Thursday, 14 February 2019

Bachapan 2

बचपन

हुई बारिश
छप छप करके
कूदा आरिफ

मन की बात
मनवा लेता हर
माँ से रोकर

और गहरा
पलकों को रगड़ा
घुसा तिनका

खेला कबड्डी
थक कर हो गयी
हालत खस्ती

उठा सोकर
माँ बोली तैयार हो
नहा धोकर

हाथ जो आया
मुंह को पहुँचाया
शिशु प्रवृत्ति

याद है अभी
वो नटखटपना
लड़कपना

नहीं भूलते
बचपन के दिन
बीते निश्चिन्त

चिंता से दूर
खुशियां भरपूर
लड़कपन

मन को भाते
छलांग जब लगाते
बन्दर मामा

स्वादिष्ट वो भी
माँ जो पकड़ा देती
नमक रोटी

माली का डर
तोड़ लाता मगर
पूजा के फूल

सिर में दर्द
कहते ही माँ देती
तेल चुपड़

मोनू हो गया
अब मोहन लाल
नामकरण

आते ही दाई
सुनाई दी रुलाई
खुशियां छायीं

देखने जुटा
पूरा ही परिवार
पहला पग

जुटीं औरतें
नवजात के घर
गाने सोहर 

शिशु ने चखा
बाकी सबने भखा
अन्नप्राशन

खेलती ख़ुशी
जब बच्चे व बूढ़े
खेलते संग

जब भी पाता
बुढ़ापा मुस्कराता
बच्चों का साथ

हुई सयानी
गोल हो गयी रोटी
बिटिया रानी

दौड़ रहा था
रगड़ते टहनी
छिली कुहनी

गली में आया
आइसक्रीम वाला
स्वाद में डूबी

भय से मुक्त
गगन में उन्मुक्त
उड़ती काश !

बच्चों से घिरा
कटता तरबूज
फांक के लिए

फ्रिज की चोरी
बबली की चुगली
पकड़ी गयी

भायी न सब्जी
माँ व बेटे में ठनी
टिंडे की बनी

चाह रखती
गुड़िया दिखने की
हर लड़की

अब कहानी
कार्टून में आ गयी
कहाँ है नानी

हाथ ले जूता
आ के कहता पोता
घूमने चलो

पाकर खुश
मानो पाया खजाना
कटी पतंग

उसका खास
ढहा रेत का घर
पप्पू उदास

कटी पतंग
उड़ा के ले जा रहा
मस्त मतंग

सैर पे चली
कटकर पतंग
दूसरी गली

बड़ी हैरानी
मुझे देख के उडी
तितली रानी !

उड़ती रही
बालक की नजर
तितली पर

कहाँ खेलेंगे
गुल्ली डंडा का खेल
स्थान का फेर

बर्तन मांज
अपना पेट काट
पाल ली बच्चे

झाड़ झंखाड़
तितलियों के पीछे
बाल गोपाल

स्कूल है जाना
दोपहर का खाना
वहीँ मिलेगा

धूप सेंकते
माँ के हाथ सिर पे
जुएं हेरते

बुरी लगती
नहाने को कहती
जाड़े में मम्मी

बच्चों के प्रश्न
बड़ों को भी कर दें
बिल्कुल सन्न

लगा के आयी
मम्मी की लिपस्टिक
वो मुस्करायी

सामने फेंका
डर गयी सुलेखा
नकली सांप

साट गुड़िया
बहुत इतराई
माँ की बिंदिया

छोड़ के रोटी
खायी पिज्जा बर्गर
हो गयी मोटी

मुट्ठी में ज्योति
भरकर ले आया
वो था खद्योत

बहाना कर
खेलने चला जाता
चंपा के घर

छुपं छुपाई
मोना ढूँढ न पाती
हंसी आ जाती

छुपं छुपाई
जब मिला न भाई
आयी रुलाई

लड़ झगड़
फिर से खेल शुरू
धर पकड़

झगड़ लेता
भाई पहला हिस्सा
मुझे ही देता

इतने अच्छे
दिन बचपन के
कौन चुराया

पार करना
पहाड़े का पहाड़
लगता भारी

लौट न पाती
बचपन की ऋतु
चली जो जाती

चाहता मन
लौट के बचपन
फिर से आये

खेले क्रिकेट
बिना ड्रेस विकेट
हम भी खूब

मिनी से छूटा
भाई मोनू ने लूटा
गुब्बारा फूटा


गुलेल मार
टूट न पाता आम
लौटते हार

लड़ झगड़
बच्चे हो जाते एक
मन के नेक

हाथ दिखा के
ज्योतिषी से पूछते
पास या फेल

जवान होंगे
न जाने कहाँ होंगे
चिंता सताती

लेते हम जी
बच्चों में बचपन
बूढ़ा हो के भी

मन को देती
बच्चों की शरारत
बड़ी राहत

मित्रों से होली
कभी स्कूल में खेली
पेन छिड़क

रात को आते
चंदा मामा दूर के
मुझे सुलाते

खाना पड़ता
स्वेटर पहनने को
जाड़े में डांट

पैसा न धेला
गली में जा के खेला
पिट्ठू का खेल

जैसे काटा
भइया की पतंग
पा गया चांटा

घंटों का वक्त
खेल के काट लेते
ताश के पत्ते

उखाड़ देते
हारने पे क्रिकेट
सीधे विकेट

कोशिश किया
नचा न पाया लट्टू
रहा निखट्टू

मन को भाया
निशानची बनाया
कंचे का खेल

बड़ा होकर
लाऊंगा कमा कर
माँ वास्ते ख़ुशी

फोन सुनाता
अब हमें कहानी
कहाँ है नानी

मन में होता
बड़ा होने का शौक
कि रखूं रौब

गए जो रूस
दे के मनाया माँ ने
लेमनचूस

जैसे ही आता
आइस क्रीम वाला
जी खिल जाता

बेचने आता
चना जोर गरम
स्वाद से खाता

सोचा है कैसे
रहते होंगे दादा
फ्रिज के बिना

कैसे बिताये
याद करो वो दिन
फोन के बिन


उछल पड़ी
तिलचट्टे को देख
सोफे पे चढ़ी

पटाखा छोड़ा
मोनू के बछड़े ने
पगहा तोड़ा

याद आ जाता
हनुमान चालीसा
पीपल तले

बीस से तीस
सांप सीढ़ी का खेल
अस्सी से साठ

शरारतों की
पड़ोसियों में होती
मेरी ही चर्चा

दोस्ती हो जाती
अंगूठा मिला कर
छोटी से कट्टी

साथ ही रही
बचपन में मिली
जिद्दी गरीबी

मिल ही जाता
थोड़ा सा बचपन
गांव जाकर

हवा में उड़े
हमारे भी जहाज
जब थे बच्चे

बेड़े के बेड़े
बचपन में चले
जहाज मेरे

सोते जगते
सपने ही पलते
बच्चे थे जब

गली में आता
बच्चों को रुला जाता
खिलौने वाला

पापा के कंधे
चले जाते बाजार
हो के सवार

कब हो गए
अभी खेल रहे थे
इतने बड़े

न जाने कब
लम्बी हो गयी चोटी
खेलते गोंटी

टूटे दांत कि
बचपन में आया
थोड़ा बुढ़ापा

चली मैं जाती
नींद आने को होती
मम्मी की गोदी

कई बार माँ
नींद नहीं भी होती
सुनाती लोरी

लेने लगतीं
माँ की गोदी जाते ही
ऑंखें झपकी

लड़ झगड़
करते मम्मी पापा
बच्चों से प्यार

खिलौना टूटा
सिर पर उठाया
आकाश पूरा

मिलाने हेतु
मम्मी पापा को बच्चे
बीच का सेतु

बाँट के प्यार
माँ बाप को करते
लाड़ले साथ

जाता है घर
किलकारी से भर
बच्चे अगर

टिकी नजर
बुढ़िया को ढूंढते
जा चाँद पर

नींद ले आती
माँ गाने लग जाती
रात को लोरी

खेल लुभाते
पढ़ने से बालक
जान चुराते

साथ खेलते
मित्र जैसा लगते
बूढ़े व बच्चे


सब के सब
गए नानी के बच्चे
बीते न वक्त

घंटी न बजा
कम्मो सो रहा लाल
चुपके से आ

बैठ के पढ़
नींद में छोटा भाई
शोर न कर

प्लेट में लिया
फैला के रख दिया
चावल दाल

माँ को छकाया
करके परेशान
सिसक रही

लड़ झगड़
देते माँ बाप कर
बच्चों को दुखी

सत्तू अंचार
ले मेला चलीं नानी
साथ में रानी

खिलौना लाया
मेले से दिलवर
खेला जी भर

मेले में विक्की
कर लिया संतोष
खाकर टिक्की

देख के भूला
मोहन लेना घड़ी
मेले में झूला

देख ले मम्मी
खरीद कर लायी
झुमका पम्मी

मेले जाकर
चोटी खरीदी गुड्डी
माँ ने ली चूड़ी

बैठ के रोया
भोंपू से उद्घोष
भीड़ में खोया

धर ले हाथ
मेले में हिदायत
रहना साथ

मंदिर जा के
लाल हेतु मुराद
अम्मा ने मांगे

लोग देखते
नटी के करतब
पैसे फेंकते

आईना कंघी
रूपा मेले से लायी
केश सँवारी

मैंने उड़ाया
कल्लू पेंच लड़ाया
उसी की कटी

लूटने दौड़ा
पप्पू की पैंट फटी
पतंग कटी

कल्लू पे मारी
भर के पिचकारी
भीग के भागा

खेल खेल में
बहुत कुछ सीखा
था जब बच्चा

हाथी उड़ाया
खेलने में हमने
चिड़िया उड़

तीर धनुष
दशहरा मेला से
लाया अनुज

बच्चे उछले
रामलीला में देखे
राम की सेना

मेले में मिला
कन्हैया से सुदामा
चेहरा खिला

छूकर चंपा
आइस पाइस में
बोली थी धप्पा

चोर ढूंढता
खेल छुपं छुपाई
छुपे सिपाही

पापा का कुर्ता
डाल के बन गया
गोसाईं बाबा

पड़ी रहती
मम्मी कटोरी ले के
हमारे पीछे

हो न समाप्त
कभी भी बचपना
मेरी कामना

जीता बहुत
बचपन में दिल
सब खो गए

क्या अच्छा होता
बचपन से फिर
मैं मिल लेता

गुम हो गयी
बचपन के साथ
फूल सी हंसी

ख़ुशी के फूल
बचपन में खिले
मुरझा चले

छूटता गया
बचपन के साथ
स्नेह का हाथ

मैडल होता
सजा बचपन को
मैं रख लेता

लौटा दे कोय
बचपन तो पी लूँ
चरण धोय 


उठा लिया था
सिर पर आकाश
जाने को मेला

खेल के आया
मैले कुचैले वस्त्र
माँ को थमाया

दादी ने लिटा
उबटन लगाया
सुन्दर काया

त्वचा बनायीं
माँ ने मालिश कर
स्वस्थ सुन्दर

डालती मुंह
मम्मी जबरदस्ती
जनम घुंट्टी


माँ ने बनाया
बोतल में मिला के
दूध पिलाया

थक जाती माँ
सिफारिश करते
दूध न पीते

करती अब
शिशु की देखभाल
पुस्तक पढ़

शोर न कर
बड़े को माँ ने डांटा
सो रहा छोटा

खेल के आया
मम्मी इधर देखो
बैंडेज दे दो

देख डॉक्टर
हो जाता छूमंतर
बच्चों का दर्द

जी भर कर
खेलने भी न देती
पापा की सख्ती

कटी पतंग
लूट में हाथ लगी
फटी पतंग

खेल में देर
चाचा ले जाते घर
कान पकड़

खेलने वास्ते
देकर चला जाता
मम्मी को झांसा

छतरी उड़ी
भीग के घर आये
तो डांट पड़ी

पहुंचा मुन्ना
माँ के पास रोकर
खाया ठोकर

हाथ न आयी
दूर तक दौड़ाई
तितली पीछे

लूटने दौड़े
अटकी वो खम्भे पे
थक के लौटे


मजे थे बड़े
आधी टिकट ले के
मेला देखते

दुनिया सारी
लगती थी हमारी
बच्चे थे जब

आधी टिकट
पैसेंजर या मेल
घुमाती रेल

मेले में चढ़
ऊंट की पीठ पर
सबसे ऊँचा

माँ का बनाया
कभी न भूल पाया
सूजी का लड्डू

जल्दी ठंडा हो
माँ के साथ खाने को
मैं भी फूंकता

माँ परेशान
मलिन परिधान
खेल में रोज

नई नवेली
आयी गुड़िया रानी
रोज श्रृंगार

सब्जियां हरी
माँ खाने को कहती
मैं ना नुकुर

कुतर गयी
चुहिया रखी कॉपी
माँ मुझे डाँटी

विवाह होता
अंकल व आंटी का
नाचते बच्चे

पिलाने को माँ
पीछे ही पड़ जाती
दूध लेकर

दूध से बड़ा
नाक मुंह सिकोड़ा
पीना ही पड़ा

मंदिर जाती
फूल लेकर हाथ
दादी के साथ 

मिट्टी न काठ
प्लास्टिक के खिलौने
छाये हैं आज

अपनों की हो
या बेगानों की शादी
मौज हमारी

नहाते वक्त
करता छप छप
माँ भीग जाती

माँ नहलाती
टब को ही बताती
स्विमिंग पूल

मैं छुप जाती
नहलाने को मम्मी
धर के लाती

ढूंढूं बहाना
कि पड़े न नहाना
जाड़े के दिन

मग का जल
पड़ते ही ऊपर
होता मगन

जोड़ के हाथ
बैठ जाता पूजा पे
दादा के साथ

मंदिर जातीं
दादी मुझे थमातीं
पूजा की डाली

पूजा को जातीं
मुझसे ही मँगातीं
दादी माँ फूल

खाया न लाल
भूखे रह के रोइ
दिन भर माँ

दाल पीकर
सोया रात में शिशु
बिखरा दूध

हाथ की रोटी
लेकर भागा कौवा
रो रही ज्योति

छूते समय
दृष्टि होती हाथों पे
नाना का पैर

जन्म दिन पे
खोलने को बेसब्र
मिले पैकेट

भोज की पाँति
बच्चे पिलाते पानी
प्याऊ की भांति

चिड़िया आती
थोड़ा सा डाल देते
तोड़ के रोटी

हँसते वक्त
मुंह पे होता हाथ
टूटा था दांत 

चुप कराती
नन्हें हाथों से बेटी
माँ जब रोती

मैं था निकम्मा
मेरे वस्त्र भी धोना
अम्मा के जिम्मा

बांधे रखती
नजर से बचाने
माँ काला धागा

बिखर गए
बचपन के सब
दोस्त भी अब

चाहता था जी
गुजरे हर पल
साथियों में ही

अतिथि आते
आशान्वित हो जाते
मिठाई आयी

घर में कुछ
टूटता तो लगता
छोटे का नाम

रौब दिखाता
लगा नकली मूंछ
बड़ा होने का

शैतानी करी
माँ ने शौचालय में
कैद कर दी

नहीं भूलती
गिलास भर दूध
माँ देना नित

भूल भी जाऊं
मम्मी नहीं भूलती
पसंद मेरी

पडोसी आ के
बच्चा कैसे पालना
राय दे जाते

देती थी नानी
मेरे बारे में माँ को
नाना सलाह

दे के बधाई
सब खाये मिठाई
नामकरण

अन्न-प्राशन
बड़ों ने खायी खीर
बच्चा तासीर

हाथ से पोता 
गाल पर चिपका
नाक का पोटा

दूध ले आती
मैं मुंह बिचकाती
बोतल में माँ

मौका ज्यूँ पाती
माँ का ले बैठ जाती
श्रृंगारदानी

तैयार होते
जाने को कहीं पापा
नन्हें का स्यापा

झट से झूम
घूमने को तैयार
चुटिया गूँथ

नैप्पी हो रही
जल्दी जल्दी ख़राब
आ रहे दांत

भोलू को भेजी
माँ लाने को मुलेठी
रस्ते में भूला

चुप्पे उठा ली
मम्मी की होठ लाली
मूंछ बना ली

रंग के नख
गुड्डी छोड़ी निशान
गिरा के रंग

मम्मी के हाथ
बिटिया के सिर पे
जुएं हेरते

बच्चे को दूध
कैसे पीला पायेगी
वो दूध पीती

संग में लेटा
स्तनपान करता
नन्हां सा बेटा



****************

विद्यालय

जरा न भाता
प्रातः जल्दी जागना
स्कूल भागना

मेरी भी सीट
सोनू परम मित्र
घेरे रखता

होड़ लगती
बस में चढ़ने की
होते ही छुट्टी

स्कूल का जोश
बड़ा ही बढ़ा चढ़ा
दिन पहला

पहले दिन
स्कूल आये जनाब
नैपी ख़राब

माँ स्कूल भेजी
टोप पहना कर
शीत लहर

माँ ने बनाया
स्कूल लाया हलुआ
बाँट के खाया

जीत के आये
सौ मीटर की रेस
शाबाशी पाये

अबकी बार
कापी पर पा गया
फाइव स्टार


चली दुकान
प्रदर्शनी के लिए
लाने सामान

हो गयी गीली
स्कूल में पतलून
छुट्टी कर ली

खेले कबड्डी
अस्पताल में भर्ती
तुड़वा हड्डी

हो गया अब
ए बी सी डी आसान
क ख कठिन

ले आती कभी
छोटी सी शरारत
बड़ा संकट

परीक्षा हाल
बिलम्ब से पहुंचे
छूटे सवाल

बंद पढ़ाई
वी आई पी का दौरा
साफ सफाई

पेन की टोपी
लगा के बड़ा किया
पेन्सिल छोटी

होगा कलंक
परीक्षा में न आया
बढ़िया अंक

हल्के थे बस्ते
ऊपर से पढ़ाई
बिल्कुल सस्ते

दो दूनी चार
लगता बड़ा भार
याद करना

चांदी का कड़ा
चला गया दुकान
तब वो पढ़ा

कहानी पढ़े
सीखे सबक बड़े
पंचतंत्र की

पांव फिसला
बच्चों का पिरामिड
नहीं सम्हला

मांग के लाया
मेहनत बचाया
दोस्त की कॉपी

स्कूल में मुफ्त
चैतन्यता जगाते
खेल के खो खो

पचारा पोत
दूधिया से लिखते
तख्ती पे रोज

टूटे न कभी
इसलिए ख़रीदा
टिन का स्लेट

माँ ने घर में
इमर्जेन्सी लगायी
परीक्षा आई

ले के किताब
बैठता बिना बात
पापा का डर 

पड़े रहते 
माँ बाप आंखें मीचे
अंकों के पीछे

होने पे खाली
कक्षा में शून्य काटा
शुरू हो जाता

बच्चों ने बोला
विद्यालय में हल्ला
अंतिम घंटी 

हम मासूम
तुम्हें नहीं मालूम
बड़े उस्ताद

काम न धाम
किये सोना हराम
शैतान बच्चे

लेकर आता
पहले ही मरण
टीकाकरण

छात्र हो के भी
समय की बर्बादी
फोन का आदी

परीक्षा आती
बिजली डर कर
गुल हो जाती

जाने न कैसे
पप्पू फर्स्ट आ जाता
डांट खिलाता

जाता है सुना
पास आकर मुन्ना
एक दो तीन  ...

था ना सरल
मम्मी ने रटवाया
क से कमल


गुड़िया चली
लेकर के प्ले स्कूल
बस्ते में नैप्पी

छुड़ाई मस्ती
परीक्षा के समय
पापा की सख्ती

धुल न पाई
मुन्ने की यूनिफार्म
छुट्टी दिलाई

चांदी का कड़ा
बेटे की पढ़ाई में
दुकान चला

लल्लू के लाल
खा के चले पढ़ने
रोटी अचार

टाई न बूट
बड़े विद्वान गढ़े
गांव के स्कूल

नहीं आने पे
स्कूल की हड़ताल
नई किताब

स्कूल से पाया
खुश होकर आया
पारितोषिक

ज्यूँ ही दिखाया
माँ ने गले लगाया
पारितोषिक

हुए अफ्सर
लालटेन में पढ़
मुरलीधर

मुश्किल जीना
गणित देख कर
छूटे पसीना

आलेख लिखे
चुन के तख्ती पे कि
सुन्दर दिखे


जन्मदिन पे
बधाईयां गिनते
फेस बुक पे

सीट पे बैठा
बांह पकड़ ऐंठा
किसी और की

फोन दिखाती
माँ कार्टून लगा के
खाना खिलाती

पहुंच जाते
साइकिल चलाते
पढ़ने स्कूल

खुश हो जाते
कई मित्र पाकर
स्कूल जाकर

लड़ के आये
पीछे से शिकायत
चल के आयी

कहती है माँ
शरारती हो बच्चा
हे प्रभु बचा

भर के जेब
खेल के लाया देव
मिट्टी व रेत

उठाये रखा
अंपायर उंगली
इशांत डंटा

जाता संकठा
खिलौने की दुकान
रोने लगता

बैटिंग पूरी
होते ही याद आता
काम जरूरी

मुंह सुजाया
झाड़ी से मुन्ना आया
बर्र का छत्ता

जला न चूल्हा
लाल को भेजी स्कूल
देकर भूजा



************

परिवेश व सीख-सन्देश

सूरज चाचा
आये तो चंदा मामा
मुंह छुपाये

झोपड़ पट्टी
बदन पे लंगोटी
काटी जिंदगी

थोड़ी सी खीर 
और लेने के लिए
हुआ अधीर

मम्मी लगायी
सबको छींक आयी
मिर्च की छौंक

बच्चों में लगा
मोबाइल का रोग
आलसी घोर

बन के मूर्ति
खेले वीडियो गेम
गायब स्फूर्ति

बड़ों का फर्ज
प्यार और सुरक्षा
छोटों का कर्ज

पेड़ लगाया
निरहू के बाबा ने
छाँव में बैठा

हुआ जुकाम
नाक पे फहराता
ले के रुमाल

हॉर्न पे हॉर्न
ड्राइवर दर्शाता
उसे ही आता

युद्ध भीषण
समाचार छपा था
पतंग पर

किया हमने
पापा क्या अपराध
निर्धन बने

दी पहचान
दाढ़ी मूंछ निकल
हुए जवान

हुए जवान
देने का मतदान
पा गए हक

खाये जा रहे
चाउमीन बर्गर
रोटी हमारी

मम्मी पापा का
लड़ाई के पश्चात्
हमसे प्यार

लड़ के पापा
थे माँ से बतियाते
हमारे द्वारा

बड़ों की सेवा
बचपन में किया
दिलाता मेवा

होते सबक
बचपन में सीखे
हीरों के लेखे

बच्चों को देते
फूलझड़ी पटाखे
खुशियां ला के

दोनों चंचल
एक जैसे लगते
बन्दर बच्चे

नकल कर
नकलची बन्दर
नन्हें बालक

पिलाती दूध
पावडर को घोल
गाय का बोल

माँ का कराया
अमृत के समान
पय का पान

बने आधार
बचपन में मिले
अच्छे संस्कार

बाप की आशा
बेटे से होगा पूरा
स्वप्न अधूरा

पापा चाहते
इंजीनियर बनूँ
बना मजनू

जैसे कुतरी
डाल पे गिलहरी
चू गया आम

ऐसे क्यों बैठी
तितली तुम रूठी ?
डाल पे सूखी

चाय समोसा
अतिथि बना मुन्ना
खूब भकोसा

पति के साथ
कट गयी तंगी में
बेटे से आस

सूखे की मार
दोनों नन्हों को ले के
गयी मायके

घोड़ी पे बैठे
बन के सहबल्ला
आगे दूल्हे के

गोद लेकर
दुल्हन घुसी घर
नन्हाँ बालक

बिल्ली पी दूध
दादी माँ ने पिलाई
मम्मी को डाँट

मुट्ठी में बंद
जुगनू ने दिखाया
ज्योति का जादू

जुगनू उड़े
लगा उतर आये
बाग़ में तारे

बड़ी मासूम
है बच्चों की दुनिया
संभालो तुम

आज के बच्चे
कल के कर्णधार
रखना अच्छे

घूम लेने दो
तितलियों के पीछे
अभी हैं बच्चे

अपने लिये
छीनो न बचपन
जीने दो उन्हें

खेल में बच्चे
हाथ पैर चलाते
अब उंगली

छीनी गरीबी
थमा हाथ फावड़ा
हीरे सा कंचा

दिखाती नटी
शौक या मजबूरी
चौक पे खेला

धर्म न जाति
बच्चों के बीच होती
खेल की बात

माँ ने धकेला
घोसले से बाहर
बड़ा हो गया

किशोरावस्था
कितना था आजाद
लिए उन्माद

ले के गिलास
पापा दुहते गाय
मैं होता पास

पहला टूक
मुंह लगा बीड़ी का
पापा का फेंका 

मिट्टी का शेर
बहल जाता देख
बच्चों का मन

निर्मल जल
होता अति कोमल
बच्चों का मन

थे अरमान
रखूं माँ के कदम
सारा जहान

छोटा जब था
छः सौ टी वी चॅनेल
सोचा भी न था



********


ऐसा क्यों हुए
बड़े सच्चे थे हम
बच्चे थे हम

सभी कहते
नेक अच्छे थे हम
बच्चे थे हम

भोला बेदाग
मन रक्खे थे हम
बच्चे थे हम

माँ के दुलारे
शोभा घर के थे हम
बच्चे थे हम

अक्ल के भी तो
थोड़े कच्चे थे हम
बच्चे थे हम

चिंता से मुक्त
धुनी पक्के थे हम
बच्चे थे हम



****

आगे की चिंता
नहीं पीछे का गम
बच्चे हैं हम

खेल खिलौने
हमारे हमदम
बच्चे हैं हम

छोटे हैं पर
किसी से नहीं कम
बच्चे हैं हम

कल का बोझ
थामने का है दम
बच्चे हैं हम

बन के दीप
भगा देते हैं तम
बच्चे हैं हम

पड़ते नहीं
मुश्किलों में नरम
बच्चे हैं हम 


********


वो भी दिन थे
आता मदारी वाला
घूमते पीछे

वो भी दिन थे
चले जाते पैदल   
स्कूल खेलते 

वो भी दिन थे
लिखते थे आलेख
चुनकर के

वो भी दिन थे
सरकंडे से छील
लिखे तख्ती पे

वो भी दिन थे
पापिन को पकड़
हम चूसते

वो भी दिन थे
बिना टेलीविजन
जी बहलाते



वो भी थे दिन
रहता था सवार
खेल का जिन्न

वो भी थे दिन
लाते तो पढ़ पाते
तेल किरासिन

वो भी थे दिन
बाईस्कोप में देखे 
हीरो हेरोइन

वो भी थे दिन
गिनती सीख लेते 
तारों को गिन 

वो भी थे दिन
टी वी वास्ते मोहल्ला
बोलता हल्ला

वो भी थे दिन
सर्दियाँ बीत जातीं
नैप्पी के बिन



*****






देर से आया
कक्षा में ना घुसाया
याद है अभी

जेब से फटी
गिर गयी चवन्नी
याद है अभी

कितना हठी
स्कूल गया भूखे ही
याद है अभी

दौड़ाया माली
फूल तोड़ा जैसे ही
याद है अभी

दवात मिली
कान्हा के बस्ते मेरी
याद है अभी

बस्ते में रद्दी
मोनिका ने भर दी
याद है अभी

बहुत रटा
फिर भी पाया चांटा
याद है अभी

डरी बबली
देख के छिपकली
याद है अभी

नन्हीं तकली
काते सूत असली
याद है अभी 

मुझे भी पड़ी
पप्पू के साथ छड़ी
याद है अभी

बैटिंग कर
भागा गेंद लेकर
याद है अभी

स्याही की टिक्की
दवात में घोलना
याद है अभी


***

माँ परेशान
फैला हुआ सामान
बच्चों का घर

कापी किताबें
खाने की मेज पर
बच्चों का घर

खेल खिलौने
बिखरे कोने कोने
बच्चों का घर

रख दी ऊँचे
टूटने वाली चीजें
बच्चों का घर

रात्रि पहर
सुनाई देती लोरी
बच्चों का घर

दीवारों पर
बने चित्र विचित्र
बच्चों का घर



होता बसर
खुशियों का हमेशा
बच्चों का घर

स्कूल का बस्ता
टंगा है खूंटी पर
बच्चों का घर

न्यायाधीश माँ
निबटाती झगड़े
बच्चों का घर

तकिये पड़े
बीच बिस्तर पर
बच्चों का घर

धूम धड़ाका
चिल्ल पों का पताका
बच्चों का घर

छोटे कपडे
सूखते रस्सी पर
बच्चों का घर

****

भोर सुहानी
रोज गाने आ जाती
चिड़िया रानी

तुम्हें देख के
होता उड़ने का जी
चिड़िया रानी

पास बुलाती
आने पे भाग जाती
चिड़िया रानी

संग खेलना
आना मेरे अंगना
चिड़िया रानी

बड़ी सुहाती
फुदकती चलती
चिड़िया रानी

आती जरूर
उड़ जाती क्यों दूर
चिड़िया रानी

****


लेना न हल्के
वे सच्चे हैं मन के
बच्चों की बात

होती विशेष
बिना लाग लपेट
बच्चों की बात

हल मुश्किल
कई बार जटिल
बच्चों की बात

होती निश्छल
कर देती विह्वल
बच्चों की बात

करके थोड़ा
मन बहल जाता
बच्चों से बात

कईयों बार
होती है मजेदार
बच्चों की बात




******



रिमोट

बड़ी हैरानी
मुझे देख के उड़ी
तितली रानी !

**************



याद है मुझे
दिला पायी टॉफी
चवन्नी खोटी

याद है मुझे
सखियों से हारना
खेल के गोटी

याद है मुझे
लपेट के घी चीनी
माँ देती रोटी

याद है मुझे
पिटा था खींच कर
दीदी की चोटी

याद है मुझे
छोटे भाई ने किया
स्कूल में पोटी

याद है मुझे
कौवा लेकर भागा
हाथ की रोटी

याद है मुझे
जीत जाती थी वही
क्योंकि थी छोटी

याद है मुझे 
उठती थी गुड़िया 
सुबह रोती 

याद है मुझे 
दी डांट पड़वायी 
कहा था मोटी 

याद है मुझे
जब पीठ पे पड़ी
दादा की सोटी




याद है मुझे
मेरी फ्रिज की चोरी
गयी पकड़ी

याद है मुझे
दादा से डांट पड़ी
छुपाया छड़ी

याद है मुझे
बात बात पे, बड़ी
देती थी तड़ी

याद है मुझे
मेरे हिस्से में आयी
दो ही रेवड़ी

याद है मुझे
माँ से था झूठ बोला
गाल पे जड़ी 

याद है मुझे
खाया दीदी का केक 
मुझसे लड़ी 

याद है मुझे
हिस्से का अखरोट 
गिरी थी सड़ी  

याद है मुझे
स्कूल जाते भिगोई
बूदों की झड़ी

याद है मुझे
साइकिल की जिद्द 
मंहगी पड़ी

याद है मुझे
देर से गया स्कूल
बंद थी घड़ी 





********

मेरी बात
बचपन की बातें करके किसे अच्छा नहीं लगता।  बच्चों को खेलते देख, उनकी बातें सुनकर, उनकी शरारतें देखकर अपना बचपन याद आ जाता है और कितना आनंद आता है, इसका वर्णन करना अत्यंत कठिन है। बच्चों का भोलापन सभी के मन में आनंद भर देता है। उत्तरदायित्यों और चिंताओं से मुक्त, अपना पराया और छल कपट से रहित, नाना खेलों से युक्त बच्चों का जीवन देखकर यही लगता है कि एक बार फिर से बचपन में लौट जाएँ। बचपन क्या निधि है उसे बच्चे नहीं समझ पाते, जब बचपन बीत जाता है तो पता चलता है कि हमने कितनी बड़ी निधि खो दिया, जो फिर से कभी वापिस नहीं मिलने वाला। बचपन के विभिन्न आयामों को टटोलते हुए, छोटे छोटे छंदों में पूरा बचपन अपनी इस पुस्तक 'जी लो बचपन' में समेटने का प्रयत्न किया है। इस पुस्तक के द्वारा गांव, नगर, खेल, खिलौने, पढ़ाई, नाता, शरारतें इत्यादि अनेक पहलुओं को स्पर्श करते हुए, शब्दों में ही बचपन को एक बार पुनः जीने का प्रयास किया है।

साहित्य में बचपन का अपना एक विशेष स्थान है। बचपन के विषय में अनेक कवियों व साहित्यकारों ने अतीव सुन्दर रचनाएँ प्रस्तुत की हैं। बचपन और बाल लीलाओं  वर्णन करके कई कवि व साहित्यकार अमर हो गए। जहाँ महाकवि सूरदास द्वारा कृष्ण की बाल-लीलाएं पढ़ते ही बनती हैं और उनकी रचनाएं पाठक के समक्ष बालपन के सजीव चित्र प्रस्तुत करती हैं; वहीं संत तुलसीदास ने भी बालक राम के भोलेपन व श्रीराम की सुन्दर बाल लीलाओं का सजीव चित्रण किया है। बचपन पर छुटपुट कविताओं की तो भरमार है, परन्तु बचपन का सम्पूर्ण या वृहत दर्शन एक स्थान पर हो, ऐसा कोई ग्रन्थ मेरे संज्ञान में नहीं है।

बचपन की मधुरिमा को ही देखकर, मेरा भी मन बचपन को एक बार पुनः जीने को उद्दात हुआ, और इन शब्दों में जीने का प्रयत्न किया। पहले तो मैंने बालपन का सम्पूर्ण अवलोकन एक स्थान पर कराने के उद्देश्य से बचपन के विभिन्न पहलुओं को अपने हाइकु छंदों में ढालना चाहा।  मगर पर्याप्त कार्य कर लेने के पश्चात् लगा कि रचनाओं में कुछ और रस भरा जाय, इसी कारण से पुस्तक में त्रिपदी या तिपाई छंदों का भी समावेश किया। माहिया से मिलते इन  छंदों की दो पंक्तियाँ तुकांत होने के कारण, इसका रसीला होना स्वाभाविक था। हाइकु छंदों के लिखने का मुझे पर्याप्त अनुभव होने के कारण माहिया लिखने में अधिक कठिनाई नहीं हुई और यहाँ सत्रह वर्णों के स्थान पर सैंतीस मात्राओं के प्रयोग से अपनी बात कहने का अधिक स्थान मिला  क्योंकि माहिया और हाइकु में कुछ समानताएं भी हैं। मेरी इस पुस्तक 'जी लो बचपन' के छोटे छोटे प्रत्येक छंद अपने आप में एक पूर्ण कविता है। इस प्रकार एक ही पुस्तक में ग्यारह सौ कवितायेँ एक साथ प्रस्तुत हैं। 

हाइकु, कविता की एक जापानी विधा है। इसके अपने विशेष गुणों के कारण, दुनिया की हर भाषा में हाइकु लिखे जा रहे हैं। हाइकु का प्रत्येक छंद अपने आप में पूर्ण कविता होता है। हाइकु के विषय में विस्तृत जानकारी, मेरी पुस्तक 'हाइकु शास्त्र' में उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त मेरे कई प्रकाशित हाइकु संग्रह हैं। हाइकु से मिलता जुलता, पंजाब में गाया जाने वाला एक लोक गीत 'माहिया' भी है। मैंने इस पुस्तक में ३७ मात्राओं के त्रिपदी छंदों का प्रयोग किया है। इस पुस्तक के प्रत्येक छंद, हाइकु की भांति अपने आप में पूर्ण कविता है।

मुझे पूर्ण विश्वास है यह पुस्तक पाठक को उसके बालपन के अतीत में खींच ले जायेगी, और इसके द्वारा वे बचपन का भरपूर रसास्वादन कर सकेंगे। इसकी रचनाएँ, बचपन की चंचलता और भावों से सराबोर कर उसे आह्लादित करने में सफल होंगी। मैंने 'जी लो बचपन' के लिखने में जो बुद्धि और परिश्रम निवेश किया है, उसकी सार्थकता तभी समझूंगा, जब पाठक इसमें झांकते हुए अपने बचपन का अवलोकन कर सके और शब्दों में ही सही, बचपन को एक बार पुनः जी ले। आपकी शुभकामनाओं और स्नेह का आकांक्षी -

सत्य देव तिवारी, एडवोकेट


इस पुस्तक में मैंने कुछ देशज शब्द का प्रयोग किया है, उनके अर्थ यहीं बता देना उचित समझता हूँ।
१. सींकचा - साइकिल की तीली या जिसे सींक भी कहते थे, उसके एक छोर को मोड़कर ' ट' के जैसा बनाते और दूसरा छोर एक डंडी में जड़ लेते। उसी के सहारे, लोहे की छड़ की बनी पहिये (गरारी) को लुढ़काकर मेड़ों पर चला कर ले जाते।
२. पचारा - दीये की या चिमनी की कालिख (कार्बन), जिसे घोल कर, तख्ती पर पोत कर, खड़िया या दूधिया से सरकंडे की कलम से लिखते थे।
३. चिपिया - टूटे खपड़ैल के छोटे टुकड़े।
४. ढेलवांस - ढेलवांस, रस्सी से छींके की तरह बनाते थे। दोनों ओर बड़ी रस्सी छोड़ दी जाती और बीच में ढेला रखने का आसन होता। आसन पर ढेला रखकर, ढेलवांस घुमाकर दूर तक फेंक लेते।
५ आना - चार पैसे का एक आना और सोलह आना का एक रूपया होता था।
६. उबटन - सरसों को पिसा लेप।
७. चोप - आम से निकलने वाला अम्लीय पदार्थ। 
८ खपड़ा - मिटटी से बना चपटा टुकड़ा, जो घर की छत छाने के काम आता है। 


सत्य देव तिवारी, एडवोकेट 

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