Thursday, 26 September 2019

Mahiya / Essa


जहाँ हाइकु १७ वर्णों में लिखी जाने वाली कविता है माहिया ३४ मात्राओं में लिखी जाती है। माहिया का गेय होने आवश्यक है जब कि हाइकु में गेयता या उसका तुकांत होना अनिवार्य नहीं है। हाइकु का प्रादुर्भाव जापान में हुआ और माहिया पंजाब  वाला एक लोक गीत है।
माहिया और हाइकु कुछ समानता अवश्य है, पर दोनों एक दूसरे के पूरक नहीं हो सकते। दोनों लघु कविता हैं और तीन पंक्तियों में लिखी जाती हैं।

१. हिंदी में हाइकु लिखने का क्रम ५-७-५ वर्ण है जब कि माहिया का क्रम है १२-१०-१२ मात्रा।
२. हाइकु तुकांत नहीं होता जबकि माहिया की प्रथम व अंतिम पंक्तियाँ तुकांत होती हैं।
३. हाइकु को अभी भी सूक्षतम कविता होने का गौरव प्राप्त है।
४. माहिया भाव प्रधान कविता है, हाइकु में भाषा का पैंतरा
५. हाइकु में दो भाव अथवा बिम्ब होना आवश्यक है। दोनों बिम्बों में विच्छेदन होना चाहिए।
६. माहिया की सुंदरता उसके गायकी में है जबकि हाइकु की सुंदरता उसके सारगर्भिता में है।

नूतन वर्ष
सुन्दर तीर्थयात्री
द्वार पे खड़ा



आया बसंत
गौरैयों का मुखड़ा
खुशियों भरा

त्यौहार बीता
अभी भी नहीं आया
मेरा नौकर



पड़े झुग्गी में
नव वर्ष आरम्भ
दोपहरी में



प्रथम मॉस
दूसरे दिन मेरे
दुखते हाथ



प्रथम माह
खर्च का बना रहा 
अब हिसाब



मेरी झोपड़ी
इसी में बसंत की
पहली भोर



अद्भुत पल
बसंत का आरम्भ
जहाँ मैं जन्मा



मिट्टी का तन
खिला मेरा बसंत
प्रभु की कृपा



पहली चाय
वर्ष की उठा रही 
नभ में भाप



टूटा छप्पर
स्वागत में जुटा
पहली वर्षा



दो दिन छुट्टी
मजदूर मनाते
गांव में मौज



कितनी बार
नववर्ष सौगात
ये पंखा देगा



नन्हां वो मुन्ना
सोया गहरी नींद
पतंग दबा



दातों को किया
मजकर के तेज
भात भोज

बिल्ली ले गयी
नववर्ष की पाई
हंस के खाई

हल्का हिमपात 

खोद के बना रहा
श्वान स्थान  

बर्फ के फाहे
आधे रस्ते में ख़त्म
वर्षा की झड़ी

चूहा भी सो के
आराम कर रहा 
वर्षा की झड़ी

ठीक करता 
पुजारी जीर्ण वस्त्र 
वर्षा की ऋतु

बसंती हवा
लोमडे शैतान
दिखने लगे  




मित्रों,

कोबयाशी इस्सा के अंग्रेजी में अनुवादित कुछ हाइकु, मुझे एक वेब साइट पर पढ़ने को मिले। उनमें से कुछ हाइकु, मैं हिंदी में अनुवादित करके यहाँ पोस्ट करता रहूँगा ताकि हाइकु लिखने पढ़ने वालों को हाइकु की बारीकियों एवं धार का ज्ञान हो सके।
हाइकु के जनक बाशो के ये दो प्राक्कथन यहाँ उद्धृत करना चाहूंगा  -
१ 'यदि किसी ने एक भी अच्छी कविता लिख दिया, उसका जीवन व्यर्थ नहीं गया।'
२ 'एक अच्छे हाइकु के शब्द थम जाते हैं किन्तु व्याख्या चलती रहती है।'
 ज्ञातव्य हो कि इस्सा के हाइकु जापानी परिप्रेक्ष्य में लिखे गए हैं, कई स्थितियों में जापानी परिवेश भारत से बिलकुल भिन्न हैं। मैंने उन परिस्थितियों में हाइकु को भारतीय परिप्रेक्ष्य में ही रखा है। कई बार जापानी परिवेश भारत से बिल्कुल ही भिन्न होने के कारण, जापानी हाइकु कि हिंदी में व्याख्या तो कि जा सकती है किन्तु हिंदी में हाइकु रूपांतर करना असंभव प्रतीत होता है। ऐसी बहुत सी परिस्थितियां हैं जैसे कि वहां कि भौगोलिक स्थिति, व्यव्हार, जीवन, संस्कृति और त्यौहार इत्यादि जिनका भारत से दूर दूर तक कोई समानता नहीं है और जिन्हें समझने के लिए पर्याप्त अध्ययन की आवश्यकता है, ऐसे हाइकु को मैंने छोड़ देना ही उचित समझा। मुझे उम्मीद है कि ये हाइकु पढ़कर सदस्यों को अपनी लेखनी में सुधार करने का अवसर मिलेगा। चूकि मैंने अंग्रेजी अनुवाद पढ़कर ही हिंदी में रूपांतर किया है, उस अंग्रेजी अनुवादक का नाम तो नहीं ज्ञात परन्तु मैं आभार व्यक्त करता हूँ। 

एस डी तिवारी 

Monday, 23 September 2019

Dilli tere ishk me



तेरी अदाओं पे रीझा, दिल ये मतवाला हुआ।
दिल्ली तेरे इश्क में, मैं तो दिल्लीवाला हुआ।

हिंदुस्तान का तू दिल, तेरे दिल में हिंदुस्तान;
हिन्दुस्तानियों के दिल में, रूप तेरा ढाला हुआ।

कितने लुटेरे आये, लूटे तेरी आबरू को;
वही लूटने वाला फिर, तेरा रखवाला हुआ।

आने वाली पीढ़ी का भी, रखती रही ख्याल तू;
लायी खजाना ढो के, सदियों से संभाला हुआ।

मंडियां तू लगाती गजब, महफ़िलें सजाती अजब;
कोई दारूवाला, कोई मसालावाला  हुआ।

पैसे के लिए कर जाते, जाने क्या क्या खेल लोग;
धनवानों से बचा तो निर्धन का निवाला हुआ।   

खेलते तेरी आबरू से, अब भी नासमझ कई;
प्रदूषण के धुआं से आसमां तेरा काला हुआ।

धर्म, कर्म, शिक्षा में अव्वल, चुनौतियाँ बड़ी मगर;
अतिक्रमण का रोग, खुद ही तूने पाला हुआ।

ऊँचे मकान तुझपे, कानून की बड़ी दुकान तुझपे
कोई मालामाल और, किसी का दिवाला हुआ।




कईयों को किया कंगाल, दिल्ली का दंगा।
कईयों का बन गया काल, दिल्ली का दंगा।
इंसानों को मारा, इंसानियत को मारा,
बना हैवानियत का मिसाल, दिल्ली का दंगा।
सुकून से रहते निवासियों की जिंदगी में, 
आया लेकर के भूचाल, दिल्ली का दंगा।
अपनी अपनी रोटी, सेकने वालों का काम, 
ओढ़े हुए धर्म की खाल, दिल्ली का दंगा।
जलाया भाई-चारा, पड़ोस का नाता सारा,
सालों से रक्खा सम्हाल, दिल्ली का दंगा।
रो रही उधर भी माँ, रो रही इधर भी माँ,
सुनाये किसे लाल का हाल, दिल्ली का दंगा।
रोजी-रोटी, घर छीना, प्रेम परस्पर छीना,
नफरतों का फेंका जाल, दिल्ली का दंगा।
बम, कट्टे, पत्थर, तलवार, सिर पर खून सवार,
दिया गजब दहशत में डाल, दिल्ली का दंगा।
घाव दिया गहरा, भारत माता के सीने पर, 
बड़ा किया है जिसने पाल, दिल्ली का दंगा।
दुश्मनों की बजाय, आपस में ही लड़ मरना, 
करता खड़ा कई सवाल, दिल्ली का दंगा। 
सूझ, शौर्य, इंसानियत, लिए 'देव'अनेक, 
आगे गला न पाया दाल, दिल्ली का दंगा। 

- एस. डी. तिवारी

करता रौशन जो राह, लगाया उससे आग,
घर जलाया लिए मशाल, दिल्ली का दंगा।



दिल्ली दर्शन

देश में सबसे स्वच्छ, दिल्ली।
दाव पेंच में दक्ष, दिल्ली।
विकास और व्यवस्था में,
पेरिस के समकक्ष, दिल्ली।

है ये बहुत अजूबी, दिल्ली।
रखती बड़ी ही खूबी, दिल्ली।
लोगों की महबूबी, दिल्ली,
फैशन में रहती डूबी, दिल्ली।

खाने का खजाना, दिल्ली में।
फैशन का फ़साना, दिल्ली में।
दिल्ली का दिल बहुत बड़ा है,
आते नए रोजाना, दिल्ली में।

स्वादों का गजब मेला, दिल्ली में।
राजनीति का खेला, दिल्ली में।
घरौंदे छोटे, और बड़ी मंडियां,
यातायात का रेला, दिल्ली में।

देश सारा, दिल्ली से चलता।
दिल्ली में लघु भारत बसता।
हर ऋतु को हराता, हरित नगर,
पग दिल्ली का, कभी न थमता।

बिना सींचे ही बढ़ती जाती।
बरगद जैसे फैलती जाती।
दिल्ली के आबादी की गाड़ी,
बेधड़क गति से चलती जाती।

दिल्ली तो आज में जीती है।
काम के अंदाज में जीती है।
कमाने के तरीके बहुतेरे,
यही कारण, नाज में जीती है।

उच्च शिक्षा, चिकित्सा, दिल्ली में।
मेट्रो-ट्रेन और रिक्शा दिल्ली में।
जान तक ले लेती सड़कों पर,
सड़क जाम का किस्सा, दिल्ली में।

ईमारत और स्मारक, दिल्ली में।
चिंतक और विचारक, दिल्ली में।
ढोंगी और फरेबी भी ना कम,
ज्ञान, विज्ञान के साधक दिल्ली में।

संस्कृति की धरोहर है, दिल्ली।
जाति धर्म से ऊपर है, दिल्ली।
निवासियों के दिलों में समाये,
हर मायने में सुपर है दिल्ली।



लाल किला की दीवार 


मैंने बादशाहों को आते देखा 

मैंने बादशाहों को जाते देखा

महल में आती बहार देखा 

महल में उठाते गुबार देखा  

मैं लालकिला हूँ खँडहर 


मैं खँडहर हो चूका हूँ 

मैं जर्जर हो चूका हूँ 

भारत की शान हूँ 

भारत का निशान हूँ 


सैंतालीस का अगस्त देखा 

तिरंगा फहराते मस्त देखा 


राजाओं के पोषक को देखा 

शाही ठाट बाट को देखा 

सरपट दौड़ते घोड़े देखा 

बरसते हुए कोड़े देखा 


सिपाहियों में जोश देखा 

सेनापतियों में रोष देखा 

कइयों को मदहोश देखा 

बहुतों को खामोश देखा 

 

लाते हुए फरियाद देखा 

बीती हुयी याद देखा 


जीवन से जुड़े प्रसंग देखा 

सबके अपने ढंग देखा 

बदलते कई रंग देखा 

राजा को दासी के संग देखा 

 

बादशाहों का आराम देखा 

होते जंग सरेआम देखा 

मचा हुआ कोहराम देखा 

 होते हुए कत्लेआम देखा 


सजा मीना बाजार देखा 

चलते गजब व्यापर देखा 

होते हुए अत्याचार देखा 

बीच में बानी मजार देखा 


चुगलखोरों के कहते देखा 

गमखोरों को सहते देखा 

तिनकों को बहते देखा 

दीवारों को ढहते देखा 


लुटेरों को देखा 


अभी भी मैं जिन्दा हूँ 

सियासी चाल से शर्मिंदा हूँ 


सियासी चाल देखता हूँ 


पत्थरों पर नक्काशी देखा 

अय्याशी देखा 

बदहवासी 

१६३८ 

भारत की धरोहर हूँ 

करोड़ों ने मुझको देखा  


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प्यार का खजाना अपने, दिवानों पर  लुटाती है।

दिल्ली! इस कदर मगर क्यों, दर्द सहती जाती है?

हो चुके हैं कैद लाखों, इश्क में बेपनाह तेरी

शर्मीली है बड़ी तू, किसी से कह ना पाती है।

बैठती ना चैन से तू, जब देखो दौड़ती होती,

सुबह हो या शाम हो, सडकों पर लहराती है।

निकल पड़ती घर से तू , जोश में तड़के ही बहुत  

जाकर किन्हीं चौराहों पर, भीड़ में सुस्ताती है।


लोग मचल जाते हैं देख, सावन भादों की फुहार

तू है कि बारिशों के पानी में, मगर थम जाती है।

ऊपर वाले ने बख्शा सभी ओर ही पानी तेरे

समुन्दर के किनारे पे  रह, प्यासी रह जाती है।

तेरी जमीन से तुझे, मुहब्बत बेइम्तहां दिल्ली 

छूने को आसमान लिए हौसला बढ़ जाती है।

धन कुबेरों का मजमा, अप्सराओं का नाच भी

दीवानों को अपने मानो, जन्नत दिखाती है।

तेरी अस्मत से कर, होते हैं खिलवाड़ कितने

बेशर्मियां भी करते और तू देखती रह जाती है।

दल रहे होते हैं तेरे, दीवाने ही छाती पे मूंग

बेशुमार प्यार तेरा, सब चुप ही सह जाती है।


सड़क जाम तो यहाँ आम बात
गाड़ी ख़राब तो कहीं गलत पार्क
कभी जुलुस, कभी सड़क पर ही
नाच रही होती बारात


लड़कियां कहीं से कम नहीं
मेट्रो का अगला कोच उनका है
महँगी गाड़ियां हैं छोटी पहाड़ियां हैं
हरे भरे पार्कों में कहीं कहीं झाड़ियां हैं

राजनीति का खेल दिल्ली में
भीड़ की ठेलम ठेल दिल्ली में
छोटे घरौंदे, बड़ी मंडियां
बड़े लोगों की जेल दिल्ली में


होटल, ढाबा, बार, गुमटी 
करते दिल्ली के खाने की पूर्ति 
पानी पूरी, चाट पकौड़ा  
खाती दिल्ली आलू की टिक्की 



सात गेट 

दिल्ली गेट 
लाहौरी गेट 
कश्मीरी गेट 
तुर्कमान गेट 
मोरी गेट 
अजमेरी गेट 
निगमबोध गेट 
इंडिया गेट 

Tuesday, 17 September 2019

Pyar boond 3



हथेली पर रख जान
प्यार किया है तुझसे
दगा नहिं देना जान

खेले घर अंगना में
देखती है माँ केवल
सारा सुख ललना में

माँ बाप का ही प्यार
कर देते हैं बच्चों का
गलतियां माफ़ हजार

बेशक दे बेटा गम
सुत हेतु माँ का प्यार
कभी नहीं होता कम

दवा से अधिक आशीष
माँ का आता है काम
नवाये रखना शीश

लाल बिछुड़ जाता है
उस माँ का नहीं कोई
दुखड़ा हर पाता है

होता है माँ का प्यार
डांटती कभी वो जब
बिगड़े कहीं ना लाल

शिशु की किलकारी है
पाने के लिए जो माँ
सब कुछ ही हारी है

पापा कहीं जाते थे
अवश्य ही मेरे लिए
चीज कोई लाते थे

बांधने का है तार
रिश्ते नातों को साथ
उनका परस्पर प्यार


दिन रात है मरता
देश का अपने नेता
कैसे भी मिले सत्ता

हो जाता जब लगाव
नेता की सत्ता से
देता न किसी को भाव

नेता लगाव रखता
जन व जिम्मेदारी से
राष्ट्र आगे बढ़ता

थोड़े ही होते हैं
नेता बन के देश से
प्यार संजोते हैं

दूर होने पर वास
सताती बहुत ज्यादा
मातृभूमि की याद

केश से करती प्यार
संवारती ही रहती
दिन में कइयों बार

उपजता जहाँ से अन्न
होता जड़ा कृषक का
उस मिटटी में मन

कहीं भी जाते हैं
माँ के हाथों का स्वाद
भूल नहीं पाते हैं

कमाने गए विदेश
माँ की याद सताती
मन घेरे रहा क्लेश

लाते थे नए कपड़े
पापा स्नेह से हमको
खुश होते पहन बड़े

करना तेरा श्रृंगार
भारी पड़ गया अतिशः
मुझे हो आया प्यार

यूँ ही न बेकरारी
तौल तुला में देखो
प्यार है मेरा भारी

बिछुड़ जाने का दर्द
अपने आप बढ़ जाता
होता मौसम सर्द

प्यार बहुत था मगर
शादी का दिन दोनों का
निकला अलग अलग

दर्द का तो सामान
बिकता प्रेम की मंडी   
दवा की नहीं दुकान

दिखाता है जब रंग
रंग डालता ये प्यार 
राजा हो चाहे रंक

जाऊं मैं बार बार
जी चाहता वादियों में
मुझे पहाड़ से प्यार



दिखाई थी जो असर
कैद कर रखा अभी तक
मुझे उसकी वो नजर

दो ऑंखें जो कह गयीं
पत्थर कि लकीर बनकर
दिल में बसी रह गयीं

तुमने श्रृंगार किया
तारीफ़ हम करने चले
तीर सा उतार दिया

याद यूँ करना उसकी 
रात भर सोने न दिया
सताती रही हिचकी

किसी से दिल लगाया
खुद के रोने धोने को
दिल में इश्क जगाया

हुस्न देख वाह निकले
मुहब्बत फिर इतनी सी
दर्द से आह निकले

हुस्न का वो था असर
जिसने पागल कर दिया
लोग बोले बुरी नजर

एक पिंजरे में बंद
रोते पाने को पंछी
वन का प्यार क्षण चंद

था तो प्यार जरूर 
मौका पा पिंजरे से
तोता भागा अति दूर

ईंटों से चिपक ईंटें
प्यार से पकड़ी रहतीं
बना देती हैं भीतें

सारंगी की कमान
प्यार से अति सहलाकर
निकालती उत्तम तान

ढोलकी करती प्यार
सुर उत्तम ही देती
वादक से खा के मार

अधरों से मिले अधर
बांसुरी लगती गाने
प्यार भरे स्वर मधुर

चिड़िया लेती संवार
अपने प्यारे पंखों को
चोंच घुमा के मार

हो जाता है बंद
रति के रस में फंसकर
कमलदल में मकरंद

नाग को कोई मारे 
नागिन का सच्चा प्यार
मारती डंस हत्यारे

सुन्दर जग में न्यारे
प्रकृति की ये शोभा हैं
पशु होते अति प्यारे

खूंटे से करती प्यार
गैया चर के आती
शाम ढलते ही द्वार

ऊंट, घोड़े व हाथी
प्यार से ही रखने पर
बन जाते हैं साथी


बड़ा किया है पाल,
पावन इस धरती के
हम प्यारे नौनिहाल। 

नफ़रत बेचने वाले
धूल तुझे चटाएंगे, 
देश के हम रखवाले।

हमसे राष्ट्र की शान,
मुझे प्राणों से प्यारा 
ये मेरा हिंदुस्तान।

हवाओं! यहाँ बहना,
यह मेरा प्यारा देश 
अपने ढंग में रहना।

हुआ है जनम मेरा,
इस मिट्टी से प्यार 
करता यहाँ बसेरा।

करके प्राण न्यौछार
शहीद हुए जो वीर,
देश से रखते प्यार। 

गंगा जमुना कावेरी
हिमालय, हिन्द सागर,
बसते प्राण में मेरी।

घर कार नयी आयी,
पापा के साथ मिल के
करता रोज सफाई। 


करती बालों से प्यार,
संवारने में लगाती 
कई घंटे हर इतवार।


मैं भारत का वासी
प्यार बहुत करता हूँ 

थिरक उठते पांव सुन
बांध के घुंघरू
तबले की धुन

छोड़ गया निर्मोही
खेल


Friday, 6 September 2019

Mera Hindustan desh

मेरे भारत की परिपाटी है।
सोना से बढ़कर माटी है।

प्रेम सत्य के पथ पर चलना।
कला संस्कृति के संग बढ़ना।
पौराणिक कथाओं का भंडार, 
पर्व, उत्सव में मगन ही रहना।
गाते, हँसते खेती करके,
फसल खुशियों की काटी है। मेरे भारत की .. 
 
देश की खातिर वीर जवान।
डंटे सीमा पर सीना तान।
संकट कोई भी आने पर, 
हिचक तनिक ना देने में जान।   
इंच इंच की रक्षा में ऊँची,
रखे छप्पन इंच की छाती हैं। मेरे देश की

कठिनाई से नहीं डरते हम। 
डगर विकास की चलते हम।
विज्ञान संस्कृति का समन्वय,
अध्यात्म सर्वोपरि रखते हम। 
डंट के करते हैं हम काम, 
खाते दूध दही घी खाटी हैं। मेरे भारत की ..

व्यनजनों का यहाँ मेला है।
नाना पकवानों का रेला है।
छोले भठूरे, आलू कचौड़ी, 
पानी पूरी का ठेला है।
कहीं ढोकला, सांभर डोसा,
कहीं पर चोखा बाटी है। मेरे भारत की ..

देवी देवों का वास यहाँ है।
राधा कृष्ण का रास यहाँ है। 
राम नाम के मन्त्र का मंथन, 
पावन धरती आकाश यहाँ है। 
भजन कीर्तन करते लोगों की, 
जिंदगी  सुन्दर कट जाती है। मेरे भारत की .. 

मन में जिसका बसा है कण कण।
वह माटी प्राणों से बढ़कर। 
हो जाएँ कभी दूर हम उससे,
याद सताती उसकी हर क्षण।
दिया है जीवन का सुख सारा, 
माँ भारती प्रेम की थाती है। मेरे भारत की ..

- एस. डी. तिवारी


चाँद पर मेरा हिंदुस्तान

वैज्ञानिकों का ये अद्भुत अभियान।
पहुँच गया चाँद पर, मेरा हिंदुस्तान।

गया मामा के घर, विक्रम पहली बार।
अगली बार जायेगा, चाँद के भी पार।
अब रहे ना दूर के, चंदा मामा प्यारे।
तारों संग खेलेंगे, बच्चे जाकर सारे।
छीन लिया कविता से, चाँद को विज्ञान।
पहुँच गया चाँद पर, मेरा हिंदुस्तान।
 
दो हजार उन्नीस का था सात सितम्बर।
भारत का तिरंगा फहरा चंद्र-भूमी पर।
वहां बनेगा मौसम, संचार का कार्यालय।
अंतरिक्ष यात्रा का, नभ में विश्रामालय।
उतारा विज्ञानी चाँद ने चंदा पे चंद्रयान।
पहुँच गया चाँद पर, मेरा हिंदुस्तान।

होगी अब ना दूज की, न पूर्णिमा की आस।
जब चाहो देख आओ, चाँद को जा के पास।
व्रत में लगाएंगी नारियां, चाँद का चन्दन।
करेगी सारी दुनिया, भारत का अभिनन्दन।
राष्ट्र नहीं कोई जग में, भारत सा महान। 
पहुँच गया चाँद पर, मेरा हिंदुस्तान।

एस. डी. तिवारी