी-निर्धन एक घाट पर।
नागा, साधु, संत, सन्यासी; 
पोते चन्दन तिलक ललाट पर। 
अखाड़ों का भेद हट गया, कुम्भ के नहान में।

सैकड़ों करोड़ आयी भीड़। 
प्रयाग में कैसे समायी भीड़! 
भीड़ का नया कीर्तिमान बना, 
सुचारु फिर भी नहायी भीड़। 
पापों का बोझ सब छंट गया, कुम्भ के नहान में।

गंगा मईया में स्नान कर। 
आत्मशुद्धि का उत्तम अवसर। 
मोक्ष प्रदायी कुम्भ स्नान, 
अमृत की बूँद गिरी यहाँ पर। 
भक्तों का बंधन कट गया, कुम्भ के नहान में। 

(C) एस. डी. तिवारी 

गंगा मईया का प्रताप हुआ 
अब तक का पाप कट गया 
खली घड़ा 
अब की कुम्भ बड़ा अचम्भा 
ये कुम्भ नहीं महाकुम्भ है 
आया बारह दर्जन वर्ष पश्चात् 
घर बार छोड़ के आये
रेल का शीशा तोड़ के आये 
सतुआ पिसान बटोर के आये 
कुम्भ में संगम नहाये 
जोड़ के आये 

कितनी मुश्किलें झेले 
कोसों पैदल चले 

भीड़ के रेले 


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