Tuesday, 5 February 2019

Bachapan haiku 1

भोला बचपन

ढूंढता दिन
उड़े बचपन के
पंखों के बिन

लौटा दो मुझे
मेरा वो बचपन
हे भगवन !

वापस पाता !
मस्तियाँ दोहराता
बचपन की

नन्हें से पांव
मेला देख के आते
पापा की गोदी

बिन बच्चों के
लगता घर मेरा
भूत का डेरा

बच्चों के दृग
उड़ते दूर तक
देखते खग

न हो अंगना
बच्चों की किलकारी
जीवन सूना

निराले खेल
बच्चों के देख माँ का
माथा ही फेल

देख बच्चों की
माँ उधम चौकड़ी
खड़ी रो पड़ी

बच्चों से हार
माँ के जीत का मन्त्र
रोने का तंत्र

पाये हैं जो भी
परिवार से पढ़
संस्कार सभी 

किसी मंडली
बच्चे जाते हैं घुस
स्त्री या पुरुष

रूठ जो जाते
पापा टाफी दिखा के
हमें मनाते

बच्चे थे हम
घुस जाते बेरोक
किसी के घर

उठाया गोदी
दादा जी की मजे से
भिगोया गोदी

जाकर गोद
सुबह ही चाचा की
भिगोया कोट

पता न चला
कब हो गए चाँद
वो चंदामामा



सीटी बजाती
बच्चों कि रेलगाड़ी
दिल छू जाती

आ गए बापू
आया नहीं खिलौना
गालों पे आंसू



रहे हैं खेल
सोहन व सोहेल
लड़े थे कल

रख लेती माँ
थोड़े में से भी थोड़ा
छोटे के लिए

बिल्ली पी गयी
रात में सोई मोना
दूध के बिना

चला है डाल
पांव में नया जूता
लंगड़ी चाल

जितना खाया
उतना ही गिराया
नन्हीं उंगली 

खड़ा हेमंत
हाथ में धरे पैंट
बटन टूटी

पांव में मोच
सीखना पड़ा भारी
घुड़सवारी

सीखा था मैंने
साइकिल की सीट
कांख दबाये

जाना न हाल
चल पड़ा तैरने
तरणताल

गाल पे चांटा
मार कर के मम्मी
खुद ही रोई

झिड़की खाता
थाम के रहा चल
माँ का आंचल

सबसे ज्यादा
संबंधों का खजाना
बच्चों के पास

छूटे वो पेड़ 
जो साथ बड़े हुए 
गांव में मेरे 

मेरे लिए थे
हीरे से भी कीमती
जीते वो कंचे



उड़ा रहे हैं
कागज का जहाज
दादा भी साथ



बंद बारिश
नाव बनने चली
पुरानी कापी


कैसे रोकती
नन्हीं सी तो थी बच्ची
किसी की पप्पी

मैंने तो खाया  
चंदा मामा का कौर
माँ का खिलाया

घूम के आते
नए कपड़े पाते
गांव में पूरे

दादा बनाते
कागज का जहाज 
दोनों उड़ाते

मुँह बनाके
ले के खाली चरखी
छत से आते

नाली में जाती
चालू खेल निकाल
डंडे से बाल

गिरा धड़ाम
पहन के पनही
चला बाबा की

पापा का जूता
पहन चला पप्पू 
घुटना फूटा  

पांव से जूता 
निकला कई बार 
फीता था टूटा  

उठा के मारा 
अकरम ने जूता 
ले भागा कुत्ता 

छीन ले गया 
कौवा हाथ की रोटी
रो रही स्वीटी  

बारिश तेज 
हुई बच्चों की मौज 
स्कूल की छुट्टी 

दौड़ा जौहर 
बिछली से होकर 
फिसला पांव 

भगवान का
चल पड़ा फव्वारा 
नहाते बच्चे 

स्थान ढूंढता 
पप्पू के बिस्तर में 
कांपता कुत्ता 

खाया ठोकर
गिरा चश्मा उठाया   
रामू रोकर 

आंख से गिरा 
मगर थाम लिया 
रामू ने चश्मा 

सोनू सो गया
उसका सारा दूध  
गद्दा पी गया 

आपा हरती
अपना कर लेती
बच्चों की बोली 

शिशु का स्पर्श 
भर देता आनंद
तन व मन  

खिला के टॉफी 
चूम लेता हूँ गाल 
गुड्डी प्यारी की  

कान पकड़े
नाक पे बैठ जाती 
ऐनक मेरी 

गोद में शिशु 
भर देता है मन 
परमानन्द 

देख डॉक्टर  
हो गयी छू मंतर 
पप्पू की चीख  

सुबह बच्चे 
रजाई को कहते 
थोड़ा सा और 

नहीं भूलती 
काला टीका लगाना  
माथे पर माँ  

रोयेगा पर 
माँ के पास जाकर 
गिर गया था 

पकड़े घूमा 
दादा जी  की उंगली 
गांव की गली 

खा गया था मैं
दीदी का चॉकलेट
जी भर लड़ी

एक ही पिज्जा
माँ ने भली लगाया
सबका हिस्सा

काटी जलेबी
कमीज पे टपकी 
मक्खी भी चखी

एक ही रट
होती मम्मी पापा की
चल के पढ़

करते जरा
देख लेती शैतानी
चश्मे से नानी

बड़ी हैरानी
बाहर की शैतानी
माँ जान जाती

गिरायी बिल्ली
डांट पड़ी मुझको
जग का दूध

बड़ी ख़राब
नहलाते समय
लगती थी माँ

उठाने लगा
भूख लगने पर
माँ का आंचल

देख के मौका
उड़ा ले गया छाता
हवा का झोंका

फिरकी घुमा
हर दिशा में देखा
हवा का रुख

देखता रहा
पर नचा न पाया
उस सा लट्टू

फूंक लगाया
गेहूं के डंठल में
सिटी बजाया

एक दूजे के
कन्धों पे हाथ धरे
चल दी रेल

हुए न फेल
लुका छिपी का खेल
खेले बखूबी

माँ ने डराई
म्याऊं म्याऊं बोल के
बिल्ली से उसे

तितली उड़ी
संग उड़ने लगीं
पप्पू की ऑंखें

आया मदारी
उसके पीछे हो ली
बच्चों की टोली

उड़ जो पाता
मिल कर के आता
चाँद से मैं भी

होते जो पंख
आम तोड़ के लाते
तोते के संग

आँखों को भाते
चमक भरे रंग
मोर के पंख 

मम्मी कहती
चलो बाहर खाने
पापा बहाने

चुपके चला
मंडली से नरेश
छोड़ के गैस

गिराया बंटी
फंसा कर लंगड़ी
गुत्थम गुत्थी

आँखों पे धरी
जूही पीछे से हाथ
पूछी मैं कौन

भाई खेलने
छोड़ के चला जाता
गुस्सा दिलाता

करने जाता
मम्मी से शिकायत
छोटा हमेशा

कहता मोटी
पिटने पर भाई
खींचता चोटी

स्कूल में मिली
खड़ा होने की सजा
मची खुजली

स्कूल से भाग
गया सोनू के साथ
फिल्म देखने

बच्चे हैं हम
लगते हरदम
फूलों से नर्म

मेरे भी घर
प्लास्टिक का है पर
चिड़ियाघर

अधिक लाड़
मम्मी का लाड़ले को
दिया बिगाड़

गुस्से की आग
माँ बाप का बुझाता
बच्चों का प्यार

पूरा करने
माँ बाप के सपने
चला लाड़ला

मैं खुश रहूं
ग़मों को छुपा लेते
मेरे माँ बाप

पापा के कंधे
इतने मजबूत
ढोये मुझको

पहला पग
माँ बाप ने सिखाया 
तो चल पाया

थामे थे हाथ
पग पग पे पापा
जहाँ भी लोचा 

मिलता रहा
माँ बाप का आशीष
बगैर फीस

बनाने वाले
बालक को आदमी
पापा व मम्मी

सदा चाहते
रहूं खिलखिलाते 
मम्मी व पापा

मम्मी बोलती
एक और सवाल
कर ले लाल

बहुत सारी
समझने में बातें
उम्र गुजारी

देते उछाल
पकड़ फिर पापा
चूमते गाल

मिलता प्यार
केवल माँ बाप से
बगैर स्वार्थ

कल जो लड़े
ले बच्चे आज संग
होली के रंग

डाल के भागा
सोनू पे मोनू रंग
भोलू भी संग

सोनू ने मारी
सोनी पे पिचकारी
भीगी बेचारी

होली के दिन
पुराने परिधान
पहना भान

बच्चे जोकर
मुंह पे पोतकर
होली के रंग

कतराता मैं
काम से तो दिखाते
पिताजी आँखें

लगता आया
स्वर्ग उतर कर
नानी के घर

ना होम वर्क
ना ही डांट का डर
नानी के घर

गर्मी की छुट्टी
बिताने चले जाते
नानी के घर

नाड़ा था टूटा
धरे था पायजामा
हाथ से छूटा

बोर करतीं 
ए बी सी डी सुनाओ
कह के मम्मी

अतिथि आते
जरा नाच दे नन्हीं
बोलती मम्मी

जैसे उठाते
पापा हाथ में छड़ी
माँ बीच खड़ी

किसने खाया
मुंह पे लगा केक
खुद बताया

तुम्हारा रखा
भाई! फ्रिज का केक 
बड़ा मीठा था

छीना झपटी
किये भाई बहन
फैला मक्खन

जो ख़ुशी मिली
आने पे साईकिल
कार में नहीं

बाँहों को धरे
घुमा कर घुमरी
खिलाते काका

चक्कर आया
ये घुमरी परैया
और न भैया 

दूध पीता था 
तिरछी आंख गड़ा
अम्मा की ओर

हाथ लेकर
दौड़ाया मेंड़ो पर 
सींकचा गाड़ी

साबुन घोल
बुलबुला उड़ाया
मुंह पे आया

झांकती रही 
पनही से उंगली 
खुली खिड़की 

पापा ने डाला
गुल्लक पर डाका
घर का खर्च

गयी दुकान
स्कूल की फीस देने
माँ की हंसली

धूप सेंकता 
दिवार के सहारे 
ठिठुरी मारे 

लिए था जूता
खुली एक खिड़की
झाँका अंगूठा

लल्लू के लाल
खा के चले पढ़ने
रोटी अचार

पहले चांटा
जिद्द करने पर
पा गया बाटा

दीन दुखारे
जन्माते गए बच्चे
खुदा सहारे

पेंवद लगी
मिली किसी से भेंट
पहना पैंट

झुर्रियों तले
कितने फूले फले
बूढ़े हो चले




   *************************************

विद्यालय व शरारतें 



टाई न बूट
बड़े विद्वान गढ़े
गांव के स्कूल 

जेब में रखा 
पेन हो गया लीक 
नीली कमीज 

रामू रज्जाक
किये भद्दा मजाक
हुई लड़ाई

सबसे अच्छा
था स्कूल में लगता
छुट्टी का घंटा

मुंह लटका
कापी पर पाकर
बड़ा सा अंडा

पेन्सिल टूटी
इमला लिखने की
हो गयी छुट्टी


परीक्षा ख़त्म
होते ही होता मन
घूम के आएं

स्कूल की छुट्टी
जाने को मिल जाता
नानी के घर

गजब दौड़ा
गोलू गधे पे छोड़ा
कुकरमक्खी

चला दुखन्ती
नयी गाय दुहने
खाया दुलत्ती

बुढ़ापे में जी
सोचता शरारतें
बचपन की

जीते कबड्डी
पढ़ने में मगर
रहे फिसड्डी

एकत्र हो के
नींद ले जाते छीन
बच्चे गली के

सजा के रखी

तीन टांग का चीता
अब भी गीता

हाथ से छूटी
करिश्मा की गुड़िया
टंगरी टूटी

रामू का छक्का
सलीम कि खिड़की
बिना शीशे की

चींटा खे रहा
पहली बारिश में
मुन्ने की नाव

पकड़ा गया
बनेगा इस बारी
चोर सिपाही



हुई पिटाई
बिना गृह कार्य के
स्कूल जो आई

नहीं बताया
सहला रहा गाल
पूछा सवाल


नींद आ जाती
बैठते ही पढ़ने
मम्मी जगाती

हलके थे बस्ते
हुई पूरी पढाई
बिल्कुल सस्ते

जब भी पड़ी
मास्टर जी की छड़ी
नंबर बढे

दो दूनी चार
लगता बड़ा भार
याद करना

बच्चों को पीटा
मॉनिटर बनके
बैर ही जीता

याद करते
खेल के कवितायेँ
अंताकक्षरी

सीखे सबक
कहानियों को पढ़
पंचतंत्र की

काली तख्ती पे 
चमकते अक्षर 
थे दूधिया के   

नभ में थे ही
पत्रिका में भी प्यारे
वो चंदामामा

ज्यूँ ही बुलाती
पेन्सिल खुजलाती
कापी की पीठ

पेन्सिल देख
हाथ में शार्पनर
जाती है डर

सूख न पाया 
कल धोया था जूता 
स्कूल की छुट्टी 

गीली थी वर्दी 
करने का बहाना  
स्कूल की छुट्टी    

जैश व ऐश  
कंधे पे धरे हाथ 
स्कूल में साथ 

बच्चों से खाली
स्कूल है सरकारी  
टीकाकरण

देर से होता 
सूरज का दर्शन 
छुट्टी के दिन 

दिल चाहता 
हों हफ्ते के छः दिन 
छुट्टी के दिन

स्कूल के पास 
दौड़ लगाता शनि 

घंटे की ध्वनि 

पंक्चर हुआ 
वाहन का टायर 
देर से स्कूल 

हो गयी आज 
स्कूल आने में देर 
बेंच पे पैर 

बच्चों की पंक्ति -
पगडण्डी पे मस्ती 
गांव का स्कूल 

वापस आते 
गन्ना भी तोड़ लाते 
गांव का स्कूल 

रोज सुबह
माँ दिखाने लगती
घड़ी की सुई

हाथ पकड़े
स्कूल बस जोहते
दादा भी खड़े

पहली कक्षा
पप्पू हो गया पास
पापा से पैसा

जलती रही
सुबह तक बत्ती
परीक्षा आयी

समझा खेल
ठीक से पढ़ा नहीं
हो गया फेल


बना के चलीं
मैडम पिकनिक
बच्चों की पंक्ति

सवाल थोप
बुनती थीं मैडम
धूप में टोप

पीछे से पड़ी
जब ऊँघने लगा
धीरे से छड़ी

चख रहा है
शरारत का फल
वो मुर्गा बन

मेरी पेन्सिल
छुपा लेता अक्सर
मोनू का बस्ता

झपटा भाई
फाड़ दिया किताब
नई थी लायी

गांव में पढ़े
उन्नति का फिर भी
सोपान चढ़े

टांगों को बांध
तीन टांग से जाते
मैदान लाँघ

प्रथम आया
सारा घर मुस्काया
दौड़ की होड़

हम भी खाये
स्कूल के गेट पर
बर्फ का गोला

बड़ी लाचारी 
लदा पीठ पे भारी


बस्ते का बोझ 

उड़ाती अब
प्लास्टिक की चिड़िया
रिमोट लिए


हत्या कर दी
कातिल क्रिकेट ने
गुल्ली डंडा की

हमारा प्रिय
गुल्ली डंडा का खेल
खाया क्रिकेट 

मैदानी खेल 
छुड़वाया बच्चों से  
विडिओ गेम

मैदान छोड़ा  
सुदामा की बैटिंग 
हो गयी पूरी 

ध्रुव प्रह्लाद
आदर्श से हो चुके
सांप्रदायिक

पा के जो ख़ुशी
साईकिल में मिली
कार में कहाँ

द्रोण दधिचि
पुस्तकों से बाहर
क्या की गलती



   ******************************************

परिवेश, सीख, सन्देश  

सदा दिलाती
मातु पिता की सेवा
सुख का मेवा

घटती गई
उम्र बढ़ती गई
रिश्तों की डोर

हो गयी छोटी
दुनिया उमंगों की
बड़ा होकर

सुनी पुकार 
बादलों ने बच्चों की 
लाये फुहार

मारे दहाड़ 
अम्बर में बादल 
हिला पहाड़ 

गरजा मेघ
बाहर था सुरेश  
डर गयी मां

उड़ने वाला
जहाज का बनाना
बच्चों का खेल

नभ तो बस
सिर के ही ऊपर
मैं यूँ ही छू लूँ

रात मे खेलें 
लुका छुपी का खेल 
चांद व मेघ

थक के चूर 
सूरज चला दूर 
रात को सोने 

सूर्य गरम
हुआ तो पप्पू हुआ  
नग्न बदन 

छोटा आकार
कोहरा ढक लेता 
नभ विशाल

बड़ा जहाज 
आसमान में जाता 
छोटा हो जाता

हिला देती है
धरती की सिसकी
रुलाना मत


साथ के लिए
घुसा मच्छरदानी
एक मच्छर

लाया था नया 
जूते ने काट लिया 
लंगड़ी चाल

चाट रहा है
खाके आइसक्रीम
अपने हाथ

चाट रहा है
गिरी आइसक्रीम
उसका पिल्ला

खा रहा रोटी
प्लेट में लिए पप्पू  
संग में मोती 

किये थे हम
मच्छरों के नाक में
धुएं से दम

गुर्रा उठता
जब पूंछ खींचता
खेलता पिल्ला

सिर पे हाथ
मम्मी के दोनों साथ
जुएं हेरते

नकली मूंछ
कालिख की बना के
बड़े हो जाते

जुगनू चले
लेकर टॉर्च जले
होते ही रात

टिकट चला
लिफ़ाफ़े पे सवार
दूर की यात्रा

यात्री रेल में
यात्रा पे चला साथ
टिकट जेब में

सड़क पर
चला मक्खियां भर
कूड़े का ट्रक

खाकर चिप्स
हो गया कंप्यूटर
ताकतवर

पड़ के पाला
तबाह कर डाला
खड़ी फसल

नन्हां हो जाता
नभ में उड़ कर
बड़ा जहाज

नभ खोलता 
एक आँख दिन में 
एक रात में

रखूं मैं  पांव 
सदा धरती पर 
नभ में सिर 

जला के बत्ती 
देख रहे बादल 
भीगी धरती 

खोल दो टोंटी 
फव्वारे की राम जी 
नहा ले मोती 

मांगो न भीख 
राह बनाओ खुद 
नदी की सीख

ऊँचा मस्तक 
कहता है पर्वत 
रखना सदा 

रखना भाई   
सोच में गहराई 
सिंधु कहता 

स्कूल के पास 
साईकिल से गिरा 
बच्चों से घिरा 

लिए ढूंढता
ऊंट पीठ पे पानी 
मरू में खाना 

तोड़ के मेंड़
बरसात में खेत 
हो गए एक 

चाँद है छोटा 
फिर भी रोक देता 
सूर्य की राह 

बड़ों का होता 
आशीर्वाद से युक्त  
चरण स्पर्श

चौबीसों घंटे  
भागता ही फिरता 
सूर्य से तम

लगा के आग 
जिह्वा तो छुप जाती
पिटे कपाल

करेगी तय  
वृहस्पति की दशा 
परीक्षाफल

सूर्य जागता
कोतड़ में जाकर 
उल्लू सो जाता 

छलका देती 
एक ही बूँद दवा 
आँखों से पानी


आँखों में गिरी
नन्ही सी किरकिरी
पीड़ घनेरी

प्रभु ने दिया 
देखने को भुवन 
दो दो नयन 

आँखों का साथ 
जागतीं और सोतीं 
एक ही साथ 

हवा न होती 
होती उन्हीं के घर 
फूलों की गंध 

मंद पवन 
नहीं उड़ी पतंग 
समेटे डोर 

खींच ले गया  
चरखी और डोर 
हवा का जोर 

बरसा पानी
शहर की हो गयी
मुफ्त धुलाई

ख़ुशी में डूबी 
देख सूर्य का मुख 
सूरजमुखी

गोभी का फूल
रंग ना ही सुगंध
मिटाता भूख

मैंने जो खाया   
कोई और लगाया 
वृक्ष का फल 

एक ही बार 
हाथी के मुंह पूरी  
केले की घार 

प्रातः की बेला
बच्चे चले ले बस्ते 
निरहू ठेला 

मुर्गे की घड़ी 
अलार्म बजा देती 
होते ही भोर 


पहने जूता 
सरपट दौड़ता 
खुर में घोड़ा 

सीख न पाया 
मौसी से चढ़ पाना 
पेड़ पे शेर 

दे के चिड़िया 
उजड़वाई नीड़
कपि को सीख 

देख के मोर 
छाये बादल कारे 
लगाते नारे 

प्रातः की बेला
चहकती चिड़ियाँ
लगाईं मेला

पेट से बच्चा
कंगारू को देखता 
घास चरते

कोयल बोली
उठो सुबह हो ली
बहुत सो ली

मेरा अंगना 
तुम्हारे बिन सूना 
गौरैया रानी !

हो आते पक्षी 
बिना टिकट वीसा 
रूस अफ्रीका 

चिड़ियाघर 
पंख फड़फड़ाती 
उड़ ना पाती 

थकी तितली 
आराम फरमाती 
पतंग पर

प्रातः होते ही 
मक्खी गुदगुदाती 
नींद भगाती

साहस भरी
गिर कर भी चींटी
कभी न हारी

चुग के लायी
चिड़िया ने थमा दी
बच्चे को दाना

धुलती दाल
पतीले में घुन का 
प्रलय काल 

पीने का शौक
बना मक्खी का काल
गरम चाय 


होता अगर
मुफ्त में पाता फल
वन में घर

करूंगा युद्ध
रखने को सभी से
हवा को शुद्ध

फूलों से सीखा
हमने मुस्कराना
पंछी से गाना

चाँद पे बैठी
बूढ़ी से मिल आया
अब आदमी

काम का बोझ
लाद के मत छीनो
ये! बचपन

छोटू चाय ला
बचपन पे सीधे
होता हमला

किया सत्कार
दिलाता है बदले
बड़ों का प्यार

छोड़ के भागी
दबी वो छिपकली
पल्ले में पूँछ

गिड़गिड़ाता
मकड़ी के जाल में
फंसा मच्छर

चिड़िया लायी
मेहनत से दाना
नीचे गिरायी

अटल खड़ा 
युगों से ध्रुव तारा 
नभ में अड़ा

करते बात 
सप्तऋषिमंडल 
रहता साथ 

कैसे बहती 
बून्द न टपकती 
आकाशगंगा 

पानी में फेंका 
चाँद नाचने लगा 
बच्चे ने ढेला 

ढका सूरज 
पवन को पुकारे 
मेघ हटा रे 

रंग बटुर  
बना दिए नभ में  
इंद्रधनुष

देख के मेघ 
लगता है नाचने
बच्चों का दिल 

आ रे बादल 
कारे कारे बादल 
लेकर पानी 

होते ही रात 
जाग उठे नींद से 
तारे व चाँद 

भाती न रोटी
चाउमीन खा भोली
हो गयी मोटी

कार्टून लगा
रिमोट छुपा दिया
ढूंढती बुआ

विडिओ गेम
बचपन में चढ़ा
चश्मे का फ्रेम 

झाड़ू लगायी
बिन बुलाये आयी
चींटे की मौत 


*********

याद है मुझे
घी चीनी लपेट के
माँ देती रोटी

याद है मुझे
दिला न पायी टॉफी
चवन्नी खोटी

याद है मुझे
सखियों से हारना
खेल के गोटी

याद है मुझे
छोटे भाई ने किया
स्कूल में पोटी

याद है मुझे
कौवा लेकर भागा
हाथ की रोटी

याद है मुझे
पिटा था खींच कर
दीदी की चोटी

याद है मुझे
जीत जाती थी वही
क्योंकि थी छोटी

याद है मुझे
जब पीठ पे पड़ी
दादा की सोटी


याद है मुझे
बिल्ली की ऑंखें बड़ी
रस्ते में खड़ी

याद है मुझे
बात बात पे, बड़ी
देती थी तड़ी

याद है मुझे
मेरे हिस्से में आयी
दो ही रेवड़ी

याद है मुझे
फ्रिज की मेरी चोरी
गयी पकड़ी

याद है मुझे
दादा  से डांट पड़ी
छुपाया छड़ी

याद है मुझे
स्कूल जाते भिगोई
बूदों की झड़ी

याद है मुझे
साइकिल मांगना
मंहगी पड़ी

याद है मुझे
माँ से था झूठ बोला
गाल पे जड़ी 

याद है मुझे
अखरोट था सड़ा
हिस्से में पड़ा


********


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