थमाया है मनुष्य को, मानवता की डोर।\
हिन्दू-धर्म ब्रह्म का दर्पण है।
सम्पूर्ण जीवन का दर्शन है।
मानव जाति का मार्गदर्शक;
यह आत्म-शुद्धि का साधन है।
हिन्दू धर्म जीवन का दर्शन है।
आध्यात्मिकता का दर्पण है।
मानवता व प्रकृति का पोषक,
ईश्वर की लब्धि का साधन है।
हिन्दू धर्म प्रदर्शन नहीं, दर्शन है।
सुखमय जीवन का मार्गदर्शक,
मोक्ष प्राप्त करने का साधन है।
सनातन धर्म उदार है; ना कट्टर, ना जड़।
मानवता का धर्म ये, सच्चरित्र देता गढ़।
ईश्वर का विधान ये, विज्ञान है महान ये।जीवन-मोक्ष के मार्ग को, ज्ञानी लेते पढ़।
हिंदुत्व का अस्तित्व धर्म-ग्रंथों के प्रभुत्व में।
धर्म-ग्रंथों की प्रभुता; उनके ज्ञान, सम्मान से,
ज्ञान-चक्र का सतत संवेग, ग्रंथों के अमरत्व में।
हिन्दू धर्म, राम के आदर्शों का आधार है।
हिन्दू धर्म, श्रीकृष्ण के ज्ञान का भंडार है।
धरती को पाप, अधर्म से बचाने के लिए,
समय समय पर करता दानवों का संहार है।
विज्ञान प्रभु का विधान नहीं, वरदान है एक।
जीवन को सुविध बनाने का निदान है एक।
जीव और तत्वों के गुणों का ईश्वर ही दाता,
विज्ञान विद्यमान तथ्यों का ज्ञान है एक।
शिक्षा, स्वास्थ का समान अधिकार है, संविधान में!
जाति, धर्म का फिर क्यों आधार है, संविधान में?
निर्धन जन तो पड़ा हुआ अब भी पिछड़ों के जैसा,
नाम का पिछड़ा मलाई खाता अपार है, संविधान में।
ईश्वर का सबसे प्यारा, हिन्दू धर्म।
मानवता का है सहारा, हिन्दू धर्म।
बहता रहेगा अनवरत, अनंत तक,
बनकर अमृत की धारा, हिन्दू धर्म।
सबसे सुन्दर जगत में, हिन्दू धर्म महान।
जन्म से मरण तक, संस्कार विद्यमान।
आत्मा से परमात्मा के संबंधों का दर्शन,
राम, कृष्ण की जन्म भूमि, शिवशंकर का वास।
मद्धम हुआ प्रभाव अब, दिखता नहीं प्रकाश।
रावण, कंस के वंशज दिखते, यत्र, तत्र, सर्वत्र;
किसका ये अभिशाप; हुआ पावनता का नाश।
सबसे सुन्दर हिन्दू धरम है।
हर जीव का रखता मरम है,
मेरा पावन हिन्दू धरम है।
ब्रह्मा, विष्णु अरु शिव यहाँ हैं।
मानवी गुणों की नींव यहाँ है।
सत्य का है प्रतीक धर्म ये,
प्रभु को प्रिय हर जीव यहाँ है।
वैदिक धर्म, पावन परम है।
यहाँ ॐ मन्त्र
का उच्चारण।
ब्रह्म तत्व करता है धारण।
ईश्वर की भक्ति और श्रद्धा।
पर-उपकार पुण्य का
कारण।
परपीड़न तो पाप
चरम है।
जीवन का
पूर्ण यह दर्शन।
ईश्वर का विनम्र यह वंदन।
वेदों का ज्ञान, सिद्धांत यहाँ,
शुचि संस्कारों का
यह उपवन।
मानव-धर्म उसका
ही करम है।
संचालक स्वयं नारायण हैं।
हरि-वचन गीता, रामायण हैं।
दान, दया, अध्यात्म नीतियां,
प्रभु के घर का पथ पावन है।
मिटा देता मिथ्या भरम है।
सबसे सुन्दर हिन्दू धरम है।
धर्म तो आचरणपरक है;
मानव मूल्यों का कनक है;
नियमों से ये बंधा हुआ,
धर्म जीवन की सड़क है।
धर्म, जीवन का दर्शन है;
सम्यक ज्ञान व चिंतन है;
परमात्मा की गवेषणा में,
धर्म, आत्मा का मंथन है।
मानवता की साधना में है,
धर्म संयम-अनुपालना में है;
धर्म, परहित में समाहित,
ईश्वर की उपासना में है।
नहीं टीका, ना छत्रों में है;
धर्म, न रंगीन वस्त्रों में है;
ना ही किसी आडम्बर में ये,
धर्म तो वेद-मन्त्रों में
है।
धर्म, पाप के वारण में है;
नैतिकता के धारण में है;
सत्पुरुषों के आचरण में,
धर्म, सत्य के कारण में है।
धर्म सुखों का आधार है;
धर्म श्रेष्ठतम व्यवहार है;
परमात्मा की ओर उन्मुख,
धर्म ही जीवन का सार है।
वेदों के अभिमन्त्रण में है;
ईश्वर के आमंत्रण में है;
धर्म है मानवता की धुरी,
धर्म आत्मनियंत्रण में है।
समाज को कर्म, पूजा की विधि सिखाया ब्राह्मण ने।
वेद, पुराण, ग्रंथों को कंठस्थ कर बचाया ब्राह्मण ने।
धर्म, संस्कृति और संस्कारों को रखे हुए है जीवित वो,
धर्मोत्थान कर, ईश्वर में आस्था जगाया ब्राह्मण ने।
स्वयं दरिद्र होकर भी, समाज को ऊँचा रखता रहा।
पूजा, पाठ, दान से ही, जीवन उसका चलता रहा।
विरोध और त्रासदियां झेल कर भी ब्राह्मण वर्ग;
नीतिगत शिक्षा प्रदान, चरित्र निर्माण करता रहा।
गुण, दोष और कर्म सब, है
ईश्वर के हाथ।
करता वही ऊंच नीच, कुल में
भेजता नाथ।
जाति में
बंटा था समाज, उसे तो कोसते हो!
उसी जाति,
धर्म को फिर क्यों पोषते हो?
आपस में
लड़ा भिड़ा कर काम निकालते,
बाद में
दिखावे के लिए मन मसोसते हो!
दुनिया में पैदा किया,
जीव सभी भगवान।
मिटाये उसकी कृति
को, होता वो शैतान।
धर्म के प्रति जो कट्टरपन है,
दिखावा और अक्खड़पन है।
आस्था से अधिक स्वार्थ, ढोंग;
सत्ता हथियाने का प्रयत्न है।
गंगा-जमुनी तहजीब तो कहते हो।
पृथक प्रवाह में फिर क्यों बहते हो?
दो नदियों के संगम की भांति मिल,
मुख्य धारा में क्यों नहीं रहते हो?
सनातन
धर्म के सपूतों, उर में श्रद्धा जगाओ तुम।
त्याग
आलस्य, निद्रा को, धर्म की ज्योति जलाओ तुम।
जगत में
सबसे है सुन्दर, हिन्दू-धर्म ये तुम्हारा,
लगे न
कुदृष्टि शोभा को, प्राण की भांति बचाओ तुम।
ज्ञान के
कोष वेदों में, सभी का लाभ उठाओ तुम।
पुष्पों
से चारु कानन के, जीवन अपना सजाओ तुम।
प्रभु का
प्रताप है तुम पर, हृदय रखना बसा कर के,
श्रेष्ठतम है सनातन धर्म, जगत भर को जताओ तुम।
पाठ,
शान्ति अहिंसा का, विश्व भर को पढ़ाओ तुम।
विरोधी
षड्यंत्र न रच लें, सजग सचेत हो जाओ तुम।
हिन्दू-धर्म
की जय हो, उपायों को करो ऐसे,
रुधिर बह
जाये रक्षा में, तनिक न हिचकिचाओ तुम।
रेल का शीशा तोड़ के आये
सतुआ पिसान बटोर के आये
कुम्भ में संगम नहाये
कितनी मुश्किलें झेले
कोसों पैदल चले
भीड़ के रेले
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