सोहर गीत
अंगना में खेले ललनवा, गगनवा मगन भइल हो।
ललना, बाजेला दुअरे बधाई, भवनवा धन भइल हो।
डोल के झुलावेला झुलनवा हौले से पवनवा हो।
ललना, विंहसेला देखि चनरमा बाबा क अंगनवा हो।
चाचा ले के अइलें घुघुनवा
कि चाची बजावेली हो।
ललना, ननदी डोलावें
पलनवा, संगही गावेली हो।
माई का खिलल बाटे मनवा खुशी खुशी झुमेली हो।
ललना, आजी क चमके नयनवा मुंह आ के चुमेली हो।
चहके चारी ओर सजनवा, होरिला का जनमवा हो।
ललना, बाबा लुटावे अन्न धनवा, होते बिहनवा हो।
खिलौना गीत
निशानी मांगे ननदी, लाल की बधाई।
कंठ-हार मांगे ननदी, लाल की बधाई।
ये तो कंठ-हार मेरे ससुर जी ने दीन्हा,
अंगूठी ले ले ननदी, लाल कि बधाई।
ये तो अंगूठी मेरी सासु जी ने दीन्हा,
झुमका ले ले ननदी, लाल की बधाई।
ये तो झुमका मेरे जेठ जी ने दीन्हा,
पाजेब ले ले ननदी लाल कि बधाई।
ये तो पाजेब मेरी जेठानी ने दीन्हा,
मोबाइल ले ले ननदी, लाल की बधाई।
ये तो मोबाइल मेरे साजन ने दीन्हा,
तू साड़ी ले ले ननदी, लाल की बधाई।
ये तो साड़ी अपने मायके से लायी,
नगदी ले ले ननदी, लाल की बधाई।
- सत्य देव तिवारी
झूमर गीत
घेर आईल कारी बदरिया हो, बरसे धीरे धीरे।
बिछली में सारी डगरिया हो, बरसे धीरे धीरे।
ताका ना तू, एन्ने अनाड़ी,
भीजल बाटे हमरी साड़ी,
फेर ला तू आपन नजरिया हो, बरसे धीरे धीरे।
भीजल जाय रे अंग मोरा,
तनिको नाहीं फिकर बा तोरा,
पास नाहीं हमरे छतरिया हो, बरसे धीरे धीरे।
जियरा हमार जर जर जाय,
रिमझिम सावन नाहीं बुताय,
बड़ा नाजुक बाटे उमरिया हो, बरसे धीरे धीरे।
झूला झूलें सखियाँ सहेली,
गईल सँवरिया छोड़ अकेली,
सावन में सूनी सेजरिया
हो, बरसे धीरे धीरे।
- सत्य देव तिवारी
कजरी गीत
घिर घिर आयी काली बदरिया,
सावन बरसन लागे ना।
घर नहीं आये रे सांवरिया, जियरा तरसन लागे ना।
ताल तलैया भर गए सारे,
हर रोज निहारूं डगर मैं ।
कैसे मैं समझाऊं
सजन को, उपाय ना कोई नजर में।
दामन मोरा डर डर जाये,
दामिनी तड़पन लागे ना।
सखि सब झूला झूल रहीं,
मैं पड़ गयी यहाँ अकेली।
सावन में छोड़ पिया परदेश,
बनी हूँ मैं तो पहेली।
ऊँची पेंग दिखा के मोंहे,
सखियाँ मटकन लागें ना।
खेतों
में उग आये धान, मेढक, मोर, पपीहरा पुकारे।
सावन,
कर दे न जला के राख, अब तो पिया तू आ रे।
जब जब आवे ठंडी बयार,
अँखियाँ फड़कन लागे ना।
- सत्य देव तिवारी
विदेशिया गीत
फागुन
महिनवा में गईले परदेशवा,
छोड़ गईले सूनी सेज रे विदेशिया।
रोवत रोवत मोरी अंखिया झुरइली,
भीज गईल तकिया
सगरी विदेशिया।
साँझ सवेरे ले ला तनी बतियाय हो,
फोनवा
से मन ना भरे रे विदेशिया।
देख टेलीविजन हम काटीं दिन रतिया,
फ्लैट
में चाँद नाहीं लउके रे विदेशिया।
भाभी भाभी कहके बजावेला घंटी,
पडोसी
पूछ जाला हाल रे विदेशिया।
आंख फाड़ जवानी
देखेला जहान हो,
अकेले
रहल जैसे पाप रे विदेशिया।
- सत्य देव तिवारी
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