Monday, 27 June 2016

Unake ane se

उनके आने से जगमग हो जाता है,
चांदनी बिखरी पूर्णमासी सा लगता है।
हो जाता कुछ ऐसे पावन और स्वच्छ
दिल मेरा, काबा, काशी सा लगता है।
गाता होकर मगन, लगा उनमें लगन
उनके ध्यान में सन्यासी सा लगता है।
उनकी की फुसफुस, मेरे कानों में घुस
एक एक शब्द, मृदुभाषी सा लगता है।
कोई सा भी पल, उनका होना ओझल
इस दिल को बड़ा उदासी सा लगता है।
जाता है खिल, उनके यहाँ होने से दिल
बसेंगे यहीं, स्थाई वासी सा लगता है।


- एस० डी० तिवारी

Sunday, 12 June 2016

Preet ka itar


प्रीत का इतर जाने, किसने पठाया।
पीर का डंक उसका हरदम सताया।
मिला जो पीर मुझको, मेरे यार से,
रख लिया दिल में, उसे सम्भाल के
खिल्ली उड़ाके दर्द, दिल को दुखाया।
प्रीत का इतर ...
पीर को मैंने फिर, गीतों में ढाल दिया
गीतों को जिंदगी में थोड़ा सा डाल दिया
रोती हुई जिंदगी को रोज रोज गाया।
प्रीत का इतर ...
चंपा चमेली मैंने, बागों से चुन लिया
कलेजे के साथ ही परागों को भून लिया
पीर में मिला के भस्म इतर बनाया।
प्रीत का इतर ...
आंसू का रंग कैसा, दर्द में जो ढरका
यार को दिखाने लिये, शीशी में रखा
मटके भर भर आँखों ने ढरकाया।
प्रीत का इतर ...





प्रीत दा का इतर जाणे, कौण  पठाया। 
पीर दा डंक ओदा, हरदम सताया। 
मिला जे पीड़ मेनू , मेरे यार से, 
रख लिता दिल विच, मैं सम्भाल के 
खिल्ली उड़ाके दर्द, दिल नु दुखाया।  
प्रीत दा इतर ... 
पीरन नु फिर असि, गीतां विच ढाल्या
गीतां  नु जिंदगी विच थोड़ा सा डाल्या  
 रोंदी हुई जिंदगी नु रोज रोज गाया।  
प्रीत दा इतर ...
चंपा चमेली असां, बागां ते चुन लिता   
कालजे दे नाल वे परागां नु भुन दिता  
पीर विच पा के भसम, इतर बनाया 
प्रीत दा इतर ... 
आंसू दा रंग कैसा, पीड़ घोल ढरका जे 
यार नु दिखाने लइ, शीशी विच रखा वे   
मटके भर भर, अक्खां ने ढरकाया
प्रीत दा इतर ...

एस० डी० तिवारी 

Wednesday, 8 June 2016

Dil ka dard


तारों के निकलने से रात जगमगा जाती है।
बहार जब आती है खिजां को भगा जाती है।
आ जाता है बसंत जब, बड़ा मुश्किल चुप रहना,
पत्तों के झुरमुटों में गीत, कोयल गा जाती है।
आती जवानी की ऋतु, जिंदगी में एक बार,
धधका कर प्यार दिल में, आग लगा जाती है।
लिखतीं बहारें हवा में, तेरी मेरी कहानियां,
प्यार के दुश्मनों से बयार सुगबुगा जाती है।
रातों को सोने ना देती, यादों की बारात आकर,
दिल में मीठा सा कोई दर्द जगा जाती हैं।
ठंडी बयार सदा दिल बेचैन को जुड़ाती है,
हवा के तेज होने से, बहार डगमगा जाती है।
रात दिन डंसने लगतीं, उनकी यादें आकर,
पुरानी यादों की चुभन, चैन भगा जाती है।



बहार चली आती, चमन, महकने लग जाता है। 
उल्फत की लगन में दिल, बहकने लग जाता है।
फूल बिखराते हैंमुहब्बत की भीनी महक, 
हर जवां दिल जोश लिएमचलने लग जाता है।
बसंत जाता है, कोयल ना चुप रह पाती है,  
पत्तों के झुरमुटों मेंसुर निकलने लग जाता है।
आती जवानी की ऋतुएक बार जिंदगी में,
जिगर में प्यार का धुंआउठने लग जाता है।
लिखता हवा में कोईकहानियां मुहब्बत की,

डोलता पवन ही आकरकहने लग जाता है।
यादें पुरानी आकरटटोलतीं हैं भीतर तक,
मुद्दत से सोया दर्दफिर जगने लग जाता है 
होता एहसास उसेलिये होता याद कोई,
सोते समय नश्तर कोईचुभने लग जाता है 



जी जीना चाहता है
बस तेरे लिए ही ऐ हसीना चाहता है।
प्यार की खातिर, जी जीना चाहता है।
रहता है खुश पाकर मुस्कराहटों को तेरी 
सोना नहीं चांदी, ना नगीना चाहता है।
गाता रहे सरगम, तेरे प्यार का हरदम
करना मुहब्बत का ताक-धीना चाहता है।
हो भी गए टुकड़े, दिल के तो गम नहीं
जोड़ कर फिर से, उन्हें सीना चाहता है।
बह न जाएँ यूँ ही, कहीं बेकार में  आंसू
अश्कों को रोप कर के पीना चाहता है।
खाकर ठोकरें एसडी, सहता दर्द कितना
मगर इश्क करना, दिल कमीना चाहता है।

एस० डी० तिवारी