चल पड़ा है मतदाता,
चुनने भाग्य विधाता, देश का।
शिक्षा चाहिए, रोजगार चाहिए,
स्वस्थ रहने का उपचार चाहिए।
सुरक्षा की हो भावना सब में,
और सर्वांगीण विकास चाहिए।
अब जनसेवक ही चुना जाता,
जो गुणगान है गाता, देश का।
मतदाता अधिकार जनता है।
लूटने वालों को पहचानता है।
सत्ता-लोलुप, स्वार्थी नेता को,
सत्ता से बाहर कर डालता है।
संतानों की खातिर विदेशों में,
जो धन छुपा के आता, देश का।
जाति, धर्म से ऊपर उठकर,
जनकल्याण की मन रखकर,
राष्ट्र हित की बात जो करता,
छोड़ निज, जातिगत अवसर।
सबको न्याय दिलाता,
नेता वही चुना जाता, देश का।
- एस० डी० तिवारी
भोग के जोगी फिर आये हैं।
बरसात की बूदों के साथ,
टर्रटर्राते मेढ गिर आये हैं।
मकर उलटे पांव आ गया।
लगता है चुनाव आ गया।
सूरज ऑंखें मीच रहा है।
पत्थर भी पसीज रहा है।
झूठे मगर मीठे वादों पर,
चाँद भी देखो रीझ रहा है।
जुगनू भी भाव खा गया।
लगता है चुनाव आ गया।
कई वादों की झड़ी लगी है।
सौगातों की कड़ी लगी है।
कितने समय रह पायेगा ये,
इस बात की घड़ी लगी है।
परदेशी मेरे गांव आ गया।
लगता है चुनाव आ गया।
मौसम थोड़ा नम हुआ है।
वादा ही मरहम हुआ है।
पांच वर्षों से बसा दिल में,
दर्द अब कुछ कम हुआ है।
इसे वादों में चाव आ गया।
लगता है चुनाव आ गया।
हमारे सामने दीवार बन के खड़ी है ।
ई० वी० एम्० में भारी गड़बड़ी है ।
मतपेटी पर हमारा एकाधिकार था ।
परिणाम हमारे हाथ, जीत हार का ।
हम नेता हैं मतपत्र खुद छाप लेते ।
वांछित फल न मिले तो फाड़ देते ।
अब मुश्किल कर दी गणित बड़ी है ।
ई० वी० एम्० में भारी गड़बड़ी है ।
चाहते, पानी डाल कर नष्ट कर देते ।
मतदान कर्मियों को भ्रष्ट कर देते ।
पहले तो चित हो या पट, हमारी थी ।
दबंग नेता से दूसरे की हार करारी थी ।
आज यह हड्डी बन कर गले पड़ी है ।
ई० वी० एम्० में भारी गड़बड़ी है ।
जब चाहते, मत पेटी बदलवा लेते ।
पक्ष के वोट न हों तो हटवा देते ।
ये मशीन हमारी सुनती ही नहीं है ।
हम जैसा चाहते, गुनती ही नहीं है ।
इतने बड़े नेताओं से भी अकड़ी है ।
ई० वी० एम्० में भारी गड़बड़ी है ।
- एस० डी० तिवारी
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