जी जान से उसको चाहता रहा।
दिल में दर्द लिए कराहता रहा।
दीवाना तो मगर दीवाना ठहरा,
खूबसूरती को ही सराहता रहा।
प्यार का फूल, पत्थरों में भी खिल जाता है।
प्यार के बिना, पत्थर बना ये दिल जाता है।
उसके जिंदगी का चमन महकने लग जाता,
किसी को फूल जब प्यार का मिल जाता है।
पत्थरों में फूल खिला नहीं करते।
सूरज से सितारे मिला नहीं करते।
मिल ही जाय अगर दिल पत्थर,
हम ठोकरों का गिला नहीं करते।
वर्षों से तोड़ते पत्थर वो दो हाथ।
फैले न कभी, रखे मंशा ज्यादा की,
आगे किसी के मगर वो दो हाथ।
परवाह नहीं किया, कोई अगर कुछ कह गया।
ताने तो दर्पण ने भी दिया, मगर मैं सह गया।
सच ही कहना था तुम्हारा, 'फटीचर' हमको,
पर चीरता दिल के पार गोली की तरह गया।
लगाया बादलों ने बदली का नाका।
मगर उसको चीर मेरे चाँद ने झाँका।
चाहत रखे, वो कितनी हमारे लिए,
हमने भी उनकी बेताबी से आंका।
बदन पे गर्म लिवास, मौसम सर्द का आइना था।
वसूलों के लिये वह लड़ मरा, मर्द का आइना था।
झेला तो बहुत था मगर, शक्ल कभी देखा नहीं,
देखा तुम्हारे आंसू, लगा, मेरे दर्द का आईना था।
तुमने देखा होगा, काला जब अम्बर था।
तमाशबीनों की भीड़ का गजब मंजर था।
आकाश में दूर तक फैला जो धुआं था,
कुछ और नहीं, जल रहा मेरा ही घर था।
फेस-बुक ने तो बड़ा कमाल कर दिया।
हसरतों को आज मालामाल कर दिया।
मेरे संदेशों को बार बार मिटाते रहे वो,
फिर सामने, बीतने पर साल कर दिया।
छोड़ा तीर तुम्हारा भीतर तक छुआ।
तुमने देखा भी नहीं असर क्या हुआ।
लगी कि न लगी, हम तो भेजते रहे,
तुम्हारी सदा सलामती की ही दुआ।
हम पीछे से बुलाते रहे
वो थे कि चले जाते रहे
जल्दी लौट के आने का
सब्ज बाग़ दिखाते रहे
उड़े गुलाल, रंगे हवा के अंग, होली के रंग
धरा जुड़ाई, भिगो दिया बसंत, होली के रंग
टेसू फूले, बौराये आम, महके उठे उपवन
बागों में उमड़े चुराने मकरंद, होली के रंग
राधा के संग होली खेले नंदलाल ।
मले गुलाल, लाल कर दिया गाल ।
गोपी ने मारी छिप कर पिचकारी,
बच गए कान्हा बना राधा को ढाल ।
मले गुलाल, लाल कर दिया गाल ।
गोपी ने मारी छिप कर पिचकारी,
बच गए कान्हा बना राधा को ढाल ।
हुई दीवानी पड़ रही सब पे भारी।
भीगी ननद, अब देवर की बारी।
नशा फाग का चढ़ा बढ़ चढ़ कर,
रंग डारी पिऊ को मार पिचकारी।
आवत देख गली में टोली, तान लई पिचकारी ।
फागुन में मस्त खिली काया, मोहक छवि अति न्यारी ।
मद में डूबे देख सभी, मौसम यौवन का संगम,
आँखन से भंग पिलावै, डारै रँग खड़ी अटारी ।
होली पर हुई दीवानी, पड़ रही सब पे भारी ।
भिगो डाली ननद को अब आई देवर की बारी ।
चढ़ा नशा फाग का ऊपर, बढ़ चढ़ कर के खूब,
रंग डारी, पिऊ को अपने मार मार पिचकारी ।
रंगों के संग पड़ जाती, होली की गाली।
बुरा नहीं मगर मनाती, होली की गाली।
अपनों का प्यार झलकता, गाली में भी,
आनंद ही लेकर आती, होली की गाली।
भूल जाएँ रंज औ गम होली में ।
खुशियां बरसायें हम होली में ।
सभी को गले लगाते ही चलना,
मधुर संबंधों का हो दम होली में ।
प्यार का वास्ता देता रहा, इश्क के दौर का चक्कर था ।
रोजाना कई बार काटता रहा, मेरे ठौर का, चक्कर था ।
वक्त के साथ हवा में उड़ गया, इश्क का जज्बा सारा,
आँख मिलाने से बचता रहा, किसी और का चक्कर था ।
शुक्रिया उनका, फेस बुक पर ही रंग लगाए ।
तश्तरी भर के गुजिया, पकौड़े पुआ खिलाये ।
होली के पकवानों की मिठास तो ले आये वो,
मगर मधुमेह और पेट ख़राब होने से बचाये ।
कामवाली का तो होता अपना ही जलवा ।
हुस्न के घलवा के फेर में हो जाता बलवा ।
खसम को दिखाया जाता मधुमेह का डर,
उसको खिलाया जाता बचा हुआ हलवा ।
कभी कह के पाप
कभी मजनू छाप
दखल देने लगती
प्यार में भी खाप
सामने से गुजरी, प्यारी बहुत, नीली वो ऑंखें।
जी चाहा, समा जाने को, पर न मिलीं वो ऑंखें।
कहाँ न भटके, किस्मत को परखे, याद करके,
हो गयीं पाने की उम्मीदों में, गीली, वो ऑंखें।
जाने वो कैसे, पहुँच गए दिल में, आँखों की राह
बसाने की, सूरत उनकी, आँखों ने बढ़ायी चाह
बसे भी तो, कुछ इस तरह से, इन आँखों में वो
कभी ओझल हो जाते, दिल से निकलती, आह
टूट कर आईना कितना उदार होता है।
बिखरा, दिखाता तस्वीर हजार होता है।
जोड़ कर फिर देखना चाहो एक कभी,
आईने के साथ चेहरे में दरार होता है।
झटक देने से, टूट जिगर जाते हैं।
टूटे आईने सा, टूक बिखर जाते हैं।
टूटे दिल में, वफ़ा तार तार दिखती,
आईने में, टूटे रुख नजर आते हैं।
तेरी याद चली आयी, संग, लायी हिचकी।
तन्हाई से वफाई का जंग, लायी हिचकी।
सोने, जगने का कभी परवाह नहीं की,
दिल कबसे था बदरंग, रंग, लाई हिचकी।
समां को मस्ताना बनाया तूने।
अच्छे भले को दीवाना बनाया तूने।
जलने से अब तो डर नहीं लगता,
लौ लगा के परवाना बनाया तूने।
गोरी न ही काली पे हुआ।
न होठों की लाली पे हुआ।
दीवाना ये दिल मतवाला,
किसी दिलवाली पे हुआ।
इश्क का रोग लगा।
तुम ना भी दो दगा।
कभी जब दूर होगे,
यादें देगीं दर्द जगा।
गहरी वो पीड़ा थी, पंडित बोला, प्रभु की माया है।
ज्योतिष ने बताया, कोई बुरा ग्रह उतर आया है।
ओझा ने ऊपर बुरी आत्मा का साया बता दिया,
डॉक्टर बोला, गोली खाओ, रोग डेरा जमाया है।
कोतवाली गए न थाना
पर वापस हमें है पाना
दिल हमारा खो गया है
गूगल जी ढूंढ के लाना
रखे थे हम भी अरमान, उजाड़ दिया जमाने ने।
इश्क की दुनिया से पांव, उखाड़ दिया जमाने ने।
किया तो कैसे तू, लिए बिन जमाने की इजाजत,
कहकर जीते जी हमको, गाड़ दिया जमाने ने।
समझे दिल के, टुकड़े सीने आती है।
पर हमें मारकर, खुद जीने आती है।
यादें तुम्हारी, पिशाचिनी बनकर,
रातों को हमारा खून पीने आती है।
सर्पों की माला,
गले में डाला,
शिवजी! भरना,
मन में उजाला ।
मस्तक पर,
अर्ध चंद्र धर,
हे शिवशंकर!
संकट हर ।
त्रिनेत्र धारी,
मंगल कारी,
सुखमय जग हो,
हे त्रिपुरारी !
माथे पर चन्दन,
तुझको वंदन,
हटा महेश्वर !
पापों के बंधन ।
भभूति रमाये,
जटा उलझाये;
तेरी शरण हम,
नमः शिवाये !
दुःख तेरे बेशक हम लेंगे ।
सुख तेरे नहीं गम लेंगे ।
तेरे कदमों में, ऐ हमदम!
खुशियाँ लाकर दम लेंगे ।
जन्म और मृत्यु हैं दोनों ओर ।
जिंदगी की नदिया के दो छोर ।
बहती इस रवानी पर चलता,
नहीं किसी का कोई भी जोर ।
जमाने की बातों से घबराना नहीं ।
औरों की बात पे हक़ जमाना नहीं ।
जहाँ पर तुम्हारी बेकद्री सी लगे,
यारों, उस दर पे कभी जाना नहीं ।
दिल किसी का टूट जाता है।
मुंह बयां नहीं कर पाता है।
आँखों से निकल कर पानी,
गालों पर शोर मचाता है।
दिल की कही निभाने चला हूँ।
प्यार किसी का बसाने चला हूँ।
कल तक वो, बस खुद का था,
उसको अपना बनाने चला हूँ।
लड़ती है फिर भी मेरा हम साया है ।
घर पर उससे फटकी तक खाया है।
नोक झोंक में, दिख जाता है उसके,
मेरे लिए, दिल में प्यार समाया है।
मेरी मूंगफली, खड़े साथ में खाया है।
मेरे ही पैसों से आईसक्रीम मंगाया है।
विद्यालय में खाने का डिब्बा छीन कर,
देवी जी ने, बस मेरा ही माल उड़ाया है।
सच है, मेरे बटुये पर उसने नजर गड़ाया है।
उसने पर इश्क की गाड़ी, पटरी पर दौड़ाया है।
कदम कदम पर दिया है, उसने साथ हमारा,
वो ही तो है जिसने जीवन का रंग जमाया है।
मैं कोई परवाना तो नहीं, मुहब्बत करूँ जल जाने के लिए।
तेरी मर्जी से हंस लेते हैं, वरना अश्क पीने को, मजबूर थे हम
जहां जहां से तू चली जाती है,
वहां की जमीन ढली जाती है।
तेरी झलक पाने के लिए,
खड़ी भीड़ मचली जाती है।
तुम मिल गए थे, सरेराह चलते चलते।
कहाँ खो गए थे, फिर शाम ढलते ढलते।
ढूंढने में तुमको, मंजिल को भी भूले,
चलते रहे अकेले, आंख मलते मलते।
मैं कोई परवाना तो नहीं, मुहब्बत करूँ जल जाने के लिए।
मैं कोई भौंरा तो नहीं, मँडराऊँ गुल के निगल जाने के लिए।
मैं कोई चकवा भी नहीं, चाँद को निहारूं और वशीभूत हो जाऊं,
मैं कोई पपीहा तो नहीं, एक बूँद जोहूं वंश चल जाने के लिए।
इश्क़ियों में मिलती रहीं, सिसकियाँ बेहिसाब।
भीगी आँखें खोती रहीं, झपकियां बेहिसाब।
बंद करके रखी थी जो, पढ़ने में आ ही गयी,
अश्कों की स्याही से लिखी, दिल की किताब।
उनके लिए रहा होगा, दिल कितना बेताब।
रात स्याह होती रही, लेने को हिसाब।
अँधेरा तो डराता रहा, कालिख लिए अपनी,
आते ही चुभने लगता, सुबह का आफताब।
प्यार में ना लड़ो, ये अखाडा नहीं।
प्यार बसावट है, कोई उजाड़ा नहीं।
मिलता है प्यार, देकर ही प्यार;
देना होता इसका कोई भाड़ा नहीं।
पका कर के पी जाओ काढा नहीं।
तोड़ कर खा जाओ छुहाड़ा नहीं।
रट भर लेने से छा जाये दिल पर,
प्यार तो होता कोई पहाड़ा नहीं।
करने वाले होंगे, हम जैसे ढेरों, बंदगी।
सजदे में झुक गया सिर, न फेरो बंदगी।
सम्भाले रखा कबसे, दिल में बंद करके,
इस अंजुमन में यूँ ही, न बिखेरो बंदगी।
प्यार पाने के लिए दिल देना होता है।
पार होने के लिए, नाव खेना होता है।
पार होने के लिए, नाव खेना होता है।
होता नहीं प्यार करना आसान इतना,
कूबत के साथ मुसीबत लेना होता है।
कूबत के साथ मुसीबत लेना होता है।
बिन तेरे, ये साँस चलती रहे, रखते वो हम, हौसला तो नहीं।
बिन तेरे बहारें आयीं नहीं, गुल कोई तेरे बिन, खिला तो नहीं।
बिन तेरे बरसात होती ही नहीं, सूख जाते फूल, चमन के सब;
देख कर वीरानियों को मगर, जीने का सिलसिला तो नहीं।
तेरी मर्जी से हंस लेते हैं, वरना अश्क पीने को, मजबूर थे हम
आंसुओं में कटे, यूँ जिंदगी पूरी, रोने का फैसला तो नहीं।
जहां जहां से तू चली जाती है,
वहां की जमीन ढली जाती है।
तेरी झलक पाने के लिए,
खड़ी भीड़ मचली जाती है।
खूबसूरत हुई जिंदगी, तेरे साथ में हमदम।
गुजरता है हसीं वक्त, तेरे पहलू में हरदम।
कट जाएगी अपनी राह, यूँ ही हँसते हँसते,
लहरायेंगे ज़माने में मिल प्यार का परचम।
तुम्हारे लिए ही लाया हूँ, ले लो बंदगी।
माथे पर ढोकर लाया हूँ, देखो बंदगी।
थक गया हूँ, चल के राह, मैं तो बड़ी दूर,
सांसे रहीं हैं फूल, जल्दी सहेजो बंदगी।
तुम मिल गए थे, सरेराह चलते चलते।
कहाँ खो गए थे, फिर शाम ढलते ढलते।
ढूंढने में तुमको, मंजिल को भी भूले,
चलते रहे अकेले, आंख मलते मलते।
रातों को आते रहें, सज धज के तारों के साथ।
सुबह ही धुल जाते रहे, उनके हसीन ख्वाब।
अंदाजा लगाना मुमकिन था, बांचने वाले को,
उनके लिए रहा होगा, दिल कितना बेताब।
दिल से किया काम, बेकार नहीं होता।
लुट जाता है, जो खबरदार नहीं होता।
धीरज से मिलता सदा, मीठा ही फल,
खुशबू के लिये लोग, फूलों को तोड़ लेते हैं।
बीच दोनों के शिकवे गिले हो गए।
फूल है प्यार का, पत्थरों में भी खिल जायेगा।
रंग इसे मिले न मिले, सुबास तो मिल जायेगा।
बढ़ेगा कोई हाथ कभी, तोड़ने के वास्ते इसको,
प्यार की ठण्ड में, कंपकंपी से हिल जायेगा।
कितना बातूनी था चुप चाप चला जा रहा।
जिंदगी को हमारी भी साथ छला जा रहा।
कटेंगे दिन-रैन हमारे, किसके सहारे अब,
मुसीबतों का पहाड़ मढ़, मेरे गला जा रहा।
जाने क्या दिल में छुपाये बैठा था।
अरमान हमारे भी जगाये बैठा था।
रखे था ख्वाइश, छूने को अधरों को,
मुआ, मुंह में पान दबाये बैठा था।
सबने कहा चेहरे को चाँद, जुल्फों को बादल।
आँखों को समुन्दर, काजल को रात श्यामल।
पुकारते रहे हरदम उसे, उसका नाम लेकर,
पूरी दुनिया में, एक हम ही तो ठहरे पागल।
क्या क्या न सितम सहे, उनकी फरियाद में।
अर्सा खपा दिए उनसे मुहब्बत की ईजाद में।
बामुश्किल वक्त आया, सुकून से बिताने का,
आँखों से बरसात हुई, बस उन्हीं की याद में।
दिल से लहू बहा और आँखों से पानी।
आखिर किया भी तो दोनों ने नादानी।
एक खूबसूरती पे मरा, दूसरा आदतन,
ढोने को मजबूर हुए, दुखभरी कहानी।
तुम्हारे प्यार ने जोड़ा, एक अटूट जोड़।
अब हर पल भारी लगता, तुमको छोड़।
बांध दिया हम दोनों की तो एक एक,
चल रही है हमारी, तीन टांग की दौड़।
खुशियों से दूर रहने का इरादा न था।
तेरा भी तो साथ देने का वादा न था।
छोड़ चले जाने की धमकियों से पहले,
ये दिल कभी इतना खौफजादा न था।
उनका इस तरह मुस्कराना।
था तो बहुत ही कातिलाना।
घायल कर दिया, तब बोले -
मकसद था हंसना हँसाना।
कुछ कह गयीं मदहोशियाँ।
कुछ कह गयी गर्मजोशियाँ।
बाकी जो कुछ बचा रह गया,
कह गयीं उनकी खामोशियाँ।
निकल पड़े हम बाहर, घनघोर बदरी में।
उपरवाले ने पलटा, रखा पानी गगरी में।
मजबूरी कहें या उसकी मेहरबानी इसे,
दोनों ने साथ बिताया, एक ही छतरी में।
पाने को, क्या ना पापड़ बेला, तेरा चुम्बन।
बड़ा नशीला, ऊपर से खर्चीला, तेरा चुम्बन।
बना कर हमको तेरे मुहब्बत की कठपुतली,
रोज हमारी जिंदगी से खेला, तेरा चुम्बन।
8888888888888888888888888888888888
टूट कर आईना कितना उदार हो गया।
मैं तो एक था, देखा तो हजार हो गया।
चाहा जोड़ कर देखना फिर से उसको,
बदन में मेरे, अनगिनत दरार हो गया।
बरसात की झड़ी, एक छतरी में हम दोनों।
मेरे वो साथ खड़ी, एक छतरी में हम दोनों।
कल तक दिखा रही थी, अपनी जो हमको,
करके आंखे बड़ी, एक छतरी में हम दोनों।
बीते जाड़ा मेरे गांव चली आती, कोयल काली।
बसंत के स्वागत में जुट जाती, कोयल काली।
ऑंखें ढूंढती रह जातीं पेड़ों के घने झुरमुटों में,
छुपी कहीं बैठी, मीठे गीत सुनाती, कोयल काली।
तुम आये तकदीर ने मुस्करा दिया।
खोयी खुशियों से रूबरू करा दिया।
केवल तुम्हारे साथ चलने के लिए,
हमने भी ज़माने को ठुकरा दिया।
तुम जो मिल गये, दिल चाहता है उड़ जाने को,
जिंदगी के बचे दिन, तुमसे ही जुड़ जाने को,
झेल ना पायेगा, कत्तई ये दिल, जुदाई तुमसे,
अब दोनों की एक जिंदगी में सिकुड़ जाने को।
अभी अभी मौसम बदला है, तुम तो नहीं बदले ?
गिरगिटों ने भी रंग बदला है, तुम तो नहीं बदले ?
देखते ही देखते ये जमाना कितना बदल गया है
इंसान का भी ढंग बदला है, तुम तो नहीं बदले ?
कुछ लोग हैं जो लाल कालीन पर जरूर चले हैं।
उनको भी देखो, कंकड़, काँटों में मजबूर चले हैं।
चलने का ढिंढोरा, उनका ही ज्यादा पीटा जाता,
पैरों में धूल लगी नहीं, कहते हैं बड़ी दूर चले हैं।
कुछ तो कहती रहीं, तेरी खामोशियाँ।
दिल में रहती रहीं, तेरी खामोशियाँ।
आया वक्त जब करने लगे महसूस,
शूल सी चुभती रहीं, तेरी खामोशियाँ।
प्यासी बेचैन धरती है, तू कितना बादल बेदर्दी है।
तरसा कर बरसात में भी, अति बड़ी तूने कर दी है।
इसका दिल तड़पता है, ना तेरा दिल समझता है,
कितनी उदास रहती है, निराशा दिल में भर दी है।
रखे गहरा समुन्दर है, मगर ताके वो बादल को।
प्यासी रह जाती फिर भी है, कैसे समझाएं पागल को।
कहती पी नहीं सकता, कोई भी तन का पानी खुद,
बहा ले कितना भी आंसू, धो न पाता है, काजल को।
कभी जब प्यास लगती है, वो बादल को ही तकती है।
पीती नहीं समुन्दर को कैसी दीवानी धरती है।
करे खुद से कोई कैसे, है मुहब्बत चीज ही ऐसी,
लकड़ी हो ना जलने को, कहाँ फिर आग सुलगती है।
आखिर एक दिन तो बरसेगा, मगर हासिल फिर क्या होगा!
जल ही जायेगा दिल इसका, तो तुझसे मिल कर क्या होगा!
चाहता दिल से अगर इसको, फ़ौरन प्यास बुझा आकर,
गयीं इश्क में साँसें, कहेंगे सब कातिल फिर क्या होगा!
जी भर गया तो ठुकराया दिल किसी ने।
कबाड़ा सा बनाया दिल किसी ने।
खिलौना जान कर खेल लिया खूब,
पांव तले फिर दबाया दिल किसी ने।
मेरे अरमानों को तूने, कच्चे धागे सा तोड़ा।
उड़ने को आसमान में, कटी पतंग सा छोड़ा।
जब जब भी रुख किये, उड़ते हुये तेरी ओर,
हर बार गर्दन पकड़, वापस ही फिर मोड़ा।
हमें चांदी सोने की भूख नहीं।
दौलतें संजोने की भूख नहीं।
तेरे पहलू में थोड़ी छाँव मिले,
बादशाह होने की भूख नहीं।
तुमसे मेरे हमदम, जबसे नैन मिला है।
मुहब्बत के साये में थोड़ा चैन मिला है।
बेचैनियों में कितने थे! बयां क्या करें,
सुकून से कटने वाला दिन रैन मिला है।
रोजाना वो देते रहे, दर्द का प्याला।
ख़ुशी से पकड़ लेते रहे, दर्द का प्याला।
पी लिया था मीरा ने, जहर का जैसे,
चाय की तरह पीते रहे, दर्द का प्याला।
हम दोनों में, मुहब्बत का जज्बा जरूर था।
अपनी अपनी ताकत पर, दोनों को गुरुर था।
चल न सके दूर तक हम, रास्ते पर एक,
उन्हें दौलत का, हमें मुहब्बत का सुरूर था।
जिंदगी महकी तो हम समझे, तुम आये हो।
मुहब्बत का अलबेला, कोई फूल खिलाये हो।
वीरान पड़ा था, एक अरसे से दिल का चमन,
बदरंगियों के आलम में तुम रंग जमाये हो।
तुम्हारी चलायी तेज हवाएं सह सह कर।
बामुश्किल काटा हमने जिंदगी का सफर।
कहाँ रह गए शाख पर, हरे भरे पत्ते वो,
ठूंठ हो चले, अब तो अँधियों से क्या डर!
जुल्फ तो हम भी रख लें, पर वो बात कहाँ!
कमर में लचक भी भर लें, पर वो बात कहाँ!
तुम तो ले के आये हो अदा भी जन्नत से,
हम चाहे कुछ भी कर लें, पर वो बात कहाँ!
मेरे दिल में उड़ने को, कोई बटेरनी निकली।
लगी चोंच मारने, जैसे कठफोरनी निकली।
अब तो वह गुर्रा उठती है, हर बात पर मेरी,
ससुर ने गाय बताई थी, वो शेरनी निकली।
ऐसी गलती नहीं किया करो।
कि फटेहाल ही छोड़ दिया करो।
प्यार के लिवास पे खोंच लगे,
प्यार की सुई से सी लिया करो।
मुहब्बत के जुर्म का मुजरिम हूँ तेरा।
तभी तो तेरे घर का मारा था फेरा।
कबूल है तेरा देना उम्र कैद मुझको,
करेगी जिंदगी अब तेरे दर पे बसेरा।
इश्क के दुश्मनों की लाग का क्या करें।
दाग से तो निबट ले आग का क्या करें।
चाहे थे सुकून से रह लेगें तेरे पहलू में,
जिंदगी के भागमभाग का क्या करें।
कश्ती तो खेना आता था, आ गया भंवर तो क्या करते!
सपने अभी तो बाकी थे, हो गया सहर तो क्या करते!
छोड़ रखा था जिंदगी को, हमने तो भरोसे पर तुम्हारे,
जीने की तमन्ना थी अभी, दे दिया जहर तो क्या करते!
कैसे कहूं किसी बगिया का बासिन्दा हूँ।
पाता हूँ दीदार तेरा, तभी तो मैं जिन्दा हूँ।
कितनी सिमट के रह गयी है, दुनिया मेरी,
तेरी मुहब्बत के पिंजरे का कैद परिंदा हूँ।
दुनिया में हर कोई, एक दिल के लिये तरसता है।
कौन है इस जहान में, खुद ही खुद पर मरता है।
अपने आप से, कोई मिलने लग जाय तो समझना,
वह किसी आदमी से नहीं, खुदा से प्यार करता है।
उम्र बढ़ने पर, लोग आ जाते नसीहत के लिये।
यादों का मंजर जब जब आता।
लगता, कोई द्वार खटखटाता।
जब भी बढ़ कर के खोलता मैं,
हर बार डोलती हवा ही पाता।
तुम्हारी नजर ने कमाल कर दिया।
वीरान था चमन गुलजार कर दिया।
खिल गए फूल रंगीनियों को लिये,
महक बिखेर खुशबूदार कर दिया।
छोड़ गए जबसे, दिल बड़ा बोझिल था।
क्या जानो! जीना कितना मुश्किल था।
समझ लिया, जैसे कटी पतंग हो कोई,
लूटने को सारा जमाना मुश्तकिल था।
मुझे, मेरे हालात पर रहने दो।
अंधेरों के बिसात पर रहने दो।
तुम्हारे उजाले, कहीं चौंधिया न दें,
पुरानी, उन्हीं बात पर रहने दो।
अमीर तो वो, जिसकी जरूरत सबसे कम।
हमें दरकार होती, तुम्हारे दीदार की हरदम।
तुम्हारे बिन, रह पाना बहुत ही मुश्किल है,
सोचो, कितने गरीब हैं, इस दुनिया में हम।
यौवन के सरूर में हर एक हूर दिखती है।
ढोल सुहानी, बजती जब दूर, लगती है।
परछाईं नहीं, दिल की सुंदरता को देखो,
तस्वीर में नागिन भी बड़ी खूब लगती है।
तेरी गलियों में भटकता रहा।
तेरे इश्क में हवा के जैसे बहा।
फिर दोष क्यों दूँ, लोगों को मैं,
तभी तो मुझको आवारा कहा।
सच्चा दिल, सबके लिये खैर रखता है।
प्रेम नहीं पाता, जो दिल में बैर रखता है।
ज्यादा दूर तक कत्तई नहीं जा पाता !
बेशक झूठ भी अपना कोई पैर रखता है।
शाम को तुम निकले, निकल पड़े सारे।
उनको भी लगे होगे तुम बहुत ही प्यारे।
मदमाती शाम में खो बैठे थे होश वो,
शायद, तुमको ही चाँद, समझे थे तारे।
प्यार के लिये पास होना, जरूरी कहाँ था।
तुमसे मुलाकात होना, जरूरी कहाँ था।
तुम तो रहते ही थे, हर पल दिल में हमारे,
तुम्हारे संग रास होना, जरूरी कहाँ था।
दिल का मेरे करार हो तुम।
मन, उपजे विचार हो तुम।
दिल, दिमाग पर छाये तुम्हीं,
तभी तो मेरा प्यार हो तुम।
जबसे मुहब्बत की सुध आयी है।
तुम्हारी ही सूरत सामने आयी है।
सिकुड़ गयी मेरी जिंदगी कितनी,
मेरी दुनिया तुम्हीं में समायी है।
जुल्फ झटक देते हो, बादल घिर जाते हैं।
तुम हंस भर देते हो, मोती झर जाते हैं।
अदाओं की मार से, घायल कर देते तुम,
छिछोरे तो क्या, बड़े शूरमा डर जाते है।
हमारी आपस की छोटी सी खटपट थी।
दिल की ही हरकत, कोई नटखट थी।
रूठ कर तुमसे, दूर भी कहाँ जाते हम,
वो तो जिंदगी की बस एक करवट थी।
नन्हां सा दिल, मगर कैसे अंदर बहता है।
सागर से बड़ा, प्यार का समंदर बहता है।
ज्वार-भाटा और तूफान भी आता मगर,
एक बून्द भी न बाहर निकलकर बहता है।
मुहब्बत के लिए आंसू पीना सीखा।
मुहब्बत ठुकराना कभी ना सीखा।
मरता होगा कोई किसी की खातिर,
मुहब्बत के लिए हमने जीना सीखा।
प्यार में किस्मत का खेल देखा है।
कइयों का असंतुलित मेल देखा है।
मुहब्बत में कोशिश तो सभी करते,
मगर कोई पास, कोई फेल देखा है।
मेरा क्या बूता था, तुझे पाता मैं।
तेरा हुस्न ही, देखता रह जाता मैं।
ऊपरवाले की मेहरबानी न होती,
बना कर के दुल्हन, कैसे लाता मैं।
हम उन्हें अच्छा, वो हमें अच्छा कहते रहे।
एक दूसरे की हम दोनों प्रसंशा करते रहे।
अच्छाई क्या थी, न उन्हें पता, न हमें पता,
मगर ऐसे ही एक दूसरे के पास बढ़ते रहे।
तुझे फूल की पंखुड़ी कहूं कि शबनम कहूं!
या मुहब्बत की बारिश का झम झम कहूं!
होती न तू, ये दिल गया होता, बैठ कबका,
दिल को धड़काने का, क्यों न, दमखम कहूं।
तोड़ कर चले, सोचा फिर जोड़ लेंगे।
बिछोह के कारवां को फिर मोड़ लेंगे।
उन्हें क्या पता, टूटा दिल जुड़ता नहीं,
दोनों की किस्मत, साथ ही फोड़ लेंगे।
दिल में हैं तेरी बातें वो मीठी मीठी।
तेरी बातों की यादें वो मीठी मीठी।
रहती है तमन्ना, दिल की हरदम,
होती रहें मुलाकातें वो मीठी मीठी।
इश्क के नाम ने तो दिल को बड़ा खुश किया।
पर, कभी उसने, कभी हालात ने मायूस किया।
हमने जब शब्दों की ताकत को आजमाया,
इश्क की गहराई को शब्दों से महसूस किया।
तुम्हारे मुस्कराने को हम, इश्क समझे।
तुम्हारे आंख मिलाने को हम, इश्क समझे।
खुद को दिखाने को सुन्दर, सज संवर कर,
तुम्हारे पास आने को हम, इश्क समझे।
तुम हो दिल के बाजीगर।
मैं हूँ शब्दों का सौदागर।
तुम दिल मेरे नाम कर दो,
दूँ मैं उसको शब्दों से भर।
बोतल से निकली और गिलास में आ गयी।
होठों से लगकर वो अपना ढंग दिखा गयी।
ढूंढा है इंसान ने शराब भी क्या चीज ऐसी,
उसी के दिमाग पर छाकर, होश उड़ा गयी।
सड़ कर के चीज ख़राब होती है।
हमेशा ही नहीं, यूँ जनाब होती है।
देखा है हमने, ऐसा भी होते हुए,
चीज सड़ती है तो शराब होती है।
शबाब पिलाने के लिए साकी कहाँ होता है।
कोई पैमाना, और कड़वा भी कहाँ होता है।
ये तो घूंट है ऐसा, नज़रों से पीया जाता है,
पीने के बाद होश फिर, बाकी कहाँ होता है।
मजा तो दोनों में है, कर देतीं मुश्किल पर।
चलातीं जिंदगी भी, दोनों ही कातिल पर।
मारती हैं दोनों ही, अपने अनोखे ढंग से,
शराब दिमाग पर छाकर, शबाब दिल पर।
मंहगाई के ज़माने में।
जाने में, मयखाने में।
जेब ये खाली हो गयी,
होश को बस गंवाने में।
तेरी यादों का दर्द तो होता है, मगर मीठा मीठा।
तेरी बातों का अर्थ तो होता है, मगर मीठा मीठा।
मुहब्बत की राह का तू, जबसे बना है हमसफ़र,
चलना कष्टप्रद तो होता है, मगर मीठा मीठा।
कितना खोटा हमारा ये नसीब था।
जब जब भी आता कोई करीब था।
सोचते, कटेगी अब ऐश से जिंदगी,
मगर अक्सर पाते, वो गरीब था।
दिल तो उसके लिए बेक़रार होता है।
टूट जाता, कड़का जब यार होता है।
पेट की आफत, दिल पर भारी होती,
भूखे पेट भी किसी से प्यार होता है !
मुहब्बत में इतनी नादानियाँ कर लीं।
सरेआम अपनी वो कहानियां कर लीं।
जिधर निकलते, उंगलियां उठ जातीं,
खुद के लिए खड़ी परेशानियां कर लीं।
तुम पेड़ से खड़े थे।
हम बेल से चढ़े थे।
उल्फत की राह में,
तेरी टेक से बढ़े थे।
हमने प्यार का पेड़ लगाया।
तुमने आकाश बेल चढ़ाया।
हमको जलाकर क्या मिला,
खुद को भी तुमने सुखाया!
बहके थे कदम, तुमने सम्हाला।
गुमराह थे हम, तुमने सम्हाला।
हुयी जा रही थी, बंजर जिंदगी,
मुहब्बत के दम, तुमने सम्हाला।
भौरा फूल पर मड़राता है।
रस चूस कर उड़ जाता है।
प्यार तो परवाने से सीखो,
लौ के लिए जल जाता है।
देख के लग जाती है लगन।
तुमसे प्यार की हमारे मन।
दूर क्षितिज में झुक कर के,
धरा से मिलता जब गगन।
किन्हीं जलवों में भटके थे हम।
तुम्हारा रूप था, अटके थे हम।
अब भी पड़े हैं, घाव के निशान,
चोट खाये, तुम से सट के थे हम।
पास पास हैं, दिलों को मिलने दो।
ये तो दिल की बात है, बहलने दो।
दोनों का मुकद्दर था कि पास आये,
मिल ही गए हो, फूल भी खिलने दो।
उम्र की सोपान चढ़ता गया।
कर्मों की रेखा पढ़ता गया।
ज्यों ज्यों उम्र घटती गयी,
जिंदगी से प्यार बढ़ता गया।
मैं प्यासा पथिक, तुम गहरी नदी हो।
भूखा हूँ मैं, तुम वृक्ष, फल से लदी हो।
काटना है पल पल तुम्हारी छाँव में
मेरे भाग्य में क्योंकि तुम्हीं बदी हो।
सिर पर न झाम ले
जरा अक्ल से काम ले
मुहब्बत की दरिया है
पार करना तो हाथ थाम ले
चैन की नींद कहाँ सोये होंगे
रात को तकिया भिगोये होंगे
हमसे दूर, चले तो गए जरूर
पर वो भी बहुत ही रोये होंगे
ढूंढता हूँ मेरा यार, कोई तारा ही बना होगा
छोड़ गया था संसार, कोई तारा ही बना होगा
देखने लग जाता आसमान में, होते ही शाम
सितारों में सुमार, कोई तारा ही बना होगा
प्यार किया, चोरी से मुलाकात करता है !
शादी की बात आती तो बाप बाप करता है
लोभी कहूं, बुझदिल कहूं, या मतलबी उसे
कहता दिल दिया, दहेज़ की बात करता है !
सज के चली
इश्क की गली
ख़ुशी में देख
दुनिया जली
डाल के डाका
दिल में झाँका
देखा तो भीतर
वही था बांका
वो अजनवी थे
पर महजबीं थे
साथ जन्नत सा
आसमाँ जमीं थे
अबकी सावन
लगा मनभावन
पकड़ लिया कोई
मेरा भी दामन
बारिश पहली
लेकर के चली
सरि भर पानी
पिया की गली
रेशमी जुल्फें
भा गयीं हमें
भोला ये दिल
अटका उनमें
माना, प्यार के बिना, अधूरी है जिंदगी
प्यार से मगर ज्यादा, जरूरी है जिंदगी
प्यार को ही बस पाने, संभालने के लिए
दीवाने कई, बर्बाद किये, पूरी हैं जिंदगी
नन्हां सा होता है, प्यार भरा दिल।
सपने संजोता है, प्यार भरा दिल।
खा जाता है ये, फूलों से भी चोट,
रात दिन रोता है, प्यार भरा दिल।
कोई छेड़ जाता है दिल नाजुक को।
कोई छोड़ जाता है दिल नाजुक को।
दुखाना होता है, बड़ा आसान इसे,
कोई तोड़ जाता है दिल नाजुक को।
सुर्ख अंगारों की दहक,
हजारों फूलों की महक,
जब समायी हो तुममें,
दिल क्यों न जाये बहक।
तूने तो झुकाई,
इतनी बड़ी खुदाई,
हम भी क्यों न दें,
तेरे आगे दुहाई।
लेकर नूर,
तू मगरूर।
हम तो हुए,
नशे में चूर।
गली से गली,
ये बात चली,
तेरे प्यार में,
गयी मैं छली।
कोई लगा गया।
इश्क जगा गया।
ढूंढता रात दिन,
दिल ठगा गया।
उनके के लिए, अपना दिल दुखाते कैसे!
टूटना मंजूर था, झुक कर जी पाते कैसे!
तने रहे दोनों ही अपनी अपनी जगह,
उनसे रिश्ता निभाते तो निभाते कैसे !
रूठे हुए को मनाना बड़ी बात है।
साथ लेकर चल पाना बड़ी बात है।
दूसरे का दर्द भी ढोना होता कभी,
रिश्तों को निभाना बड़ी बात है।
शंका की डोर, रिश्तों को भगा देती है।
लोभ की डोर, नियत डगमगा देती है।
नेक नियती ही लेकर जाती सही राह,
विश्वास की डोर, डर को भगा देती है।
छोटा ओढ़ना हो तो सोने वाला टिकुर जाता है।
पका फल गिर जाता, जब समय पूर जाता है।
कितना भी ऊँचा उड़ने वाला पक्षी हो चाहे,
जब घोसले में आता तो पंख बटुर जाता है।
इस दिल के कुंएं में, दर्द का पानी भरा है।
बाहर निकालें कैसे, मुंह भी तो संकरा है।
तुमने भी मुंह मोड़ा पीने से पानी इसका,
आखिर इसमें, तुम्हारा भी तो बखरा है।
समझे थे, तू ही दिल का हीरा है।
दिया पर सन्नाटे का जखीरा है।
अकेले रहकर भी हम हारे न थे,
देख ले हमने, वीरानों को चीरा है।
दिया तुमने तो क्या! पिया तो मैंने था ।
जहर का स्वाद कैसा, लिया तो मैंने था ।
शिकायत करें तो किस बात की तुमसे,
काम भी कुछ ऐसा, किया तो मैंने था ।
आखिर एक दिन तो बरसेगा, मगर हासिल फिर क्या होगा?
जल ही जायेगा दिल इसका, तो तुझसे मिल कर क्या होगा?
चाहता दिल से तू धरती को, फ़ौरन प्यास बुझा आकर,
कहेंगे कातिल तुझे बादल, छिन गयीं साँसें फिर क्या होगा?
तुमने जो खुशियां दीं, खुश होकर उड़ाता गया।
कभी जो गम दिया तो, बर्फ सा गलाता गया।
न खुशियों से फूला बहुत, न ग़मों से दबा बहुत,
हालात को समझ, यूँ जिंदगी को चलाता गया।
सिखाने वाले प्यार का पहाड़ा भी तुम्हीं हो।
पीटने वाले नगर में नगाड़ा भी तुम्हीं हो।
ले तो लिया था, पर सम्हाला न गया तुमसे,
करने वाले, इस दिल का कबाड़ा भी तुम्हीं हो।
जान देने को बोला, सरासर झूठ था।
बुलवाने वाला भी तुम्हारा ही रूप था।
तुम्हें पटाने का और नुस्खा न मिला,
जान दे देता! क्या इतना बेवकूफ था।
मैंने तो हर सख्श से नाता तोड़ दिया।
जिंदगी, तेरी गली की ओर मोड़ दिया।
तेरे प्यार का नशा चढ़ गया इस कदर,
अब तो मयखाना भी जाना छोड़ दिया।
तुम्हारे स्वागत में, डोलता पवन होगा।
चहकती चिड़ियाँ, महकता चमन होगा।
तुम आओगे जब, हम होंगे ही समर्पित,
झुककर ये गगन, कर रहा नमन होगा।
प्यास बुझाने का इसका तू ही तो सहारा है ।
कबसे ये प्यासी धरती, तू फिरता आवारा है।
आखिर आ ही गया इस पर तरस तुझको,
फिर भी तू मेघ! मुख पर बस छींटा भऱ मारा है !
दिल को दिए बिना, प्यार नहीं होता।
खुशबू के लिये लोग, फूलों को तोड़ लेते हैं।
मुरझा जाये तो फिर, मिटटी में छोड़ देते हैं।
होता है बड़ा मुश्किल, रिश्तों को निभा लेना
बस मतलब निकालने को, नाते जोड़ लेते हैं।
प्यार के
दरमियां फासले
हो गए।
तीर बातों के, उनके नस्तर चुभो,
सूखे काटों के जैसे गले हो गए।
बात बढ़ती गयी, छेद
मूंदा नहीं।
पाटने खांई वो, कोई कूदा नहीं।
बेरुखी बढ़ गयी उनकी इस कदर,
फल उल्फत में कोई गूदा नहीं।
फूल है प्यार का, पत्थरों में भी खिल जायेगा।
रंग इसे मिले न मिले, सुबास तो मिल जायेगा।
बढ़ेगा कोई हाथ कभी, तोड़ने के वास्ते इसको,
प्यार की ठण्ड में, कंपकंपी से हिल जायेगा।
कितना बातूनी था चुप चाप चला जा रहा।
जिंदगी को हमारी भी साथ छला जा रहा।
कटेंगे दिन-रैन हमारे, किसके सहारे अब,
मुसीबतों का पहाड़ मढ़, मेरे गला जा रहा।
जाने क्या दिल में छुपाये बैठा था।
अरमान हमारे भी जगाये बैठा था।
रखे था ख्वाइश, छूने को अधरों को,
मुआ, मुंह में पान दबाये बैठा था।
सबने कहा चेहरे को चाँद, जुल्फों को बादल।
आँखों को समुन्दर, काजल को रात श्यामल।
पुकारते रहे हरदम उसे, उसका नाम लेकर,
पूरी दुनिया में, एक हम ही तो ठहरे पागल।
क्या क्या न सितम सहे, उनकी फरियाद में।
अर्सा खपा दिए उनसे मुहब्बत की ईजाद में।
बामुश्किल वक्त आया, सुकून से बिताने का,
आँखों से बरसात हुई, बस उन्हीं की याद में।
दिल से लहू बहा और आँखों से पानी।
आखिर किया भी तो दोनों ने नादानी।
एक खूबसूरती पे मरा, दूसरा आदतन,
ढोने को मजबूर हुए, दुखभरी कहानी।
तुम्हारे प्यार ने जोड़ा, एक अटूट जोड़।
अब हर पल भारी लगता, तुमको छोड़।
बांध दिया हम दोनों की तो एक एक,
चल रही है हमारी, तीन टांग की दौड़।
खुशियों से दूर रहने का इरादा न था।
तेरा भी तो साथ देने का वादा न था।
छोड़ चले जाने की धमकियों से पहले,
ये दिल कभी इतना खौफजादा न था।
उनका इस तरह मुस्कराना।
था तो बहुत ही कातिलाना।
घायल कर दिया, तब बोले -
मकसद था हंसना हँसाना।
कुछ कह गयीं मदहोशियाँ।
कुछ कह गयी गर्मजोशियाँ।
बाकी जो कुछ बचा रह गया,
कह गयीं उनकी खामोशियाँ।
निकल पड़े हम बाहर, घनघोर बदरी में।
उपरवाले ने पलटा, रखा पानी गगरी में।
मजबूरी कहें या उसकी मेहरबानी इसे,
दोनों ने साथ बिताया, एक ही छतरी में।
बड़ा नशीला, ऊपर से खर्चीला, तेरा चुम्बन।
बना कर हमको तेरे मुहब्बत की कठपुतली,
रोज हमारी जिंदगी से खेला, तेरा चुम्बन।
धन की कमी नहीं, और की चाहत, गरीब बनाती है।
खोने का डर, मिली हुई बादशाहत, गरीब बनाती है।
जिसे, जो कुछ मिला, उसी में सब्र तो गरीब कहाँ!
अमीर को कर्ज से न मिली राहत, गरीब बनाती है।
खोने का डर, मिली हुई बादशाहत, गरीब बनाती है।
जिसे, जो कुछ मिला, उसी में सब्र तो गरीब कहाँ!
अमीर को कर्ज से न मिली राहत, गरीब बनाती है।
जिसका बुराइयों का घड़ा भरा होता है ।
वह तो हर लमहा ही बहुत डरा होता है ।
जिंदगी उसकी खुद पर ही लानत होती,
आदमी मरने से पहले ही मरा होता है ।
8888888888888888888888888888888888
टूट कर आईना कितना उदार हो गया।
मैं तो एक था, देखा तो हजार हो गया।
चाहा जोड़ कर देखना फिर से उसको,
बदन में मेरे, अनगिनत दरार हो गया।
बरसात की झड़ी, एक छतरी में हम दोनों।
मेरे वो साथ खड़ी, एक छतरी में हम दोनों।
कल तक दिखा रही थी, अपनी जो हमको,
करके आंखे बड़ी, एक छतरी में हम दोनों।
बीते जाड़ा मेरे गांव चली आती, कोयल काली।
बसंत के स्वागत में जुट जाती, कोयल काली।
ऑंखें ढूंढती रह जातीं पेड़ों के घने झुरमुटों में,
छुपी कहीं बैठी, मीठे गीत सुनाती, कोयल काली।
तुम आये तकदीर ने मुस्करा दिया।
खोयी खुशियों से रूबरू करा दिया।
केवल तुम्हारे साथ चलने के लिए,
हमने भी ज़माने को ठुकरा दिया।
तुम जो मिल गये, दिल चाहता है उड़ जाने को,
जिंदगी के बचे दिन, तुमसे ही जुड़ जाने को,
झेल ना पायेगा, कत्तई ये दिल, जुदाई तुमसे,
अब दोनों की एक जिंदगी में सिकुड़ जाने को।
जब हम जवां होंगे !
ना जाने कहाँ होंगे !
साथ पाए हैं अब हम
पकी उम्र में रवां होंगे
अभी अभी मौसम बदला है, तुम तो नहीं बदले ?
गिरगिटों ने भी रंग बदला है, तुम तो नहीं बदले ?
देखते ही देखते ये जमाना कितना बदल गया है
इंसान का भी ढंग बदला है, तुम तो नहीं बदले ?
किये अपने श्रृंगार को निहार लेता तुम ऐसा एक दर्पण हो।
उल्टा सही चेहरा अपना बांच लेता तुम ऐसा एक दर्पण हो।
ऐसा दर्पण तुम जिससे परावर्तित प्रकाश को पाता हूँ नित
जिसमें जिंदगी का बिम्ब उतार लेता तुम ऐसा एक दर्पण हो।
कुछ लोग हैं जो लाल कालीन पर जरूर चले हैं।
उनको भी देखो, कंकड़, काँटों में मजबूर चले हैं।
चलने का ढिंढोरा, उनका ही ज्यादा पीटा जाता,
पैरों में धूल लगी नहीं, कहते हैं बड़ी दूर चले हैं।
पत्थर पर फूल खिला दूं, तुम कहो तो सही।
तारे तोड़ जमीं पे ला दूँ, तुम कहो तो सही।
मरू जैसी भूमि में भी हरियाली छा जाये,
इतना मैं आंसू बहा दूँ, तुम कहो तो सही।
मेरी जेब पर तुम नजर रखो, कोई बात नहीं।
मेरे हर पल की खबर रखो, कोई बात नहीं।
तुम्हारे ही दिए गहरे घाव पर, अपने हाथ,
दुखाने के लिए भी अगर रखो, कोई बात नहीं।
तुम्हारे दिए उन सौगातों का क्या करूँ !
धुंधली दिखती मुलाकातों का क्या करूँ !
बड़ी कोशिशों के बाद भी सोने नहीं देतीं,
रातों में यादों की बारातों का क्या करूँ !
बंद कमरे में अकेले, पड़े रह जाना छोड़ दिया।
इश्क का रोग था वो, दवाई खाना छोड़ दिया।
भले आदमी की तरह हंसने मुस्कराने लगा हूँ,
रूप का नशा चढ़ा, मधुशाला जाना छोड़ दिया।
दिल में छुपाये थे, जज्बात कह दी।
इन तीन शब्दों में, बड़ी बात कह दी।
'प्यार है तुमसे' सुन तुम्हारे मुंह से,
लगा 'जिंदगी की ले लो खैरात' कह दी।
तुमने कर ली थोड़ी क्या बात!
चैन से कटने लगे दिन रात।
जिस दिन बढ़ कर थामोगे हाथ,
झरने लगेगा प्रेम का प्रपात।
ये चोट लगाया तुमने, मरहम लगाने, तुम्ही आना।
कदम को बहकाया तुमने, राह दिखाने, तुम्ही आना।
दिल के बिना जिन्दा हैं हम, इस दुनिया में अब भी,
दिल को चुराया तुमने, वापस लौटाने, तुम्ही आना।
सूरज तेरी किरणों ने कुछ खास दे दिया।
चले तुम्हारे कहने पर, प्रेम की डगर।
ढाई हम पर बड़ी कहर, प्रेम की डगर।
कराई कभी कभी जलवे का दीदार भी,
थी बड़ी मुश्किल मगर, प्रेम की डगर।
तुम्हारा शबाब तो, चाहे मिला नहीं।
छोड़ गये हमको, परन्तु गिला नहीं।
ढूंढो सरकारी नौकरी बोले थे तुम,
पाने में छोड़े, कोई छोर ढीला नहीं।
मेरी जेब पर तुम नजर रखो, कोई बात नहीं।
मेरे हर पल की खबर रखो, कोई बात नहीं।
तुम्हारे ही दिए गहरे घाव पर, अपने हाथ,
दुखाने के लिए भी अगर रखो, कोई बात नहीं।
तुम्हारे दिए उन सौगातों का क्या करूँ !
धुंधली दिखती मुलाकातों का क्या करूँ !
बड़ी कोशिशों के बाद भी सोने नहीं देतीं,
रातों में यादों की बारातों का क्या करूँ !
बंद कमरे में अकेले, पड़े रह जाना छोड़ दिया।
इश्क का रोग था वो, दवाई खाना छोड़ दिया।
भले आदमी की तरह हंसने मुस्कराने लगा हूँ,
रूप का नशा चढ़ा, मधुशाला जाना छोड़ दिया।
इन तीन शब्दों में, बड़ी बात कह दी।
'प्यार है तुमसे' सुन तुम्हारे मुंह से,
लगा 'जिंदगी की ले लो खैरात' कह दी।
तुमने कर ली थोड़ी क्या बात!
चैन से कटने लगे दिन रात।
जिस दिन बढ़ कर थामोगे हाथ,
झरने लगेगा प्रेम का प्रपात।
ये चोट लगाया तुमने, मरहम लगाने, तुम्ही आना।
कदम को बहकाया तुमने, राह दिखाने, तुम्ही आना।
दिल के बिना जिन्दा हैं हम, इस दुनिया में अब भी,
दिल को चुराया तुमने, वापस लौटाने, तुम्ही आना।
सूरज तूने रौशनी ये खास दे दिया।
तिमिर हटाकर के नया प्रकाश दे दिया।
कोहरे से छनी आती हुई धूप ने तेरी
उनके] लगा छूने का एहसास दे दिया।
सूरज तेरी किरणों ने कुछ खास दे दिया।
जिंदगी महकाकर के मधुमास दे दिया।
सोई हुई इन साँसों को जगाकर के एस डी,
मुझे जीने की फिर से नई एक आस दे दिया।
ढाई हम पर बड़ी कहर, प्रेम की डगर।
कराई कभी कभी जलवे का दीदार भी,
थी बड़ी मुश्किल मगर, प्रेम की डगर।
तुम्हारा शबाब तो, चाहे मिला नहीं।
छोड़ गये हमको, परन्तु गिला नहीं।
ढूंढो सरकारी नौकरी बोले थे तुम,
पाने में छोड़े, कोई छोर ढीला नहीं।
दिल में रहती रहीं, तेरी खामोशियाँ।
आया वक्त जब करने लगे महसूस,
शूल सी चुभती रहीं, तेरी खामोशियाँ।
प्यासी बेचैन धरती है, तू कितना बादल बेदर्दी है।
तरसा कर बरसात में भी, अति बड़ी तूने कर दी है।
इसका दिल तड़पता है, ना तेरा दिल समझता है,
कितनी उदास रहती है, निराशा दिल में भर दी है।
रखे गहरा समुन्दर है, मगर ताके वो बादल को।
प्यासी रह जाती फिर भी है, कैसे समझाएं पागल को।
कहती पी नहीं सकता, कोई भी तन का पानी खुद,
बहा ले कितना भी आंसू, धो न पाता है, काजल को।
कभी जब प्यास लगती है, वो बादल को ही तकती है।
पीती नहीं समुन्दर को कैसी दीवानी धरती है।
करे खुद से कोई कैसे, है मुहब्बत चीज ही ऐसी,
लकड़ी हो ना जलने को, कहाँ फिर आग सुलगती है।
आखिर एक दिन तो बरसेगा, मगर हासिल फिर क्या होगा!
जल ही जायेगा दिल इसका, तो तुझसे मिल कर क्या होगा!
चाहता दिल से अगर इसको, फ़ौरन प्यास बुझा आकर,
गयीं इश्क में साँसें, कहेंगे सब कातिल फिर क्या होगा!
कबाड़ा सा बनाया दिल किसी ने।
खिलौना जान कर खेल लिया खूब,
पांव तले फिर दबाया दिल किसी ने।
मेरे अरमानों को तूने, कच्चे धागे सा तोड़ा।
उड़ने को आसमान में, कटी पतंग सा छोड़ा।
जब जब भी रुख किये, उड़ते हुये तेरी ओर,
हर बार गर्दन पकड़, वापस ही फिर मोड़ा।
हमें चांदी सोने की भूख नहीं।
दौलतें संजोने की भूख नहीं।
तेरे पहलू में थोड़ी छाँव मिले,
बादशाह होने की भूख नहीं।
तुमसे मेरे हमदम, जबसे नैन मिला है।
मुहब्बत के साये में थोड़ा चैन मिला है।
बेचैनियों में कितने थे! बयां क्या करें,
सुकून से कटने वाला दिन रैन मिला है।
रोजाना वो देते रहे, दर्द का प्याला।
ख़ुशी से पकड़ लेते रहे, दर्द का प्याला।
पी लिया था मीरा ने, जहर का जैसे,
चाय की तरह पीते रहे, दर्द का प्याला।
हम दोनों में, मुहब्बत का जज्बा जरूर था।
अपनी अपनी ताकत पर, दोनों को गुरुर था।
चल न सके दूर तक हम, रास्ते पर एक,
उन्हें दौलत का, हमें मुहब्बत का सुरूर था।
जिंदगी महकी तो हम समझे, तुम आये हो।
मुहब्बत का अलबेला, कोई फूल खिलाये हो।
वीरान पड़ा था, एक अरसे से दिल का चमन,
बदरंगियों के आलम में तुम रंग जमाये हो।
तुम्हारी चलायी तेज हवाएं सह सह कर।
बामुश्किल काटा हमने जिंदगी का सफर।
कहाँ रह गए शाख पर, हरे भरे पत्ते वो,
ठूंठ हो चले, अब तो अँधियों से क्या डर!
जुल्फ तो हम भी रख लें, पर वो बात कहाँ!
कमर में लचक भी भर लें, पर वो बात कहाँ!
तुम तो ले के आये हो अदा भी जन्नत से,
हम चाहे कुछ भी कर लें, पर वो बात कहाँ!
मेरे दिल में उड़ने को, कोई बटेरनी निकली।
लगी चोंच मारने, जैसे कठफोरनी निकली।
अब तो वह गुर्रा उठती है, हर बात पर मेरी,
ससुर ने गाय बताई थी, वो शेरनी निकली।
ऐसी गलती नहीं किया करो।
कि फटेहाल ही छोड़ दिया करो।
प्यार के लिवास पे खोंच लगे,
प्यार की सुई से सी लिया करो।
मुहब्बत के जुर्म का मुजरिम हूँ तेरा।
तभी तो तेरे घर का मारा था फेरा।
कबूल है तेरा देना उम्र कैद मुझको,
करेगी जिंदगी अब तेरे दर पे बसेरा।
इश्क के दुश्मनों की लाग का क्या करें।
दाग से तो निबट ले आग का क्या करें।
चाहे थे सुकून से रह लेगें तेरे पहलू में,
जिंदगी के भागमभाग का क्या करें।
कश्ती तो खेना आता था, आ गया भंवर तो क्या करते!
सपने अभी तो बाकी थे, हो गया सहर तो क्या करते!
छोड़ रखा था जिंदगी को, हमने तो भरोसे पर तुम्हारे,
जीने की तमन्ना थी अभी, दे दिया जहर तो क्या करते!
कैसे कहूं किसी बगिया का बासिन्दा हूँ।
पाता हूँ दीदार तेरा, तभी तो मैं जिन्दा हूँ।
कितनी सिमट के रह गयी है, दुनिया मेरी,
तेरी मुहब्बत के पिंजरे का कैद परिंदा हूँ।
कर्ज को रोकने से कर्ज बढ़ता है।
दर्द को रोकने से दर्द बढ़ता है।
घाव पर मरहम लगाना जरूरी,
मर्ज को रोकने से मर्ज बढ़ता है।
शुक्र है तुम्हारा दिल पत्थर है, चोट खाकर मजबूत होंगे हम।
मारने लगोगे बार बार अगर तो, मरहम रखे अकूत होंगे हम।
खाकर पत्थरों की मार भी, छोड़ेंगे नहीं, करना इश्क तुमसे,
इश्क की राह में अगर मर भी गए, मुहब्बत के भूत होंगे हम।
शुक्र है तुम्हारा दिल पत्थर है, चोट खाकर मजबूत होंगे हम।
मारने लगोगे बार बार अगर तो, मरहम रखे अकूत होंगे हम।
खाकर पत्थरों की मार भी, छोड़ेंगे नहीं, करना इश्क तुमसे,
इश्क की राह में अगर मर भी गए, मुहब्बत के भूत होंगे हम।
खेत की मेड़ पर छमछम !
सुन कर हैरत में थे हम।
लिये जा रहे थे कलेवा,
आगे वाले खेत में सनम।
तुम्हारी बातों में जो जहर था।
हम पर ढा रहा, वो कहर था।
मर ही तो नहीं पा रहे थे बस,
दम घोंटने का असर, गहर था।
रौशनी के लिये, तुमने मेरा घर फूंका।
और नहीं तो घास फूस भी ऊपर झोंका।
कुछ लमहों में हो जायेगा, स्वाहा यह,
ताप लो आंच भी, न मिलेगा फिर मौका।
हालात के चलते, जवानी को स्यापे में की।
तुमने भी हर बात, खुद के मुनाफे में की।
कहते हो बूढ़ा हुआ, इश्क के काबिल नहीं,
हमने तो इश्क की शुरुआत ही बुढ़ापे में की।
भांप लिया था मैंने भी, शातिर न था।
सच है कि तेरा दिल कातिल न था।
तेरे दिल को बनाया आईना, तो देखा,
मेरा ही दिल तेरे इश्क के काबिल न था।
दुनिया में हर कोई, एक दिल के लिये तरसता है।
कौन है इस जहान में, खुद ही खुद पर मरता है।
अपने आप से, कोई मिलने लग जाय तो समझना,
वह किसी आदमी से नहीं, खुदा से प्यार करता है।
उम्र बढ़ने पर, लोग आ जाते नसीहत के लिये।
'बुढ़ापे में इश्क फरमाना है, फजीहत के लिये।'
ऐसा भी नहीं कि बूढ़ों से कोई प्यार नहीं करता,
प्यार करने वाले बहुत हैं, मगर वसीहत के लिये।
पंख हाथ आने से पहले, तितली छुड़ा ले गयी।
हमने खुशबुओं को बटोरा, हवा उड़ा ले गयी।
किसी को देने के लिये, जुटाया बड़ी मुश्किल,
वो भी नन्हां सा दिल, एक चोरनी चुरा ले गयी।
गायी थी जो कोयल रानी,
और तोता मैना की जुबानी,
सुना है तुमने मधुमास में,
वो थी हमारी प्रेम कहानी।
अभी तक ढो रहे दिलवर, पड़े पांवों के छाले।
तेरे दर के काटते चक्कर, पड़े पांवों के छाले।
लगाओगे, भला कब मरहम, तुम मेरे हमदम,
कहीं दिल में भी ना उतर, पड़ें पांवों के छाले।
तुझसे मिला न था, मेरा, दिल काबू में था।
जब तक इश्क ने न घेरा, दिल काबू में था।
शिकायत भी करूँ तो क्या करूँ मैं तुझसे
कौन सा कि बहका तेरा, दिल काबू में था।
होते ही बरसात, उछल पड़ी नदी।
बाँध कर सामान, चल पड़ी नदी।
उमड़ा पिया समुन्दर का प्यार ,
डूबने को उसमें, मचल पड़ी नदी।
ऐसा भी नहीं कि बूढ़ों से कोई प्यार नहीं करता,
प्यार करने वाले बहुत हैं, मगर वसीहत के लिये।
पंख हाथ आने से पहले, तितली छुड़ा ले गयी।
हमने खुशबुओं को बटोरा, हवा उड़ा ले गयी।
किसी को देने के लिये, जुटाया बड़ी मुश्किल,
वो भी नन्हां सा दिल, एक चोरनी चुरा ले गयी।
गायी थी जो कोयल रानी,
और तोता मैना की जुबानी,
सुना है तुमने मधुमास में,
वो थी हमारी प्रेम कहानी।
अभी तक ढो रहे दिलवर, पड़े पांवों के छाले।
तेरे दर के काटते चक्कर, पड़े पांवों के छाले।
लगाओगे, भला कब मरहम, तुम मेरे हमदम,
कहीं दिल में भी ना उतर, पड़ें पांवों के छाले।
तुझसे मिला न था, मेरा, दिल काबू में था।
जब तक इश्क ने न घेरा, दिल काबू में था।
शिकायत भी करूँ तो क्या करूँ मैं तुझसे
कौन सा कि बहका तेरा, दिल काबू में था।
होते ही बरसात, उछल पड़ी नदी।
बाँध कर सामान, चल पड़ी नदी।
उमड़ा पिया समुन्दर का प्यार ,
डूबने को उसमें, मचल पड़ी नदी।
यादों का मंजर जब जब आता।
लगता, कोई द्वार खटखटाता।
जब भी बढ़ कर के खोलता मैं,
हर बार डोलती हवा ही पाता।
तुम्हारी नजर ने कमाल कर दिया।
वीरान था चमन गुलजार कर दिया।
खिल गए फूल रंगीनियों को लिये,
महक बिखेर खुशबूदार कर दिया।
छोड़ गए जबसे, दिल बड़ा बोझिल था।
क्या जानो! जीना कितना मुश्किल था।
समझ लिया, जैसे कटी पतंग हो कोई,
लूटने को सारा जमाना मुश्तकिल था।
मुझे, मेरे हालात पर रहने दो।
अंधेरों के बिसात पर रहने दो।
तुम्हारे उजाले, कहीं चौंधिया न दें,
पुरानी, उन्हीं बात पर रहने दो।
अमीर तो वो, जिसकी जरूरत सबसे कम।
हमें दरकार होती, तुम्हारे दीदार की हरदम।
तुम्हारे बिन, रह पाना बहुत ही मुश्किल है,
सोचो, कितने गरीब हैं, इस दुनिया में हम।
यौवन के सरूर में हर एक हूर दिखती है।
ढोल सुहानी, बजती जब दूर, लगती है।
परछाईं नहीं, दिल की सुंदरता को देखो,
तस्वीर में नागिन भी बड़ी खूब लगती है।
तेरी गलियों में भटकता रहा।
तेरे इश्क में हवा के जैसे बहा।
फिर दोष क्यों दूँ, लोगों को मैं,
तभी तो मुझको आवारा कहा।
सच्चा दिल, सबके लिये खैर रखता है।
प्रेम नहीं पाता, जो दिल में बैर रखता है।
ज्यादा दूर तक कत्तई नहीं जा पाता !
बेशक झूठ भी अपना कोई पैर रखता है।
शाम को तुम निकले, निकल पड़े सारे।
उनको भी लगे होगे तुम बहुत ही प्यारे।
मदमाती शाम में खो बैठे थे होश वो,
शायद, तुमको ही चाँद, समझे थे तारे।
प्यार के लिये पास होना, जरूरी कहाँ था।
तुमसे मुलाकात होना, जरूरी कहाँ था।
तुम तो रहते ही थे, हर पल दिल में हमारे,
तुम्हारे संग रास होना, जरूरी कहाँ था।
दिल का मेरे करार हो तुम।
मन, उपजे विचार हो तुम।
दिल, दिमाग पर छाये तुम्हीं,
तभी तो मेरा प्यार हो तुम।
जबसे मुहब्बत की सुध आयी है।
तुम्हारी ही सूरत सामने आयी है।
सिकुड़ गयी मेरी जिंदगी कितनी,
मेरी दुनिया तुम्हीं में समायी है।
जुल्फ झटक देते हो, बादल घिर जाते हैं।
तुम हंस भर देते हो, मोती झर जाते हैं।
अदाओं की मार से, घायल कर देते तुम,
छिछोरे तो क्या, बड़े शूरमा डर जाते है।
हमारी आपस की छोटी सी खटपट थी।
दिल की ही हरकत, कोई नटखट थी।
रूठ कर तुमसे, दूर भी कहाँ जाते हम,
वो तो जिंदगी की बस एक करवट थी।
नन्हां सा दिल, मगर कैसे अंदर बहता है।
सागर से बड़ा, प्यार का समंदर बहता है।
ज्वार-भाटा और तूफान भी आता मगर,
एक बून्द भी न बाहर निकलकर बहता है।
मुहब्बत के लिए आंसू पीना सीखा।
मुहब्बत ठुकराना कभी ना सीखा।
मरता होगा कोई किसी की खातिर,
मुहब्बत के लिए हमने जीना सीखा।
प्यार में किस्मत का खेल देखा है।
कइयों का असंतुलित मेल देखा है।
मुहब्बत में कोशिश तो सभी करते,
मगर कोई पास, कोई फेल देखा है।
मेरा क्या बूता था, तुझे पाता मैं।
तेरा हुस्न ही, देखता रह जाता मैं।
ऊपरवाले की मेहरबानी न होती,
बना कर के दुल्हन, कैसे लाता मैं।
हम उन्हें अच्छा, वो हमें अच्छा कहते रहे।
एक दूसरे की हम दोनों प्रसंशा करते रहे।
अच्छाई क्या थी, न उन्हें पता, न हमें पता,
मगर ऐसे ही एक दूसरे के पास बढ़ते रहे।
तुझे फूल की पंखुड़ी कहूं कि शबनम कहूं!
या मुहब्बत की बारिश का झम झम कहूं!
होती न तू, ये दिल गया होता, बैठ कबका,
दिल को धड़काने का, क्यों न, दमखम कहूं।
तोड़ कर चले, सोचा फिर जोड़ लेंगे।
बिछोह के कारवां को फिर मोड़ लेंगे।
उन्हें क्या पता, टूटा दिल जुड़ता नहीं,
दोनों की किस्मत, साथ ही फोड़ लेंगे।
दिल में हैं तेरी बातें वो मीठी मीठी।
तेरी बातों की यादें वो मीठी मीठी।
रहती है तमन्ना, दिल की हरदम,
होती रहें मुलाकातें वो मीठी मीठी।
इश्क के नाम ने तो दिल को बड़ा खुश किया।
पर, कभी उसने, कभी हालात ने मायूस किया।
हमने जब शब्दों की ताकत को आजमाया,
इश्क की गहराई को शब्दों से महसूस किया।
तुम्हारे मुस्कराने को हम, इश्क समझे।
तुम्हारे आंख मिलाने को हम, इश्क समझे।
खुद को दिखाने को सुन्दर, सज संवर कर,
तुम्हारे पास आने को हम, इश्क समझे।
तुम हो दिल के बाजीगर।
मैं हूँ शब्दों का सौदागर।
तुम दिल मेरे नाम कर दो,
दूँ मैं उसको शब्दों से भर।
बोतल से निकली और गिलास में आ गयी।
होठों से लगकर वो अपना ढंग दिखा गयी।
ढूंढा है इंसान ने शराब भी क्या चीज ऐसी,
उसी के दिमाग पर छाकर, होश उड़ा गयी।
सड़ कर के चीज ख़राब होती है।
हमेशा ही नहीं, यूँ जनाब होती है।
देखा है हमने, ऐसा भी होते हुए,
चीज सड़ती है तो शराब होती है।
शबाब पिलाने के लिए साकी कहाँ होता है।
कोई पैमाना, और कड़वा भी कहाँ होता है।
ये तो घूंट है ऐसा, नज़रों से पीया जाता है,
पीने के बाद होश फिर, बाकी कहाँ होता है।
मजा तो दोनों में है, कर देतीं मुश्किल पर।
चलातीं जिंदगी भी, दोनों ही कातिल पर।
मारती हैं दोनों ही, अपने अनोखे ढंग से,
शराब दिमाग पर छाकर, शबाब दिल पर।
जाने में, मयखाने में।
जेब ये खाली हो गयी,
होश को बस गंवाने में।
तेरी यादों का दर्द तो होता है, मगर मीठा मीठा।
तेरी बातों का अर्थ तो होता है, मगर मीठा मीठा।
मुहब्बत की राह का तू, जबसे बना है हमसफ़र,
चलना कष्टप्रद तो होता है, मगर मीठा मीठा।
कितना खोटा हमारा ये नसीब था।
जब जब भी आता कोई करीब था।
सोचते, कटेगी अब ऐश से जिंदगी,
मगर अक्सर पाते, वो गरीब था।
दिल तो उसके लिए बेक़रार होता है।
टूट जाता, कड़का जब यार होता है।
पेट की आफत, दिल पर भारी होती,
भूखे पेट भी किसी से प्यार होता है !
मुहब्बत में इतनी नादानियाँ कर लीं।
सरेआम अपनी वो कहानियां कर लीं।
जिधर निकलते, उंगलियां उठ जातीं,
खुद के लिए खड़ी परेशानियां कर लीं।
तुम पेड़ से खड़े थे।
हम बेल से चढ़े थे।
उल्फत की राह में,
तेरी टेक से बढ़े थे।
हमने प्यार का पेड़ लगाया।
तुमने आकाश बेल चढ़ाया।
हमको जलाकर क्या मिला,
खुद को भी तुमने सुखाया!
बहके थे कदम, तुमने सम्हाला।
गुमराह थे हम, तुमने सम्हाला।
हुयी जा रही थी, बंजर जिंदगी,
मुहब्बत के दम, तुमने सम्हाला।
भौरा फूल पर मड़राता है।
रस चूस कर उड़ जाता है।
प्यार तो परवाने से सीखो,
लौ के लिए जल जाता है।
देख के लग जाती है लगन।
तुमसे प्यार की हमारे मन।
दूर क्षितिज में झुक कर के,
धरा से मिलता जब गगन।
किन्हीं जलवों में भटके थे हम।
तुम्हारा रूप था, अटके थे हम।
अब भी पड़े हैं, घाव के निशान,
चोट खाये, तुम से सट के थे हम।
पास पास हैं, दिलों को मिलने दो।
ये तो दिल की बात है, बहलने दो।
दोनों का मुकद्दर था कि पास आये,
मिल ही गए हो, फूल भी खिलने दो।
उम्र की सोपान चढ़ता गया।
कर्मों की रेखा पढ़ता गया।
ज्यों ज्यों उम्र घटती गयी,
जिंदगी से प्यार बढ़ता गया।
मैं प्यासा पथिक, तुम गहरी नदी हो।
भूखा हूँ मैं, तुम वृक्ष, फल से लदी हो।
काटना है पल पल तुम्हारी छाँव में
मेरे भाग्य में क्योंकि तुम्हीं बदी हो।
सिर पर न झाम ले
जरा अक्ल से काम ले
मुहब्बत की दरिया है
पार करना तो हाथ थाम ले
चैन की नींद कहाँ सोये होंगे
रात को तकिया भिगोये होंगे
हमसे दूर, चले तो गए जरूर
पर वो भी बहुत ही रोये होंगे
ढूंढता हूँ मेरा यार, कोई तारा ही बना होगा
छोड़ गया था संसार, कोई तारा ही बना होगा
देखने लग जाता आसमान में, होते ही शाम
सितारों में सुमार, कोई तारा ही बना होगा
प्यार किया, चोरी से मुलाकात करता है !
शादी की बात आती तो बाप बाप करता है
लोभी कहूं, बुझदिल कहूं, या मतलबी उसे
कहता दिल दिया, दहेज़ की बात करता है !
सज के चली
इश्क की गली
ख़ुशी में देख
दुनिया जली
डाल के डाका
दिल में झाँका
देखा तो भीतर
वही था बांका
वो अजनवी थे
पर महजबीं थे
साथ जन्नत सा
आसमाँ जमीं थे
अबकी सावन
लगा मनभावन
पकड़ लिया कोई
मेरा भी दामन
बारिश पहली
लेकर के चली
सरि भर पानी
पिया की गली
रेशमी जुल्फें
भा गयीं हमें
भोला ये दिल
अटका उनमें
माना, प्यार के बिना, अधूरी है जिंदगी
प्यार से मगर ज्यादा, जरूरी है जिंदगी
प्यार को ही बस पाने, संभालने के लिए
दीवाने कई, बर्बाद किये, पूरी हैं जिंदगी
नन्हां सा होता है, प्यार भरा दिल।
सपने संजोता है, प्यार भरा दिल।
खा जाता है ये, फूलों से भी चोट,
रात दिन रोता है, प्यार भरा दिल।
कोई छेड़ जाता है दिल नाजुक को।
कोई छोड़ जाता है दिल नाजुक को।
दुखाना होता है, बड़ा आसान इसे,
कोई तोड़ जाता है दिल नाजुक को।
सुर्ख अंगारों की दहक,
हजारों फूलों की महक,
जब समायी हो तुममें,
दिल क्यों न जाये बहक।
तूने तो झुकाई,
इतनी बड़ी खुदाई,
हम भी क्यों न दें,
तेरे आगे दुहाई।
लेकर नूर,
तू मगरूर।
हम तो हुए,
नशे में चूर।
गली से गली,
ये बात चली,
तेरे प्यार में,
गयी मैं छली।
कोई लगा गया।
इश्क जगा गया।
ढूंढता रात दिन,
दिल ठगा गया।
रूप में उलझाए।
दिल में समाये।
जीना मुश्किल,
मर भी न पाये।
चढ़ी क्या जवानी।
तू तो हुई दीवानी।
इश्क में खतरे बड़े,
करना ना नादानी।
तेरा ये मुस्कराना,
कर देता मस्ताना।
पा जाता मानो दिल,
प्यार का नजराना।
जता के हक़ पद्म पर,
भ्रम में रहता भ्रमर।
उसे अपना समझता,
कैद हो जाता मगर।
लाद दिए हो तुम दर्द इतना।
मुश्किल बहुत हो गया सहना।
तसल्ली मगर, वजन से दब कर,
दर्द को होगा खुद ही पिसना।
चढ़ी क्या जवानी।
तू तो हुई दीवानी।
इश्क में खतरे बड़े,
करना ना नादानी।
तेरा ये मुस्कराना,
कर देता मस्ताना।
पा जाता मानो दिल,
प्यार का नजराना।
जता के हक़ पद्म पर,
भ्रम में रहता भ्रमर।
उसे अपना समझता,
कैद हो जाता मगर।
लाद दिए हो तुम दर्द इतना।
मुश्किल बहुत हो गया सहना।
तसल्ली मगर, वजन से दब कर,
दर्द को होगा खुद ही पिसना।
उनके के लिए, अपना दिल दुखाते कैसे!
टूटना मंजूर था, झुक कर जी पाते कैसे!
तने रहे दोनों ही अपनी अपनी जगह,
उनसे रिश्ता निभाते तो निभाते कैसे !
रूठे हुए को मनाना बड़ी बात है।
साथ लेकर चल पाना बड़ी बात है।
दूसरे का दर्द भी ढोना होता कभी,
रिश्तों को निभाना बड़ी बात है।
शंका की डोर, रिश्तों को भगा देती है।
लोभ की डोर, नियत डगमगा देती है।
नेक नियती ही लेकर जाती सही राह,
विश्वास की डोर, डर को भगा देती है।
छोटा ओढ़ना हो तो सोने वाला टिकुर जाता है।
पका फल गिर जाता, जब समय पूर जाता है।
कितना भी ऊँचा उड़ने वाला पक्षी हो चाहे,
जब घोसले में आता तो पंख बटुर जाता है।
इस दिल के कुंएं में, दर्द का पानी भरा है।
बाहर निकालें कैसे, मुंह भी तो संकरा है।
तुमने भी मुंह मोड़ा पीने से पानी इसका,
आखिर इसमें, तुम्हारा भी तो बखरा है।
बरसात से भी हालत नहीं सुधारा है।
घेरा है आखिर, काला ही तो बदरा है।
आता भी तो कौन ऐसे पनघट पर,
लम्बे वक्त से सन्नाटा सा पसरा है।
अकेले रहकर, बरसात बहुत रोई थी।
सुबह, शाम दिन रात बहुत रोई थी।
मुरझाई पड़ी रही पूरे ही मौसम वह,
बहार भी देख के हालात बहुत रोई थी।
समझे थे, तू ही दिल का हीरा है।
दिया पर सन्नाटे का जखीरा है।
अकेले रहकर भी हम हारे न थे,
देख ले हमने, वीरानों को चीरा है।
दिया तुमने तो क्या! पिया तो मैंने था ।
जहर का स्वाद कैसा, लिया तो मैंने था ।
शिकायत करें तो किस बात की तुमसे,
काम भी कुछ ऐसा, किया तो मैंने था ।
आखिर एक दिन तो बरसेगा, मगर हासिल फिर क्या होगा?
जल ही जायेगा दिल इसका, तो तुझसे मिल कर क्या होगा?
चाहता दिल से तू धरती को, फ़ौरन प्यास बुझा आकर,
कहेंगे कातिल तुझे बादल, छिन गयीं साँसें फिर क्या होगा?
तुमने जो खुशियां दीं, खुश होकर उड़ाता गया।
कभी जो गम दिया तो, बर्फ सा गलाता गया।
न खुशियों से फूला बहुत, न ग़मों से दबा बहुत,
हालात को समझ, यूँ जिंदगी को चलाता गया।
सिखाने वाले प्यार का पहाड़ा भी तुम्हीं हो।
पीटने वाले नगर में नगाड़ा भी तुम्हीं हो।
ले तो लिया था, पर सम्हाला न गया तुमसे,
करने वाले, इस दिल का कबाड़ा भी तुम्हीं हो।
जान देने को बोला, सरासर झूठ था।
बुलवाने वाला भी तुम्हारा ही रूप था।
तुम्हें पटाने का और नुस्खा न मिला,
जान दे देता! क्या इतना बेवकूफ था।
मैंने तो हर सख्श से नाता तोड़ दिया।
जिंदगी, तेरी गली की ओर मोड़ दिया।
तेरे प्यार का नशा चढ़ गया इस कदर,
अब तो मयखाना भी जाना छोड़ दिया।
तुम्हारे स्वागत में, डोलता पवन होगा।
चहकती चिड़ियाँ, महकता चमन होगा।
तुम आओगे जब, हम होंगे ही समर्पित,
झुककर ये गगन, कर रहा नमन होगा।
प्यास बुझाने का इसका तू ही तो सहारा है ।
कबसे ये प्यासी धरती, तू फिरता आवारा है।
आखिर आ ही गया इस पर तरस तुझको,
फिर भी तू मेघ! मुख पर बस छींटा भऱ मारा है !
जुल्फों को संवार, तुम मेरे घर आना।
तनिक लूंगा मैं निहार, तुम मेरे घर आना।
उपरवाले ने उतारी है, छवि जो तुममें,
लूंगा दिल में उतार, तुम मेरे घर आना।
चकवा, रात की नींद न्यौछार होने से नहीं डरता।
भौरा, कमल में गिरफ्तार होने से नहीं डरता।
इश्क का जूनून लिए, पतंगा आस पास झूमता,
जलती लौ का इफ्तखार होने से नहीं डरता।
जिसे पढ़ने का रोज जी चाहे, किताब है तू।
महक हरदम बिखेरे, वो फूल गुलाब है तू।
दिन रात सोते जागते हर लमहा जिसे,
दिल बसा के रखना चाहे, वो ख्वाब है तू।
तनिक लूंगा मैं निहार, तुम मेरे घर आना।
उपरवाले ने उतारी है, छवि जो तुममें,
लूंगा दिल में उतार, तुम मेरे घर आना।
चकवा, रात की नींद न्यौछार होने से नहीं डरता।
भौरा, कमल में गिरफ्तार होने से नहीं डरता।
इश्क का जूनून लिए, पतंगा आस पास झूमता,
जलती लौ का इफ्तखार होने से नहीं डरता।
जिसे पढ़ने का रोज जी चाहे, किताब है तू।
महक हरदम बिखेरे, वो फूल गुलाब है तू।
दिन रात सोते जागते हर लमहा जिसे,
दिल बसा के रखना चाहे, वो ख्वाब है तू।
दिल बनाया क्या चीज, प्यार में रोना आया।
गाया दर्द भरे ही गीत, प्यार में रोना आया।
झुक गए प्यार की दुनिया में, बड़े वीर, योद्धा,
नृप ने झुकाया शीश, प्यार में रोना आया।
धुआँ बनके, यादें उठती रहीं।
जा के बादलों में मिलती रहीं।
उठकर आसमां तक ऊँची वो,
बर्फ बन के सिर पर गिरती रहीं।
गाया दर्द भरे ही गीत, प्यार में रोना आया।
झुक गए प्यार की दुनिया में, बड़े वीर, योद्धा,
नृप ने झुकाया शीश, प्यार में रोना आया।
धुआँ बनके, यादें उठती रहीं।
जा के बादलों में मिलती रहीं।
उठकर आसमां तक ऊँची वो,
बर्फ बन के सिर पर गिरती रहीं।
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