अधूरा ~ मुक्तक ~ 670
मुक्तक ~ सृजन - 146
समारोह की अध्यक्षता - सुविख्यात कवयित्री कुसुम शुक्ला जी
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति:
🍁 आँखन से भंग पिलावै , रँग डारै खड़ी अटारी 🍁
मापनी : " 22 22 222 , 22 22 222 "
आवत देख गली में टोली तान लई पिचकारी ।
फागुन में मस्त खिली काया मोहक छवि अति न्यारी ।
मद में डूबे देख सभी मौसम यौवन का संगम,
आँखन से भंग पिलावै, डारै रँग खड़ी अटारी ।
अधूरा मुक्तक समारोह 630
मुक्तक सृजन 136
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति-
"कतरो पर आतंकवाद के कागज की तलवारों से"
समारोह अध्यक्षता आदरणीय इंद्रबहादुर श्रीवास्तव जी
आहत बहुत हो चुका मुल्क है, उनके छद्म वारों से।
सहना नहीं किसी तौर अब, दुष्टों को नम्र विचारों से।
जागो हे कविवर! वीर तुम, उठा हाथों में शस्त्र आज,
कतरो पर आतंकवाद के, कागज की तलवारों से।
एस० डी० तिवारी
अधूरा-मुक्तक समारोह - 623
अधूरी ग़ज़ल - " 127
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त मतला
वंशवाद की ढाल सियासत ।
कैसे हो खुशहाल सियासत ।
मापनी : 22 22 22 22
काफ़िया : " आल "
रदीफ़ : " सियासत "
वंशवाद की ढाल सियासत ।
कैसे हो खुशहाल सियासत ।
कहती अपने को जन प्रतिनिधि
राजा भांति निहाल सियासत ।
अपने घर भर भर कर निसदिन
होती मालामाल सियासत ।
माल हड़पने राष्ट्र का सब
चमचे रखती पाल सियासत ।
खुद से फुरसत हो तो करती
जनहित का भी ख्याल सियासत ।
भर्त्सना का असर न दिखता
रखती मोटी खाल सियासत ।
कोई कुछ भी कहता, अपनी
रांध गलाती दाल सियासत ।
सत्ता में लाने वंशज को
बुन लेती है जाल सियासत ।
एस० डी० तिवारी
अधूरा ~ मुक्तक ~ 622 मुक्तक ~ सृजन - 134
अध्यक्षता सुविख्यात कवयित्री सुमन जैन जी
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति:
जिसकी कृति बेटी जैसी हो वो ईश्वर कैसा होगा
मापनी : 22 22 22 22 , 22 22 22 2 "
सृष्टि जिसने रच डाली, इतनी सुन्दर, कैसा होगा ।
है तो बहुत विचित्र अलौकिक, न पता पर कैसा होगा ।
निर्मल, निश्छल, मनहर, प्यारी, सबके दिल में बस जाती,
जिसकी कृति बेटी जैसी हो वो ईश्वर कैसा होगा ।
- एस० डी० तिवारी
अधूरा ~ मुक्तक
समारोह - 615
***** अधूरी गजल - 125 *****
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त मतला -
सदन में मौन ही रहते वतन के जो सवालों पर।
नजर है गिद्ध के जैसी सदा उनकी घोटालों पर।
काफिया - आलों
रदीफ़ - पर
छाने लग जाती है लाली, आते ही गालों पर ।
सदन में मौन ही रहते, वतन के वो सवालों पर।
वादा कर के जाते हैं, बदल जाते मगर फ़ौरन
लुटाएंगे तन, मन, धन; सदा भारत के लालों पर ।
चाहते भर के रख दें घर, लूट, अकूत धन से वे
नजर गिद्ध सी होती, सदा उनकी घोटालों पर।
मजहब कि बातों पर, भिड़ाना खेल है उनका
चमकती है सियासत खूब, हो रहे बवालों पर ।
घुसा होता है जेहन में, ऐशो आराम का मसला
समय बर्बाद करते क्यों! खामखाह जंजालों पर ।
जानते हैं कि जनता का, होता देश का धन है
खर्चते जी भर सजाने में, अपनी ही थालों पर ।
लिखा जाता है उनका नाम, काले अक्षरों में भी
असर होता नहीं है पर, मोटी उनकी खालों पर ।
- एस० डी० तिवारी
अधूरा ~ मुक्तक ~ 565 🌱 मुक्तक ~ सृजन - 120🌱
आज मंगलवार 29 - 08 - 2017
अध्यक्षता : सुविख्यात कवयित्री व प्रसिद्ध कहानीकार शारदा मदरा जी
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति:
🌽राम रहीम के' नामों से छ्लते कुछ संत समाज यहाँ🌽
मापनी : 🌿22 22 22 22 22 22 22 2 कुल मात्रभार 30 🌿
राम रहीम के' नामों से, छ्लते कुछ संत समाज यहाँ।
लेकर के आड़ धरम की वे, चाहें सिर पर ताज यहाँ ।
भोली जनता भी चंगुल में, आ जाती आसानी से
नेताओं से मिल जाते, फिर, चलता उनका राज यहाँ ।
लाभ उठा भोली जनता का, गुरु बन करते नाज यहाँ ।
राजनीति की दलाली का, होता काम है आज यहाँ ।
आश्रम बने व्यभिचारी अड्डे, शासन का प्रश्रय मिलता
होते सहज बनाने के पैसे, उलटे सीधे काज यहाँ ।
🌽"अधूरा-मुक्तक समारोह - 559 " ☘
🌻***अधूरी ग़ज़ल - " 112 "***🌻
*********************
हो गयीं कुर्बानियां गुमनाम देखो ।
पत्थरों के मुँह चिढ़ाते धाम देखो ।
***************************
मापनी : 2122 2122 2122
काफ़िया : " आम "
रदीफ़ : " देखो "
हो रहीं कुर्बानियां, गुमनाम देखो ।
भूली शहीदों को, ये आवाम देखो ।
दे दिये हँसते हुए, वे जान अपनी,
भारत माँ को करते, सलाम देखो ।
जी रहे महफूस होकर, देश में हम,
उन शहीदों का, हमें इनाम देखो ।
होती है राजनीति, अब शहादत पर,
कई चमका रहे, खुद का नाम देखो।
खेलते सैनिक वहां, खून की होली
यहाँ छलकते, रईसों के जाम देखो ।
नाम तक न अंकित, उनके पत्थरों पर
खुद के लिए कितने, तामझाम देखो ।
हो न पाएंगे हम, शहीदों से उऋण
कर दिया उन्होंने, ऐसा काम देखो ।
"अधूरा-मुक्तक समारोह - 554 "
अधूरी ग़ज़ल - 111
*********************
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त मतला
दुनियां में सरदार तिरंगा ।
अपनों पर है भार तिरंगा ।
*********************💝💟
दुनिया का श्रृंगार तिरंगा ।
अपनों पर है भार तिरंगा ।
प्राणों की बलि लेकर अनेक
हमको हुआ सुमार तिरंगा ।
राष्ट्र के वीर सपूतों से
पाता रहा निखार तिरंगा ।
डंडे में लगा झंडा ही नहीं
राष्ट्रीय एक विचार तिरंगा ।
हम नागरिकों के दम से ही
बना हुआ दमदार तिरंगा ।
ऐसे भी, इस राष्ट्र में बसते
कर रहे शर्मसार तिरंगा ।
देखेगा जो, बुरी नियत से
उतार देंगे, खुमार, तिरंगा !
तेरी छाँव, साँस हम लेते
तुझपे हैं, न्यौछार तिरंगा।
एस० डी० तिवारी
अधूरा मुक्तक-५३३ मुक्तक सृजन-112
अध्यक्ष- श्री प्रदीप शर्मा 'दीप' जी
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति-
'मुझे बदनाम मत करना जो तेरा खून हो जाये ।'
मापनी- 1222 1222 1222 1222
मेरी रचना -
अपनी हर सुबह, तेरे नाम की दातून हो जाये ।
अरमां जिंदगी की, तू मेरी खातून हो जाये ।
बनाया है मुहब्बत ने तेरी पागल सा मुझको
मुझे बदनाम मत करना जो तेरा खून हो जाये ।
अधूरा ~ मुक्तक ~ 525
मुक्तक ~ सृजन ~ 110
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति - " बहुत हो चुका अब न सहना हमें है "
समारोह अध्यक्षा - आदरणीया कवियत्री आशा सोनी सोनी जी
बड़े साफ़ तौर पे कहना हमें है
दहशत के खौफ में न रहना हमें है
रिक्त करेंगे गद्दारों से जमीं ये
बहुत हो चुका अब न सहना हमें है
अधूरा ~ मुक्तक ~ 521
मुक्तक ~ सृजन - 109
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति: 'जय जवान औ जय किसान का , नारा अब बेमानी है।'
मापनी ...22 22 22 22 , 22 22 22 2
अध्यक्ष -->बिख्यात कवि श्री सत्यवान 'सत्य'
बदल चुकी इस देश की अब तो, पूरी ही कहानी है।
लूट खसोट कमाता धन, महान वो हिंदुस्तानी हैं।
खून पसीना बहाने वाला, दोयम दर्जे का वासी
जय जवान औ जय किसान का, नारा अब बेमानी है।
एस० डी० तिवारी
"अधूरा ~ मुक्तक ~ 493 " मुक्तक ~ सृजन - 102
अध्यक्षा- कवयित्री डॉ. हेमलता सुमन जी
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति:
जाने कितने हैं जख्म छुपे , इस दिल की गहराई में
मापनी : 2222 2222 , 2222 222
जाने कितने, जख्म छुपे हैं, इस दिल की गहराई में।
गिनना मुश्किल, काटे लमहे, जो उनकी रुसवाई में।
अरमानों की, घुट गयीं सांसे, ख्वाबों की अंगनाई में।
खो गए नगमे, उल्फत के, दिल की बजी शहनाई में।
एस० डी० तिवारी
समारोह - 478
अधूरी गजल - 92
मतला -
जो कहता है तुमसे ये रब दोस्तों ।
करोगे बताओ ओ कब दोस्तों ।
मापनी : 122 122 122 12
काफ़िया : अब ।
रदीफ़ : दोस्तों ।
जो कहता है तुमसे ये रब दोस्तो।
करोगे बताओ वो ----कब दोस्तों।।
बीत जाएगी हरेक उमर की घडी
कर सकोगे तुम कैसे तब दोस्तों
उसके बातों का करते परवाह नहीं
खेल खेले हो जाते गजब दोस्तों
जमीं नीचे से जाती खिसकती है यूँ
तुम जिए जिए जा रहे बेढब दोस्तों
पहले सबका है तुमने जो देखा सुना
क्यों न लेते हो उनसे सबब दोस्तों
क्या सुनाओगे उसको तुम वाकया
खुदा करेगा तुम्हें जब तलब दोस्तों
- एस० डी० तिवारी
अधूरा-मुक्तक " समारोह - 454 "
*******अधूरी गजल - " 86 "*******
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त मतला
***********************
लिखा जो मुकद्दर में वो ही मिला है ।
मुझे जीस्त से अब न कोई गिला है ।
**********************
काफ़िया : इला ।
रदीफ़ : है ।
एक गजल
लिखा जो मुकद्दर में वो ही मिला है ।
किसी से मुझे अब न कोई गिला है ।
बढ़े थे कदम दर तक, घर के तुम्हारे
दुनिया से बाकी, हमें क्या सिला है ।
उठ कर बादलों तक, नीचे ही आतीं
बूंदों का नन्हीं, यही सिलसिला है ।
ढह ही जाता, आने पर क़यामत
कितना भी मजबूत, कोई किला है ।
बगिया में होती हैं, कलियाँ हजारों
किस्मत कहाँ हरेक फूल खिला है ।
रिस रहा लहू आहिस्ता आहिस्ता
हमलों से तुम्हारे, दिल ये छिला है ।
बन कर चले हम, दोस्त साथ उनके
मुसीबतों का चला, जो काफिला है ।
अधूरा मुक्तक-650
मुक्तक सृजन-141
समारोह अध्यक्ष- सम्मान्य सरोज सिंह जी एवं वीर पटेल जी को
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति-
काला धन बने बसन्ती रँग,सोने की चिड़िया भारत हो
मेरी रचना
दुनिया देखे, अनुपम छवि की इसकी बुलंद इमारत हो।
शांति, संस्कृति का पाठ पढ़ाता, प्रगति में महारत हो।
दबाये रखे हुए कुछ लोग, निकल कर लगे विकास में वो,
काला धन बने बसन्ती रँग,सोने की चिड़िया भारत हो।
अधूरा मुक्तक --४४१ मुक्तक सृजन -- 89
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति -
न तुम समझे, न हम समझे तड़पते रह गए दोनोँ।
अध्यक्षा - सुप्रसिद्ध कवयित्री आदरणीया दीपशिखा जी ,
दिल की बात दिल में लिये सहमते रह गये दोनों
अनजानी सी चिंगारी में सुलगते रह गये दोनों
दोनों ओर लगी थी आग और हम हवा ने दे पाये
न तुम समझे, न हम समझे तड़पते रह गए दोनोँ।
अधूरा मुक्तक समारोह -४३७
मुक्तक सृजन -८८
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति-चिलमन से कर इशारे बेताब कर रही है
समारोह अध्यक्ष आदरणीय राजेन्द्र चौहान जी
चिलमन से कर इशारे बेताब कर रही है
जलवे से अपने नीयत ख़राब कर रही है
किसी हाल न चाहते थे नशे में आ जाएँ,
उसकी अदा कि हवा को शराब कर रही है।
- एस० डी० तिवारी
अधूरा मुक्तक समारोह -429
मुक्तक सृजन -86
समारोह अध्यक्ष सम्मान्य डा.हेमलता सुमन जी
सम्मान्य वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति -
बिखर जाओ फिजाओं में चमन को आज महकाओ
मेरा मुक्तक -
जवां उम्र की बगिया में, खुद को यूँ ना बहकाओ
अपने कुछ कर गुजरने की, मन में आग दहकाओ
माली हो चमन के तुम, रंगीन फूलों से भर दो अब
बिखर जाओ फिजाओं में, चमन को आज महकाओ
मुक्तक ~ सृजन - 146
समारोह की अध्यक्षता - सुविख्यात कवयित्री कुसुम शुक्ला जी
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति:
🍁 आँखन से भंग पिलावै , रँग डारै खड़ी अटारी 🍁
मापनी : " 22 22 222 , 22 22 222 "
आवत देख गली में टोली तान लई पिचकारी ।
फागुन में मस्त खिली काया मोहक छवि अति न्यारी ।
मद में डूबे देख सभी मौसम यौवन का संगम,
आँखन से भंग पिलावै, डारै रँग खड़ी अटारी ।
अधूरा मुक्तक समारोह 630
मुक्तक सृजन 136
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति-
"कतरो पर आतंकवाद के कागज की तलवारों से"
समारोह अध्यक्षता आदरणीय इंद्रबहादुर श्रीवास्तव जी
आहत बहुत हो चुका मुल्क है, उनके छद्म वारों से।
सहना नहीं किसी तौर अब, दुष्टों को नम्र विचारों से।
जागो हे कविवर! वीर तुम, उठा हाथों में शस्त्र आज,
कतरो पर आतंकवाद के, कागज की तलवारों से।
एस० डी० तिवारी
अधूरा-मुक्तक समारोह - 623
अधूरी ग़ज़ल - " 127
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त मतला
वंशवाद की ढाल सियासत ।
कैसे हो खुशहाल सियासत ।
मापनी : 22 22 22 22
काफ़िया : " आल "
रदीफ़ : " सियासत "
वंशवाद की ढाल सियासत ।
कैसे हो खुशहाल सियासत ।
कहती अपने को जन प्रतिनिधि
राजा भांति निहाल सियासत ।
अपने घर भर भर कर निसदिन
होती मालामाल सियासत ।
माल हड़पने राष्ट्र का सब
चमचे रखती पाल सियासत ।
खुद से फुरसत हो तो करती
जनहित का भी ख्याल सियासत ।
भर्त्सना का असर न दिखता
रखती मोटी खाल सियासत ।
कोई कुछ भी कहता, अपनी
रांध गलाती दाल सियासत ।
सत्ता में लाने वंशज को
बुन लेती है जाल सियासत ।
एस० डी० तिवारी
अधूरा ~ मुक्तक ~ 622 मुक्तक ~ सृजन - 134
अध्यक्षता सुविख्यात कवयित्री सुमन जैन जी
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति:
जिसकी कृति बेटी जैसी हो वो ईश्वर कैसा होगा
मापनी : 22 22 22 22 , 22 22 22 2 "
सृष्टि जिसने रच डाली, इतनी सुन्दर, कैसा होगा ।
है तो बहुत विचित्र अलौकिक, न पता पर कैसा होगा ।
निर्मल, निश्छल, मनहर, प्यारी, सबके दिल में बस जाती,
जिसकी कृति बेटी जैसी हो वो ईश्वर कैसा होगा ।
- एस० डी० तिवारी
अधूरा ~ मुक्तक
समारोह - 615
***** अधूरी गजल - 125 *****
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त मतला -
सदन में मौन ही रहते वतन के जो सवालों पर।
नजर है गिद्ध के जैसी सदा उनकी घोटालों पर।
काफिया - आलों
रदीफ़ - पर
छाने लग जाती है लाली, आते ही गालों पर ।
सदन में मौन ही रहते, वतन के वो सवालों पर।
वादा कर के जाते हैं, बदल जाते मगर फ़ौरन
लुटाएंगे तन, मन, धन; सदा भारत के लालों पर ।
चाहते भर के रख दें घर, लूट, अकूत धन से वे
नजर गिद्ध सी होती, सदा उनकी घोटालों पर।
मजहब कि बातों पर, भिड़ाना खेल है उनका
चमकती है सियासत खूब, हो रहे बवालों पर ।
घुसा होता है जेहन में, ऐशो आराम का मसला
समय बर्बाद करते क्यों! खामखाह जंजालों पर ।
जानते हैं कि जनता का, होता देश का धन है
खर्चते जी भर सजाने में, अपनी ही थालों पर ।
लिखा जाता है उनका नाम, काले अक्षरों में भी
असर होता नहीं है पर, मोटी उनकी खालों पर ।
- एस० डी० तिवारी
अधूरा ~ मुक्तक ~ 565 🌱 मुक्तक ~ सृजन - 120🌱
आज मंगलवार 29 - 08 - 2017
अध्यक्षता : सुविख्यात कवयित्री व प्रसिद्ध कहानीकार शारदा मदरा जी
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति:
🌽राम रहीम के' नामों से छ्लते कुछ संत समाज यहाँ🌽
मापनी : 🌿22 22 22 22 22 22 22 2 कुल मात्रभार 30 🌿
राम रहीम के' नामों से, छ्लते कुछ संत समाज यहाँ।
लेकर के आड़ धरम की वे, चाहें सिर पर ताज यहाँ ।
भोली जनता भी चंगुल में, आ जाती आसानी से
नेताओं से मिल जाते, फिर, चलता उनका राज यहाँ ।
लाभ उठा भोली जनता का, गुरु बन करते नाज यहाँ ।
राजनीति की दलाली का, होता काम है आज यहाँ ।
आश्रम बने व्यभिचारी अड्डे, शासन का प्रश्रय मिलता
होते सहज बनाने के पैसे, उलटे सीधे काज यहाँ ।
🌽"अधूरा-मुक्तक समारोह - 559 " ☘
🌻***अधूरी ग़ज़ल - " 112 "***🌻
*********************
हो गयीं कुर्बानियां गुमनाम देखो ।
पत्थरों के मुँह चिढ़ाते धाम देखो ।
***************************
मापनी : 2122 2122 2122
काफ़िया : " आम "
रदीफ़ : " देखो "
हो रहीं कुर्बानियां, गुमनाम देखो ।
भूली शहीदों को, ये आवाम देखो ।
दे दिये हँसते हुए, वे जान अपनी,
भारत माँ को करते, सलाम देखो ।
जी रहे महफूस होकर, देश में हम,
उन शहीदों का, हमें इनाम देखो ।
होती है राजनीति, अब शहादत पर,
कई चमका रहे, खुद का नाम देखो।
खेलते सैनिक वहां, खून की होली
यहाँ छलकते, रईसों के जाम देखो ।
नाम तक न अंकित, उनके पत्थरों पर
खुद के लिए कितने, तामझाम देखो ।
हो न पाएंगे हम, शहीदों से उऋण
कर दिया उन्होंने, ऐसा काम देखो ।
"अधूरा-मुक्तक समारोह - 554 "
अधूरी ग़ज़ल - 111
*********************
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त मतला
दुनियां में सरदार तिरंगा ।
अपनों पर है भार तिरंगा ।
*********************💝💟
दुनिया का श्रृंगार तिरंगा ।
अपनों पर है भार तिरंगा ।
प्राणों की बलि लेकर अनेक
हमको हुआ सुमार तिरंगा ।
राष्ट्र के वीर सपूतों से
पाता रहा निखार तिरंगा ।
डंडे में लगा झंडा ही नहीं
राष्ट्रीय एक विचार तिरंगा ।
हम नागरिकों के दम से ही
बना हुआ दमदार तिरंगा ।
ऐसे भी, इस राष्ट्र में बसते
कर रहे शर्मसार तिरंगा ।
देखेगा जो, बुरी नियत से
उतार देंगे, खुमार, तिरंगा !
तेरी छाँव, साँस हम लेते
तुझपे हैं, न्यौछार तिरंगा।
लेते प्रण, झुकने न देंगे
तुझसे हमको, प्यार तिरंगा । एस० डी० तिवारी
अधूरा मुक्तक-५३३ मुक्तक सृजन-112
अध्यक्ष- श्री प्रदीप शर्मा 'दीप' जी
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति-
'मुझे बदनाम मत करना जो तेरा खून हो जाये ।'
मापनी- 1222 1222 1222 1222
मेरी रचना -
अपनी हर सुबह, तेरे नाम की दातून हो जाये ।
अरमां जिंदगी की, तू मेरी खातून हो जाये ।
बनाया है मुहब्बत ने तेरी पागल सा मुझको
मुझे बदनाम मत करना जो तेरा खून हो जाये ।
रहमत हो जाय तेरी, दिल को सुकून हो जाये ।
अधूरा ~ मुक्तक ~ 525
मुक्तक ~ सृजन ~ 110
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति - " बहुत हो चुका अब न सहना हमें है "
समारोह अध्यक्षा - आदरणीया कवियत्री आशा सोनी सोनी जी
बड़े साफ़ तौर पे कहना हमें है
दहशत के खौफ में न रहना हमें है
रिक्त करेंगे गद्दारों से जमीं ये
बहुत हो चुका अब न सहना हमें है
अधूरा ~ मुक्तक ~ 521
मुक्तक ~ सृजन - 109
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति: 'जय जवान औ जय किसान का , नारा अब बेमानी है।'
मापनी ...22 22 22 22 , 22 22 22 2
अध्यक्ष -->बिख्यात कवि श्री सत्यवान 'सत्य'
बदल चुकी इस देश की अब तो, पूरी ही कहानी है।
लूट खसोट कमाता धन, महान वो हिंदुस्तानी हैं।
खून पसीना बहाने वाला, दोयम दर्जे का वासी
जय जवान औ जय किसान का, नारा अब बेमानी है।
एस० डी० तिवारी
"अधूरा ~ मुक्तक ~ 493 " मुक्तक ~ सृजन - 102
अध्यक्षा- कवयित्री डॉ. हेमलता सुमन जी
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति:
जाने कितने हैं जख्म छुपे , इस दिल की गहराई में
मापनी : 2222 2222 , 2222 222
जाने कितने, जख्म छुपे हैं, इस दिल की गहराई में।
गिनना मुश्किल, काटे लमहे, जो उनकी रुसवाई में।
अरमानों की, घुट गयीं सांसे, ख्वाबों की अंगनाई में।
खो गए नगमे, उल्फत के, दिल की बजी शहनाई में।
एस० डी० तिवारी
समारोह - 478
अधूरी गजल - 92
मतला -
जो कहता है तुमसे ये रब दोस्तों ।
करोगे बताओ ओ कब दोस्तों ।
मापनी : 122 122 122 12
काफ़िया : अब ।
रदीफ़ : दोस्तों ।
जो कहता है तुमसे ये रब दोस्तो।
करोगे बताओ वो ----कब दोस्तों।।
बीत जाएगी हरेक उमर की घडी
कर सकोगे तुम कैसे तब दोस्तों
उसके बातों का करते परवाह नहीं
खेल खेले हो जाते गजब दोस्तों
जमीं नीचे से जाती खिसकती है यूँ
तुम जिए जिए जा रहे बेढब दोस्तों
पहले सबका है तुमने जो देखा सुना
क्यों न लेते हो उनसे सबब दोस्तों
क्या सुनाओगे उसको तुम वाकया
खुदा करेगा तुम्हें जब तलब दोस्तों
- एस० डी० तिवारी
अधूरा-मुक्तक " समारोह - 454 "
*******अधूरी गजल - " 86 "*******
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त मतला
***********************
लिखा जो मुकद्दर में वो ही मिला है ।
मुझे जीस्त से अब न कोई गिला है ।
**********************
काफ़िया : इला ।
रदीफ़ : है ।
एक गजल
लिखा जो मुकद्दर में वो ही मिला है ।
किसी से मुझे अब न कोई गिला है ।
बढ़े थे कदम दर तक, घर के तुम्हारे
दुनिया से बाकी, हमें क्या सिला है ।
उठ कर बादलों तक, नीचे ही आतीं
बूंदों का नन्हीं, यही सिलसिला है ।
ढह ही जाता, आने पर क़यामत
कितना भी मजबूत, कोई किला है ।
बगिया में होती हैं, कलियाँ हजारों
किस्मत कहाँ हरेक फूल खिला है ।
रिस रहा लहू आहिस्ता आहिस्ता
हमलों से तुम्हारे, दिल ये छिला है ।
बन कर चले हम, दोस्त साथ उनके
मुसीबतों का चला, जो काफिला है ।
अधूरा मुक्तक-650
मुक्तक सृजन-141
समारोह अध्यक्ष- सम्मान्य सरोज सिंह जी एवं वीर पटेल जी को
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति-
काला धन बने बसन्ती रँग,सोने की चिड़िया भारत हो
मेरी रचना
दुनिया देखे, अनुपम छवि की इसकी बुलंद इमारत हो।
शांति, संस्कृति का पाठ पढ़ाता, प्रगति में महारत हो।
दबाये रखे हुए कुछ लोग, निकल कर लगे विकास में वो,
काला धन बने बसन्ती रँग,सोने की चिड़िया भारत हो।
अधूरा मुक्तक --४४१ मुक्तक सृजन -- 89
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति -
न तुम समझे, न हम समझे तड़पते रह गए दोनोँ।
अध्यक्षा - सुप्रसिद्ध कवयित्री आदरणीया दीपशिखा जी ,
दिल की बात दिल में लिये सहमते रह गये दोनों
अनजानी सी चिंगारी में सुलगते रह गये दोनों
दोनों ओर लगी थी आग और हम हवा ने दे पाये
न तुम समझे, न हम समझे तड़पते रह गए दोनोँ।
अधूरा मुक्तक समारोह -४३७
मुक्तक सृजन -८८
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति-चिलमन से कर इशारे बेताब कर रही है
समारोह अध्यक्ष आदरणीय राजेन्द्र चौहान जी
चिलमन से कर इशारे बेताब कर रही है
जलवे से अपने नीयत ख़राब कर रही है
किसी हाल न चाहते थे नशे में आ जाएँ,
उसकी अदा कि हवा को शराब कर रही है।
- एस० डी० तिवारी
अधूरा मुक्तक समारोह -429
मुक्तक सृजन -86
समारोह अध्यक्ष सम्मान्य डा.हेमलता सुमन जी
सम्मान्य वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति -
बिखर जाओ फिजाओं में चमन को आज महकाओ
मेरा मुक्तक -
जवां उम्र की बगिया में, खुद को यूँ ना बहकाओ
अपने कुछ कर गुजरने की, मन में आग दहकाओ
माली हो चमन के तुम, रंगीन फूलों से भर दो अब
बिखर जाओ फिजाओं में, चमन को आज महकाओ
अधूरा मुक्तक --418 अधूरी ग़ज़ल --77
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त मतला
"प्यार के दरमियां फासले हो गए ।
दर्द के दिल में अब काफिले हो गए ।" जलजले मापनी : 212 212 212 212 "
काफ़िया : ले , रदीफ़ : हो गए ,
प्यार के दरमियां फासले हो गए ।
दर्द के दिल में अब काफिले हो गए ।
कातिलाना अदाएं कुछ ऐसी रहीं
देख कर घायल, अच्छे भले हो गए।
शोखियों से अपन वे मन को छले
करगुजारी से हम मनचले हो गए।
शुरू कर तो दिया पर निभाया नहीं
प्यार में रार के सिलसिले हो गए।
बेरुखी देख कर उनकी इस कदर
कर लें तकरार हम हौसले हो गए।
तीर बातों के उनके नस्तर चुभो
तरह काटों के जैसे गले हो गए।
बात बढ़ती गयी छेद मूंदा नहीं
दोनों को ही शिकवे गिले हो गए।
गलतफहमियों की आंधियां चल गयीं
अब रहेंगे युदा फैसले हो गए।
छा गयी उपर तन्हाईयों की घटा
जिंदगी के हर लमहे तले हो गए।
गुल उगे भी तो बस दुखड़ों के रहे
गम के गमले में दुखड़े फले हो गए।
एस० डी० तिवारी
"अधूरा-मुक्तक " समारोह - 380 "
*******अधूरी गजल - " 67 "*******
मतला
झरोखे दिल के सूने कर गये हो ।
सभी कहते खुदा के घर गये हो ।
मापनी : 1222 , 1222 , 122 "
काफ़िया : अर , रदीफ़ : गये हो ,
*******************
झरोखे दिल के सूने कर गये हो
जिंदगानी को सूनी कर गए हो।
सभी कहते खुदा के घर गये हो ।
तुम्हारी राह जो तकतीं हमेशा
अंखियन को अश्कों से भर गये हो।
अकेलापन सताता, यूँ बहुत है
गुमान मगर है, जिस डगर गये हो।
वतन की खातिर, जिये औ मर मिटे
अमर तुम नाम खुद का कर गये हो।
वतन के वास्ते धड़काये दिल
जिंदगानी न्यौछावर कर गये हो।
चढ़ा कर शीश भारत माँ की चरण
किये हिन्द का ऊँचा, सर गये हो।
झुकाकर के तुम दुश्मन का मस्तक
दुश्मन की छाती में छेद कर गये हो।
गर्व रखता बहुत, यह मुल्क तुम पर
तिरंगा ओढ़, जग तजकर गये हो।
लड़ लूंगी मैं तन्हाई से अकेली
तुम वतन के लिये लड़ तर गये हो।
- एस० डी० तिवारी
तुम्हे इतिहास में अमर होना है
आजादी लेकर कितने लोग बनेंगे
अपने लिए बादशाहत
महलों की ख्वाईशें
अवाम को तब रहना होगा अवाम सा
तो अब भी अवाम हैं क्या बुरा है
शत्रु तो बदला ले रहा
पचास साल से लड़ रहा है
कितनी जाने कुर्बान करवा दीं
तुम्हे यह सब करने को दुश्मन
पैसा भेजता
हम कंगाल हो रहे
एक गलती की अपने भाईयों को भागकर
अब कई गुना मर चुके हैं उनके
परदे के पीछे रहते दुबके
अधूरा ~ मुक्तक ~ 374 " 🌻 🌱मुक्तक ~ सृजन - 72
अध्यक्ष सुविख्यात कवि सत्यवान ' सत्य ' जी
प्रदत्त पंक्ति -
'जमीं रोयी गगन रोया, जो हरकत की पड़ोसी ने'
मेरी रचना -
हमारा घर जला जिससे, आग लगाई पडोसी ने।
छुप के खंजर पीठ में घोंपना आदत है धूर्त की
जब हमने गुल भेजा, गोली चलायी पडोसी ने।
- एस० डी० तिवारी
मापनी - 1222 1222 1222 1222
अधूरा मुक्तक - 319
मुक्तक सृजन -58
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति--
मुक्तक सृजन -58
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति--
'चले बदलाव की आँधी , ख़ुशी चँहुओर छायेगी'
अध्यक्ष - सुविख्यात कवि श्री रामनिवास तिवारी जी ।
मेरी रचना -
रखे सबके हित की सोच गरीबी भाग जाएगी।
निकल जाय धन गाड़ा, जिंदगी संवार जाएगी।
रगों में देश के दौड़े रुधिर बनकर मधुर हिंदी
चले बदलाव की आँधी, ख़ुशी चँहुओर छायेगी।
एस० डी० तिवारी
"अधूरा-मुक्तक " समारोह - 304 "
*******अधूरी गजल - " 49 "*******
मतला
" देखता हूँ चाँद को आगोश में जलते हुए "
" दे रहा सूरज है धोखा प्यार में छलते हुए "
मापनी : 212 2 , 2122 , 2122 , 212 "
काफ़िया : अलते ,
रदीफ़ : हुए ,
"देखता हूँ चाँद को आगोश में जलते हुए
हर किसी ने दिया धोखा प्यार में छलते हुए। "
चल पड़े थे उन्हीं राहों पर हम भी भटकते
मिल गये वो किसी मोड़ पर यूँ ही चलते हुये।
हम लगाये रहे केवल उन्हीं की ओर टकी
बामुश्किल मिलाये आँख, वो ऑंखें मलते हुये।
हो गया मुहब्बत का फिर तो सिलसिला शुरू
देखा आहिस्ता आहिस्ता प्यार को पलते हुये।
तोड़ दिया उन्होंने गिराकर शीशे की तरह
देखते रहे टुकड़ों को बर्फ सा गलते हुये।
दुश्मन बनीं बहारें भी, उनसे देखा न गया
बढ़ गया प्यार का दरख़्त तो उसे फलते हुये।
बीत जाती फिर कहीं साँझ अकेले ही बैठे
निहारते आसमां में सूरज को ढलते हुये।
"अधूरा ~ मुक्तक ~ 303 "
मुक्तक ~ सृजन - 54 "
अध्यक्ष सुविख्यात कबि श्यामल सिंहा जी .
प्रदत्त पंक्ति --
" पायल की रुनझुन से मुझे जगाती है "
मापनी : " 2222 , 2212 , 1222 "
आप मेरी इस पंक्ति को प्रथम
मुझसे भी पहले सुबह, जाग जाती है
पायल की रुनझुन से, मुझे जगाती है
अपने बिस्तर से दौड़कर चली आती
पोती मेरे बिस्तर पर पड़ जाती है
एस० डी० तिवारी
"अधूरा ~ मुक्तक ~ 299 "
अध्यक्ष सुप्रसिद्ध कवि आदरणीय प्रबोध मिश्र 'हितैषी' जी
प्रदत्त पंक्ति --
बाँध लेना जुल्फ की जंजीर से "
मापनी : - " 2122 , 212 2 , 212 "
बाँध लेना जुल्फ की जंजीर से
तड़प ना देना, हटा फिर पीर से
झटक देना ना कहीं, तुम जुल्फ यूँ
छटक कर भीगें, नयन के नीर से
एस० डी० तिवारी
अधूरा मुक्तक - 270" के
नव मुक्तक समारोह - 53"
सम्मान्य अध्यक्ष सुप्रसिद्ध कवि भगवती प्रसाद जी
प्रेरक कवि का नाम ... स्वरचित
उनकी दो पंक्तियाँ -
उड़ने की चाहत थी, आसमां से ऊँचा कहीं
कटी पतंग कर डाला, उड़ने की ख्वाइशों ने
अब इन तीन पंक्तियों को पूरा करना है । यदि चाहें तो अंतिम दो पंक्तियां आप अपनी जोड़ सकते हैं
*************
बन गयी है खुशबु फूलों की जान की दुश्मन।
चुरा, हवा भी हो जाती अरमान की दुश्मन।
फैलते ही सुगंध, मडराने लगते हैं भौंरे
?????????????????????????
उड़ जाते चूस कर, बने सम्मान की दुश्मन।
तितलियाँ भी चिढातीं, अपने रंगो को बिखेर
बिना बात के हो जाती हैं शान की दुश्मन।
कभी होता है जी, सुनने को भौरों के गीत
बन जातीं तितलियाँ, उनके तान की दुश्मन।
चाहत तो होती, लुटा दे, बहारों को सब कुछ
मगर तोड़ कर होता कोई दान की दुश्मन।
माली भी मुआ खिलते ही, गड़ा लेता नजर
ले जाने को बन जाता है, दुकान पे दुश्मन।
एस० डी० तिवारी
" अधूरा ~ मुक्तक " समारोह - 269
" अधूरी गजल " - 41 "
अधरों से अधर बना करके , कल रात बहुत खेली होली ।
तर बतर पसीने में वो थी , सब भीग गयी चूनर चोली ।
**********************************************
मापनी : 2×16 = 32
काफ़िया : ओली , बिना रदीफ़ के ।
टेसू फूले, कोयल कुहुकी, मन महकाती बयार डोली।
ढोल बजाते, गाते फगुआ, आई सहेलियों की टोली।
मन के रंग उतार कूंची से, दिया है दहलीज पर रख
उतरी निखरी इंद्रधनुष सी, सुन्दर सतरंगी रंगोली।
घर पर बने पकवान कई, छोड़ जाने को जी ना चाहे
खड़ी सहेलियां ले जाने को साथ, खेलन को री होली।
मीठे और गुजिया के संग, देवर भाभी के मीठे रिश्ते
होली के दिन साली जुट गयी, जीजा से करने ठिठोली।
मन गुलशन में रंग बिरंगे, मुस्काएं फूल उमंग भरे
खेलेंगी इस दिन, खूब सखी री, रंगों में डूब कर होली।
बीता साल पूरा एक, तो आया खुशियों का त्यौहार
खेलेगी ना फगुआ में रंग पिया से? तू कितनी भोली।
चारों ओर मस्ती छाई, धुन मधुर हवा के झोंके लाई
भीगेगा, जो आयेगा छैला, कढ ले घर से हमजोली।
मुक्तक ~ सृजन - 45 "
आज प्रातः 8 बजे दिन मंगलवार 22 - 03 - 2016 की
अध्यक्षता सुविख्यात कवयित्री मोना सिंह
श्री वीर पटेल द्वारा प्रदत्त पंक्ति --
" तिरंगा रंग बरसेगा , धरा पर आज होली में "
मापनी : 1222 , 1222 , 1222, १२२२
मेरी रचना
अदावत भूल सबसे ही, मिलेंगे आज होली में।
परस्पर प्रेम का मधुरिम, बजेगा साज होली में।
ख़ुशी, प्रेम व अमन के, छलक के रंग पिचकारी से;
तिरंगा रंग बरसेगा , धरा पर आज होली में।
- एस० डी० तिवारी
"अधूरा-मुक्तक समारोह - 265 "
*******अधूरी गजल - " 40 "*** का मतला
" अब रिश्तों में कडुवाहट का जहर घुला "
" सुलग रहे तन दोनों के दिल रहे जला "
मापनी : 2× 11 = 22 मात्राभार
काफ़िया : " ला " बिना रदीफ़ की गजल
रिश्तों में कड़वाहट का जो जहर घुला।
सुलगता ये दिल, जलाने पर बदन तुला।
निकले थे थामे एक दूजे की बाहें
जगा दिये थे उल्फत के जुनून, बुला।
साथ गुजारे थे हँसीं, सालों तक हम
सकते कैसे अब उन लमहों को भुला।
नफ़रत की बरसात हुई, बेमौसम ही
उल्फत का एक एक जर्रा, उस वक्त धुला।
बहते आंसू से, ओद फिजायें सारी
रोना दोनों का साथ, गयी बात रुला।
लेता ना फिर से, उठँघने का नाम
तकरार का बीच में, जो किवाड़ खुला।
झुलस चुके जलते दिल की गरमी में
पलने में मगर रहे, रख के लपट झुला।
- एस० डी० तिवारी
"अधूरा ~ मुक्तक ~ 264 "
मुक्तक ~ सृजन - 43 "
अध्यक्षता सुविख्यात कवयित्री पुनीता भरद्वाज जी.
प्रदत्त पंक्ति -- " लगाये रंग जीजा को , फुदकती फिर रही साली "
मेरी रचना -
लगाये रंग जीजा को , फुदकती फिर रही साली।
भीगी है खुद भी रंगों में, लगाये गालों पे लाली।
छाया खुमार फगुआ का, उड़े रंगीन तितली सी
पकड़ने को सभी मचलें, आये न हाथ मतवाली।
- एस० डी० तिवारी
अधूरा ~ मुक्तक" समारोह - 263 " के अंतर्गत
"नव मुक़तक समारोह ~ 51 "
अध्यक्षता - सम्मान्य सुविख्यात कवयित्री आशा देशमुख जी
प्रेरक कवि का नाम ...... ब्राह्मणी वीणा हिंदी साहित्यकार
उनकी दो पंक्तियाँ......
ब्रज की सखियाँ- सखियाँ मिलके ,फगुवा मधु गीत सुनाय रहीं /
मनभावन मोहन आय गयो ,,,,,,,, करताल मृदंग बजाय रहीं /
ब्रजमोहन रंग गुलाल मलैं ,,,,,, वनिता ब्रज की शरमाय रहीं /
चुनरी अँगिया सब भीज गई ,,,,,,वृषभानलली मुसकाय रहीं //
पूर्ति हेतु मेरी ३ पंक्तियाँ
मोहन संग खेल के होली ,, गोपियाँ आनंद उठाय रहीं
रंग से अंग भिगोवत मोहन ,, अलौकिक नीर नहाय रहीं
उठाय मार रहीं पिचकारी ,, कान्हा को भी भिगाय रहीं
?????????????????????????????????
जोरा जोरी में चीर फटे ,, घर जावन में घबराय रहीं
"अधूरा-मुक्तक " समारोह - 261 "
*******अधूरी गजल - " 39 "*******
का मतला
" लड़ती है फिर भी मेरा हम साया है । "
" पेप्सी देकर उसने मुझे पटाया है "
कुल 22 मात्रा भार पर 22 की मापनी पर
काफ़िया : आया "
रदीफ़ : है "
" लड़ती है फिर भी मेरा हम साया है । "
" पेप्सी देकर उसने मुझे पटाया है। "
खाते थे साथ लिफाफे में मूंगफली
कक्षा से फूट, समोसा भी खाया है।
पढने लिखने में थी, बस वो बाबाजी
मैडम को हमने, नकल तक कराया है ।
विद्यालय लाते खाने की सामग्री
देवी जी ने छीन झपट कर खाया है।
लेकर आती घर से पकवान बनाकर
अवसर पाकर मैंने भी माल उड़ाया है।
घर से, बेघर से, घूमे माल, सिनेमा
फिर घर पर आकर फटकी तक खाया है।
जब जब छोड़कर पर्स, वो घर पर आती
उसको सौ सौ के, दो नोट थमाया है।
यूँ तो लौटा देती थी अगले ही दिन
सौ रुपये मगर, अभी तलक बकाया है।
सोचा था मन में पहले, उसने तो बस
मेरे बटुये पर ही नजर गड़ाया है।
पर वो ना होती रह जाते हम तनहा
उसने ही, जीवन का रंग जमाया है।
अब कदम कदम पर है वह साथ हमारे
जीवन गाड़ी पटरी पर दौड़ाया है।
- एस० डी० तिवारी
"अधूरा ~ मुक्तक ~ 260 "
मुक्तक ~ सृजन - 43 "
आज प्रातः 8 बजे दिन मंगलवार 08 - 03 - 2016 की
अध्यक्षता सुविख्यात कवि प्रखर दीक्षित
प्रदत्त पंक्ति --
" जलाकर भस्म कर दो जो , तिरंगे को जलाते हैं "
मापनी : 1222 1222 1222 1222
मेरी रचना
बसे इस देश की छाती, यहाँ का अन्न खाते हैं
बने दुश्मन हमारे और अरि का गीत गाते हैं
नहीं है हक़, यहाँ उनको रखा जाये बसाकर के
जलाकर भस्म कर दो जो , तिरंगे को जलाते हैं
एस० डी० तिवारी
मापनी : " 2122 , 2122 , 212"
काफ़िया : आ "
रदीफ़ : गया "
सांवला सजन
सांवला सूरत सजन का भा गया।
देखते ही मन में नशा सा छा गया
तेज करते ऐंठ कर, मूंछों की नोक।
देखा तो, दर्पण भी शरमा गया।
समझे न होगा, हम, प्यार दिल में
भारी मूंछों से दिल, भरमा गया।
रहा होगा पत्थर का दिल जरूर
पड़ी जब नजर मुझ पर, नरमा गया।
नजरों से नजरों का मेल, सुनहरा
प्यार का सलोना शिशु जनमा गया।
नहा लिया छाँव में उनकी जी भर
सांसों से उनके, तन मेरा गरमा गया।
मिल गयी जिंदगी को जिंदगी फिर
जीवन मेरा, उन्हीं में समा गया।
"अधूरा ~ मुक्तक ~ 256 "
मुक्तक ~ सृजन - 42 "
अध्यक्षता सुविख्यात कवयित्री रंजना वर्मा जी करेंगी.......
प्रदत्त पंक्ति --
" अंग अंग में रंग लगा हो,साँसों में हो प्यार बसा "
मेरी रचना -
" अंग अंग में रंग लगा हो,साँसों में हो प्यार बसा "
रंग-खुशी मिलकर नाचें, मन मुदित देख खुशहाल दशा।
होली का त्यौहार है अद्भुत, जन जन होता है हर्षित;
भूल द्वेष बरसती मस्ती, रंग, अबीर, गुलाल बरसा।
- एस० डी० तिवारी
अधूरा-मुक्तक " समारोह - 253 "
**अधूरी गजल - " 37 "* का मतला
" क्या हुआ है आज इस मेरे शहर को "
" मांगता है क्या कोई ढाकर कहर को "
मापनी : " 2122 , 2122 , 2122 "
काफ़िया : अहर "
रदीफ़ : को "
" क्या हुआ है आज इस मेरे शहर को "
हर एक चला जा रहा ढाकर कहर को
बो दिए हो बीज विष के हर जगह तुम
कौन काटेगा? उगाये इस जहर को।
सुबह होते ही धधका कर दावानल
बच रहे हो तपिश से अब दोपहर को।
बह गया बरसात का पानी, तब निकल
सींचने झुलसी फसल, ढूंढें नहर को।
डूब कर चुल्लू भरे जल में लजाये
कोसते जाते समुन्दर की लहर को।
लिख दिया दिल की कलम से गजल मैंने
ढूंढते फिरते सयाने अब बहर को।
- एस० डी० तिवारी
अधूरा मुक्तक समारोह ~ 240
मुक्तक सृजन ~ 38
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति -
बसंती ओड़कर चूनर, सजी ससुराल जाती है |
मापनी ~ 1222 1222 1222 1222
अध्यक्षता - डॉ हेमलता जी,
लगे, धरती बनी दुल्हन, जब फिजांयें सजाती है
बसंती ओढ़कर चूनर, सजी ससुराल जाती है
दिया सौगात फूलों का, बसंत इसको अनोखा है
बराती बन चले आये, भ्रमर को नित लुभाती है
- एस० डी० तिवारी
"अधूरा ~ मुक्तक ~ 236 "
दो दिवसीय लोकप्रिय आयोजन मुक्तक ~ सृजन - 37 "
आज प्रातः 9 बजे दिन मंगलवार 26 - 01 - 2016 की
अध्यक्षता - सुविख्यात कवि सोमनाथ शुक्ल जी
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति --
" गणतन्त्र दिवस पर हर्षित हो, भारत का जय जय गान करो ।"
"मापनी : "22 22 22 22, 22 22 22 22 "
जन्म लिये हो भारत में तुम, इस गौरव पर अभिमान करो।
यह धरती है माँ से बढ़कर हरदम इसकी गुणगान करो।
जिसने पाल रखा गोदी में, उसका दिल से सम्मान करो।
गणतन्त्र दिवस पर हर्षित हो, भारत का जय जय गान करो।
- एस० डी० तिवारी
पाया सब कुछ इस माटी से, इस धरती पर कुर्बान करो
अधूरा-मुक्तक " समारोह - 253 "
**अधूरी गजल - " 37 "* का मतला
" क्या हुआ है आज इस मेरे शहर को "
" मांगता है क्या कोई ढाकर कहर को "
मापनी : " 2122 , 2122 , 2122 "
काफ़िया : अहर "
रदीफ़ : को "
लिख दिया दिल की कलम से गजल मैंने
ढूंढते फिरते सयाने हैं बहर को
तैरने आये न खुद को ताल में भी
कोसते जाते समुन्दर की लहर को
बह गया बरसात का पानी, तब निकल
खेत आये किस तरह! ढूंढें नहर को
दोपहर को
सहर को
"अधूरा-मुक्तक " समारोह - 221 "
*******अधूरी गजल - " 29 "*******
पेश है आज का मार्मिक मतला
" ख़ुशी की वो' डोली चढ़े जा रही है । "
" गमों की तिजोरी दिये जा रही है ।"
मापनी : 122 122 122 122 "
*******************************
काफ़िया : ये "
रदीफ़ : जा रही है "
***********************************
दुल्हन चली
ख़ुशी की तस्वीर गढ़े जा रही है।
दुल्हन बन डोली चढ़े जा रही है।
नयन में बुने हैं नये ख्वाब उसके,
गमों का पिटारा दिये जा रही है ।
चली है बसाने, सजन का महल अब,
घर पिता का खाली किये जा रही है।
जगमगा उठेगा, पिया का सजा घर ,
तिमिर मातु उर में भरे जा रही है।
करती थी रुनझुन, चहकती हमेशा,
सुखोचैन माँ का लिये जा रही है।
उड़ चली बुलबुल, बगिया से जनक की,
बहारें चमन की लिये जा रही है।
चहक से भरेगा ससुर अंगना अब,
मकां बाबुल, सूना किये जा रही है।
उड़े थी कभी वह कली सी हवा में ,
जहां का वजन सिर धरे जा रही है।
सखी औ सहेली भरीं अश्क नयनन,
जुदाई गरल वह पिये जा रही है।
एस० डी० तिवारी
कहीं जा छुपी बैठीउसकी बिल्ली
अकेले पड़ी म्याऊं किये जा रही है
"अधूरा ~ मुक्तक ~ 220 "
दो दिवसीय लोकप्रिय आयोजन
मुक्तक ~ सृजन - 33 "
आज प्रातः 8 बजे दिन मंगलवार 29 - 12 - 2015 की
अध्यक्षता - देशप्रेमी सुकवि मुरारि पचलंगिया जी
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति --
" जवानी सो रही देखो , उसे कविवर जगाओ तुम ।"
"मापनी - 1222 1222 , 1222 1222 "
चढ़े उन्माद चोटी तक, थिरकता गीत गाओ तुम।
खड़े हों उठ वतन वाले, लहर ऐसी उठाओ तुम।
रिपु अनेक घुस आये, इस जमीं को कर रहे जख्मी,
जवानी सो रही अब भी, उसे कविवर जगाओ तुम ।
एस० डी० तिवारी
अधूरा मुक्तक " ~ 219 " के
नव मुक्तक समारोह - 40 "
सम्मान्य अध्यक्ष सुप्रसिद्ध कवि डॉ. कैलाश मिश्र जी
प्रेरक कवि - जय शंकर प्रसाद
उनकी दो पंक्तियाँ -
अभिलाषाओं की करवट / फिर सुप्त व्यथा का जगना
सुख का सपना हो जाना / भींगी पलकों का लगना।
उनकी दो पंक्तियाँ -
अभिलाषाओं की करवट / फिर सुप्त व्यथा का जगना
सुख का सपना हो जाना / भींगी पलकों का लगना।
पूर्ति हेतु मेरी तीन पंक्तियाँ
असीम इच्छाओं के पीछे
भाग रहे हैं ऑंखें मींचे
गंतव्य का अता पता नहीं
????????????????
भाग रहे हैं ऑंखें मींचे
गंतव्य का अता पता नहीं
????????????????
उबड़-खाबड़ गड्ढे नीचे Manohar arora
गिर न जाये कही नीचे। Mdhu Sudan Gautam
आगे लोभ लालच खींचे । Dr Hemlata Suman
चल रहे बस मोह को भींचे।
चले विकारी झंडे नीचे। Deepshikha Sagar
बहुत लाजवाब सृजन आदरणीय जी सरल और सहज भाव मे सुन्दर रचना Dr Kailash Mishra
दौड़ रहे हम मुट्ठी भींचे Rajesh Gupta
अधूरा ~ मुक्तक के प्रथम काव्य संकलन के
नव मुक्तक सृजन में प्रकाशन हेतु मेरी रचनाएँ (निम्न प्रकार से अपनी पोस्ट मंच पर पोस्ट करें)
जीवन परिचय
कवि का नाम ........ एस० डी० तिवारी
जन्मतिथि ....... २०-१२-१९५५
व्यवसाय या सर्विस ...... एक सार्वजनिक उपक्रम में प्रबंधकीय पद से सेवानिवृत्त तत्पश्चात वकालत
साहित्यिक उपलब्धियां - श्री दुर्गा कथा (काव्य), रामभक्त हनुमान (काव्य), मन चालीसा, नन्हीं (हाइकू), अन्य प्रकाशाधीन
एक छाया चित्र
पता ......... ५७ c, उना एन्क्लेव, मयूर विहार -१, दिल्ली ११००९१
सम्पर्क सूत्र ....... ९८६८९२४१३९
और अंत में अपने 5 नव मुक्तक समारोह के वो मुक्तक जो आपको बेहद प्रिय हो और आप उन्हें प्रकाशित करवाना चाहते हैं सादर निवेदित
समय कम है मित्र 26 जनवरी के राष्ट्रिय पर्व तक यह काम हम संपादित करने का लक्ष्य बना चुके हैं आप अपना सहयोग जल्द से जल्द प्रदान करें
वीर पटेल
१
पत्थरों के लिये दौड़ने को, तत्पर हुआ जाता हूँ।
आदमीयता के मामले में, सिफर हुआ जाता हूँ।
पत्थरों की सड़क पर, सरपट दौड़ती ये जिंदगी;
पत्थरों के शहर में रहकर, पत्थर हुआ जाता हूँ।
2
वो आये बैठे दुअरे, मै जानी न पहचान सकी।
वर्षों पथ निहार सखी, मैं सोयी रही थकी थकी।
उनके दृग न घुमे इधर, उधर मुड़े न मेरे लोचन;
पिय मिलन के पल परे भये, बैरन पलकों की झपकी।
३
उनके दृग न घुमे इधर, उधर मुड़े न मेरे लोचन;
पिय मिलन के पल परे भये, बैरन पलकों की झपकी।
३
ठूंठ पेड़ के नीचे छाँव ढूंढने से क्या हासिल।
मरुस्थल भूमि में जल ढूंढने से क्या हासिल।
कृपण से दान की उम्मीद, है रखना बेकार;
निर्दयी के दिल में प्यार ढूंढने से क्या हासिल।
४
सूरज सा गरम न बनो की चाँद ही भाग जाय।
हिम सा शीतल न बनो कि जिंदगी जम जाय।
फूल सा नरम न बनो कि हर भौंरा छेड़ जाय।
हीरा सा कठोर न हो कि मूर्ति भी न बन पाय।
५
ये दुनिया जहाँ प्यार तो अँधेरे में छुपकर करते हैं।
मगर नफ़रत और हिंसा उजाले में खुलकर करते हैं।
मरी वस्तुओं और धन से प्यार तो दिल से करते हैं;
जीते जी इंसानों से सहम और संदिल से करते हैं।
६
घिस घिस कर के ही, पाषाण चिकना होता।
नग बनने हेतु, हीरे को कटना होता।
किसी के माथे पर सज जाने के लिये,
चन्दन को भी पत्थर पर घिसना होता।
मरुस्थल भूमि में जल ढूंढने से क्या हासिल।
कृपण से दान की उम्मीद, है रखना बेकार;
निर्दयी के दिल में प्यार ढूंढने से क्या हासिल।
४
सूरज सा गरम न बनो की चाँद ही भाग जाय।
हिम सा शीतल न बनो कि जिंदगी जम जाय।
फूल सा नरम न बनो कि हर भौंरा छेड़ जाय।
हीरा सा कठोर न हो कि मूर्ति भी न बन पाय।
५
ये दुनिया जहाँ प्यार तो अँधेरे में छुपकर करते हैं।
मगर नफ़रत और हिंसा उजाले में खुलकर करते हैं।
मरी वस्तुओं और धन से प्यार तो दिल से करते हैं;
जीते जी इंसानों से सहम और संदिल से करते हैं।
६
घिस घिस कर के ही, पाषाण चिकना होता।
नग बनने हेतु, हीरे को कटना होता।
किसी के माथे पर सज जाने के लिये,
चन्दन को भी पत्थर पर घिसना होता।
अधूरा ~ मुक्तक ~ 216 "
दो दिवसीय लोकप्रिय आयोजन
मुक्तक ~ सृजन - 32 "
आज प्रातः 8 बजे दिन मंगलवार 22 - 12 - 2015 की
अध्यक्षता सुप्रसिद्ध कवयित्री व कहानीकार शारदा मदरा जी.
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति --
" माँ के आँचल में ममता की, छाँव हुआ करती है ।"
"मापनी - 22 22 22 22 , 22 22 22 "
मेरा मुक्तक -
माँ के आँचल में ममता की, छाँव हुआ करती है।
निश्छल आश्रय मिले जन्नत सा, ठाँव हुआ करती है।
जीने की अमिय सुधा, होती, माँ के आंचल में ही,
हर मुश्किल से पार लगाने की, नाव हुआ करती है।
- एस० डी० तिवारी
"अधूरा-मुक्तक "
समारोह - 209 "
*******अधूरी गजल - " 26 "*******
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त आज का मतला
******************************************
" सब कहते हैं पगली उसको , वो मुझे दिवानी लगती है । "
" दर्द छुपा उसकी आँखों में , दुख भरी कहानी लगती है ।"
*********************************************
मापनी : 2222 2222 , 212 1222 22 "
*******************************
काफ़िया : आनी "
रदीफ़ : लगती है "
" सब कहते हैं पगली उसको , वो मुझे दिवानी लगती है । "
" दर्द छुपा उसकी आँखों में , दुख भरी कहानी लगती है ।"
प्यार लुटाया उस पर इतना, मिले चैन ना उससे बिछुड़े
बहती यादों में निस वह, सरि का निर्मल पानी लगती है।
बीत गये जाने के वर्षोँ, अब तक नहीं पर लौटा वह
उसके वो खोने की बातें, कहने यूँ जुबानी लगती है।
खोकर खो बैठी उसको वो होश, बाट जोहे दुखियारी
तकती खाली राहों को, हरकत अति बचकानी लगती है।
उसके बिन उसका जीना फिजूल सा, मानो बेजान हुई
खोज रही जोश भरी वह, बिजली सी तुफानी लगती है।
मन में रखती बेतहाशा साहस, भरे सनक पा लेने का
आज नहीं तो कल तलाश, पूरी होगी, ठानी लगती है।
फिरती दर दर बिछुड़ी उससे भूख प्यास की ना परवाह
रोती पीड़ा में, ममता की, विरल एक निशानी लगती है।
"अधूरा ~ मुक्तक ~ 208 "
दो दिवसीय लोकप्रिय आयोजन
मुक्तक ~ सृजन - 30 "
आज प्रातः 8 बजे दिन मंगलवार 08 - 12 - 2015 की
अध्यक्षता सुविख्यात कवि भगवती प्रसाद जी
श्री वीर पटेल द्वारा प्रदत्त पंक्ति --
" मैं रीझ गया हूँ भावों पर , मुझको कविता से प्यार हुआ ।"
"मापनी - 22 22 22 22 , 22 22 22 22 "
मेरी रचना -
भाव भरे मन ये, कविता जनने को, व्याकुल हर बार हुआ।
" मैं रीझ गया हूँ भावों पर , मुझको कविता से प्यार हुआ ।"
शब्दों के फूल किया अर्पण, सपना मेरा साकार हुआ
कविता की खातिर ही फिर तो, जीवन अपना न्यौछार हुआ।
"अधूरा-मुक्तक " समारोह - 201 "
*******अधूरी गजल - " 24 "*******
श्री वीर पटेल जी द्वारा दिया गया मतला
*********************************
" खिलौना जब बनाया दिल किसी ने "
" किसी का तब रुलाया दिल किसी ने "
**********************************
मापनी : 1222 , 1222 , 122 "
*******************************
काफ़िया : आया "
रदीफ़ : दिल किसी ने "
**********************
" खिलौना सा जब बनाया दिल किसी ने "
" किसी का बड़ा तब रुलाया दिल किसी ने "
था होता कभी बड़ा प्यारा दुलारा
उसे कर दिया पराया दिल किसी ने।
सहेजा और भाला मुहब्बत में उसको
हिंडोले में ले झुलाया दिल किसी ने।
पाया नया खिला गुल सा जब तलक
मुकुट सा सिर पर बिठाया दिल किसी ने।
हमेशा रहे वो बसर उसका रौशन
चिराग के जैसा जलाया दिल किसी ने।
जब तलक खेलने के समझा वो काबिल
बना के गुड़िया सजाया दिल किसी ने।
लिये चस्का दिलों से खेलने का एसडी
बना करके लट्टू नचाया दिल किसी ने।
भर गया मन जब खेलने से उसका
पैरों के तले दबाया दिल किसी ने।
- एस० डी० तिवारी
अधूरा ~ मुक्तक ~ मंच " का " द्विशतकीय "
दो दिवसीय लोकप्रिय आयोजन
मुक्तक ~ सृजन - २८ "
प्रातः 8 बजे दिन मंगलवार 24 - 11 -2015 की
अध्यक्षता - मुक्तक लोक के रचयिता काव्य शिरोमणि परमादरणीय प्रो . विश्वम्भर शुक्ल जी की सेवा में
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति --
" प्यार फिर से वो जताने आ गये हैं ।"
"मापनी - " 2122 2122 2122 "
प्यार फिर से वो जताने आ गये हैं ।
हैं बड़े अपने दिखाने आ गये हैं।
पड़ गयी उनको जब जरूरत हमारी,
जख्म पर मरहम लगाने आ गये हैं।
- एस० डी० तिवारी
"अधूरा-मुक्तक "
समारोह - 193 "
का अभिनव आयोजन पेश है आज की
*******अधूरी गजल - "22 "*******
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त खूबसूरत मतला ......
*******************************
" दीप सितारों के जैसे जब सजती है ।
" दीवाली में धरती दुल्हन लगती है ।"
*******************************
मापनी : 22 22 22 22 22 2 "
*******************************
काफ़िया : अती ,
रदीफ़ : है "
***************************
" दीप सितारों के जैसे जब सजती है ।
" दीवाली में धरती दुल्हन लगती है ।"
दीपक की मालाओं से जब सजती है
तारे उतर गये हों अम्बर से नीचे
धरनी मानो तारा मंडल दिखती है।
नहला देतीं सावन, भादों की बूदें,
रंग-बिरंगी इन्द्रधनुष सी लगती है।
सज जाती है जब रंगोली घर घर में
हाथों की हीना सी रंग बिखरती है।
नव परिधान पहन कर वह तो इतराती
मुखड़े पर खुशियां साफ झलकती है।
आतिशबाजी की आलोक लिये, धरती
लहराती चुनरी सी झिलमिल करती है।
चुनरी में करती रोशन जन जन का मन
दीवाली में धरती दुल्हन लगती है।
अधूरा ~ मुक्तक ~ 192 ~
का दो दिवसीय लोकप्रिय आयोजन
मुक्तक ~ सृजन - 26 "
प्रातः 8 बजे दिन मंगलवार 10 - 11 -2015 की
अध्यक्षता सुविख्यात कवयित्री रंजना वर्मा जी
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति --
" दीपशिखा सा जलनेवाला , अब कोई इंसान नहीं ।"
"मापनी " 22 22 22 22 22 22 22 2 "
1
सच्चाई के पथ पर चलना, है कोई आसान नहीं।
अधर्म कर के लाभ उठाना, प्रभु का है वरदान नहीं।
धर्म, नियम, संयम अपनाये, औरों का लूट न खाये,
दीपशिखा सा जलनेवाला, अब कोई इंसान नहीं।
२
सिंहासन का लोभ सभी को, कर्तव्यों का भान नहीं।
जन हित की सोच रखे, सम्राट अशोक सम महान नहीं।
शासक को रहती, अपने कुल की चिंता, बाकी से क्या ?
दीपशिखा सा जलनेवाला , अब कोई इंसान नहीं।
“अधूरा ~ मुक्तक” ~
नव मुक्तक समारोह –(32)
“अधूरा मुक्तक " ~ 187 के
आयोजन - श्री वीर पटेल जी
सम्मान्य अध्यक्ष ...सुप्रसिद्ध कवयित्री रमा वर्मा जी
प्रेरक कवि का नाम - श्री हरिवंश राय बच्चन ......
उनकी दो पंक्तियाँ -
'जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।'
मेरे मुक्तक की 3 पंक्तियाँ पूर्णता की प्रतीक्षा में -
लड़खड़ा कर है चलता, मधुशाला का मतवाला।
धन, बदन, मन से जलता, मधुशाला का मतवाला।
हनन आत्मा का करता, होठ लगा के मधु-प्याला,
???????????????????????????
एस० डी० तिवारी
अधूरा ~ मुक्तक ~ १८४ ~
का दो दिवसीय लोकप्रिय आयोजन
मुक्तक ~ सृजन - २४ "
प्रातः 8 बजे दिन मंगलवार 27- 10 -2015 की
अध्यक्षता सुविख्यात कवयित्री पुष्पलता जी करेंगी ।
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति --
" किसी की आँख का काजल , नयन ज्योती बना मेरी "
मापनी : " 1222 , 1222 , 1222 1222 "
मुक्तक :
किसी कोने बसा दिल के, वही रूप सपना मेरा
किसी की आँख का काजल , नयन ज्योती बना मेरा "
मिल गयी राह वो, जिसके लिये नजर भटक रही थी
भव्यतम प्यार का जलसा, दिल रहा है मना मेरा
सलोना प्यार का पुतला, दिल गर्भ ने जना मेरी
एस० डी० तिवारी
अधूरा-मुक्तक "
" विजय पर्व * विजयदशमी की शुभकामनाओं सहित "
समारोह - 181"
का अभिनव आयोजन पेश है आज की
*******अधूरी गजल - "19 "*******
का श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त खूबसूरत मतला ......
*******************************
" उर्मिला उरमिला खिलखिलाने लगी । "
" प्यास चौदह वरष की बुझाने लगी।"
*******************************
मापनी : 212 , 212 , 212 , 212 "
*******************************
काफ़िया : आने , रदीफ़ : लगी "
*******************************
उर्मिला का विरह, गजल
बिछुड़ सजन से अपन, घबराने लगी
उर्मिला मन ही मन, अकुलाने लगी।
वन गमन को लखन, जब घर से चले
संग जाने को उनके, मनाने लगी।
साथ जाना सजन के, मना हो गया
सफल तप हो, स्वयं को तपाने लगी।
बीत चौदह बरस, जाँयगे किस तरह
सोचती रात ऑंखें, जगाने लगी।
देखती आसमां, अंगना में खड़ी
चांदनी में अकेले, नहाने लगी।
आस मन में लिये, फिर उगेगा रवी
घोर तम में लिये, दिल जलाने लगी।
दिन बिताती बिरह में, तपस्विनी बनी
लखन सकुशल रहें, नित मनाने लगी।
उर्मिला का मिलन, गजल
" उर्मिला उरमिला खिलखिलाने लगी । "
" प्यास चौदह वरष की बुझाने लगी।"
कष्ट चौदह बरस की भुलाने लगी।"
नैन राहों, पिया के बिछाने लगी।
उरमिला, उर्मिला का, सदा यूं रहा
देख आँखे, लखन को जुड़ाने लगीं।
खो दिया जिंदगी की सुनहरी घडी
फल मधुर हर एक पल का पाने लगी।
बीत कैसे गया रह अकेले समय
याद करके व्यथा सब बताने लगी।
सींच डाली चमन, प्यार में शुष्क मन
कुम्हलाये गुलों को खिलाने लगी।
बुझ चुके सब दिवे हृद के जल गये
रोशनी से दिवाली मनाने लगी।
एस० डी० तिवारी
"अधूरा-मुक्तक "
" नवरात्रि की शुभकामनाओं सहित "
समारोह - 175 "
का अभिनव आयोजन पेश है आज की
*******अधूरी गजल - "18 "*******
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त खूबसूरत मतला ......
*******************************
" दर्शन दे दो मातु पुकारे । "
" माँ हम आये द्वार तिहारे ।"
*******************************
मापनी : 22 , 22 ,22 , 22 "
*******************************
तेरे दर्शन के हम प्यासे " दर्शन दे दो मातु पुकारें । "
" माँ हम आये द्वार तिहारे ।"
तू ही उद्भव करती जग की
तू ही सबको भव से तारे।
शरणागत की पीड़ा हरती
तू ही बेडा पार उतारे।
तेरे अतिरिक्त नहीं कोई
संकट में हों जिसके सहारे।
तू है आश्रयदाता सबकी
तू ही सबके कष्ट निवारे।
खाली हाथ न जाता कोई
जो भी आता तेरे द्वारे।
तू है माँ करुणा का सागर
हम पर भी कृपा बरसा रे।
नव मुक्तक समारोह –(29)
“अधूरा मुक्तक " ~ 173 के
सम्मान्य अध्यक्ष ...सुप्रसिद्ध कवयित्री बिंदु कुलश्रेष्ठ जी
प्रेरक कवि का नाम - श्री गोपाल दास नीरज
उनकी दो पंक्तियाँ......
फूलों के रंग से दिल की कलम से
तुझको लिखी रोज पाती
“अधूरा मुक्तक " ~ 173 के
सम्मान्य अध्यक्ष ...सुप्रसिद्ध कवयित्री बिंदु कुलश्रेष्ठ जी
प्रेरक कवि का नाम - श्री गोपाल दास नीरज
उनकी दो पंक्तियाँ......
फूलों के रंग से दिल की कलम से
तुझको लिखी रोज पाती
मेरी ये तीन पंक्तियाँ, पूर्ति हेतु आपकी अंतिम पंक्ति की प्रतीक्षा में -
फूलों पर मडराने के लिए नाम दिया जाता है
भौरों को अनायास ही बदनाम किया जाता है
उनके बिना पराग को पराग से कौन मिलाता
***************************************
भौरों को अनायास ही बदनाम किया जाता है
उनके बिना पराग को पराग से कौन मिलाता
***************************************
एस० डी० तिवारी
क्यों जग में उनका पौरुष नाकाम किया जाता है प्रमोद तिवारी
चाहत का हर प्रयास नाकाम किया जाता है // - देवेन्द्र देवेन
बढ़ता है जब दर्दे दिल तो जाम पिया जाता है - आशा सोनी
उनसे ही तो गुलशन में ये काम लिया जाता है। - दीपशिखा सागर
फूलों को रूप औ गंध का इनाम दिया जाता है।। - डॉ कैलाश मिश्रा
आखिर क्यूं बदनाम जिनसे काम लिया जाता है । - वीर पटेल
निस्वार्थ प्रेम को ही तो बदनाम किया जाता है - मनोहर अरोरा
** सुप्रभात मित्रों ***
"अधूरा-मुक्तक "
समारोह - 171"
का अभिनव आयोजन पेश है आज की
*******अधूरी गजल - "17 "*******
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त खूबसूरत मतला ......
*******************************
" जिंदगी भर चाय वो पीता रहा । "
" जख्म गैरों के सदा सीता रहा ।"
*******************************
मापनी : 2122 , 2122 , 212
*******************************
वो चाय वाला
जिंदगी भर चाय पर जीता रहा
जख्म गैरों के सदा सीता रहा ।
और कोई भी नशा छू ना सका
चाय मगर कई दफा पीता रहा।
चाय बेच कर वह करता था बसरचाय मगर कई दफा पीता रहा।
तंग हाल रखे, मगर खुश जीता रहा।
देह से कुछ अल्प बल सा ही रहा
किन्तु दिल से बहुत संजीदा रहा।
जो खुदा की हो रजा, होगा वही किन्तु दिल से बहुत संजीदा रहा।
बांचता नित, ज्ञान की गीता रहा।
पूछ लेता हाल, जो मिलता उसे
गलत पर, तेवर बड़ा तीखा रहा।
लोग चाहे साथ उसके कुछ करे
मगर वह था कि सबका मीता रहा।
- एस० डी० तिवारी
ढह जाती है एक न एक दिन तो, पुरानी दीवार,
कह जाती है कोई कहानी, पुरानी दीवार।
पुराने रिश्तों का भी, होता कुछ ऐसा ही हाल
मरम्मत बिना खँडहर, ज्यों ढही पुरानी दीवार
का दो दिवसीय लोकप्रिय आयोजन
मुक्तक ~ सृजन - २१ "
प्रातः 8 बजे दिन मंगलवार 06 - 10 -2015 की
अध्यक्षता देशप्रेमी सुविख्यात कविमुरारि पचलंगिया जी ।
श्री वीर पटेल जी द्वारा प्रदत्त पंक्ति --
" दाग लगाते नेता देखे , बापू की अब खादी पर ।"
मापनी : " 22 22 22 22 22 22 22 2 "
मेरा मुक्तक
आजादी का संघर्ष टिका था, बापू का, खादी पर
दाग लगाते नेता देखे , बापू की अब खादी पर ।
उज्ज्वल खादी का चोला पहने, खाकी को साथ मिला,
काली करतूत स्वयं करते, कालिख पोतें खादी पर ।
*********************
"अधूरा-मुक्तक "
समारोह - 166 "
का अभिनव आयोजन पेश है आज की
*******अधूरी गजल - "16 "*******
का खूबसूरत मतला ......
*************************************
" खिलखिलाते हर अधर की मैं अनूठी शान हूँ । "
" हूँ अभी नन्हीं कली पर आपकी मुस्कान हूँ "
*************************************
मापनी : 2122 , 2122 , 2122 , 212 "
************************************
मित्रों फिर देर किस बात की उठाइये अपने खुशनुमा एहसासों की कलम और कम से कम 5 चुनिंदा शेर लिखकर मुकम्मल करें इस गजल को ....
एक गजल
हूँ अभी नन्ही कली पर, एक बड़ी अरमान हूँ
खिलखिलाते हर अधर, मैं आपकी मुस्कान हूँ।
घर चहकता है मुझी से, हँसता है आंगना
मातु की हूँ लाडली, मैं तात का अभिमान हूँ।
सुन्दर धरा की छवि बढाती, मुझी से है जगत
सुंदर, सुगन्धित; चमन में पुहुप सुरभि समान हूँ।
सौंदर्य की हूँ चित्रकारी, गुलिस्तां दिल में लिये
प्रेम का गहरा समुन्दर, मन मुग्धक जहान हूँ।
उस रचयिता की रचित, हूँ सृजन अद्भुत मैं एक
सृजन बढ़ाते बढ़ चलूँ, उसी का वरदान हूँ।
पुष्प सी हूँ कोमल बहुत, खड्ग की मैं धार हूँ
मैं एक पहेली बड़ी हूँ और अति आसान हूँ।
प्रेरणा बन हूँ खड़ी, सफल व्यक्तियों के बगल
बहुत सी उनकी मुश्किलों का, मैं समाधान हूँ।
कारक रही मैं प्रजनन और जग संचलन की
हर युगों में उपस्थित, नव सृष्टि की विहान हूँ।
हूँ अभी नन्ही कली पर, एक बड़ी अरमान हूँ, मैं।
खिलखिलाते हर अधर पर, मैं आपकी मुस्कान, हूँ।
घर चहकता है मुझी से और हँसता आंगना
मातु की हूँ लाडली और तात का अभिमान हूँ, मैं।
सुन्दर धरा की छवि बढाती, मुझी से है ये जगत
सुंदर, सुगन्धित; चमन में पुहुप सुरभि समान हूँ, मैं।
सौंदर्य की हूँ चित्रकारी, गुलिस्तां हूँ दिल में लिये
प्रेम का गहरा समुन्दर, मन मुग्धक जहान हूँ, मैं।
उस रचयिता की रचित, मैं सृजन हूँ अद्भुत सी एक
सृजन बढ़ाते बढ़ चलूँ, उसी का वरदान हूँ, मैं ।
पुष्प सी कोमल बड़ी और तेज खड्ग की धार हूँ
एक पहेली हूँ जटिल और बहुत आसान हूँ, मैं।
प्रेरणा बन हूँ खड़ी, सफल व्यक्तियों के बगल में
बहुत सी उनकी मुश्किलों का, एक समाधान हूँ, मैं ।
कारक रही मैं प्रजनन और जग के संचलन की
हर युगों में उपस्थित, नव सृष्टि की विहान हूँ, मैं।
(C ) एस ० डी० तिवारी
श्री वीर पटेल द्वारा प्रदत्त एवं सुविख्यात कवि डॉ. उमेश चंद्र श्रीवास्तव जी की अध्यक्षता में आयोजित ....
*** अधूरा ~ मुक्तक ***
समारोह - १६५ "
का लोकप्रिय समारोह
" मुक्तक ~ सृजन - २० "
प्रदत्त पंक्ति : " कबूतर प्रेम के उड़ते , नजर आते नहीं यारों । "
मापनी : 1222 , 1222 , 1222 , 1222 "
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
हेतु मेरी रचना -
शहर के लोग तो आजकल बतियाते नहीं यारो
सभी लोग फेस बुक करते बतियाते नहीं यारो
व्यक्तिगत तौर से परस्पर मिल पाते नहीं यारो।
कभी तो भाव का होता, अभाव कभी समय का ही
पक्षियां / कबूतर प्रेम के उड़ते , नजर आते नहीं यारों।
- एस० डी० तिवारी
अधूरा--मुक्तक -१६३
नव मुक्तक समारोह--२७
समारोह अध्यक्ष--आदरणीय धीरेन्द्र जोशी जी एवं मंच के अवलोकन हेतु
प्रेरक कवि--कबीर
बहुत दिनन में प्रियतम पाये
भाग बड़े घर बैठे आये
भाग बड़े घर बैठे आये
मेरा अधूरा मुक्तक आपकी एक पंक्ति का भूखा
वो आये बैठे दुअरे, मै जानी न पहचान सकी
वर्षों पथ निहार सखी, मैं सोयी रही थकी थकी
उनके दृग न घुमे इधर उधर मुड़े न मेरे लोचन
*********************************
वर्षों पथ निहार सखी, मैं सोयी रही थकी थकी
उनके दृग न घुमे इधर उधर मुड़े न मेरे लोचन
*********************************
पिऊ पावन के पल परे भये, बैरन पलकों की झपकी
एस० डी० तिवारी
अब फिर कब आयेंगे दुअरे मेरे भगवान सखी - मनोज शंकर शुक्ल
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आद. बहुत ही उच्चकोटि का सृजन आपकी समर्थ लेखनी द्वारा नमन आपके भावों को हार्दिक बधाई मेरी कोशिश देखें .........।। अंत समय स्वांसा मम सखि पिय दर्शन के हित अटकी । -- वीर पटेल
व्याकुल मन से उन्हे देखती रही अपलक ठगी ठगी // सुन्दर निर्गुण पर लिखा गया मुक्तक नमन आद / मेरी पूर्ति सादर प्रेषित
- देवेन्द्र देवेन
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह...SD Tiwari जी चिर विरहिणी की वेदना को परिलक्षित करती आपकी पक्तियों ने इस समारोह को सजा दिया ।
- धीरेन्द्र कुमार जोशी
*** सुप्रभात मित्रों ***
"अधूरा-मुक्तक "
समारोह - 161 "
का अभिनव आयोजन पेश है आज की
*******अधूरी गजल - "15 "*******
का खूबसूरत मतला ......
*************************************
" सरगम सी वो शर्माती इठलाती थी "
" अंजानी थी फिर भी मिलने आती थी "
*************************************
मापनी : 22 22 22 22 22 2 "
************************************
मित्रों वो अंजानी दोस्त कभी न कभी तो आयी होगी जिंदगी के सफ़र में ........😃 फिर देर किस बात की उठाइये अपने खुशनुमा एहसासों की कलम और कम से कम 5 चुनिंदा शेर लिखकर मुकम्मल करें इस गजल को ....
वो अंजानी लड़की
कलियों सी खिल जाती, वो इठलाती थी
सरगम सी वो शर्माती, इठलाती थी
अंजानी थी, फिर भी मिलने आती थी।
रुन झुन करती, बजती जब पायल उसकी
मधु सी मीठी, कानों में घुल जाती थी।
घर का द्वार खुला रह जाता, जब जब भी
उड़न परी सी, वह घर में घुस जाती थी।
इत्र न फूल लगाती, पर खुशबू उसकी
मेरे घर की, मंद हवा महकाती थी।
बाँहों में बंधी, आलिंगन पाश मुझे
रेशम ढेरी का, एहसास कराती थी।
कह जाती दिल की, पर जब तुतलाती थी
समझ न आती, फिर भी अतिशः भाती थी।
कुछ काल अभी संग, व्यतीत न कर पाता
उसकी माँ आ, बांह पकड़ ले जाती थी।
मिल पाता ह्रदय को, आमोद जब तलक
गावों की बिजली सी, गुल हो जाती थी।
उससे मिलना, छुप भी पाता तो, कैसे
मेरे वस्त्रों में, दाग लगा जाती थी।
--- एस० डी० तिवारी
अधूरा ~ मुक्तक ~ १६० ~
का दो दिवसीय लोकप्रिय आयोजन
मुक्तक ~ सृजन - १९ "
प्रातः 8 बजे दिन मंगलवार 22 - 09 -2015 की
अध्यक्षता युवा कवयित्री पुष्पलता
प्रदत्त पंक्ति -- " खिलाकर के सुमन अनुपम , करो श्रृंगार वसुधा का ।"
मापनी : " 1222 , 1222 , 1222 , 1222 "
उपरोक्त मंच हेतु मेरी एक मुक्तक रचना निम्नवत है -
गिराते जा रहे पादप, विदीर्ण कर रहे पर्वत;
किये बिन ध्यान होता तन, अविरल उघार वसुधा का।
दिया सब कुछ, बनी वो माँ, न हो अपकार वसुधा का;
खिलाकर के सुमन अनुपम, करो श्रृंगार वसुधा का।
२१. ९. २०१५
अधूरा~मुक्तक~समारोह:158
नव~मुक्तक ~समारोह:26
समारोह अध्यक्ष आदरणीय श्री सतीश सक्सेना जी एवम् आदरणीय दादा Veer Patel जी के सम्मान में आप सभी गुणी जनो से चौथी पँक्ति के अपेक्षा सहित प्रस्तुत है मेरा अधूरा मुक्तक
प्रेरक कवि: ग़ालिब
प्रेरक पंक्तियाँ
उनके देखे से जो आती जाती है मुँह पर रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
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जल से भर के नयना सजनी, अब ताक हमे भरमात रहीं
जब थे हम तो उनसे कहते, तब देख हमे छुप जात रहीं
बहकी बहकी जब चाल हुई,अरु पीर उठी उनके हिय में
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हम दूर चले, उनके नयनों में, भादों की बरसात रही
२०.०९ .२०१५
पाक देश नापाक इरादे
करता रहता झूठे वादे
शांति के हमारे प्रस्ताव
दर्शाता ना समुचित भाव
शांति के करते जो यत्न
समझना ना निर्बल हम
संभाल पाता ना अपने
देखता कश्मीर के सपने
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