Wednesday, 27 May 2020

Haiku 2020


धरे न धीर

पाने को धारे
व्यवहार अशिष्ट
मन अभीष्ट

मन पागल
हवा संग उड़ता
बन बादल

मन को भाये
ऐसी सुंदर वस्तु 
कहाँ से आए

आँखों को मूंद
सोया पड़ा सूरज 
ओढ़ के धुंध


नयी थी  आयी 
खींचते रहे दोनों 
छोटी रजाई 

झुकीं नारियां
रोप रहीं क्यारियां
धान की पौध



उठे श्रीमान
बैठने का निशान
घास पे छोड़

अब क्या खाएं 
कोरोना ही खा गया 
सारा राशन

ढूंढता चारा 
पीठ पे लिए पानी 
ऊंट बेचारा 

मिलने चली 
सिंधु से लिए आब 
नदी बेताब 
  
हुई सुबह
खिलते ही कमल
मुक्त भ्रमर 

गिरा उतान 
सिर पर झरना 
रोई चट्टान 


बेटी के माथ
माँ धरे दोनों हाथ 
जुएं हेरते 

गांव की नदी 
गर्मियों में बहती 
गरम हवा 


सावन आया 
झुलूंगी झूला डाल 
नीम की डाल

लेह से मित्र
भेजा लॉन का चित्र
बर्फ की घास

रोये बादल 
अम्बर में बिजली
नीचे बिछली

जाड़े में स्वेद
बहाता रहा नभ
नीचे कुहेश

हो गया तेज
दवा दो इंद्र देव !
पृथ्वी का ज्वर


हिन्द की हिंदी
बन के रह गयी
नन्हीं सी बिंदी

थन के नीचे
गर्र गर्र करते
चौधरी बैठे

चली हैं साथ
ननद और सास
गंगा नहान

हद कर दी
निकला आधा माघ
ज्यों की त्यों सर्दी

सौ पर भारी
पांच ही धर्मचारी
महाभारत

खाकर कीड़ा
मटर की फलियां
आंख गिरोड़ा

जैसे ही मिली
झूम के लहराई
सिंधु से नदी

फूल न पत्ती
बैठी शोक मनाती
तितली रानी

श्रम करती
तभी पेट भरती
नन्हीं तितली

गमले पर
मंदिर में तितली
राम भजती

आवा बदरा
सुखात बाटे खेत
नीचे के झरा


पसंद नापसंद
पावन प्यार

ध्रुव प्रह्लाद
जाने कब हो गए
सांप्रदायिक

राहु भी आया
धुंध का देने साथ
सूर्य ग्रहण

खींची दीवार
मेरे सूर्य के बीच
नभ में धुंध

भंडारा चला
साहित्य का सम्मान
सबको मिला

शाम सुहानी
केतली में गा रहे
घोंघा बसंत

घर में घुसे
जूते में लगी मिट्टी
पांव पोंछते

उठीं श्रीमती
बैठने का निशान
घास पे छोड़

कथा समाप्त
मखियाँ भी आ गयीं
खाने प्रसाद

एक मच्छर
मच्छरदानी भेद
घुसा अंदर

कीड़े की लाश
जुट गयीं चीटियां
हेतु संस्कार

छिटका गुड़
भिन-भिन करता
मक्खी का झुण्ड

काम ही काम
सुस्ताने का न नाम
चींटी के जिम्मा

धुएं से खींच
राम नाम लिखती
अगरबत्ती

शब्दों का तीर
वेध कर जिगर
देता है पीर

शब्दों का फूल
सहला के हटाता 
मन के शूल

शब्दों का शूल
वेध देता दिल में
खिलाया फूल

दिखाई गर्मी
धरती से बेरुखी
नदियां सूखीं

हरश्रृंगार
उतरे आये तारे
हमारे द्वार

उनसे डरा
उनका ही बकरा
ईद आ रही

बहेलिया से डरा
नीड़ छोड़ा

रोज डालता
गमलों
पौधों से प्यार

'आई लव यू'
जैसे ही बोली वह
बैटरी ख़त्म

चैराहों पर
बिताया बचपन
गरी बेचते

चौराहों पर
करतब दिखाती
दो पैसे लाती

देखी ना सखी 
रही नयना मूंदे 
भादों की बूँदें 

अपना बचा
निकाल रहा मेघ
हमारा स्वेद

आ के यहाँ तू
पीया बहुत आंसू
मेरे न बहा

एस. डी. तिवारी

कहाँ है ठाँव 
नन्हें से मेरे पांव
जिंदगी! बता

एस. डी. तिवारी

बनी बेदर्दी
हाड़ कंपकंपाती
अबकी सर्दी

भरा है पेट
भूखा किन्तु हवसी 
मरा विवेक

टटोल बस 
दो चार ही चावल 
लेती परख  
   
मिडिया बन 
समाज का दर्पण  
बिम्ब दिखाती 

बीती लोहड़ी  
अभी पीछा न छोड़ी
शीत लहरी
- एस डी तिवारी 


लॉक डाउन
तीन माह से बंद
पूरा टाउन


रुक ना रहा
कोरोना का कहर
गर्मी ऊपर

टिड्डी का दल
झट से किया चट
खड़ी फसल

त्रस्त जनता
टिड्डी गर्मी कोरोना
तीनों का रोना

नौकरी छूटी
श्रमिक चला गांव
कौड़ी न फूटी

आया ना रास
मजदूर को गांव
एकांत वास

गए ठहर
शहर के शहर
कोरोना व्याधि

पकाती साग
मुल्क में लगा आग
सत्ता की भूख


दुम हिलाती
पुलिस नेता द्वारे
दीन को मारे

खाकर लाल
न्याय के दोनों गाल
साथ तमाचा

मेरी कुटीर  
इसी में मनाऊंगा 
नूतन वर्ष  

घर के पीछे 
बासों का झुरमुट  
झांकता चाँद 

नभ से चाँद 
झुरमुटों से झांक 
मेरी मुरेड़

करवा चौथ 
उड़ाते पकवान 
देख के चाँद 


जलाये बोटी
सेंकने हेतु रोटी
खुद के माँ की
आज कल का नेता
यूँ ही नईया खेता

दिल के रंग 
नयनों से छलक 
दिए झलक 

हिम्मत हो तो 
चीन जा के दिखाओ 
दुष्ट टिड्डियों !

गये ठहर
शहर के शहर
चीनी कहर

बिना बन्दूक
ले ली लाखों की जान
छोटी सी चूक

कल्ले ही नाची
इस वैसाखी मोना
छाया कोरोना



बनाया बंदी
कोरोना का कहर
पूरा शहर 

दैत्य कोरोना 
मचाया हाहाकार 
बंद बाजार  

हाथों को धो के 
भगाएंगे कोरोना
सजग हो के  

एस. डी. तिवारी 

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