तेरी अदाओं पे रीझा, दिल ये मतवाला हुआ।
दिल्ली तेरे इश्क में, मैं तो दिल्लीवाला हुआ।
हिंदुस्तान का तू दिल, तेरे दिल में हिंदुस्तान;
हिन्दुस्तानियों के दिल में, रूप तेरा ढाला हुआ।
कितने लुटेरे आये, लूटे तेरी आबरू को;
वही लूटने वाला फिर, तेरा रखवाला हुआ।
आने वाली पीढ़ी का भी, रखती रही ख्याल तू;
लायी खजाना ढो के, सदियों से संभाला हुआ।
मंडियां तू लगाती गजब, महफ़िलें सजाती अजब;
कोई दारूवाला, कोई मसालावाला हुआ।
पैसे के लिए कर जाते, जाने क्या क्या खेल लोग;
धनवानों से बचा तो निर्धन का निवाला हुआ।
खेलते तेरी आबरू से, अब भी नासमझ कई;
प्रदूषण के धुआं से आसमां तेरा काला हुआ।
धर्म, कर्म, शिक्षा में अव्वल, चुनौतियाँ बड़ी मगर;
अतिक्रमण का रोग, खुद ही तूने पाला हुआ।
ऊँचे मकान तुझपे, कानून की बड़ी दुकान तुझपे
कोई मालामाल और, किसी का दिवाला हुआ।
कईयों को किया कंगाल, दिल्ली का दंगा।
कईयों का बन गया काल, दिल्ली का दंगा।
इंसानों को मारा, इंसानियत को मारा,
बना हैवानियत का मिसाल, दिल्ली का दंगा।
सुकून से रहते निवासियों की जिंदगी में,
आया लेकर के भूचाल, दिल्ली का दंगा।
अपनी अपनी रोटी, सेकने वालों का काम,
ओढ़े हुए धर्म की खाल, दिल्ली का दंगा।
जलाया भाई-चारा, पड़ोस का नाता सारा,
सालों से रक्खा सम्हाल, दिल्ली का दंगा।
रो रही उधर भी माँ, रो रही इधर भी माँ,
सुनाये किसे लाल का हाल, दिल्ली का दंगा।
रोजी-रोटी, घर छीना, प्रेम परस्पर छीना,
नफरतों का फेंका जाल, दिल्ली का दंगा।
बम, कट्टे, पत्थर, तलवार, सिर पर खून सवार,
दिया गजब दहशत में डाल, दिल्ली का दंगा।
घाव दिया गहरा, भारत माता के सीने पर,
बड़ा किया है जिसने पाल, दिल्ली का दंगा।
दुश्मनों की बजाय, आपस में ही लड़ मरना,
करता खड़ा कई सवाल, दिल्ली का दंगा।
सूझ, शौर्य, इंसानियत, लिए 'देव'अनेक,
आगे गला न पाया दाल, दिल्ली का दंगा।
- एस. डी. तिवारी
करता रौशन जो राह, लगाया उससे आग,
घर जलाया लिए मशाल, दिल्ली का दंगा।
दिल्ली दर्शन
देश में सबसे स्वच्छ, दिल्ली।
दाव पेंच में दक्ष, दिल्ली।
विकास और व्यवस्था में,
पेरिस के समकक्ष, दिल्ली।
है ये बहुत अजूबी, दिल्ली।
रखती बड़ी ही खूबी, दिल्ली।
लोगों की महबूबी, दिल्ली,
फैशन में रहती डूबी, दिल्ली।
खाने का खजाना, दिल्ली में।
फैशन का फ़साना, दिल्ली में।
दिल्ली का दिल बहुत बड़ा है,
आते नए रोजाना, दिल्ली में।
स्वादों का गजब मेला, दिल्ली में।
राजनीति का खेला, दिल्ली में।
घरौंदे छोटे, और बड़ी मंडियां,
यातायात का रेला, दिल्ली में।
देश सारा, दिल्ली से चलता।
दिल्ली में लघु भारत बसता।
हर ऋतु को हराता, हरित नगर,
पग दिल्ली का, कभी न थमता।
बिना सींचे ही बढ़ती जाती।
बरगद जैसे फैलती जाती।
दिल्ली के आबादी की गाड़ी,
बेधड़क गति से चलती जाती।
दिल्ली तो आज में जीती है।
काम के अंदाज में जीती है।
कमाने के तरीके बहुतेरे,
यही कारण, नाज में जीती है।
उच्च शिक्षा, चिकित्सा, दिल्ली में।
मेट्रो-ट्रेन और रिक्शा दिल्ली में।
जान तक ले लेती सड़कों पर,
सड़क जाम का किस्सा, दिल्ली में।
ईमारत और स्मारक, दिल्ली में।
चिंतक और विचारक, दिल्ली में।
ढोंगी और फरेबी भी ना कम,
ज्ञान, विज्ञान के साधक दिल्ली में।
संस्कृति की धरोहर है, दिल्ली।
जाति धर्म से ऊपर है, दिल्ली।
निवासियों के दिलों में समाये,
हर मायने में सुपर है दिल्ली।
लाल किला की दीवार
मैंने बादशाहों को आते देखा
मैंने बादशाहों को जाते देखा
महल में आती बहार देखा
महल में उठाते गुबार देखा
मैं लालकिला हूँ खँडहर
मैं खँडहर हो चूका हूँ
मैं जर्जर हो चूका हूँ
भारत की शान हूँ
भारत का निशान हूँ
सैंतालीस का अगस्त देखा
तिरंगा फहराते मस्त देखा
राजाओं के पोषक को देखा
शाही ठाट बाट को देखा
सरपट दौड़ते घोड़े देखा
बरसते हुए कोड़े देखा
सिपाहियों में जोश देखा
सेनापतियों में रोष देखा
कइयों को मदहोश देखा
बहुतों को खामोश देखा
लाते हुए फरियाद देखा
बीती हुयी याद देखा
जीवन से जुड़े प्रसंग देखा
सबके अपने ढंग देखा
बदलते कई रंग देखा
राजा को दासी के संग देखा
बादशाहों का आराम देखा
होते जंग सरेआम देखा
मचा हुआ कोहराम देखा
होते हुए कत्लेआम देखा
सजा मीना बाजार देखा
चलते गजब व्यापर देखा
होते हुए अत्याचार देखा
बीच में बानी मजार देखा
चुगलखोरों के कहते देखा
गमखोरों को सहते देखा
तिनकों को बहते देखा
दीवारों को ढहते देखा
लुटेरों को देखा
अभी भी मैं जिन्दा हूँ
सियासी चाल से शर्मिंदा हूँ
सियासी चाल देखता हूँ
पत्थरों पर नक्काशी देखा
अय्याशी देखा
बदहवासी
१६३८
भारत की धरोहर हूँ
करोड़ों ने मुझको देखा
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प्यार का खजाना अपने, दिवानों पर लुटाती है।
दिल्ली! इस कदर मगर क्यों, दर्द सहती जाती है?
हो चुके हैं कैद लाखों, इश्क में बेपनाह तेरी,
शर्मीली है बड़ी तू, किसी से कह ना पाती है।
बैठती ना चैन से तू, जब देखो दौड़ती होती,
सुबह हो या शाम हो, सडकों पर लहराती है।
निकल पड़ती घर से तू , जोश में तड़के ही बहुत
जाकर किन्हीं चौराहों पर, भीड़ में सुस्ताती है।
लोग मचल जाते हैं देख, सावन भादों की फुहार
तू है कि बारिशों के पानी में, मगर थम जाती है।
ऊपर वाले ने बख्शा सभी ओर ही पानी तेरे
समुन्दर के किनारे पे रह, प्यासी रह जाती है।
तेरी जमीन से तुझे, मुहब्बत बेइम्तहां दिल्ली
छूने को आसमान लिए हौसला बढ़ जाती है।
धन कुबेरों का मजमा, अप्सराओं का नाच भी
दीवानों को अपने मानो, जन्नत दिखाती है।
तेरी अस्मत से कर, होते हैं खिलवाड़ कितने
बेशर्मियां भी करते और तू देखती रह जाती है।
दल रहे होते हैं तेरे, दीवाने ही छाती पे मूंग
बेशुमार प्यार तेरा, सब चुप ही सह जाती है।
सड़क जाम तो यहाँ आम बात
गाड़ी ख़राब तो कहीं गलत पार्क
कभी जुलुस, कभी सड़क पर ही
नाच रही होती बारात
लड़कियां कहीं से कम नहीं
मेट्रो का अगला कोच उनका है
महँगी गाड़ियां हैं छोटी पहाड़ियां हैं
हरे भरे पार्कों में कहीं कहीं झाड़ियां हैं
राजनीति का खेल दिल्ली में
भीड़ की ठेलम ठेल दिल्ली में
छोटे घरौंदे, बड़ी मंडियां
बड़े लोगों की जेल दिल्ली में
होटल, ढाबा, बार, गुमटी
करते दिल्ली के खाने की पूर्ति
पानी पूरी, चाट पकौड़ा
खाती दिल्ली आलू की टिक्की
सात गेट
दिल्ली गेट
लाहौरी गेट
कश्मीरी गेट
तुर्कमान गेट
मोरी गेट
अजमेरी गेट
निगमबोध गेट
इंडिया गेट