Wednesday, 31 May 2017

Haiku june 17 // golakar / sawan



घटा ने घेरा
उदंड सूरज का
गरूर घटा

मुंह की खाया
दिखाने के लायक
रहा न मुंह

कृष्ण मुरारी
मम संकट भारी
हरो हे कृष्ण !

पेट ख़राब
बैठी है छुट्टी पर
थाम के पेट

मेरा ये घर
रहते चूहे बिल्ली
फिर भी मेरा

चूहा ढूंढते
घर के सब लोग
मरा है चूहा

बिल्ली से डर
चूहा बक्से के नीचे
ढूंढती बिल्ली

कांटा की खोज
निकालने के लिए
पांव का कांटा

नशा से शीघ्र 
बेहोश कर देता  
धन का नशा 

गाड़ी पे नाव
कभी तो कभी होती
नाव पे गाड़ी

गांव से दूर
याद आया बहुत
मुझको गांव

गये जबसे
तुम दूर हमसे
शुकुन गये

पढ़ के गीता
सन्मार्ग नहीं सीखा
रहे निपढ़

होली क्या खेली
मलवायी गुलाल
संग में हो ली

दिल से खेला
गया छोड़ अकेला
तोड़ के दिल

छंटा जो मेघ
चांदनी ने बिखेरी 
नभ में छटा 

घटा जो घेरी 
सूरज का प्रकाश
दिन में घटा

टूटा खिलौना
नन्हें मुन्ने का मन 
देख के टूटा

हार पहन 
फूलों का गए हम  
दिल को हार 

पालक साग 
विटामिन के साथ 
स्वास्थ पालक 

बना जो चना 
किताब पढ़ कर  
खाये ना बना 

घना था साया 
उस पर दुखों का 
सताया घना

पर के बिना 
परिंदे का जीवन 
टिकठी पर 

भाषा अनेक 
हँसते रोते सभी 
एक ही भाषा 

सम्मान दोगे 
मिलेगा दूसरों से 
स्वतः सम्मान 

कल मिलेंगे 
बोल गये परसों 
आये ना कल 

मलिन मन 
रखोगे तो जीवन 
होगा मलिन 

आज का काम 
होता वही कर्मठ 
करे जो आज 

जल जीवन  
प्रलय भी लेकर  
आता है जल 

जल के बिन 
जग ये एक दिन 
जायेगा जल 

वट का गोदा 
जम के खड़ा होता 
विशाल वट

सुन्दर व्यक्ति 
अंधकार में भी जो 
लगे सुन्दर 

बंशी बजाई
गोपियाँ दौड़ी आईं 
सुन के बंशी 

दुनियां वालो 
तुम्हारी ना जागीर 
यह दुनिया 

आग जला के 
नित बुझाती पत्नी 
पेट की आग 

वन में फूला 
बसंत में पलास 
दहका वन 

मन की बात 
किससे कह डालूं 
चिंता में मन 

बुरा करोगे 
किसी और का, होगा   
तुम्हारा बुरा

बैर करके 
बदले में उसके 
मिलता बैर  

पशु ना बनो
तुम उनके साथ 
वे हैं ही पशु 

धर अधर
सुना दो मीठी तान 
मुरलीधर 

अधर चले 
रजनी गहराते 
छूने अधर 

दिल अटका
उन जुल्फों में छोड़ा
अपना दिल

पूरा खा गया
सामने जो परोसा
पड़ा ना पूरा

लौ लग जाती
पतंगों को लौ देख
जलाती भी लौ

रिश्ते निभाना 
हो रहा है मुश्किल 
टूटते रिश्ते 

पता नहीं है 
कहीं बरसात का 
नदी लापता 

मेरा जीवन 
है कितनों का ऋण 
फिर भी मेरा 

शाम ले आई 
नभ में अरुणाई 
शर्मायी शाम 

जग के सूर्य 
किरणें बिखराता
रौशन जग 


खोल मीडिया 
कैमरे का ढक्कन 
आंखे दे खोल 

प्यार में मग्न
लगा के ऊँची पेंग  
झूलता प्यार 
  
एक से जले 
दीपावली की शाम 
दीये अनेक


दर्द 
चाँद 
पिया 
दिया 
धरा 
हवा 
मारा 
कर 
चैन 






दिल से खेली
सुगंध बिखरा के
फूल चमेली

हरसिंगार
रखे भेषज गुण
असरदार

लगा हो द्वार
लगाता चार चाँद
हरसिंगार

वन के बन
रंगीन आभूषण
सुहाता  टेसू


लगाता आग  
बसंत में वन में  
फूल पलास 

दहका दिल
वन का गया जब
पलास खिल

दोना पत्तल
ढाक के तीन पात

शव पे पड़ा
आंसुओं से नहाता
गेंदे का फूल

रखते व्रत
भक्त जन खाकर
कदली फल

एक ही बार
हाथी के मुंह पूरी
केले की घार

बेर

रखा गरूर
पहन के झुमके
पेड़ खजूर

नारियल का पानी

नदी से हो के
गर्मियों में बहती
गरम हवा

पहुंची सरि
नाचे झूम के सभी
समुद्री जीव

धुंध में घिरा
नभ चिंता में पड़ा
दीया उसका

निकले सारे
चाँद की बारात में
नभ में तारे

सितारे जड़ी  
आकाश की चुनरी  
मन मोह ली   

करने आते 
तारे टिमटिमाते 
बच्चों से बातें   

अटल खड़ा 
युगों से ध्रुव तारा  
नभ में अड़ा     

करते बात    
सप्तऋषि मंडल 
रहते साथ

कैसे बहती 
बून्द न टपकती 
आकाश गंगा 

आस में बैठा 
भोजन पर आंख  
गड़ाये कुत्ता 

कह के प्रथा   
कर देते हैं लोग    
पशु की हत्या 

कर्मयोगी तू 
छोड़ फल की चिंता 
कर्म किये जा 

कैसी ये रीत 
कुर्बानी देता कोई 
बलि किसी की 


भूमि पे गिरी 
भेजा जाँच के लिए 
रक्त की बून्द 



पुरानी मूर्ति 
बनी चींटी का घर 
नाक में मिट्टी  

गाड़ी चल दी 
हवा में लहराता 
नन्हां सा हाथ 

चांदी में खोया 
वो चांद से न मिला 
रहा ये गिला 

लम्बे समय  
नहीं छुप सकते 
सूर्य व सत्य 

छंट जाते हैं 
हवा जब चलती 
काले बादल 

रंग बटुर  
बना दिए नभ में  
इंद्रधनुष

ख़ुदा से खुद
खोदा जिसने पाया
खुद में ख़ुदा  

खुद पे डंडा 
लग जाता है जब 
हो जाता ख़ुदा

हिला रखा था 
हिल गया देख के 
अपनी मौत 

जबसे थामे 
पा गए कई हाथ 
तुम्हारा हाथ 

शिशु का स्पर्श :: सुख का अनुभव 

कट जाती हैं 
होने पर तन्हाई 
आँखों में रात 

यह सुगंध 
गुजरे वो तो नहीं 
यहाँ से कहीं 

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मैंने जो खाया   
कोई और लगाया 
वृक्ष का फल 

नहीं दिखता   
गर्म पानी में बिम्ब  
क्रोध में सच 

यहाँ से वहां 
नित टारती रेत 
मरू में हवा 

द्वार का पल्ला
चला हवा का झोंका
खुला धड़ाम 

चलते ही लू 
हवा रेत का खेल 
मरू में शुरू  


गर्मी में चले
मरम्मत के लिए
सर्दी के वस्त्र

आंधी में गिरा
छप्पर की खातिर
कटता पेड़ 


जल के बिना
नदी की तलहटी
भुनी मछली

महत्वहीन
मोती मनुष्य नदी
पानी विहीन

चाहिए जल
प्यासे व निर्लज्ज को
चुल्लू ही भर

जल का मोल
कितना अनमोल
प्यासा ही जाने

अँधेरा आता
मुझसे परछाईं
छीन ले जाता

जब भी देखी 
बनारसी जलेबी 
पाव खरीदी


देश दुनिया
कर देती तबाह
युद्ध कि राह

शांति का पाठ
पढ़ाता कबूतर
खोलो दिमाग

शांति की सोच
जगाया था कपोत
टला ना युद्ध

शांति दूत को
अनसुनी करता
इंसां मरता

देता सन्देश
ये कबूतर श्वेत
मिटाओ द्धेष

आया लेकर
सन्देश कबूतर
लड़ ना नर

उन्हें दे के आ
कबूतर जा जा जा
प्यार की पाती

तुमसे कहीं
आतंकवादी ! अरे !
ये पंछी भले
बिना जुबान रखे
देते शांति सन्देश

ख़ुदा ने भेजा
शांति का दूत बना
यह कपोत
आतंकवादी ! तेरे
जेहन बस मौत

सिवा पाप के
दहशत फैला के
कुछ न हाथ

पहना जूता
झांक रहा अंगूठा
किसी का दिया 



दीद चाँद का
बधाई हो बधाई
ईद है आई

रोजा से छूटे
पकवानों पे टूटे
ईद की पार्टी

नए कपडे
पहन बच्चे चले
ईद मिलन

बारिश आई
जी भर के नहाई
आज बसुधा

सका न बढ़
रोके रहे बादल
सूर्य का रथ  

बनी दर्पण   
दिखाती समाज का 
मीडिया बिम्ब 

धर अधर
सुना दो मीठी तान 
मुरलीधर 
अधर चले 
रजनी गहराते 
छूने अधर 

महत्वहीन 
मोती मनुष्य नदी 
जल विहीन  

आते ही गर्मी 
सूरज की बेशर्मी 
जलाने लगा 

जल में नहा 
साफ़ होता है तन 
देख के मन 

होते ही शाम 
जाने को जी बेकल 
मदिरालय 

जला डालती  
बड़ी रुई की ढेरी
छोटी सी लुत्ती


देश दुनिया   
कर देती तबाह 
युद्ध कि राह 

शांति का पाठ
पढ़ाता कबूतर  
खोलो दिमाग  

शांति की सोच 
जगाया था कपोत
टला ना युद्ध  

शांति दूत को  
अनसुनी करता 
इंसां मरता 

देता सन्देश 
ये कबूतर श्वेत  
मिटाओ द्धेष

आया लेकर  
सन्देश कबूतर
लड़ ना नर 

उन्हें दे के आ 
कबूतर जा जा जा 
प्यार की पाती


आया समय
सगे भी संपर्क में
फेस बुक पे

कितना बड़ा
देता भोजन पानी
प्रभु तू दानी

प्रार्थना पत्र
इस बार भी रद्द
बेरोजगार

स्वस्थ रहना
सर्वोत्तम उपाय
योग साधना

निरोग बना
करके ये शरीर
योग साधना

निखर उठे
बारिशों के पानी में
नहा के पौधे

किताबें लाई
किसी और की मांग
करी पढ़ाई

बर्तन मांज
अपना पेट काट
बच्चे ली पाल

जाल में पड़ा
जोह रहा मच्छर  
भूखा मकड़ा 


मारीच बने
आतंकी आगे बढ़े
वध का भय

हुए हिंसक
मानवता को मार
गो के रक्षक ? 

बरसे मेघ 
दिल हुआ दीवाना 
हरषे देख 

देखे बदरी 
चले घर से ले के 
साथ छतरी 

दिल ने चाहा  
बारिश में भीगना  
ताना न छाता

भिगोया मन 
बरस के बादल 
हम कायल 

ऊँची ली पेंग 
अब भी न छू पायी
दूर थे मेघ 

बारिश ख़त्म 
पत्ते सम्हाले हुए 
जल की बूंदें 

छुपा छुपाई 
छुपते ही बुलाई   
मुझको ताई

पाक है एक  
शरारतें करता 
शैतान बच्चा 

चाहता तुझे  
रोज मेरी खातून 
जैसे दातून  

कर लो प्रण
बचाना पर्यावरण 
भविष्य हेतु 
तुमने है जो पाया 
कोई और बचाया 


तांगे पे बैठ 
जाते पहाड़ गंज 
क्या था जमाना

दो मील तक 
स्कूल पैदल जाना 
क्या था जमाना  

***********


पी गयी सब
बारिश वो पहली
प्यासी धरती

चिंता में बीती
मग्गू की बरसात
मड़ई चुई

घेरी बदरी
सखि हो रहा मन
सुनूं कजरी

वर्षा बहार
मन गावे मल्हार
देख फुहार

सुन सखी री!
रोप डालेंगे धान
गा के कजरी


मन उदास
सूखा रहा आकाश
आये न घन


सावन आया
भू पे धाक जमाया
बरसा घन

वर्षा बहार
मन गावे मल्हार
देख फुहार

हुआ अँधेरा
छोड़ दी परछाईं
साथ ही मेरा

रामदुलारी/ प्राण सी प्यारी
चली गयी मायके
चैन की बंशी

*********8


स्वेद बहाया
रुधिर को सुखाया
रोटी के लिए

आ गये दूर
अपनों से बिछुड़
रोटी के लिए

करना माफ़
प्रभु! कमाया पाप
रोटी के लिए

जाने कितने
हम पापड़ बेले
रोटी के लिए

गरमी ठण्ड
बरसात भी झेले
रोटी के लिए

जग में आ के
खेले गजब खेल
रोटी के लिए

*********

औरों की छीनी
भरने को अपनी
पापी ये पेट

छीन ईमान
बनाया बेईमान
पापी ये पेट

नचा के रखा
कहाँ नहीं भटका
पापी ये पेट


बड़ा सताया
लीला जो भी कमाया
पापी ये पेट

दूर ले आया
अपनों को छुड़ाया
पापी ये पेट  

***********

बादलों ने दी
सूर्य को जमानत
कैद से छूटा

कल के दिन
कर के रखा मेघ
रवि को कैद

झांकता रहा
खिड़कियों से सूर्य
मेघ की जेल


बादलों ने दी
सूर्य को जमानत
कैद से छूटा

सावन फेंका
गगरी भर भर
भीगा अम्बर

आयी फुहार
रिमझिम करती
जगाई प्यार

बरसा घन
सावन की फुहार
हरषा मन

सूखा सावन
बरसा नहीं घन
तरसा मन

सावन आया
भू पे धाक जमाया
बरसा घन

वर्षा बहार
मन गावे मल्हार
देख फुहार


किला कालिंदी
क़ुतुब की बुलंदी
दिल्ली की शान 

शिवशंकर
दरश अभिलाषी
कशी के वासी  

************

लाता सावन
भर भर गागर
नहाती धरा

धरती धरा
सावन में नहा के
वसन हरा

वसुंधरा का
खिल जाता यौवन
नहा सावन

नहा धोकर
इतरा कर भूमि
ख़ुशी से झूमी

पृथ्वी को देख
सावन हुआ मुग्ध
सुन्दर मुख

************
इन्द्र ने मारी
भर के पिचकारी
भीगी धरती

जीवन ऐसा
धनवानों का पैसा
एक ही रट

जीवन सिंधु
उतारने की पार
गुरु है नाव

करे खनन
उपकरण बन
गुरु गुणों का



पेड़ पे बैठा
निरीक्षण करता
बाढ़ का पंछी

बरसात आई :: भूसे पर तिरपाल बिछायी

आई बौछार
खुली पड़ी खिड़की
भिगोई खाट

तानी छतरी
लटकी पड़ी नीचे
भीगी चुनरी

रोया बादल
काम करते भीगा
माँ का आंचल

खुश किसान
लहलहाता देख
खेत में धान

बादल घने
तप रहे धान का
आश्रय बने

हुआ मगन
बनायेगा कृषक
धान से धन

हमारी सोच :: विचारों में प्रतिबिंबित

ज्योति की ओर
देखो तो परछाईं
पीछे की ओर


दुनिया बोले
सावन का महीना
जै बम भोले

छाती पे खेलें
बूढ़ों की नाती पोते
हर्ष से फूले 


जीवन साथी
बुढ़ापे में साथ तो
जीवन खास

रामदुलारी
चली गयी मायके
चैन की बंशी

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