Thursday, 1 March 2018

Muhabbat par naaj ghazal

मुहब्बत पर नाज था
अनोखा बड़ा उसका, शोख भरा अंदाज था ।
जिसके मुहब्बत पर, हमको बहुत नाज था ।

रहने चले थे हम, मुहब्बत की दुनिया में,
इस दिल में रहता वो, इश्क का सरताज था ।

मुहब्बत के सागर में, खे कर के ले जाते, 
जिसे हम भरोसे से, वही एक जहाज था ।

छोड़ कर गया जाने, मुंह मोड़ कर किस डगर, 
आज बेखबर, कभी, हमसफ़र, हमराज था ।
 
धर गया सिर पर वो, यादों का बोझ भारी, 
चमकता कभी जहाँ में, उल्फत का ताज था ।

बजते रहते कभी, मुहब्बत के सातों सुर, 
जाने पर रोता रहा, दिल का हर साज था ।

खेलते लहरों से मिल, जा के कभी साथ देव, 
तनहा देख अब तो, किनारा भी नाराज था ।

एस० डी० तिवारी

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