इश्क की डगर पे ...
तुम्हारे प्यार में भूले, सारे ज़माने को।
सब कुछ लुटा दिए, बस तुम्हें पाने को।
देख पंकज की पंखुड़ी सी ऑंखें तुम्हारी,
हो गयीं ऑंखें आतुर, उनमें समाने को।
पी लिया नूर इतना, उन मस्त आँखों का,
मतवाला बना दिया, तुमने दीवाने को।
हर वक्त लगे ढूंढने, वो जगह महफूस,
जाये मिल मौका, कुछ सुनने सुनाने को।
गूंजती रही तुम्हारी, कानों में फुसफुस,
चाहता ना था दिल, कत्तई भुलाने को।
बातों की मिश्री वो, घुल जाती इस कदर,
चाहता हरदम, दिल उसे गुनगुनाने को।
रोतीं जब कभी, तुम्हारी आँखें कहीं भी,
झुक जातीं थीं आँखें ये, आंसूं बहाने को।
बसी है अब दिल में, एक ही तमन्ना यही,
तुम्हारे लिये बस, सब कुछ लुटाने को।
उनके प्यार में भूल चले, सारे ज़माने को।
सारा कुछ लुटा दिया, बस उन्हें पाने को।
देखा जो पद्म की, पंखुड़ी सी ऑंखें उनकी
हो गयीं ऑंखें आतुर, उनमें समाने को।
पी लिया नूर जब, उन मस्त आँखों का
मतवाला बना दिया, अपने दीवाने को।
फिर तो लगे ढूंढने, जगह व वक्त ऐसा
मिल जाये मौका, कुछ सुनने सुनाने को।
गूंजती रहती फुसफुस, उनकी कानों में
चाहता ना था दिल, कत्तई भुलाने को।
बातों की मिश्री वो, घुल जाती इस कदर
दिल चाहता हरदम, उसे गुनगुनाने को।
रोतीं जब कभी थीं, कहीं भी आँखें उनकी
झुक जातीं थीं ऑंखें ये, आंसूं बहाने को।
फिर तो बस गयी, दिल में तमन्ना यही
उनके लिये ही बस, सब कुछ लुटाने को।
- एस० डी० तिवारी
तुम्हारे प्यार में भूले, सारे ज़माने को।
सब कुछ लुटा दिए, बस तुम्हें पाने को।
देख पंकज की पंखुड़ी सी ऑंखें तुम्हारी,
हो गयीं ऑंखें आतुर, उनमें समाने को।
मतवाला बना दिया, तुमने दीवाने को।
हर वक्त लगे ढूंढने, वो जगह महफूस,
जाये मिल मौका, कुछ सुनने सुनाने को।
गूंजती रही तुम्हारी, कानों में फुसफुस,
चाहता ना था दिल, कत्तई भुलाने को।
बातों की मिश्री वो, घुल जाती इस कदर,
चाहता हरदम, दिल उसे गुनगुनाने को।
रोतीं जब कभी, तुम्हारी आँखें कहीं भी,
झुक जातीं थीं आँखें ये, आंसूं बहाने को।
बसी है अब दिल में, एक ही तमन्ना यही,
तुम्हारे लिये बस, सब कुछ लुटाने को।
उनके प्यार में भूल चले, सारे ज़माने को।
सारा कुछ लुटा दिया, बस उन्हें पाने को।
देखा जो पद्म की, पंखुड़ी सी ऑंखें उनकी
हो गयीं ऑंखें आतुर, उनमें समाने को।
मतवाला बना दिया, अपने दीवाने को।
फिर तो लगे ढूंढने, जगह व वक्त ऐसा
मिल जाये मौका, कुछ सुनने सुनाने को।
गूंजती रहती फुसफुस, उनकी कानों में
चाहता ना था दिल, कत्तई भुलाने को।
बातों की मिश्री वो, घुल जाती इस कदर
दिल चाहता हरदम, उसे गुनगुनाने को।
रोतीं जब कभी थीं, कहीं भी आँखें उनकी
झुक जातीं थीं ऑंखें ये, आंसूं बहाने को।
फिर तो बस गयी, दिल में तमन्ना यही
उनके लिये ही बस, सब कुछ लुटाने को।
- एस० डी० तिवारी
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